बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मूल्यांकन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर -
जब किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा मूल्यांकन किया जाता है तब मूल्यांकन किए गए कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं से अवगत होना प्रासंगिक है। मूल्यांकन के कुछ पहलुओं पर आगे (नीचे) चर्चा की गई है-
(1) दक्षता मूल्यांकन - इसे निर्गतों (उत्पादता) की मात्रा और निवेशित संसाधनों .(पूँजी और कार्मिक) के संबंध में उनकी गुणवत्ता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस तरह, यह इस तथ्य का मूल्यांकन है कि कितने उत्पादनकारी रूप से संसाधनों (आगतों को परिवर्तित के रूप में) का प्रयोग किया गया है।
दक्षता का मूल्यांकन करने में प्रमुख समस्या है उन विभिन्न आगतों की मात्रा निर्धारित करना जिन्हें मूल्यांकन निर्गतों के उत्पादन के लिए यथोचित मानता है जो परियोजना प्रस्ताव में लिखित रूप में हो सकते हैं। ऐसे निर्णय लेने के लिए योजना दस्तावेजों में विशिष्ट मानदंडों का उल्लेख अक्सर नहीं किया जाता है। अतः मूल्यांकनकर्ता को विभिन्न प्रकार की आगतों की मात्रा और निर्गतों की मात्रा और गुणवत्ता के बीच संबंधों के बारे में स्वयं निर्णय लेने पड़ सकते हैं। परियोजना प्रबंधन के समक्ष दक्षता के मापने के जटिल कार्यों में यह भी एक जटिल कार्य है जिससे परियोजना की दाता एजेंसियाँ कभी-कभी तो आश्वस्त हो सकती है या कभी आश्वस्त नहीं भी हो सकती।
(2) प्रभाविता मूल्यांकन - यह योजनाबद्ध निर्गतों; अपेक्षित प्रभावों (तात्कालिक उद्देश्यों) और अभिप्रेत प्रभावों (विशाल उद्देश्यों) के किस हद तक तैयार या प्राप्त किया जा रहा है या किया जा चुका है, इस तथ्य को व्यक्त करता है। व्यवहारिक रूप में, प्रभावित विश्लेषण में निम्नलिखित दो कारणों से मुख्यतः परिणाम के प्रभावों पर समुचित फोकस है-
(i) प्रभाव स्तर पहला स्तर है जिस पर अभीष्ट लाभार्थियों के लिए लाभों को व्यक्त किया जाता है, प्रभाव डालना निर्गतों की तुलना में उपलब्धियों की ज्यादा महत्वपूर्ण माप है; और
(ii) प्रभाव बाहरी कारकों के हस्तक्षेप से सामान्यतः कम प्रभावित होंगे और इसीलिए आमतौर पर इनका आंकलन शीघ्रता से और ज्यादा विश्वसनीय रूप से किया जा सकता है।
यदि कार्यक्रम या परियोजना दस्तावेज में तात्कालिक उद्देश्यों (अभीष्ट प्रभावों) का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया जाता है तो मूल्यांकनकर्ता को अपने सर्वोत्तम निर्णय के अनुसार ऐसें अतिरिक्त विशेष विवरणों को स्वयं करना पड़ सकता है जिसे वह प्रभावित विश्लेषण के लिए अनिवार्य मानता है।
(3) प्रभाव मूल्यांकन – प्रभाव से अभिप्राय है दीर्घकालिक प्रभाव - नकारात्मक और सकारात्मक, अभिप्रेत और अनभिप्रेत। ये मूल्यांकन दीर्घकालिक होते हैं और अधिकांशतः अभिप्रेत लाभार्थियों और किसी भी आय व्यक्ति के लिए कार्यक्रम या परियोजना के अप्रत्यक्ष परिणाम होते हैं। अपेक्षा की जाती है कि मुख्य प्रभाव सकारात्मक ही हों तथापि लाभार्थी समूहों या अन्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। इनका विश्लेषण किया जाना चाहिए। कभी-कभी कुछ लोगों पर नकारात्मक प्रभाव संदेहयुक्त (अविश्वसनीय) हो सकते हैं, यहाँ तक कि योजना - अवस्था में अपेक्षित हो सकते हैं। हो सकता है तब इनका उल्लेख कर दिया जाए, और योजना दस्तावेजों में भी निराकरणीय उपायों के साथ या उनके बिना इन्हें विनिर्दिष्ट भी किया जाए। दूसरे मामलों में या पूर्वतः अप्रत्याशित या अनपेक्षित हो सकते हैं। ऐसे में मूल्यांकनकर्त्ता द्वारा इनका पता लगाना और भी कठिन हो सकता है। प्रभाव सामान्यतः जटिल संबंधों और प्रक्रिया के माध्यम से जनित होते हैं और इसीलिए, इनका विश्लेषण स्थूल- केन्द्रित (व्यापक) अन्वेषणों के माध्यम से किया जाना चाहिए। प्रभाव मूल्यांकन में परिमाणात्मक या गुणात्मक विधियों या दोनों ही विधियों का प्रयोग किया जा सकता है।
(4) दीर्घकालिक (स्थायी) प्रभावों का मूल्यांकन – इसका अभिप्राय है कार्यक्रम या परियोजना की समाप्ति के बाद, कार्यक्रम या परियोजना से प्रेरित (उत्पन्न) सकारात्मक परिवर्तनों का अनुरक्षण या आवर्धन। दीर्घकालिता में परियोजना अंतःक्षेप विन्यास के सभी स्तरों का वर्णन हो सकता है। क्रिया-निष्ठ अनुसंधान परियोजना में दीर्घकालिकता का लक्ष्य सभी स्तरों पर अंत: क्षेयात्मक गतिविधियों की निरंतरता हो सकती है। विशिष्ट शब्दों में दीर्घकालिकता का अभिप्राय हो सकता है-
(i) प्रस्तुत भौतिक सुविधाओं का अनुरक्षण (उदाहरण के लिए सड़क)
(ii) भौतिक सुविधाओं (उदाहरण के लिए सड़क) या अमूर्त गुणों (उदाहरण के लिए ज्ञान) का निरंतर प्रयोग।
(iii) निरंतर ऐसे (समान) विकास कार्य की योजना बनाने व उसका प्रबंधन करने की योग्यता (उस संगठन द्वारा जिस पर कार्यक्रम या परियोजना का प्रभाव हो या कोई अन्य संगठन);
(iv) सृजित निर्गतों के प्रकारों का निरंतर उत्पादन (परिणाम) (उदाहरण के लिए अध्यापक प्रशिक्षण कॉलेज से अध्यापकों का);
(v) सृजित प्रभावों का अनुरक्षण (उदाहरण के लिए नई सफाई प्रचलनों (पद्धतियों) के कारण स्वास्थ्य में निरंतर सुधार) या दिए गए प्रशिक्षण के कारण श्रम बाजारों में निरंतर ज्यादा प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करना); और
(vi) प्रभावों को आगे और बढ़ाना (कार्यक्रम या परियोजना द्वारा सृजित सुविधाओं या गुणों से प्रेरणा द्वारा उसी प्रकार या अन्य प्रकार के)
(5) मात्रात्मक और गुणात्मक पहलू का मूल्यांकन - सामाजिक विज्ञान में, दो प्रमुख उपागमों; मात्रात्मक और गुणात्मक, के बीच व्यापक रूप से भेद करना मामूली बात हो गई है। इन दोनों के बीच सबसे स्पष्ट अन्तर है कि मात्रात्मक विधियों से संख्यात्मक आँकड़े प्राप्त होते हैं और गुणात्मक विधियों से प्राप्त सूचना को शब्दों में व्यक्त किया जाता है। सरल शब्दों में, मात्रात्मक मूल्यांकन वैज्ञानिक साधनों और मापों का प्रयोग करके किए जाते हैं। परिणाम को मापा और गिना जा सकता है। इसकी तुलना में गुणात्मक मूल्यांकन ज्यादा विषयनिष्ठ होते हैं और उन्हें सटीक माप में प्रस्तुत करना अपेक्षाकृत कठिन हो जाता है।
(6) परिणाम - उन्मुखी पहलुओं का मूल्यांकन- परियोजना संचालन और मूल्यांकन में पाँच प्रमुख आगत- गतिविधियाँ - निर्गत प्रभाव (परिणाम) - प्रभाव अनुकूल और परियोजना की प्रगति को विभिन्न चरणों में उनकी निगरानी की जरूरत है। इस उपागम में परिवर्तन हुआ है, हाल ही में नए उपागम सामने आये हैं जो परिणाम - उन्मुखी / परिणाम-आधारित मूल्यांकन कहलाती है, जो प्रभाव उपागम में प्रयुक्त निर्गतों की गतिविधियों में सुधार करती है। यहाँ · मुख्य केन्द्र बिन्दु यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी विकास गतिविधि में 'निवेशित ' संसाधन यथार्थ रूप से यथासंभव अपने अभिप्रेत परिणामों को उत्पन्न करते हैं। यदि मापे हुए परिणाम प्रक्षेपित (Projected) परिमाणीकृत (quantified) सूचकों को प्राप्त कर लेते हैं तो अब परियोजना को केवल सफल माना जाएगा। इस उपागम में प्रत्येक अवस्था पर 'परिणामों और लाभों पर बल दिया जाता है। विकास संसाधनों को सामाजिक लाभों को प्राप्त करने के साधनों व उद्देश्य, प्रभाव उपायों और प्रक्रिया में सम्मिलित खतरों के साथ संबद्ध करना, इस उपागम की अवधारणा है। इसमें परियोजना चक्र के सभी घटकों को सुदृढ़ करने के लिए एकीकृत क्रियाविधि पैकेज सम्मिलित है। इसमें प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण साधन हैं तार्किक विन्यास, समस्या - विशेष GTZ उद्देश्य उन्मुखी विन्यास इत्यादि।
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