बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वस्त्रोद्योग में रंगाई का क्या महत्व है? रंगों की प्राप्ति के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
पुरातन समय में रंग को आत्मिक आवश्यकता मान कर शारीरिक आवश्यकता के लिए भोजन के समान महत्व दिया जाता था। उदाहरणतया प्रत्येक रंग का अपना महत्व था। नीला सजीवता (vitality) का प्रतीक था तथा प्रशंसा और उज्जवल वैभव को प्रकट करता था। लाल रंग आनन्द, प्रसन्नता, जीवन, सच्चाई, सद्गुण (virtue) तथा निश्चलता (sincerity) को दर्शाता था और दुल्हन के लिए शुभ माना गया। गुलाब दैवी ज्ञान (divine wisdom) का प्रतीक माना जाता था तथा ऐसा ही और रंगों के विषय में था।
अन्य कलाओं के समान रंगाई कला भी पैतृक (hereditary) कला थी। आजकल बेशक गाँवों में मुद्रक (printers) आज भी पुरानी विधि को अपनाते हैं, लेकिन रंग अधिकतर संश्लेषित (synthetic) हैं। इनमें से कुछ रहस्य अब भी पहाड़ी कबीलों (hill tribes) को ज्ञात हैं जोकि जड़ी-बूटियों (herbs), जड़ों तथा पत्तों से अद्भुत रंग तैयार करके अपने वस्त्रों की रंगाई करते हैं।
रंजक या रंग (Dyes) - रंजक घुलनशील पदार्थ हैं जो कपड़े में रासायनिक क्रिया, ताप या दूसरी क्रियाओं द्वारा डाला जाता है।
वर्णक (Pigment) - यह अघुलनशील हैं जोकि मशीनी क्रिया द्वारा रेजीनज (resins) की सतह पर लाए जाते हैं। इससे इन्हें लगाना शीघ्र, सादा और सस्ता रहता है।
रंगाई (Dyeing) - धागे या कपड़े को रंग करने की क्रिया को रंगाई (Dyeing) कहते हैं। कपड़ा बनाते समय रंगाई विभिन्न-विभिन्न समय की जाती है जैसे कि कातने से पहले या पीछे, बुनाई से पहले या बुनाई के बाद।
रंगाई के प्रकार (Types of Dye)
स्रोतों के अनुसार रंग को विभिन्न रूपों में बाँटा जाता है-
1. प्राकृतिक रंग (Natural dyes)
2. कृत्रिम रंग (Artificial or Synthetic dyes)
1. प्राकृतिक रंग (Natural dyes) - पूर्व काल में उपयोग किए जाने वाले रंग प्राकृतिक साधनों से प्राप्त किए जाते थे। इन्हें प्राकृतिक रंग या स्वदेशीय रंग (indigenous dyes) कहा जाता है। इन्हें अपने स्रोत के अनुसार तीन वर्गों में बाँटा गया है जैसे कि (i) वानस्पतिक (Vegetable dyes) (ii) जांतव (Animal dyes) (iii) खनिजीय (Mineral dyes) रंग।
(i) वानस्पतिक रंग (Vegetable Dyes) - इन्हें कुछ पेड़ों के पत्तों, छाल, फलियों (pods), फूलों अथवा फलों से निष्कर्षित (extracted) किया जाता है।
(ii) जांतव रंग (Animal Dyes) – यह रंग जांतव स्रोतों से प्राप्त होते हैं। इन रंगों के उदाहरण कोचीनीयल रंग (cochineal dyes) तथा टाईरन पर्पल (tyrian purple) हैं।
कोचीनीयल (Cochineal) – यह रंग मादा कृमि कोकस कैकटाई (cocus cacti) के शरीर को सुखा कर बनाया जाता है जोकि किसी जाति के कैक्टस (cactus) पर रहता है। ये कीड़े तथा पौधे मैक्सिको (Mexico) में पाए जाते हैं तथा इसलिए ये कृमिज सर्वप्रथम कैप्टन नैल्सन (Captain Nelson) द्वारा बंगाल तथा दक्षिणी भारत में लाए तथा अब कोचीनीयल देश में ही पैदा किए जाते हैं।
टाईरन पर्पल (Tyrian purple) - यह भूमध्य सागर (Mediterranean sea) में मिलने वाली सीपी कवच मतस्य (Shell fish) से प्राप्त किया जाता है। यह बहुत महंगा रंग है क्योंकि ऐसे सहस्त्रों लघु जन्तुओं से एक ग्राम रंग प्राप्त होता है। यह रंग रोमन राज्य में प्रशासकीय परिवारों द्वारा प्रयोग किया जाता था।
खनिजीय रंग (Mineral dyes) - इनको खनिज रंग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह खनिज स्रोतों से प्राप्त होते हैं। इस समूह का उदाहरण आयरन बफ (iron buff) है। इसे सर्वप्रथम लोह - छीलन (iron scarp) को एक बैरल (barrel) में पानी तथा सिरके (vinegar) के साथ ढककर तथा इस मिश्रण को कुछ देर रख कर तैयार किया जाता है।
सर्वप्रथम वस्तु को इस मिश्रण में भिगोया जाता है तथा फिर लकड़ी की राख के घोल में डुबोने के बाद वायु में खुला छोड़ दिया जाता है जिससे इस पर आयरन बफ (iron buff) की सुन्दर शेड विकसित हो जाती है। अब आयरन बफ (iron buff) अनेक ढंगों से उत्पन्न की जाती है तथा प्रत्येक ढंग से हल्के पीले भूरे से गहरे लाल भूरे अथवा रस्ट (rust) के विभिन्न शेड बनते हैं।
कृत्रिम रंग (Artificial dyes)
कृत्रिम रंगों की खोज सबसे पहले सन् 1856 में विलियम हैनरी पारकरं द्वारा कोलतार से की गई जब वह एनीलिन से कुनीन बना रहे थे तब अचानक उन्हें कृत्रिम रंग बनाने की क्रिया का पता चला। यह रंग कोलतार से बनाए जाते हैं। ये रंग सूर्य के प्रकाश, कृत्रिम प्रकाश, जल, पसीना, धुलाई के प्रति पक्के हैं। सम्पूर्ण पक्के रंग बनाने की क्रिया अभी नहीं मिली। रासायनिक क्रिया तथा लगाने की विधि के अनुसार इनको निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है-
(i) प्रत्यक्ष रंग या लवण रंग (Direct dyes or salt dyes)
(ii) क्षारीय रंग (Basic dyes)
(iii) तेजाबी रंग (Acid dyes)
(iv) गंधक रंग (Sulphur dyes)
(v) बंधक रंग (Mordant dyes)
(vi) वेट रंग (Vat dyes)
(vii) विकसित रंग (Developed dyes)
(viii) डिस्पर्स रंग (Disperse dyes)
(ix) रीएक्टिव रंग (Reactive dyes)
(x) वर्णक रंग (Pigment dyes)
(i) प्रत्यक्ष सादे या नमक वाले रंग (Direct dyes or Salt dyes) – ये रंग जांतव (animal) तथा वानस्पतिक वस्त्रों पर प्रयोग किये जा सकते हैं लेकिन आमतौर पर इनका प्रयोग सूती कपड़ों के लिये किया जाता है और इन्हें सादे सूती रंग कहा जाता है। ये पानी में घुलनशील होते हैं और मुख्य रूप से एमीनज (amines) तथा फिनोल (phenols) के बने होते हैं। इन रंगों का प्रयोग करते समय रंग के घोल में थोड़ा-सा नमक मिलाया जाता है इसी कारण इन्हें नमक वाले रंग भी कहा जाता है। रंग पक्का करने के लिए रंगाई के पश्चात् एसीटिक एसिड (Acetic acid) तथा सोडियम डाइक्रोमेट (Sodium Dichromate) का प्रयोग होना आवश्यक है। ये रंग धूप लगने और धोने से फ़ीके पड़ जाते हैं तथा अधिक भड़कीले नहीं होते। ये मध्यम (dull) किस्म के होते हैं इसलिए इन्हें भड़कीला बनाने के लिए मूल रंगों से अन्तरूपण (Topping) किया जाता है।
(ii) क्षारीय रंग (Basic dyes or Cationic dyes) - प्रथम क्षारीय रंग (Basic dye) कोलतार को कहा जाता था। सिल्क और ऊन की चमकदार रंगाई करने के लिए इनका विकास किया गया था। रासायनिक तत्व, जिसे बंधक (mordant) कहा जाता है, कपड़े के रेशों को रंगने में सहायता करता है, नहीं तो रंग के प्रति उसका कोई आकर्षण नहीं होता या नाममात्र होता है। सूती, लिनन, एसीटेट, नायलॉन, पोलीएस्टर और एक्रेलिक से बने कपड़ों को क्षारीय रंगों से रंगने के लिए बंधक की आवश्यकता पड़ती है।
प्राकृतिक तन्तुओं से बने कपड़ों पर ये रंग पक्के नहीं होते तथा रोशनी, धुलाई, पसीने या वातावरण की गैसों से जल्दी खराब हो जाते हैं। ये रंग या निकल जाते हैं या फीके पड़ जाते हैं। ये रंग एक्रेलिक कपड़ों की सुन्दर, गहरी और चमकदार रंगाई करते हैं जिनके लिए ये विशेष रूप से प्रयोग किये जाते हैं। अम्लीय रंगों से रंगे कपड़ों को चमकदार बनाने के लिए आमतौर पर क्षारीय रंगों का प्रयोग किया जाता है।
(iii) तेजाबी रंग (Acid dyes) – यह रंग कार्बन युक्त अम्लों और सोडियम अथवा पोटेशियम के नमक होते हैं। रंगाई के समय इन रंगों की कपड़ों से रासायनिक प्रक्रिया होती है तथा रंगाई करते समय भी तेजाब प्रयोग किया जाता है। इस कारण इन रंगों का प्रयोग उन तन्तुओं की रंगाई के लिए नहीं किया जाता जो तेजाब से खराब हो जाते हैं। तेजाबी रंग प्रोटीन युक्त तन्तुओं (ऊन, रेशम), नायलॉन, एक्रेलिक और कई प्रकार के पोलीएस्टर के तन्तुओं से बने कपड़े रंगने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इन रंगों की चमक सादे रंगों से अधिक होती है। इस श्रेणी के कई रंग धूप और धुलाई के प्रति पक्के होते हैं, परन्तु कई रंग कुछ तत्वों से फीके पड़ जाते हैं। पसीने से यह रंग बहुत जल्दी फीके हो जाते हैं। रंगाई के पश्चात् ऊनी कपड़ों पर क्रोमेट (Chromate) के घोल का प्रयोग करने से तेजाबी रंगों की उम्र बढ़ाई जा सकती है।
(iv) गंधकी रंग (Sulphur dyes) - सूती और लिनन को रंगने के लिए ये रंग सबसे पहले 1879 ई० में बने थे। ये रंग धुलाई, रोशनी और पसीने से खराब नहीं होते परन्तु क्लोरीन युक्त ब्लीच करने से ये खराब हो जाते हैं।
ये पानी में घुलनशील होते हैं और कास्टिक सोडा तथा सोडियम सल्फाइड की सहायता से इन्हें घुलनशील बनाया जाता है।
गंधकी रंगों से रंगाई उच्च तापमान पर अधिक मात्रा में नमक मिलाकर की जाती है जोकि कपड़े में पक्का रंग चढ़ने में सहायता करता है। खुले रंग वाले टब में कपड़े को डुबोकर इसे पानी में से खंगाला जाता है। तब कपड़े का हवा अथवा रासायनिक पदार्थों की सहायता से ऑक्सीकरण किया जाता है जिससे रंग का उचित शेड आ जाता है। रासायनिक प्रक्रिया बहुत ध्यानपूर्वक की जानी चाहिए। अतिरिक्त रसायन और रंग खुले पानी में खंगाल कर निकाल देना चाहिए। उच्च तापमान और क्षारीय माध्यम होने के कारण ये रंग अन्य रंगों की अपेक्षा गहरे और पक्के होते हैं। खाकी और मोटे कपड़ों के लिए ये उत्तम होते हैं और यह कपड़े अधिकतर निम्न वर्ग में काम करने वाले डालते हैं। इनके शेड भद्दे (Dull) होते हैं जैसे नीला, भूरा और काला। अन्य रंगों की अपेक्षा काले रंग की रंगाई में इनका प्रयोग अधिक होता है। गंधकी रंगों से रंगे कपड़े यदि लम्बे समय तक बिना प्रयोग के रखे जायें तो कमजोर पड़ जाते हैं।
(v) बंधक रंग (Mordant dyes) – ये रंग अम्लीय रंगों जैसे होते हैं परन्तु इनकी रचना अधिक जटिल होती है। क्रोम का बंधकीय प्रभाव (binding action) प्राप्त करने के लिए ये रंग वाले टब में या रंगने के पश्चात् सोडियम या पोटेशियम डाइक्रोमेट मिलाया जाता है। ऊन की पक्की रंगाई के लिए इनका प्रयोग विशेषकर किया जाता है, क्योंकि ऊन का गीलाकर रंगाई के लिए ये उत्तम कोटि के होते हैं। सूती, लिनन, सिल्क, रेयॉन और नायलॉन आदि रंगने में भी इन रंगों का प्रयोग किया जाता है परन्तु इन कपड़ों पर ये रंग उतने पक्के नहीं होते। इनके रंगों की विविधता होती है परन्तु ये अम्लीय रंगों की अपेक्षा भद्दे होते हैं। दैनिक एसिड (Tannic Acid) अथवा टर्की रेड ऑयल (Turkey Red Oil) को भी बंधकी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
(vi) वैट रंग (Vat dyes) - नील पहला संश्लिष्ट वैट रंग है जो 1879 में उत्पन्न किया गया था। सूती, लिनन और रेयॉन कपड़ों के लिए ये बहुत उपयुक्त रंग है। बंधकों की सहायता से ये ऊन, नायलॉन और एक्रेलिक पर भी प्रयोग किये जा सकते हैं। ये रंग रोशनी, अम्लों और क्षारों के प्रति पक्के ही नहीं बल्कि व्यापारिक स्तर पर धुलाई के लिए प्रयुक्त होने वाले ऑक्सीकृत विरंजकों के प्रति भी पक्के हैं। इस दृष्टि से गंधकी रंग, जो क्लोरीन युक्त विरंजकों के प्रति पक्के नहीं होते, की तुलना में सर्वोत्तम होते हैं।
प्राचीन समय में नील के घोल का खमीर उठाने के लिए बड़े-बड़े कुंडों (Vats) का प्रयोग किया था जिसके कारण रंगों की इस श्रेणी का नाम वैट रंग पड़ गया। आजकल भी इनकी तैयारी इसी सिद्धान्त पर की जाती है परन्तु यह प्रक्रिया छोटी और रासायनिक रूप से अधिक शुद्ध है। ये रंग अघुलनशील वर्णक (Pigments) हैं परन्तु लघुकारक तत्वों (Reducing Agents) की सहायता से इन्हें पानी में घुलनशील बनाया जाता है। इस घोल में कपड़े को डुबोया जाता है। उसके पश्चात् ऑक्सीकृत युक्त विरंजक (bichromate) के घोल में डुबो कर खुली हवा में बिखेरने से पूर्व अघुलनशील रूप में ये कपड़े का अंग बन जाते हैं।
(vii) विकसित रंग (Developed Colours or dyes) - ये प्रत्यक्ष रंगों का ही एक अन्य रूप हैं। इनका प्रयोग सैलूलोज रेशों के लिये किया जाता है। इसके अतिरिक्त इनका प्रयोग ऊन, सिल्क और नायलॉन को रंगने के लिए भी किया जाता है। इस प्रक्रिया में कपड़ों को रंगने के लिए एक मूल घोल होता है। इसके पश्चात् डाइएजोटाइजिंग (Diazotizing) प्रक्रिया की जाती है जिससे रंग रासायनिक रूप से परिवर्तित हो जाता है और फिर नये रासायनिक तत्वों, जिन्हें विकासक (Developers) कहा जाता है, के घोल में डाला जाता है, जिससे रंग पूर्ण विकसित हो जाता है। विकसित रंगों से रंगे कपड़ों का रंग धुलाई के पश्चात् ज्यादा फीका नहीं होता।
(viii) डिस्पर्स रंग (Disperse dyes) - इन रंगों को मूल रूप से सैलूलोज ऐसीटेट को रंगने के लिए 1922 में बनाया गया। इनका प्रयोग नायलॉन, पोलीएस्टर, एक्रेलिक तथा सैलूलोज युक्त तन्तुओं को रंगने के लिए भी किया जाता है। इन रंगों का प्रयोग कपड़ों को रंगने के लिए तथा प्रिंटिंग के लिए होता है। यह रंग पानी में घुलनशील नहीं है। यह पेस्ट या बारीक पाउडर की शक्ल में मिलते हैं। यह रंग पानी में छोटे-छोटे कणों के रूप में फैल जाते हैं जिन्हें कपड़ा सोख लेता है। यह रंग अधिक पक्के नहीं होते हैं तथा विशेष करके गैसों के प्रभाव से यह बहुत जल्दी-जल्दी फीके पड़ जाते हैं। यह रोशनी में भी बहुत जल्दी फीके पड़ जाते हैं।
(ix) रीएक्टिव रंग (Reactive dyes) - यह रंग कपड़े के साथ एक रासायनिक प्रक्रिया द्वारा योग (compounds) बनाते हैं जिस कारण इनको रीएक्टिव कहा जाता है। इनका प्रयोग सैलूलोज युक्त तन्तुओं के लिए किया जाता था, परन्तु अब यह ऊन, रेशम, नायलॉन, एक्रेलिक और इन तन्तुओं से बने मिश्रित कपड़ों (Blends) के लिए भी प्रयोग किए जाते हैं। इनके रंग बहुत गहरे और चमकीले होते हैं तथा रोशनी और धुलाई के प्रति यह बहुत पक्के होते हैं।
(x) वर्णक रंग (Pigment dyes) - इन रंगों में रंगने के एक ऐसे तरीके का प्रयोग किया जाता है जोकि बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। इस श्रेणी में आने वाले पदार्थ सचमुच रंग (Dyestuff) नहीं होते, क्योंकि इनका कपड़े के प्रति आकर्षण अथवा कोई रासायनिक प्रक्रिया नहीं होती। इनको कपड़ों पर रेजिन्ज (Resins) की सहायता से लगाकर उच्च तापमान पर पकाया जाता है, जिस कारण यह कपड़े पर टिके रहते हैं। रंगाई की यह तकनीक आजकल बहुत प्रचलित हो गई है तथा इसके द्वारा कपड़ों पर हल्के, चमकदार और धातुओं जैसे रंग (metallic colours) प्राप्त किए जा सकते हैं। रोशनी के प्रति भी यह बहुत पक्के होते हैं तथा शेष तत्वों के प्रति भी यह अन्य कई श्रेणियों की अपेक्षा पक्के होते हैं।
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- प्रश्न- विभिन्न प्रकार की बुनाइयों को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 1. स्वीवेल बुनाई, 2. लीनो बुनाई।
- प्रश्न- वस्त्रों पर परिसज्जा एवं परिष्कृति से आप क्या समझती हैं? वस्त्रों पर परिसज्जा देना क्यों अनिवार्य है?
- प्रश्न- वस्त्रों पर परिष्कृति एवं परिसज्जा देने के ध्येय क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (1) मरसीकरण (Mercercizing) (2) जल भेद्य (Water Proofing) (3) अज्वलनशील परिसज्जा (Fire Proofing) (4) एंटी-सेप्टिक परिसज्जा (Anti-septic Finish)
- प्रश्न- परिसज्जा-विधियों की जानकारी से क्या लाभ है?
- प्रश्न- विरंजन या ब्लीचिंग को विस्तापूर्वक समझाइये।
- प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabrics) का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- कैलेण्डरिंग एवं टेण्टरिंग परिसज्जा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सिंजिइंग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- साइजिंग को समझाइये।
- प्रश्न- नेपिंग या रोयें उठाना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - i सेनफोराइजिंग व नक्काशी करना।
- प्रश्न- रसॉयल रिलीज फिनिश का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- परिसज्जा के आधार पर कपड़े कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- कार्य के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- स्थायित्व के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabric) किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- स्काउअरिंग (Scouring) या स्वच्छ करना क्या होता है? संक्षिप्त में समझाइए |
- प्रश्न- कार्यात्मक परिसज्जा (Functional Finishes) किससे कहते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
- प्रश्न- रंगाई से आप क्या समझतीं हैं? रंगों के प्राकृतिक वर्गीकरण को संक्षेप में समझाइए एवं विभिन्न तन्तुओं हेतु उनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वस्त्रोद्योग में रंगाई का क्या महत्व है? रंगों की प्राप्ति के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रंगने की विभिन्न प्रावस्थाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कपड़ों की घरेलू रंगाई की विधि की व्याख्या करें।
- प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा रंगों द्वारा कैसे की जाती है? बांधकर रंगाई विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाटिक रंगने की कौन-सी विधि है। इसे विस्तारपूर्वक लिखिए।
- प्रश्न- वस्त्र रंगाई की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- वस्त्रों की रंगाई के समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
- प्रश्न- डाइरेक्ट रंग क्या हैं?
- प्रश्न- एजोइक रंग से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dye) के लाभ तथा हानियाँ क्या-क्या होती हैं?
- प्रश्न- प्राकृतिक रंग (Natural Dyes) किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dyes) के क्या-क्या उपयोग होते हैं?
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- प्रश्न- इंकजेट (Inkjet) और डिजिटल (Digital) प्रिंटिंग क्या होती है? विस्तार से समझाइए?
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- प्रश्न- शुष्क धुलाई में प्रयुक्त सामग्री व इसकी प्रयोग विधि को संक्षेप में समझाइये?
- प्रश्न- धुलाई में प्रयुक्त होने वाले सहायक रिएजेन्ट के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचित करने का क्या महत्व है?
- प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचयित करने की विधि बताए।