बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के उपयोग क्या हैं? विस्तृत विवरण दीजिए।
उत्तर -
भौगोलिक सूचना प्रणाली के उपयोग
(1) जी.आई.एस. का विभिन्न कृषि सम्बन्धी कार्यों में उपयोग किया जा रहा है, जैसे फसल उत्पादन प्रबन्धन, फसल चक्र अवलोकन, कृषि क्षेत्र में मृदा संरक्षण आदि में।
(2) जी.आई.एस. द्वारा व्यापारिक सूचनाओं की स्थिति के अनुसार उनके प्रबन्धन में मदद मिलती है। उपयोगकर्त्ता द्वारा व्यापार की साइट, व्यापार प्रचार, अधिकतम बिक्री के क्षेत्र आदि के बारे में जानने का मार्ग निर्धारित किया जा सकता है। जी.आई.एस. किसी कम्पनी को अधिक प्रतिस्पर्धापरक एवं सफल बना सकती है।
(3) विद्युत एवं गैस उपयोग में जी.आई.एस. शहरों में विद्युत एवं गैस के वितरण में भी जी.आई.एस. से सहायता मिलती है। यह ट्रैक को ठीक करने, शिकायत निवारण या मॉडल वितरण के विश्लेषण आदि में भी सहायक है।
(4) प्रतिदिन पर्यावरण को सुरक्षित रखने हेतु जी.आई.एस. सहायक है। मानचित्र बनाने, स्पेस इन्वेंटरी, पर्यावरण प्रभाव मापन, प्रदूषणकारी पदार्थों की पहचान आदि सभी में जी.आई.एस. की खासी भूमिका है पर्यावरण में जी.आई.एस. के अनंत उपयोग हो सकते हैं।
(5) आज वन प्रबन्धन बहुत ही जटिल एवं चुनौती पूर्ण कार्य है। जी.आई.एस. के साथ वन कर्मचारी सरलता से जंगल की पर्यावरण प्रणाली की देखरेख एवं उसका प्रबन्धन कर सकते हैं।
(6) सर्वप्रथम जी.आई.एस. का उपयोग भूगर्भ वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। आज प्रतिदिन विभिन्न कार्यों हेतु इसका उपयोग किया जाता है। भूगर्भीय संरचना, आकृति, मृदा विश्लेषण, सिसमिक सूचना, भौगोलिक आकृतियों के 3D प्रदर्शन आदि सभी में जी.आई.एस. का उपयोग होता है।
(7) शहरी क्षेत्र के विकास हेतु भूमि उपयोग के अवलोकन एवं योजना निर्माण में राष्ट्रीय / राज्य / स्थानीय शासन-प्रशासन द्वारा जी.आई.एस. की सहायता ली जाती है। भूजल निर्धारण में भी अनेक कारक महत्वपूर्ण हैं। उनको एकीकृत करके विश्लेषित करने में जी.आई.एस. का विशेष महत्व है।
(8) सेना के विश्लेषक एवं मानचित्रकार जी.आई.एस. का उपयोग विभिन्न कार्यों हेतु करते हैं, जैसे आधार मानचित्र बनाने, स्थलाकृति का विश्लेषण करने एवं नीति निर्धारण आदि में।
(9) जी.आई.एस. आपदा प्रबन्धन एवं विश्लेषण में भी सहायता कर सकता है। प्राकृतिक या मानवीय आपदा प्रभावित क्षेत्र को चिह्नित करने में जी.आई.एस. का इस्तेमाल होता है। एक बार क्षेत्र का निर्धारण या पहचान हो जाने पर उस हेतु आवश्यक प्रबन्धन योजना तैयार करनी तथा कार्यान्वित करनी सम्भव हो पाती है।
(10) परिवहन प्रबन्धन एवं यात्रा प्रबन्धन / मार्गदर्शन में भी जी.आई.एस. सहायता कर सकता है। रेल लाइन एवं सड़कों की हालत के अवलोकन एवं सामग्री भेजने हेतु उत्तम रास्ते के चयन में भी जी.आई.एस. की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
इसके अतिरिक्त साइट योजना, औद्योगिक इकाइयों के अवशेषों को नष्ट करने जैसे अनेक कार्यों में जीआईएस की भूमिका महत्वपूर्ण है।
(11) केनेडियन वन्य जीवन रेखा वन्य जीव शोध संस्थान के माध्यम से उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका में वन्य जीवन के वितरण का अध्ययन करती है। इसके लिए एक ऐसी विधि की आवश्यकता थी जिसके द्वारा जानवरों की वितरण प्रणाली को प्रदर्शित किया जा सके। डा. गुये मोरिशन ने इस समस्या का समाधान मैपइंफो के माध्यम से किया। सी.डब्ल्यू. एस. ने ऑटोकेट एवं मैपइन्फो का उपयोग कर पक्षियों के वितरण से सम्बन्धित अनेक एटलस प्रकाशित किये।
(12) जब हम जन सुरक्षा की बात सुनते हैं, तो हमारे दिमाग में मुख्य रूप से यह बात आती है कि सड़क पर पुलिस द्वारा यातायात नियन्त्रण कैसे हो या कितनी जल्दी आपातकाल में अग्निशामक या एम्बुलेंस उपलब्ध हो अथवा आक्रमण, बाढ़ या भूकंप आने पर किस तरह मदद प्राप्त हो। किन्तु क्या आपने कभी जन सुरक्षा के मानचित्रीकरण का विचार किया। आज के अनिश्चितता के दौर में विश्व में जन- सुरक्षा हेतु यह अत्यन्त आवश्यक है। डिजिटल मानचित्रण तकनीक के उपयोग से सभी सम्बन्धित आँकड़ों के प्रयोग से बिना रिपोर्ट पढ़े ही एक दृश्य प्रस्तुत किया जा सकता है।
(13) जनता को अपराध एवं अपराधी से बचाने हेतु यह जरूरी है कि आपराधिक गतिविधियों को ट्रैक किया जा सके और अपराधों के पैटर्न को ज्ञात किया जा सके। इस प्रकार प्राप्त जानकारी के आधार पर सुरक्षात्मक उपायों हेतु योजनाएँ तैयार की जा सकती हैं, और उसे कार्यान्वित किया जा सकता है।
(14) जी.आई.एस. का प्रयोग भारत में 80 के दशक के शुरू में प्रारम्भ हुआ। इसका एक सबसे महत्वपूर्ण प्रयास वसुंधरा परियोजना में दिखता है, जो भू-सर्वेक्षण विभाग एवं अंतरिक्ष विभाग का संयुक्त कार्यक्रम है। संयुक्त रूप से दोनों संस्थाओं ने इस परियोजना को कार्यान्वित किया। क्षेत्रीय स्तर पर सूचना प्रणाली विकसित करने हेतु इसमें सुदूर संवेदन आँकड़ों एवं परम्परागत आँकड़ों का उपयोग किया गया। इसी तरह अंतरिक्ष विभाग एवं भू-खनन विभाग द्वारा गुजरात में खनिज अन्वेषण सूचना प्रणाली विकसित करने हेतु एक परियोजना पर कार्य किया गया।
जी.आई.एस. पैकेज के आने के बाद, अंतरिक्ष विभाग द्वारा विभिन्न परियोजनाएँ ली गईं। पर्यावरण विभाग, भारतीय सर्वेक्षण, शहर एवं देश योजना संस्थान एवं अन्य विभाग जो शहरी योजना, क्षेत्रीय योजना, जिला योजना, परती भूमि विकास, वन प्रबन्धन आदि से जुड़े हैं, विभिन्न परियोजनाओं में जी.आई.एस. प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
(15) प्रणाली को पूर्ण करने के पूर्व सावधानी अत्यन्त आवश्यक है। जी.आई.एस. को उपयोग करने हेतु प्रबन्धन मामले बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। मानचित्र का अंकरूपण एक बड़ा पहलू है। इसमें समय एवं प्रयास दोनों लगते हैं। विश्लेषण से पहले उपयोगकर्त्ता की आवश्यकता पहचानना, उपलब्ध प्रणाली से लागत की तुलना करना, भविष्य में विस्तार, संवाद में सुविधा आदि पर ध्यान देना जरूरी है। हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर पहलू का भी अध्ययन किया जाता है।
(16) निम्न पुंजी, छोटे पैमाने पर छोटे समूहों द्वारा किये जा रहे प्रयास हेतु एक पायलट परियोजना ली जाती है, जिसके द्वारा तकनीक के सामर्थ्य को प्रदर्शित किया जा सके। देश में अधिकतर प्रयास इसी श्रेणी में आते हैं।
(17) ऐसा कार्य जिसकी तत्काल आवश्यकता है एवं लागत की समस्या नहीं है और परिणाम समय से अपेक्षित है परती भूमि विकास इस श्रेणी के अन्तर्गत आता है। इस उद्देश्य हेतु सुदूर संवेदन एवं जी.आई.एस. का बहुत उपयोग हो रहा है।
(18) डाटा प्रबन्धन हेतु, जहाँ डाटा अत्यधित मात्रा में है एवं डाटा सम्भालना एक पूर्णकालिक कार्य है, वहाँ प्रभावशाली टूल की आवश्यकता होती है। बड़ी संस्थाएँ, जैसे भारतीय भू सर्वेक्षण विभाग एवं भारतीय सर्वेक्षण विभाग आदि को इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसीलिए इन्होंने जी.आई.एस. एवं सुदूर संवेदन तकनीकों का उपयोग सबसे पहले शुरू किया था।
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- प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के उद्देश्य बताइये।
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