बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 6
सुदूर संवेदन के संवेदक एवं विभेदन
(Sensors of Remote Sensing & Resolution)
प्रश्न- विभेदन से आपका क्या आशय है? इसके प्रकारों का भी विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर -
(Resolution)
धरातल की कम-से-कम दूरी के विवरण को एक दूसरे से अलग-अलग प्रस्तुत करने की क्षमता विभेदन कहलाती है। विभेदन प्रकाशिक युक्ति प्रणाली की उत्तमता या कुशलता को व्यक्त करता है। विभेदन की मात्रा को व्यक्त करने के लिए स्थानिक (Spatial), स्पेक्ट्रल ( Spectral), रेडियोमेट्रिक (Radiometric) औरा तात्कालिक (Temporal) दशाओं को अपनाया जाता है। स्थानिक दशा में दूरी, स्पेक्ट्रल दशा में विद्युत-चुम्बकीय विकिरण के तरंग दैर्ध्य बैंड, रेडियोमेट्रिक में विकिरण मात्रा, तथा तात्कालिक में समय को व्यक्त किया जाता है। विभेदन उपग्रह की संवेदक प्रणाली से जुड़ा होता है। विभेदन में इस्तेमाल होने वाली इन दशाओं का वर्णन निम्न प्रकार है-
(1) स्थानिक विभेदन - धरातल पर पास-पास स्थित किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य की वह न्यूनतम दूरी है जिसे उन्हें किसी प्रतिबिम्ब में स्पष्ट एवं एक-दूसरे से पृथक देखा जा सके, स्थानिक विभेदन कहलाती हैं। जब वस्तुयें पास-पास स्थित नजर आती हैं तो प्रतिबिम्बों में पास-पास की वस्तुयें एक ही नजर आती हैं। स्थानिक विभेदन के लिये संवेदक प्रणाली पर क्रमवीक्षक यंत्र (Scanner) लगा हुआ होता है। यह धरातल का संसूचन करता है। किसी संसूचक का स्थानिक विभेदन उस संसूचक की भौतिक बनावट पर निर्भर करता है। क्रमवीक्षक के दर्पण पर दृश्य क्षेत्र तथा धरातलीय विभेदन प्रकोष्ठ दोनों ही कोण बनाते हैं जिसे कोणीय विभेदन क्षमता कहते हैं। किसी संसूचक के तात्क्षणिक दृष्टि क्षेत्र का निर्धारण कोणीय विभेदन क्षमता पर निर्भर करता है। यह कई धरातलीय विभेदन प्रकोष्ठों में विभाजित होता है। इनकी लम्बाई चौड़ाई तात्क्षणिक दृष्टि क्षेत्र के कोणीय मान तथा ऊँचाई के आधार पर ज्ञात की जा सकती है। संसूचक की ऊँचाई (H) तथा तात्क्षणिक दृष्टि कोण के मान (3) को आपस में गुणा करके धरातलीय प्रकोष्ठ की एक भुजा की लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। इसके सूत्र को निम्न प्रकार से दिया गया है-
D = H x B
D = धरातलीय प्रकोष्ठ की एक भुजा
H = संसूचक की ऊँचाई
B = तात्क्षणिक दृष्टि के कोण का मान
उदाहरण के लिये यदि संसूचक की ऊँचाई 16 किमी० है तथा तात्क्षणिक दृष्टि क्षेत्र कोण का मान 1 मिलिरेडियन (कोण नापने की इकाई) है तो प्रत्येक प्रकोष्ठ की लम्बाई-चौड़ाई निम्न प्रकार से ज्ञात की जाती है-
D = HxB
16 × 10000 × 1
D = ------------------------------ = 16 मीटर
1000
अतः स्पष्ट है कि स्कैन रेखा पर 16 मीटर वर्ग के विभेदन प्रकोष्ठ बनेंगे। इसी को स्थानिक विभेदन कहा जाता है। दर्पण के केन्द्र अर्थात् नादिर बिन्दु से दूर हटने पर आनुपातिक रूप से धरातलीय विभेदन प्रकोष्ठ की लम्बाई बढ़ती जाती है जिससे प्रतिबिम्बों में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(2) स्पेक्ट्रल विभेदन - अलग-अलग बैण्डों के तरंग दैर्ध्य अन्तरालों का प्रदर्शन स्पैक्ट्रल विभेदन के माध्यम से किया जाता है। किसी संसूचक के उच्चतम प्रत्युत्तर के 50% पर अंकित किया गया तरंग दैर्ध्य अन्तरालों को उस संसूचक का स्पेक्ट्रल विभेदन कहते हैं। विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में कई स्पेक्ट्रम बैण्ड दृश्य अवरक्त इत्यादि हैं। प्रत्येक स्पेक्ट्रम बैण्ड, बिंबों पर अलग-अलग स्पेक्ट्रम प्रदीप्त घनत्व उत्पन्न होते हैं। स्पेक्ट्रल विभेदन धरातलीय विभक्त (संसूचित) बिम्ब का अलग-अलग स्पेक्ट्रल अन्तर पर प्रतिचयन करता है। इसके द्वारा प्रदीप्त घनत्व को निर्धारित किया जाता है।
ग्रेमानों या ग्रे स्तर के मध्य भेद करने के लिये स्पेक्ट्रल विभेदन का मापन बैण्ड चौड़ाइयों की पृथकता तथा संवेदक की संवेदनशीलता दोनों में नापा जाता है। वक्र से स्पष्ट है कि उच्चतम प्रत्युत्तर (Response) का 50% भाग 0.5 से 0.6 माइक्रोमीटर के मध्य अंकित हुआ है। अतः 0.5 व 0.6 तरंग दैयों के अन्तराल अर्थात् 0.1 माइक्रोमीटर की बैण्ड चौड़ाई को सम्बन्धित संसूचक का स्पेक्ट्रमी विभेदन कहा जायेगा। यह बैण्ड के लघु भागों में विभाजित हो जाता है। इस आधार पर स्पेक्ट्रल विभेदन निम्न प्रकार का होता है।
(3) रेडियोमेट्रिक विभेदन - संवेदक द्वारा निर्गत संकेतक के कुल प्राप्त मान को कई भागों में विभाजित किया जाता है ताकि ग्रे स्तर को अलग-अलग रूप में दर्शाया जा सके। इस प्रकार धरातलीय लक्षणों के परावर्तक में अन्तर होने से भेद स्थापित किया जा सकता है। यह ग्रेमानों के विकिरण स्तर को दर्शाता है जिसे संवेदक अंकित करता है। उदाहरण के लिए-
8 विट = 28 = 256 ग्रेमान
.1 विट = 23 x = 32 ग्रेमान
अधिक विट, उच्च विभेदन को बताते हैं। आइकोनोस उपग्रह का विभेदन अब तक के प्रयोगों में सबसे अधिक है। इसका विभेदन 11 बिट है।
(4) अल्पकालिक विभेदन - किसी संसूचक द्वारा एक निश्चित अन्तराल पर धरातलीय तथा स्पेक्ट्रल आँकड़ों को प्राप्त करना समसामयिक विभेदन कहलाता है। उपग्रह के संदर्भ में समसामरिक को उपग्रह का चक्रीय अवलोकन भी कहा जाता है। कहने का अर्थ यह है कि एक ही बिम्ब क्षेत्र को उपग्रह द्वारा अलग-अलग समय में बार-बार अवलोकन कर आँकड़ों को एकत्र करना है।
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