बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
उत्तर -
कृषि जलवायु आधार
कृषि जलवायु प्रदेश प्रमुख जलवायु के संदर्भ में एक भूमि की इकाई है जो एक निश्चित सीमा के अंदर फसलों की किस्मों एवं जोतने वाले के लिए उपयुक्त होती है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की स्थिति को प्रभावित किए बिना भोजन, फाइबर, चारा और लकड़ी से मिलने वाले ईंधन की उपलब्धता को बनाए रखना एवं इन क्षेत्रीय संसाधनों का वैज्ञानिक प्रबंधन करना है। एक कृषि जलवायु प्रदेश मुख्यतः मिट्टी के प्रकार, फसल की उपज, वर्षा, तापमान और पानी की उपलब्धता, वनस्पति के प्रकार को प्रभावित करने वाले कारकों के आधार पर सीमांकित किया जाता है। 329 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र के साथ देश कृषि जलवायु स्थितियों की एक बड़ी जटिल संख्या को प्रस्तुत करता है। मिट्टी, जलवायु, भौगोलिक और प्राकृतिक वनस्पति के सम्बन्ध में वैज्ञानिक आधार पर वृहद् स्तरीय योजना निर्माण के लिए प्रमुख कृषि जलवायु प्रदेश को सीमांकित करने के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं।
ये इस प्रकार हैं-
(1) योजना आयोग द्वारा निर्धारित कृषि जलवायु क्षेत्र।
(2) राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परियोजना के तहत कृषि जलवायु क्षेत्र।
(3) मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग योजना राष्ट्रीय ब्यूरो द्वारा कृषि जलवायु प्रदेश।
भौतिक आधार
पृथ्वी का भौतिक वातावरण क्षेत्रीयकरण का मुख्य आधार है। इसमें विभिन्न कारक जैसे- स्थलाकृति, संरचनात्मक विविधता, जलवायु, अपवाह तंत्र, मृदा व वनस्पति विविधता आते हैं।
स्थलाकृति - यह ग्रह विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत पृथ्वी अथवा अन्य ग्रहों, क्षुद्रग्रहों और उपग्रहों की सतह के आकार एवं आकृतियों के बारे में अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी की सतह की स्थलाकृति को वर्गीकृत करते हुए सेलिसबरी नामक लेखक ने अपनी पुस्तक ' Physiography' में इसे तीन भागों में विभाजित किया है-
(1) प्रथम कोटि की स्थलाकृति के अन्तर्गत महासागरों और महाद्वीपों को सम्मिलित किया जाता है।
(2) दूसरी कोटि की स्थलाकृति में मैदान, पर्वत व पठार को सम्मिलित किया जाता है।
(3) तीसरी कोटि की स्थलाकृति में अपक्षय यानी की अनाच्छादन, निक्षेपण और अपरदन की शक्तियों द्वारा बनी हुई नदी घाटियां, डेल्टा, हिमोढ़ को शामिल किया जाता है।
भारत में अनेक प्रकार की स्थलाकृतियां हैं। उत्तर की ओर गगरचुम्बी हिमालय पर्वत, इसके नीचे तटीय क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र - गंगा - सतलुज का विस्तृत मैदान, दक्षिण का पठार व तटीय प्रदेश | इनके आधार पर भारत का प्रादेशीकरण किया गया है।
संरचनात्मक विविधता प्रादेशीकरण का एक मुख्य निर्धारक है। संरचना की दृष्टि से पूरे विश्व में भारत कुछ गिने-चुने देशों में से एक है, जहां सभी युगों की शैलें पाई जाती हैं। एक ओर दक्षिण का पठार विश्व के प्राचीनतम पठारों (प्राचीन विंडो - Old Mossifs) में से एक है। इसी प्रकार अरावली, सतपुड़ा, विंध्याचल आदि पर्वत श्रेणियां विश्व के प्राचीनतम पर्वतों में सम्मिलित की जाती हैं। उत्तरी सीमा पर विस्तृत विशाल हिमालय पर्वत विश्व के नवीन मोड़दार पर्वतीय क्रम के अंग हैं। विशाल गंगा- सतलुज का मैदान, नदियों के डेल्टा प्रदेश एवं बाढ़ के मैदान नवीनतम कांप मिट्टी से निर्मित हैं।
जलवायु - जलवायु भी प्रादेशीकरण का एक महत्वपूर्ण भौतिक आधार है। इसका प्रभाव प्राकृतिक पर्यावरण पर अत्यधिक होता है। जलवायु का प्रभाव न केवल अन्य प्राकृतिक तत्वों जैसे प्राकृतिक वनस्पति व मृदा आदि पर पड़ता है अपितु मानवीय क्रियाओं एवं उसके विविध स्वरूप अर्थात् आवास, वस्त्र आदि पर भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है। कृषि, उद्योग, पशुपालन, परिवहन जैसी आर्थिक क्रियाएं जलवायु से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है। भारत एक विविध जलवायु वाला प्रदेश है। इसका क्षेत्र विस्तृत होने तथा अक्षांशीय विस्तार उच्चावच एवं सागरीय स्थिति आदि ने यहां की जलवायु में क्षेत्रीय विविधता को जन्म दिया है। यह विविधता यहां के तापमान एवं वर्षा में स्पष्टतः दृष्टिगत होती है। जलवायु की इसी विभिन्नता के आधार पर भारत को विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया गया है।
अपवाह तंत्र - अपवाह तंत्र अर्थात् नदियों का प्रारूप भौगोलिक पर्यावरण का अभिन्न अंग है। इसके अन्तर्गत नदियों की मुख्यधारा, उप धाराएं तथा अन्य छोटी शाखाएं सम्मिलित की जाती हैं। अपवाह तंत्र का विकास क्रमिक रूप से होता है तथा इनमें भूगर्भिक हलचलों एवं अपरदन के फलस्वरूप भी परिवर्तन होता है। किसी भी क्षेत्र का अपवाह तंत्र वहां के भूमि विन्यास, चट्टानों की संरचना, विवर्तनिक क्रियाओं, प्रवाहित जल की मात्रा आदि पर निर्भर करता है। अपवाह तंत्र की विभिन्नता प्रादेशीकरण का मुख्य आधार है। भारत में नदियों का प्राचीन काल से विशेष महत्व रहा है क्योंकि इनके सहारे जीवन का विकास हुआ, ये सभ्यता का केन्द्र रही हैं और इन्हें पवित्र माना जाता है। इनके अपवाह के आधर पर व जलीय उपलब्धता के आधार पर भी देश को विभिन्न प्रदेशों में बांटा गया है, जैसे-
(1) उत्तरी भारत का अपवाह तंत्र
(2) प्रायद्वीपीय भारत का अपवाह तंत्र
(3) पूर्ववर्ती अपवाह तंत्र
(4) पश्चिमी अपवाह तंत्र
मृदा विविधता - मृदा भूमि की वह परत है, जो चट्टानों के विखंडन, विघटन और जीवांशों के सड़ने- गलने से मिलकर बनती है। यह पौधों को उगाने और बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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- प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
- प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
- प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
- प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
- प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
- प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
- प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
- प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
- प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
- प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
- प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
- प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
- प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
- प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
- प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
- प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
- प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?