बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
उत्तर -
(Meaning of Growth Pole)
विकास ध्रुव (Growth Pole) से तात्पर्य एक ऐसी विकसित गाँठ (Developed Node) से है जहाँ पर उद्योग-धन्धे स्थापित हो तथा जिनके प्रसार प्रभाव (Spread Effect) से आस-पास के पिछड़े क्षेत्रों का विकास तीव्र गति से किया जा सके।
विकास ध्रुव संकल्पना के जन्मदाता फ्रांसीसी अर्थशास्त्री फ्रांसिस पैरोक्स (Francis Perroux) हैं। उन्होंने 1955 में Theory of Growth Pole संकल्पना प्रस्तुत की। पैरोक्स के अनुसार “विकास सभी जगह यकायक एकसाथ प्रकट नहीं होता है, यह कुछ बिन्दुओं या विकास ध्रुवों पर विभिन्न तीव्रताओं के साथ प्रकट होता है, इसका विभिन्न प्रवाह स्रोतों के सहारे प्रसार होता है तथा यह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिये संयुक्त प्रभाव रखता है। "
पैरोक्स के अनुसार - मौलिक उद्योग केन्द्र ही 'विकास ध्रुव' का स्वरूप है। विकास ध्रुव अभिकेन्द्रीय शक्तियों को आकर्षित और केन्द्रोपसारी शक्तियों को विकर्षित करता है। उद्योग जनित विकास ध्रुव उद्योगों की श्रृंखला द्वारा अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाते हैं। विकास ध्रुव का प्रभाव क्षेत्र उद्योगों को श्रृंखलाबद्ध रूप देता है। लेकिन यह कोई आवश्यक नहीं है कि विकास ध्रुव किसी क्षेत्र विशेष की सीमा से आबद्ध हो अथवा क्षेत्र विशेष का प्रत्येक भाग विकास ध्रुव के प्रभाव क्षेत्र में हो। अतः सरल रूप में जब स्थानीकृत विकास तत्व विषमांगी सतत् क्षेत्रों में स्थापित हो जाये, विकास ध्रुव कहा जा सकता है।
वृहद् रूप में विकास ध्रुव अपेक्षाकृत उच्च स्तर के केन्द्र या नगर होते हैं जिनमें पैरोक्स व बाउड़विले के नोदक उद्योग इजार्ड द्वारा व्यक्त औद्योगिक संशिलष्ट तथा शुम्पीटर की नवाचारी फर्मों, हर्शमैन की सहलग्नतायें मिलती है। भारत में भी विकास ध्रुव की धारणा का विकास हुआ है। जमशेदपुर, भिलाई, दुर्गापुर, नेवेली आदि इसका परिणाम है।
विकास ध्रुव जिस प्रदेश में स्थित होता है वह उसके समग्र विकास के लिये कार्य करता है। प्रत्येक विकास ध्रुव में कुछ नोदक उद्योग और आर्थिक कार्य स्थित होते हैं जो नवाचार तथा प्रसरण उत्पन्न करते हैं। ये उद्योग बड़े और प्रगतिशील प्रविधियों से युक्त और तीव्र वृद्धि उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। विकास ध्रुव विभिन्न उद्योगों के मध्य अग्रगामी तथा पश्चगामी सम्बन्धों को स्थापित करते हैं। इन्हें विकासजन्य ध्रुव भी कहा जाता है। विकास के नवाचारों को ये विकास ध्रुव केन्द्र ही अन्य स्थानों को पहुँचाते हैं।
(Views of Different Scholars on Growth Pole Concept)
विकास - ध्रुव मूलाधार संचालन के मापक प्रभाव तथा आवेग या तीव्रता के अन्तर्सम्बन्ध पर निर्भर करता है। 1966 में जे० आर० बाउड़विले ने इस सिद्धान्त में संशोधन किया। उसने उसे विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र के साथ सम्बद्ध किया। बाउड़विले के अनुसार एक प्रादेशिक विकास ध्रुव एक नगरीय क्षेत्र में अवस्थित और प्रसार कर रहे उद्योगों का सेट है। यह अपने सम्पूर्ण प्रभाव क्षेत्र में आर्थिक क्रिया को आगे विकास की ओर ले जाता है।
बाउडविले के अनुसार- विकास ध्रुव सिद्धान्त को 'क्रिस्टालर के केन्द्रीय स्थल सिद्धान्त' (Christaller's Central Place Theory) से अलग करके नहीं देखना चाहिये। क्रिस्टालर द्वारा प्रतिपादित केन्द्रीय स्थल सिद्धान्त में नगरों का ऐसा पदानुक्रम होता है जो समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों को विभिन्न सेवायें देने के कारण षट्भुजीय आकृति में अवस्थित होते हैं। क्रिस्टालर ने इन केन्द्रों को सेवा केन्द्रों के रूप में स्वीकार किया है। बाउड़विले के अनुसार, "नगर केन्द्र में स्थित औद्योगिक संश्लिष्ट विकास ध्रुव होता है। ऐसे औद्योगिक संश्लिष्ट द्वारा नगर क्षेत्र में आर्थिक क्रियाकलापों को गति मिलने लगती है"। उन्होंने विकास ध्रुव को राष्ट्रीय मैट्रिक्स से भिन्न क्षेत्रों के संश्लिष्ट तंत्र के बजाय क्रियाओं का भौगोलिक महासमूह बताया है। संक्षेप में विकास ध्रुव नगरों के रूप में प्रकट होते हैं जो नोदक उद्योगों के संश्लिष्ट से युक्त होते हैं।
सामान्यत विकास ध्रुव बढ़ने वाले उद्योगों के समूहन को समाविष्ट करता है जो स्थानिक रूप से यथावत् प्रधान नगर के भीतर ही संकेन्द्रित होते हैं तथा एक ऐसी श्रृंखला का निर्माण करते हैं जिससे सम्पूर्ण पृष्ठप्रदेश मे लघु प्रसारों की प्रतिक्रिया होती हैं।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विकास का कोई भौगोलिक ध्रुव या नगर तभी हो सकता है जब उसमें बड़े पैमाने के नोदक प्रतिष्ठान हों तथा प्राविधिकीय दृष्टि से वे अत्याधुनिक होने चाहियें और उनमें नवाचार उत्पन्न करने की क्षमता होनी चाहिये। इन नोदक प्रतिष्ठानों में प्रभावकारी सेवायें देने की भी क्षमता होनी चाहिये और बड़ी-बड़ी व्यापारिक फर्मों को नोदक उद्योगों के अन्तर्गत कार्य करना चाहिये जिनका अपने चारों ओर फैले क्षेत्र पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता हो तथा उसमें दीर्घकाल तक विकास उत्पन्न करने की क्षमता हो।
पैरोक्स ने विकास ध्रुव की व्याख्या करते हुए उसके भौगोलिक क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया था। वस्तुत विकास ध्रुव पृथ्वी धरातल पर ऐसा बिन्दु (स्थान) है जो अपने चारों ओर फैले क्षेत्र से घिरा होता है। आर० पी० मिश्रा, के० वी० सुन्दरम् तथा वी० एल० एस० प्रकाशाराव ने विकास ध्रुव के लिये 5 लाख की जनसंख्या का मानक तैयार किया था। पैरोक्स, जे० आर० लॉसन (J. R. Lasuen), मार्गन, डी० थॉमस, हिगिन्स, हर्शमैन तथा बाउड़विले जैसे विद्वानों का मत है कि विकास ध्रुव ऐसा केन्द्र होना चाहिये जो नये विकासों को या तो शीघ्रता से विसरित कर सके या उनका ध्रुवीकरण कर सके। गुन्नार मिर्डल तथा अल्बर्ट ओ० हर्शमैन ने विकास के प्रसरण को पूरे भौगोलिक क्षेत्र में बिखरा हुआ देखना चाहा है। विकास क्रमागत बड़े स्तर की इकाई से छोटे स्तर तक की इकाई में छन-छन कर पहुँचता है। इसे Trickle Down Effect भी कहते हैं।
टी० हैगरस्ट्रैण्ड के अनुसार प्रधान या मुख्य नगर अन्य छोटे नगरों को आकर्षित करते हैं जिससे उनका प्रभाव, विकास व प्रसार दूरी द्वारा निर्धारित होता है। मुख्य नगर का प्रभाव विस्तृत क्षेत्र पर रहता है जबकि छोटे-छोटे सेवा केन्द्र छोटे-छोटे क्षेत्रों व स्थानीय इकाइयों को ही प्रभावित कर पाते हैं। आर्थिक विकास के अनेक मॉडल कुछ केन्द्रो पर या क्षेत्रों में आर्थिक क्रियाओं के ध्रुवीकरण या पुंजीभवन पर बल देते हैं साथ ही कुछ मॉडल उनके विकेन्द्रीकरण पर बल देते हैं। आर्थिक क्रियाओं के ध्रुवीकरण या पुंजीभवन पर बल देने वाले सिद्धांत ही विकास ध्रुव की संकल्पना में विश्वास करते हैं।
(Growth Pole Policy in Regional Planning)
प्रादेशिक नियोजन में विकास ध्रुव नीति को अनेक देशों ने अपनाया है। इस नीति के द्वारा समस्यात्मक क्षेत्रों में एक या अनेक विकास ध्रुव चुन लिये जाते हैं और इन चुने हुये केन्द्रो पर नये निवेश पर बल दिया जाता है। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि सार्वजनिक निवेश अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली होता है क्योंकि यह विनियोग निर्धारित क्षेत्रों में ही किया जाता है जिससे नये उद्योगों के उभरने के लिये उपयुक्त अवसर मिलते हैं। इसका लाभ यह होता है कि ढाँचागत सुविधायें - सड़कें, ऊर्जा, सिंचाई, स्वास्थ्य बाजार आदि उपलब्ध हो जाता है तथा श्रम वाणिज्य व व्यापार का आकार बढ़ जाता है। इससे वितरण की कीमत कम हो जाती है।
विकास ध्रुव नीति में जनसंख्या का निर्धारण एक विवादित विषय है। यह सर्वविदित है कि पेट्रो रसायन उद्योगों (Petro - Chemical Industries) व धातु संगलक संयन्त्रों को सघन जनसंख्या क्षेत्रों से दूर ही स्थापित किया जाता है। इसी प्रकार परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों की स्थापना भी घनी आबादी वाले क्षेत्रों से दूर ही की जाती है।
विकास ध्रुव सिद्धान्त की कमियाँ-विभिन्न विद्वानों ने विकास ध्रुव सिद्धान्त में दो कठिनाइयाँ बताईं हैं-
(1) प्रबल विकास ध्रुवों का चयन
(2) राजनीतिक प्रभाव के कारण गलत विकास ध्रुवों का चयन।
पैरोक्स का विचार है कि - विकास ध्रुव से आर्थिक विकास निचले स्तर के अन्य अर्थ तन्त्रों में प्रसरित होता है। इसका उपयोग उन प्रक्रियाओं की तलाश के लिये एक यन्त्र के रूप में किया जाता है जिसके द्वारा वृहद् आर्थिक क्रियायें - व्यापारिक फर्मों और नोदक उद्योग प्रकट होते हैं। टॉरमोड हरमैनसन का विचार है कि, “विकास ध्रुव की मूल संकल्पना अत्यधिक संक्षिप्त थी जिसे एक उपकरण के रूप में लागू किया गया जो उस प्रक्रिया की खोज करने के लिये थी, जिसके द्वारा आर्थिक क्रियायें-फर्मों व उद्योग प्रकट होते हैं, बढ़ते हैं तथा एक नियम के अनुसार उनमे ठहराव आता है और कभी अदृश्य हो जाते हैं"।
पैरोक्स के अनुसार - विकास ध्रुवों पर उद्योगों के स्थानीयकरण को निम्न दो रूपों में देखना चाहिये-
1. ऐसे केन्द्र, जिनमें विविध प्रकार के उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं तथा जिनमें स्थानीय वस्तुओं की कम आवश्यकता होती है। ऐसे नाभिक बिन्दु वृहद् मापक के प्रभुत्वकारी बिन्दुओं के बाद प्रकट होते हैं तथा उनका सम्बन्ध प्रथम कोटि के केन्द्र स्थल से स्थापित हो जाता है। इन द्वितीय श्रेणी के केन्द्रों से प्रसरण (Diffusion) अधिक होता है। इन दोनों के बीच कुछ चुने हुये नगर केन्द्र विकसित किये जा सकते हैं।
2. ऐसे केन्द्र जहाँ कुछ विशिष्ट अवस्थापनात्मक सुविधायें हैं, कुछ विशिष्ट वृहद्मापक उद्योग स्थापित होते हैं। इनमें अत्यधिक पूँजी निवेश किया जाता है। ऐसे केन्द्र अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण एक प्रभुत्वकारी नाभिक बिन्दु बन जाते हैं।
विकास ध्रुवों की भौगोलिक विवेचना में भौगोलिक व प्रकार्यात्मक स्थानों ध्रुवीकरण (Polarisation) को शामिल किया जाता है। इसलिये केन्द्रीय प्रदेशों (Nodal Regions) के सभी केन्द्र विकास ध्रुव के नाम से चिन्हित नहीं हो सकते।
1969 में टी० हरमैनसन ने विकास ध्रुव नीति पर टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया कि केन्द्रीय स्थल सिद्धान्त में स्थानिक अनियमितताओं की कमी है, जिसे वृद्धि के प्रभाव के विश्लेषण के लिये एक विचलन बिन्दु के रूप में लिया जा सकता है। इसलिये बाउड़विले द्वारा संशोधित विकास ध्रुव सिद्धान्त भौगोलिक क्षेत्र में अनुपयोगी है।
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- प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
- प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
- प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
- प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
- प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
- प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
- प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
- प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
- प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
- प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
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- प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
- प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
- प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
- प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
- प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
- प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
- प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?