बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 5
छोटा नागपुर पठार के क्षेत्रीय दृष्टिकोण
(Approaches to Regional Geography of
Middle Ganga Plain and Chota Nagpur)
प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
उत्तर -
स्थिति एवं विस्तार - गंगा का मध्यवर्ती मैदान ऊपरी मैदान के पूर्व में 24°30 से 27°50' उत्तरी अक्षांशों व 81°47' से 87°50 पूर्वी देशान्तरों के मध्य 1,44,409 वर्ग किमी क्षेत्र पर विस्तृत है। इसके मानवीय, आर्थिक व सांस्कृतिक महत्व के कारण इसे भारत का 'हृदय' उचित ही कहा जाता है। इसके अन्तर्गत पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं वाराणसी डिवीजन, गोंडा, फैजाबाद, सुल्तानपुर व इलाहाबाद जिले आंशिक रूप से तथा बिहार के तिरहुत, भागलपुर व पटना डिवीजन सम्मिलित हैं। यह प्रदेश 600 किमी लम्बाई व लगभग 330 किमी चौड़ाई में विस्तृत है। प्रदेश की दक्षिणी सीमा 150 मीटर की समोच्च रेखा द्वारा पूर्वी सीमा बिहार - बंगाल सीमा द्वारा एवं उत्तरी सीमा भारत-नेपाल की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा द्वारा निर्धारित होती है।
इस भौगोलिक प्रदेश का इतिहास अति प्राचीन ( रामायणकालीन ) है |
भू-वैज्ञानिक एवं भौतिक रचना - यह प्रदेश भारत के उत्तरी मैदान का ही एक खण्ड है। भू-वैज्ञानिक रचना के अनुसार यह उस भू-संनति का ही भाग है जो टर्शियरी युग में अंगारा एवं गोंडवाना नामक कठोर स्थलों के मध्य स्थित थी। कालान्तर में वह भू-संनति जलोढ़ मिट्टियों द्वारा भरी गयी। प्रदेश के उत्तरी भाग में चम्पारण जिलों की कुछ भूमि पर शिवालिक श्रेणियों तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार का प्रसार मिलता है। जलोढ़ मिट्टियों के निक्षेप औसतन, 1,300 मीटर गहरे हैं; किन्तु हिमालय के पाद प्रदेश के निकट उनकी गहराई 8,000 या 10,000 मीटर तक पायी जाती है। गोरखपुर एवं रक्सौल-मोतीहारी के निकट तलछट की गहराई लगभग 8,000 मीटर पाई जाती है। प्रदेश की भू-आकृतिक रचना में एक व्यापक समानता देखने को मिलती है। कुल क्षेत्र समुद्रतल से 100 मीटर से भी कम ऊँचा है। चूना-प्रधान कंकड़ भी कम पाया जाता है, क्योंकि खादर मिट्टी की प्रधानता है। नदियों के किनारे प्राकृतिक तटबन्ध, विसर्प चापाकार झीलें, ब्लफ या बलुई टीले पाये जाते हैं। गंगा इस प्रदेश की मुख्य नदी है। घाघरा, गंडक, कोसी, सोन आदि इसकी सहायक नदियाँ हैं। राप्ती, बान-गंगा, रोहिणी, आदि घाघरा की सहायक हैं। कोसी तथा घाघरा मार्ग परिवर्तन तथा बाढ़ - प्रकोप के लिए कुख्यात हैं। दक्षिण में प्रायद्वीप की दिशा से अनेक नदियाँ गंगा में मिलती हैं, इनमें सोन महत्वपूर्ण है। सोन की औसत ढाल प्रवणता 35-55 सेमी प्रति किमी है। निरन्तर मार्ग परिवर्तन एवं बाढ़ का प्रकोप इसकी प्रमुख विशेषतायें हैं। सोन के पश्चिम में गंगा की सहायक नदियाँ करणावती, उजनाला, खजूरी, छतरा, टोंस, करमनासा आदि तथा पूर्व में पुनपुन, मोहिनी व चन्दन प्रमुख हैं। मध्यवर्ती मैदान का औसत ढाल अत्यन्त मन्द ( पूर्वी उत्तर प्रदेश में 10 सेमी /किमी एवं बिहार में 6 सेमी / किमी) है। उत्तरी मैदान में बाढ़ों का अधिक प्रकोप रहता है। गंगा, राप्ती, घाघरा, गण्डक, कोसी तथा सोन में वर्षाकाल में बाढ़ें आती हैं। प्रदेश को भू-आकृति के आधार पर निम्नलिखित खण्डों में विभाजित किया गया है-
(i) गंगा - घाघरा दोआब,
(ii) घाघरा - गण्डक दोआब,
(iii) गण्डक - कोसी दोआब,
(iv) कोसी - महानदी दोआब,
(v) गंगा - सोन उभार, तथा
(vi) मगध एवं अंग मैदान।
जलवायु - गंगा के ऊपरी एवं निचले मैदान के मध्य इस प्रदेश को 'संक्रमण क्षेत्र' की संज्ञा दी जा सकती है। पटना में जून का औसत तापमान 32.9°C, जुलाई में 29.7°C तथा अगस्त में 29.2°C पाया जाता है। वाराणसी के तापमान क्रमशः 33.7°C (जून), 30.0°C (जुलाई ) तथा 29.1°C (अगस्त) होते हैं। प्रदेश के उत्तरी भाग में 7 जून, पश्चिमी बिहार में 15 जून और पूर्वी उत्तरी प्रदेश में जून के तीसरे सप्ताह में मानसून पहुँचता है। जून और सितम्बर के मध्य बंगाल की खाड़ी के मानसूनों से उत्तरी बिहार में 85 तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में 88% वर्षा प्राप्त होती है। इस समय आर्द्रता 70% से अधिक होती है और तापमान औसत से 7°C - 8°C कम हो जाता है।
मानसून की समाप्ति पर सितम्बर माह में तापमान कुछ बढ़ जाते हैं। सितम्बर के अन्त में अथवा अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में दक्षिण-पश्चिमी मानसून क्रमशः वापस हो जाती है।
नवम्बर माह से शीतकाल प्रारम्भ हो जाता है। उस समय तापमान और आर्द्रता में कमी होती है। शुष्क पछुआ पवनें चलने लगती हैं। पटना का औसत तापमान नवम्बर में 22.5°C तथा दिसम्बर में 18.3°C होता है। वाराणसी का औसत तापमान दिसम्बर में 17°C तथा जनवरी में 16°C पाया जाता है। न्यूनतम तापमान 4°C तक गिर जाते हैं। शीत लहर के कारण उत्तरी बिहार में औसत तापमान प्रायः 10°C के नीचे तथा दक्षिणी बिहार में 11°C के ऊपर होते हैं। शीतकालीन वर्षा रबी की फसल के लिये उपयोगी होती है, यद्यपि इसकी मात्रा अल्प होती है।
फरवरी के अन्त व मार्च के आरम्भ में तापमान बढ़ने लगते हैं। पूर्वी तथा उत्तरी बिहार में मई में औसत तापमान 30°C तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में 34°C तक पहुँच जाते हैं। मानसून पूर्वकाल में वर्षा की मात्रा पूर्वी उत्तर प्रदेश व पश्चिमी बिहार में 3-10 सेमी, पूर्वी बिहार में 10-25 सेमी तथा उत्तरी-पूर्वी बिहार में 25 सेमी से अधिक होती है।
मिट्टियाँ - प्रदेश में जलोढ़ अपरिपक्व मिट्टियों की प्रधानता है। मिट्टियों के रंग, गठन एवं आर्द्रता में बहुत कम अन्तर पाये जाते हैं। जल निकासी के अभाव में सोडियम लवण के एकत्रित होने से ऊसर भूमि उत्पन्न हो जाती है। प्रदेश की मिट्टियाँ खनिजों एवं जैव तत्वों से भरपूर हैं, किन्तु उनमें नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है, इसलिये खाद व उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक है।
.निरन्तर बाढ़ों द्वारा प्रभावित खादर क्षेत्र की मिट्टियाँ काफी उपजाऊ होती हैं। आर्द्र होने के कारण बिना सिंचाई के फसलें उगायी जाती हैं (यद्यपि इसमें जीवांश एवं नाइट्रोजन की कमी होती है)। बांगर क्षेत्र में पुरानी जलोढ़ मिट्टियाँ पाई जाती हैं। चूना प्रधान कंकड़ों की भी कई स्थानों पर प्रधानता है। निचले भागों में चीका प्रधान मिट्टी अधिक पाई जाती है। पूर्वी सरयू पार क्षेत्र तथा बिहार के मध्य-पश्चिमी भाग में चूना प्रधान जलोढ़ मिट्टी को 'भाट' नाम दिया गया है। इस मिट्टी में चूना, जैव- पदार्थों एवं नाइट्रोजन की अधिकता है। प्रदेश के उत्तरी भाग में 15 से 60 किमी चौड़ी पेटी में तराई मिट्टी पाई जाती है। अधिक वर्षा के कारण यह मिट्टी अधिक घुल गई है, इसलिये भारी चीका के कण अधिक पाये जाते हैं।
इस प्रदेश में भूमिगत जल-तल 5 मीटर से 20 मीटर की गहराई तक पाया जाता है। बलुई एवं सरन्ध्री तटबन्धों के क्षेत्रों में जल-तल अधिक नीचा पाया जाता है। किन्तु चीका प्रधान मिट्टी के क्षेत्रों में जल-तल 5 मीटर से भी कम गहराई पर मिल जाता है।
प्राकृतिक वनस्पति - किसी समय प्रदेश में वनों का विस्तार अधिक था। कृषि भूमि के विस्तार के लिये वनों को निर्दयतापूर्वक काटा गया। अतीत में राप्ती एवं घाघरा के किनारे तथा सरयू पार क्षेत्र में साल और शीशम के सघन वन पाये जाते थे। अब केवल चम्पारण तथा तराई क्षेत्र में ही वन अधिक पाये जाते हैं। बस्तियों की अनुपयोगी भूमि पर बरगद, पीपल, इमली, महुआ, नीम, बबूल, आदि अधिक उगे मिलते हैं। खादर, दियार व तराई भूमि पर मूँज, कांस, भेर, लम्बी घास उगी पाई जाती है।
कृषि - यह प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है, सूखाग्रस्त रहता है। इस मैदान की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है।
प्रदेश में कृषि योग्य भूमि औसतन 65 से 70% तक पाई जाती है। दक्षिणी-पश्चिमी बिहार के मैदान में कुल बोई गई भूमि 88% से 92%, बिहार के उत्तरी मैदान में 70% से 88% और बिहार के दक्षिण - पूर्वी मैदान में 77% से 80% पायी जाती है।
चावल के अन्तर्गत कृषि योग्य भूमि का 38% मिलता है। बिहार के मैदानी भागों में 45% कृषि योग्य भूमि पर चावल उत्पन्न किया जाता है। बूढ़ी गंडक एवं कोसी दोआब में तथा दक्षिणी-पश्चिमी बिहार के मैदान में प्रधानतः चावल की खेती होती है।
गेहूँ दूसरी प्रमुख उपज है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी मैदान के लगभग 11.5% कृषि - योग्य भूमि पर तथा बिहार की केवल 9 या 10% भूमि पर गेहूँ उगाया जाता है।
मक्का तीसरी महत्वपूर्ण उपज है। यह उत्तम जल निकासी, उर्वर बलुई व दुमट मिट्टी के क्षेत्रों में दक्षिणी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पूर्णिया एवं मुंगेर के जिलों में उत्पन्न की जाती है।
जौ पूर्वी उत्तर प्रदेश में अधिक उगाया जाता है। बिहार में उत्तर -पश्चिमी सारन, चम्पारण और मुजफ्फरपुर उल्लेखनीय हैं। जौ की कृषि प्रायः चने के साथ मिश्रित की जाती है। दालों तथा चने की कृषि भी उल्लेखनीय है। बिहार के मैदान की कृषि योग्य भूमि का 50% चने के नीचे है। शाहाबाद, गया, पटना और मुंगेर बिहार का 75% चना उत्पन्न करते हैं।
तिलहन पूर्णिया, शाहाबाद, गया, चम्पारण आदि जिलों में अधिक उत्पन्न किये जाते हैं। गन्ने की कृषि प्रधान भाट नामक मिट्टी के क्षेत्रों में अधिक सफल रही है। बिहार मैदान के पश्चिमी भाग तथा संलग्न पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह अधिक उत्पन्न किया जाता है, स्थानीय चीनी की मिलों को इसका संभरण होता है।
वर्षा के वितरण में स्थानीय भेद एवं अनियमितता के कारण प्रदेश में सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रदेश की बोई गई भूमि का 35% से 37% भाग सिंचित होता है। बिहार के आर्द्र उत्तरी मैदान में बोई गई भूमि का 6 या 7% सिंचित है जबकि शुष्क दक्षिणी मैदान में 55 या 60% सिंचित है। कोसी मैदान का 5% से भी कम भाग सिंचित है। गंगा - घाघरा दोआब एवं सरयू पार मैदान में सिंचित भूमि का प्रतिशत प्रायः 35 से अधिक मिलता है। सिंचाई की मात्रा पूर्व से पश्चिम को बढ़ती जाती है।
बिहार के दक्षिणी मैदान में नहरी सिंचाई महत्वपूर्ण है। यहाँ सोन नहर तथा सांकरी नहर उल्लेखनीय हैं। तालाब तथा पोखर द्वारा भी सिंचाई होती है। शाहाबाद, पटना एवं गया में कुओं का उपयोग अधिक होता है। बिहार के उत्तरी मैदान (चम्पारण) में त्रिवेणी एवं ढाका नामक नहरों से सिंचाई उल्लेखनीय है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बस्ती, गोरखपुर, प्रतापगढ़ एवं जौनपुर में कुएँ एवं नलकूपों द्वारा अधिक सिंचाई होती है। वाराणसी में कर्मनासा और चन्द्रप्रभा बाँध की नहरें सिंचाई का प्रमुख साधन हैं।
उद्योग - इस प्रदेश में कुटीर उद्योगों का अधिक महत्व है। वृहत् उद्योगों की स्थापना विगत वर्षों में ही हुई है। खाद्य-निर्माण सम्बन्धी उद्योगों का विकास भागलपुर, बस्ती, आजमगढ़, फैजाबाद, दरभंगा, वाराणसी, आदि जिलों में अधिक हुआ है। लघु व कुटीर स्तरीय वस्त्रोद्योग मुख्यतः बस्ती, आजमगढ़, वाराणसी, फैजाबाद, दरभंगा एवं गोरखपुर में प्रचलित हैं।
प्रदेश में चीनी उद्योग (60 कारखाने व लगभग 50,000 श्रमिक) महत्वपूर्ण हैं। चीनी मिलें गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद, आदि जिलों में स्थित हैं। गन्ने से गुड़ एवं खांड भी बनाये जाते हैं। अन्य महत्वपूर्ण खाद्य-निर्माण सम्बन्धी उद्योग चावल व दाल साफ करना, आटा पीसना, तेल पेरना, डेरी, मछली पालन आदि हैं। चावल साफ करने का उद्योग उत्तरी बिहार की तराई पट्टी में तथा उत्तर प्रदेश के सरयू पार मैदान में अधिक विकसित मिलता है। दाल, तेल व आटा मिलें दक्षिण मैदान के पश्चिमी भाग में तथा गंगा - घाघरा दोआब में उल्लेखनीय हैं।
हथकरघा उद्योग पटना के निकट फुलवाड़ी, बक्सर, गया, वाराणसी, मिर्जापुर, मऊ, टाँडा, अकबरपुर आदि में; ऊनी दरियाँ व कालीन - मिर्जापुर, वाराणसी तथा भदोही में; जूट उद्योग-कटिहार, समस्तीपुर तथा सहजनवा (गोरखपुर) में, वाराणसी में बनारसी रेशमी वस्त्र और भागलपुर में टसर रेशमी वस्त्रोद्योग प्रचलित हैं।
प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित डालमियानगर सीमेंट, कागज, गत्ता, प्लाईवुड, चीनी, वनस्पति घी, रासायनिक उद्योग, आदि का विशाल केन्द्र बन गया है। बरौनी में पेट्रोरसायन तथा तेल-शोधन उद्योग का विकास गत वर्षों में ही हुआ है। वाराणसी में डीजल रेल के इंजन तथा रामनगर में काँच की वस्तुएँ बनाने का उद्योग विकसित हुआ है।
जनसंख्या एवं बस्तियाँ - गंगा का मध्यवर्ती मैदान बहुत घना आबाद प्रदेश है। यहाँ प्रति वर्ग किमी जन घनत्व 380 से अधिक है। केवल तराई के वनों, नदियों के निकट बाढ़युक्त खादर क्षेत्रों तथा ऊसर भूमि पर घनत्व कम मिलता है। दक्षिणी पठार की ओर (इलाहाबाद की मेजा, शाहाबाद की भभुआ तथा मुंगेर की जामई तहसीलों में) जन घनत्व कम है। वाराणसी और पटना की कुछ तहसीलों में उच्च जन घनत्व मिलता है। केराकत तहसील में डोसी ब्लॉक (आंचल) तथा मुजफ्फरपुर जिले में बिदूपुर में जन घनत्व प्रति वर्ग किमी 750 से भी अधिक पाया जाता है।
प्रदेश की 93% जनसंख्या ग्रामीण है। 1/3 ग्रामीण जनसंख्या अधिकतर पूर्वी उत्तर प्रदेश के 500 से कम जनसंख्या वाले ग्रामों में निवास करती है। बिहार के मैदान में प्रायः बड़े-बड़े ग्राम पाये जाते हैं। नदियों के किनारे खादर के तटबन्धों पर 10,000 से अधिक जनसंख्या वाले ग्राम अधिक पाये जाते हैं।
सरयू पार मैदान में समतल उपजाऊ भूमि के कारण बस्तियाँ सुविकसित हैं। राप्ती खादर के तराई क्षेत्र में भी जहाँ वनों को साफ किया जा चुका है, बड़े एवं संहत ( compact ) ग्राम मिलते हैं। परन्तु घास या वनों से आच्छादित तराई के भागों में प्रकीर्ण बस्तियाँ पाई जाती हैं। गंगा - घाघरा दोआब में पूर्व की ओर खादर के क्षेत्र में बस्तियाँ बिखरी हुई हैं तथा पश्चिम की ओर संहत होती जाती हैं। बिहार के दक्षिणी मैदान में संहत और बड़ी बस्तियाँ मिलती हैं। उत्तरी मैदान में चम्पारण के पर्वतपदीय क्षेत्र में नदियाँ बिखरी हुई एवं असम दूरियों पर मिलती हैं। मैदानी भाग में पूर्व की ओर बिखरी हुई तथा पश्चिम की ओर संहत बस्तियाँ मिलती हैं।
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- प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
- प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
- प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
- प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
- प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
- प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
- प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
- प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
- प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
- प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
- प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
- प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
- प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
- प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
- प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
- प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
- प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?