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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 3

प्रादेशिक नियोजन का विकास एवं उद्देश्य

(Evolution and Objective of Regional Planning)

प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।

उत्तर -

प्रादेशिक नियोजन : परिभाषायें एवं उद्देश्य
(Regional Planning : Definitions and Goals)

प्रादेशिक नियोजन किसी प्रदेश में निवास करने वाले लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिये स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की योजनायें बनाकर उन्हें पूरा करता है। भूतल पर कोई क्षेत्र या प्रदेश सामाजिक-आर्थिक विकास में पूर्णरूपेण समरूप (Homogeneous) नहीं है। इसीलिये अलग-अलग देशों के विकास में सामाजिक-आर्थिक विषमतायें मिलती हैं। प्रादेशिक नियोजन में एक देश को समरूप प्रदेशों में बाँटकर उनमें उपलब्ध संसाधनों के अनुसार समग्र विकास हेतु योजनायें बनाई जाती हैं। इस प्रकार प्रादेशिक नियोजन सूक्ष्म निरीक्षण, चिन्तन-मनन व अध्ययन के बाद एक विवेकपूर्ण व तर्कसम्मत वहद् कार्यक्रम है जो उस प्रदेश विशेष की समग्र आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बनाया जाता है। प्रादेशिक नियोजन यथार्थ की अपेक्षा आशा पर अधिक आधारित होता है। प्रादेशिक नियोजन में प्राकृतिक व आर्थिक संसाधनों को एक ढाँचे में संगठित कर एक ऐसा कार्यक्रम निर्धारित किया जाता है जिसके क्रियान्वयन से उस प्रदेश का समग्र विकास हो सके।

विभिन्न विद्वानों ने प्रादेशिक नियोजन को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-

(1) प्रो० इनायत अहमद (Enayat Ahmad ) तथा देवेन्द्र कुमार सिंह (Devendra Kumar Singh) के अनुसार - “प्रादेशिक नियोजन दृढ़ प्रादेशिक उपागम के आधार पर पृथ्वी के किसी हिस्से के आर्थिक व सामाजिक विकास के लिये योजना बनाने का कार्य है"।

(2) सी०वी० नरसिम्हन के अनुसार - “प्रादेशिक नियोजन स्थानीय उपक्रम पर आधारित संतुलित एकीकृत विकास तथा राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त ढाँचा प्रस्तुत करता है जिसमें स्थानीय व राष्ट्रीय महत्व की योजनाओं का एकीकरण या समाकलन होता है। इस प्रकार का व्यापक प्रादेशिक नियोजन महानगरीय क्षेत्रों, ऐसे क्षेत्रों जहाँ प्राकृतिक संसाधन विकसित किये जा रहे हों तथा ग्रामीण पुनरुत्थान के नियोजन और उद्योगों की स्थापना के लिए उपयुक्त होता है"।

(3) पी० सेन गुप्ता के अनुसार - “प्रदेश के प्राकृतिक व मानवीय संसाधनों का पूर्ण विकास करने के लिये प्रादेशिक नियोजन एक सुनियोजित प्रयास है"।

(4) जॉन फ्रीडमैन के अनुसार - “प्रादेशिक नियोजन अधिनगरीय स्थान अर्थात् एक नगर की अपेक्षा अधिक बड़े क्षेत्र में मानवीय क्रिया-कलापों के व्यवस्थापन से सम्बन्धित है"। फ्रीडमैन के अनुसार, “प्रादेशिक नियोजन अधिनगरीय क्षेत्र में मानवीय क्रिया-कलापों के व्यवस्थापन में सामाजिक उद्देश्यों के सूत्रीकरण की प्रक्रिया है"।

(5) बर्गेस के अनुसार - “प्रादेशिक नियोजन का आशय एक वहद् क्षेत्र में फैले सामान्य हितों के प्रश्नों पर केन्द्रीयकरण है। इसका अर्थ निश्चित विकेन्द्रीयकरण भी है, जहाँ तक प्रश्न निश्चित रूप से स्थानीय हितों से सम्बन्धित है"।

(6) डी०एन० सिंह के अनुसार - "प्रादेशिक नियोजन प्रदेश के प्राकृतिक पर्यावरण के उपयोग व संशोधन, उसकी उत्पादक शक्तियों का विकास तथा क्षेत्र के विवेकपूर्ण संगठन के लिये बनाई गई एक एकीकृत योजना है जिसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय संश्लिष्टों (Regional Complexes) का निर्माण करना तथा क्षेत्र को किसी आधारभूत वस्तु के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना है"।

स्पष्ट है कि प्रादेशिक उपागम का आशय प्रदेश की समग्र जानकारी प्राप्त करना, प्रदेश के संसाधनों का ज्ञान करना, उनको विकसित करना, उनका न्यायपूर्ण उपयोग करना, प्रादेशिक अभावों का ज्ञान, उनकी समस्याओं को समझना, योजना बनाना व उनका क्रियान्वयन करना है।

प्रादेशिक नियोजन का सार एवं विषय-वस्तु
(Content and Subject-Matter of Regional Planning)

प्रादेशिक नियोजन में प्रारम्भ में प्राकृतिक संसाधनों के विषय में जानकारी प्राप्त करके उनके विकास को शामिल किया जाता था लेकिन अब प्रादेशिक नियोजन को प्रादेशिक विज्ञान (Regional Science) के रूप में देखा जाता है और इसके अन्तर्गत विविध पक्षों का अध्ययन किया जाता है।

(1) नगर नियोजन (Town Planning) - प्रादेशिक नियोजन की विषय-वस्तु में नगर नियोजन को भी शामिल किया जाता है। एल० डी० स्टाम्प के अनुसार, “नगर नियोजन का प्रमुख उद्देश्य नागरिकों के हित तथा उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है"।

 

नगरों व महानगरों के नियोजन प्रादेशिक नियोजन के तहत नगर सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में सर्वतोन्मुखी विकास करते हुये भावी समस्याओं से बचता है, इससे नगर को आकर्षक व सुन्दर रूप प्राप्त होता है। यह नगरीय विकास के लिये आधार प्रदान करता है। पैट्रिक एबरक्राम्बी (Patrick Abercrombie) ने नगर नियोजन के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुये व्यक्त किया कि सौन्दर्य, स्वास्थ्य और उपलब्ध सुविधाओं व संसाधनों के आधार पर नगर का विकास इस रूप में करना चाहिये ताकि वह देखने में आकर्षक लगे और ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि उसकी सुन्दरता (Beauty) बनी रहे। नगर विस्तृत ग्रामीण क्षेत्र का हृदय होता है और नगर का हृदय उसका केंन्द्रीय व्यापार गर्त होता है।

(2) आर्थिक विकास नियोजन (Economic Development Planning) - पृथ्वी धरातल पर मनुष्य अधिकांश क्रियायें आर्थिक उत्पादन के लिये करता है। इनसे उसे प्राथमिक व द्वितीयक उत्पाद (Products) प्राप्त होते हैं। सभी प्रकार के नियोजन का उद्देश्य मानव को सुखी, समृद्ध व प्रगतिशील बनाना होता है तथा इसका आधार अर्थ (Wealth) प्राप्त करना होता है। सभी प्रकार के विकास के मूल में धन या अर्थ ही होता है। कृषि, उद्योग, व्यापार, परिवहन व वाणिज्य आर्थिक विकास के अंग हैं। स्थानीय संसाधनों के आर्थिक उपयोग में उचित भू-आर्थिक ढाँचा तन्त्र (Geo-economic Infrastructure) का विकास आर्थिक विकास की पूर्व शर्त होती है। इसलिये प्रादेशिक नियोजन में शक्ति व सिंचाई सुविधाओं का विकास, यातायात संचार साधनों का विकास, व्यापार, वाणिज्य, विपणन, उद्योग आदि सभी के विकास पर बल दिया जाता है। अतः प्रादेशिक नियोजन में आर्थिक महत्व का विशेष योगदान है।

(3) पर्यावरणीय नियोजन (Environmental Planning ) - वर्तमान समय में किसी क्षेत्र के नियोजन में पर्यावरण की उपेक्षा नहीं की जा सकती। अनियोजित ढंग से स्थापित औद्योगिक इकाइयों ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। इससे मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा है। अतः प्रादेशिक नियोजन की विषय-वस्तु में पर्यावरण के नियोजन पर भी बल दिया जाता है, अर्थात् प्रादेशिक नियोजन पारिस्थितिकीय दृष्टि से स्वरूथ विकास की ही अनुमति देता है। प्रादेशिक नियोजन में पर्यावरण की गुणवत्ता बढ़ाने तथा सभी प्रकार के प्रदूषण को नियन्त्रित करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। उत्तराखण्ड में टिहरी बाँध के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करके ही इस परियोजना को अन्तिम रूप दिया गया है। झारखण्ड व पश्चिम बंगाल में बहने वाली दामोदर नदी पर दामोदर घाटी परियोजना (D.V.C.) भारत के महत्वपूर्ण व विशाल कोयला क्षेत्रों के नियोजन के लिये बनाई गयी है। इस परियोजना के कारण दामोदर घाटी क्षेत्र में कोयले का उत्खनन आसान हो गया है। दामोदर घाटी परियोजना के पूरी होने पर कोयला खदानों में काम करने वाले श्रमिकों को पेयजल की पूर्ति, खदानों को सुरक्षा, उत्तम आवासीय व्यवस्था, परिवहन, विद्युत आपूर्ति, शिखा व स्वास्थ्य सुविधायें आदि प्रदान की गई हैं।

(4) प्राकृतिक संसाधन नियोजन (Natural Resources Planning) - सभी प्रकार का विकास, चाहे वह आर्थिक विकास - कृषि, उद्योग, परिवहन व वाणिज्यिक हो अथवा सामाजिक विकास- शिक्षा, स्वास्थ्य, आदि या कोई अन्य विकास हो, संसाधनों के बिना संभव नहीं है। इसलिये प्रादेशिक नियोजन में प्रारम्भ से ही प्राकृतिक संसाधनों के समुचित उपयोग पर बल दिया जाता रहा है। यदि उनका नियोजित ढंग से उपयोग नहीं किया जाता है तो भविष्य में वे उपयोग के लिये अनुपलब्ध हो सकते हैं। प्रादेशिक नियोजन की पहली आवश्यकता यही है कि क्षेत्र के सभी प्रकार के प्राकृतिक व मानवीय संसाधनों का ज्ञान प्राप्त किया जाये। जो संसाधन समापनीय या नश्वर (Exhaustible ) हैं उनके प्रयोग में विशेष सावधानी बरतने की अधिक जरूरत होती है। संसाधनों के गुणात्मक विकास करने पर उनसे अधिक उपयोगिता मिलती है तथा समाज में खुशहाली आती है।

(5) मानव संसाधन नियोजन (Human Resource Planning) - मानव न केवल प्राकृतिक पदार्थों को संसाधनों में परिणत करता है बल्कि वह स्वयं एक महत्वपूर्ण संसाधन है। मानव के मस्तिष्क में निहित बुद्धि, कला, चातुर्य तथा शारीरिक क्षमता का उपयोग करने पर विविध प्रकार के संसाधन निर्मित होते हैं। मानव संसाधनों का उत्पादक व उपभोक्ता (Producer and Consumer) दोनों है। अतः प्रादेशिक नियोजन में जो भी क्षेत्र विकास के कार्यक्रम बनाये जाते हैं, उन सभी में मानव हितों को ध्यान में रखा जाता है। प्रादेशिक नियोजन में जनसंख्या नियोजन को भी विशेष महत्व दिया जाता है। प्रादेशिक नियोजन के लिये कोई भी योजना या कार्यक्रम बनाते समय उस क्षेत्र की जनसंख्या को अलग नहीं किया जा सकता। इसके लिये प्रत्येक क्षेत्र के प्रादेशिक नियोजन में मानव की शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार पर ध्यान दिया जाता है।

प्रादेशिक नियोजन के लक्ष्य एवं
उद्देश्य अथवा अभिनव संकल्पना

वर्तमान समय में प्रादेशिक नियोजन के उद्देश्यों की विद्वानों ने निम्न प्रकार व्याख्या की है-

(1) लेविस ममफोर्ड के अनुसार - प्रादेशिक नियोजन इस बात की माँग नहीं करता है कि एक क्षेत्र कितना विस्तृत है जिसे मैट्रो ध्रुवों के तत्वावधान में लाया जा सकता है, बल्कि इसकी माँग करता है कि कैसे जनसंख्या व नागरिक सुविधायें वितरित की जानी चाहियें ताकि सम्पूर्ण प्रदेश में स्पष्ट व रचनात्मक जीवन उन्नत एवं सुदृढ़ हो।

(2) बर्टन मैकाये के अनुसार - “प्रादेशिक नियोजन पृथ्वी तल पर मानव के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रकृति की योजनाओं को खोजने का प्रयास है। यह उद्योग को संस्कृति के नौकर के रूप में देखता है तथा इसका मुख्य ध्यान एक प्रदेश के अन्तर्गत सभ्यता के प्रवाह का मार्ग प्रशस्त करना है। इस प्रवाह में विद्युत, लकड़ी, गेहूँ, गोमांस या डेयरी उत्पाद सम्मिलित हो सकते हैं। इसमें जनसंख्या प्रवाह, आवास व रहन-सहन सम्बन्धी सुविधायें भी सम्मिलित की जा सकती हैं"।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रादेशिक नियोजन को आवश्यक रूप से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के एक साधन के रूप में देखना चाहिये। प्रादेशिक नियोजन ऐसी प्रविधि है जिससे उप-राष्ट्रीय क्षेत्रों के संभाव्य का मूल्यांकन हो सकता है और जिनको विकसित करके सम्पूर्ण राष्ट्र के लिये श्रेष्ठतम लाभ लिये जा सकते हैं। संसाधन आधार व आर्थिक अवसरों के निर्माण, विविधता, मजबूती व अर्थतन्त्र में संतुलन, पर्यावरणीय सुधार और सामान्य कल्याण जैसे उद्देश्य प्रादेशिक नियोजन में समाहित रहते हैं। क्षेत्रीय - अन्तर्सम्बन्ध, ससंजन तथा एकीकरण प्रादेशिक नियोजन के मूल अवयव हैं प्रादेशिक नियोजन उस भावना पर कार्य करता है जिसमें-

(i) किसी क्षेत्र की सम्पत्ति को मानवीय वातावरण के पदार्थीय या भौतिक संसाधनों,

(ii) समाज के लोगों के जैविकीय संसाधनों

(iii) सामाजिक संसाधनों को जन सामान्य को जोड़कर (एकत्रित करके) उपरोक्त दोनों प्रकार के संसाधनों का पूर्णतम उपयोग किया जा सके, और जिसे इन सभी के उपयोग का उत्पाद माना जा सके।

यह एक साधन है जिससे विभिन्न योगदान देने वाली व संघटक क्षेत्रीय इकाइयों में श्रम का विभाजन किया जाता है। सब कुछ विकेन्द्रित करने से असंतोष पैदा होता है और सब कुछ को केन्द्रीभूत करने से निरंकुशता व अकुशलता आती है। प्रादेशिक नियोजन प्रादेशिक आत्म-निर्भरता के लिये कार्य नहीं करता है। कोई प्रादेशिक नीति अधिक अनार्थिक नहीं हो सकती जो प्रत्येक प्रदेश को एक आत्मनिर्भर अर्थतन्त्र बनाने के लिये बनाई जाती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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