बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- क्या आनुभाविक जाँच से तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की सत्यता स्थापित की गयी है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
प्रतिष्ठित तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की आनुभाविक जाँच विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत की गयी है जिनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-
1. पहली अनुभाविक जाँच (जी. डी. ए. मेकडगाल ) - प्रो. जी. डी. ए. मेकडगाल ने प्रतिष्ठित तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की आनुभाविक एवं सांख्यिक जाँच की। इस जाँच में उन्होंने इस तथ्य को मान्यता दी कि कोई देश उन्हीं वस्तुओं का निर्यात करता है जिनमें अन्य देशों की तुलना में उसकी उत्पादन प्रति इकाई आगत सापेक्षिक रूप से अधिक रहती है। मेकडंगाल ने निम्न तथ्यों में सम्बन्ध स्थापित किया है। इस सिद्धान्त की जाँच करने के उद्देश्य से मेकडगाल ने अमेरिका तथा ब्रिटेन द्वारा किये गये जाने वाले निर्यातों का अध्ययन किया। उनके अनुसार दो तथ्यों के सम्बन्ध इस प्रकार हैं
(a) ब्रिटेन तथा अमेरिका की विभिन्न वस्तुओं के निर्यात का अनुपात।
(b) उक्त वस्तुओं के लिए दोनों देशों में श्रम उत्पादकता का अनुपात।
चूँकि ये दोनों देश एक-दूसरे को अधिक मात्रा में निर्यात नहीं करते इसलिए यह जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है कि विभिन्न उत्पादनों के लिए, उत्पादकता विभिन्नता के आधार पर विश्व बाजार में दोनों देशों का सापेक्षिक अंश क्या है, प्रो. मेकडगाल ने बताया कि इस सिद्धान्त की जाँच दो से अधिक देशों के लिए भी की जा सकती है।
जाँच का आधार - सन् 1937 में प्रो. मेकडंगाल ने तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की जाँच की। उन्होंने अमेरिका तथा ब्रिटेन में औसत मजदूरी के स्तर को आधार मानते हुए स्पष्ट किया कि 1937 में अमेरिका के निर्माण उद्योग में औसत मजदूरी का स्तर, ब्रिटेन में औसत मजदूरी के स्तर की अपेक्षा दो गुना था। इस आधार पर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वे वस्तुएँ जिनका उत्पादकता अनुपात दो से अधिक अथवा दो से कम हैं, उनके निर्यातों के अनुपात में भी अन्तर होना चाहिए। इसका परिणाम यह होगा कि दोनों देशों के मजदूरी स्तर की भिन्नता निष्प्रभावित हो जायेगी तथा दोनों देशों के मध्य विश्व बाजार में प्रतियोगिता होने लगेगी। यदि पूरी विश्व अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है तो मेकडगाल के अनुसार, समान उत्पादनों के लिए ब्रिटेन की तुलना में अमेरिका के निर्यातों का अनुपात या तो शून्य होगा या फिर अनन्त होगा। इसकी निर्भरता इस बात पर होंगी कि अमेरिका की मजदूरी के ढाँचे पर वहाँ की उत्पादकता के स्तर का प्रभाव किस प्रकार पड़ेगा? किन्तु वास्तव में पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति नहीं पायी जाती है। अतः निर्यातों में पाये जाने वाले अन्तर का कारण अपूर्ण प्रतियोगिता परिवहन लागत तथा उत्पादन विभेद का होना है।
प्रो. मेकडगाल ने यह भी स्पष्ट किया कि जब अमरीका में उत्पादकता का स्तर कुछ उत्पादनों में उच्च मजदूरी स्तर के बराबर हो जाता है तो औसत रूप से अमरीका के निर्यात समान वस्तुओं के लिए ब्रिटेन के निर्यातों के समान नहीं होते अर्थात् मजदूरी का स्तर दो गुना बढ़ा देने के बाद भी निर्यात का स्तर दो गुना नहीं बढ़ता बल्कि मात्र 40 प्रतिशत की वृद्धि ही होती है। प्रो. मेकडगाल ने बताया कि इसका मुख्य कारण है साम्राज्य अधिनियम तथा व्यापारिक क्षेत्र में ब्रिटेन का नेतृत्व। इस सिद्धान्त से यह निष्कर्ष निकलता है कि लागत और निर्यात के अनुपातों में समानता होना आवश्यक नहीं है किन्तु यह बात सिद्ध होती है कि किसी देश को उस वस्तु के उत्पादन और निर्यात में अधिक लाभ होगा, जिस वस्तु के उत्पादन और निर्यात में अधिक लाभ होगा, जिस वस्तु के उत्पादन में दूसरे देश की अपेक्षा सबसे अधिक तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध में प्रो. ग्राहम की आलोचना करते हुए प्रो. मेकडगाल ने बताया कि प्रो. ग्राहम ने अपने मॉडल में यह स्पष्ट नहीं किया है कि लागतें समान होने पर निर्यात की मात्रा और लागतों में क्या सम्बन्ध होता है।
यदि हम टाजिंग द्वारा प्रस्तुत अप्रतियोगी समूहों पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है कि विभिन्न उद्योगों में मजदूरी स्तर में पायी जाने वाली भिन्नता के आधार पर दोनों देशों में निर्यातों के अनुपात में होने वाली भिन्नता का अनुमान लगाया जा सकता है, किन्तु मेकडगाल द्वारा, मजदूरी स्तर की भिन्नता का अध्ययन किये बिना, निकाले गये निष्कर्ष तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की पुष्टि करते हैं। उन्होंने अमेरिका तथा ब्रिटेन के प्रत्येक उद्योग के लिए निर्यात अनुपातों तथा सापेक्षिक मजदूरी के अनुपातों में निकट सम्बन्ध स्थापित किया है।
2. दूसरी आनुभाविक जाँच- (फोर्शीमर) प्रो. फोर्शीमर द्वारा तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की दूसरी जाँच प्रस्तुत की गयी। इस जाँच में प्रो. फोर्शीमर ने विभिन्न उद्योगों में मजदूरी की भिन्नता के प्रभाव को विदेशी व्यापार की संरचना पर स्पष्ट किया। आपके द्वारा प्रस्तुत सापेक्षिक मजदूरी भिन्नता मॉडल इस प्रकार है -
मान लीजिए कि हम किसी विशेष उत्पादन को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त करते हैं -
T = प्रति इकाई उत्पादन कुल मौद्रिक लागत
R = प्रति इकाई उत्पादन में लगे व्यक्ति घंटे
P = कुल औसत इकाई लागत और मजदूरी लागत प्रति इकाई उत्पादन का अनुपात
W = प्रति इकाई प्रति घंटे मौद्रिक लागत
यदि हम दो देश A और B मान लें तो अंग्रेजी के बड़े अक्षर A देश के लिए हैं तथा छोटे अक्षर B देश के लिए हैं। रेखांकित अक्षर दूसरी वस्तु के प्रतीक हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि T = WRP • अतः इस आधार पर कहा जा सकता है कि A देश का लाभ प्रथम वस्तु में है जब -
प्रो. फोर्शीमर, ने बताया कि प्रति व्यक्ति प्रति घंटे मौद्रिक लागत सापेक्षिक मजदूरी में अन्तर के द्वारा निर्धारित होती है। उन्होंने बताया कि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री विभिन्न देशों में व्याप्त प्राकृतिक विभिन्नताओं को ही, सापेक्षिक उत्पादकता में भिन्नता का आधार मानते थे। प्रतिष्ठित उदाहरण को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस बात को स्पष्ट किया कि निर्माण उद्योग में उत्पादकता को प्रभावित करने में गैर-श्रम साधन बहुत ही कम व महत्वपूर्ण होते हैं अतः इस बात की सम्भावनाएँ अधिक होती है कि मौद्रिक मजदूरी के अन्तरों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे। मजदूरों की कार्यक्षमता उनकी मजदूरी की विभिन्नता में निहित होती है जबकि पूँजी की परिवर्तनशील क्षमता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
व्यापारिक ढांचे पर मजदूरी की सापेक्षिक भिन्नता का प्रभाव पड़ने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि औसत रूप में एक देश के निर्यात उद्योग में मजदूरी की दर घरेलू एवं आयात प्रतियोगी उद्योगों में सापेक्षिक रूप से कम होगी। किसी उद्योग का तुलनात्मक लाभ कम होते हुये भी निर्यातक हो सकता है. यदि उनकी मजदूरी लागत औसत से कम है। प्राचीन प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का मानना था कि दीर्घकालीन मजदूरी दर पर निर्यात उद्योगों में मजदूरी के स्तर का प्रभाव पड़ता है। यह सिद्धान्त उस समय अधिक प्रभावशील होता है जब व्यापार सन्तुलन की ओर अग्रसर हो रहा हो अथवा किसी देश की व्यापार शर्तों में सुधार हो रहा हो।
3. तीसरी अनुभाविक जाँच - (प्रो. क्रेविस ) प्रो. क्रेविस ने अपनी पुस्तक 'Wages and Foreign Trade' में तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की तीसरी जाँच की व्याख्या की है। उन्होंने अमेरिका में उद्योगों के मजदूरी के स्तर का अध्ययन किया और स्पष्ट किया कि निर्यात उद्योग सापेक्षिक रूप से अधिक मजदूरी देंगे। वे मजदूरी की भिन्नता को तुलनात्मक लागत के आधार पर नहीं मानते बल्कि गतिशील स्थितियों में भौतिक श्रम की इकाइयों को तुलनात्मक लागत के आधार पर नहीं मानते बल्कि गतिशील स्थितियों में भौतिक श्रम की इकाइयों को तुलनात्मक लाभ का सफल आधार स्वीकार करते हैं। इस बात का समर्थन करने के लिए उन्होंने निम्नलिखित दो कारण प्रस्तुत किये हैं
प्रथम कारण - प्रथम कारण के अन्तर्गत उन्होंने बताया कि जापान तथा अमेरिका के आंकड़ों को देखने से स्पष्ट होता है कि श्रमिकों के प्रति घंटे पारिश्रमिक की दृष्टि से विभिन्न देशों में उद्योग की श्रेणियाँ लगभग समान हैं। इससे टाजिंग की इस धारणा को बल मिलता है कि प्रायः सभी औद्योगिक देशों में समूहों का ढाँचा लगभग समान रहता है। अतः विभिन्न उद्योगों में दी जाने वाली मजदूरी की भिन्नता तुलनात्मक लाभ को बहुत कम प्रभावित करती है।
दूसरा कारण - दूसरे कारण के अन्तर्गत क्रेविस का विचार है कि श्रम बाजार में प्रतियोगिता होने के कारण प्रत्येक देश का मजदूरी स्तर उस देश के मजदूरी के राष्ट्रीय स्तर के बराबर हो जाता है जो उत्पादकता पर आधारित होता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न देशों में उत्पादकता के अनुपात में विभिन्नता क्यों होती है।
निष्कर्ष - इस प्रकार प्रो. मेकडगाल तथा प्रो. क्रेविस की व्याख्या द्वारा प्राप्त निष्कर्ष से यह बात सिद्ध होती है कि तुलनात्मक लाभ को निर्धारित करने में श्रमिकों की सापेक्षिक उत्पादकता का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
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- प्रश्न- 'तटकर एवं व्यापार समझौते' (गैट) पर एक लेख लिखिए।
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- प्रश्न- भारत को विश्व व्यापार संगठन से होने वाली सम्भावित हानियों को बताइए।
- प्रश्न- अन्य विकासशील देशों के संदर्भ में भारत की स्थिति बताइये।
- प्रश्न- विकासशील देशों के दृष्टिकोण से विश्व व्यापार संगठन समझौते की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत को अंकटाड से होने वाले लाभों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय अर्थव्यवस्था पर भूमण्डलीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को इंगित कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से आप क्या समझते हैं? प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सन्दर्भ में सरकार द्वारा बनाए गए नीतियों का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- गैट तथा अर्द्ध-विकसित राष्ट्रों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन के समझौते बताइये।
- प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन का संगठनात्मक ढाँचा प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- "विश्व व्यापार संगठन गैट (GATT) की तुलना में कहीं अधिक विस्तृत एवं व्यापक वैधानिक अधिकार वाला संगठन है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित उपाय (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार से आप क्या समझते हैं? विश्व व्यापार संगठन ने इस सम्बन्ध में क्या भूमिका निभायी है?
- प्रश्न- 'बहुपक्षीय मुद्दे तथा विश्व व्यापार संगठन' को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अंकटाड के उद्देश्य एवं स्वीकृत सिद्धान्तों को बताइये।
- प्रश्न- अंकटाड के कार्य बताइये।
- प्रश्न- दसवें अंकटाड पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विदेशी व्यापार में विविधता लाने की दृष्टि से अंकटाड की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उत्तर-दक्षिण व्यापार संवाद क्या है?
- प्रश्न- दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Coorperation) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड से आप क्या समझते हैं? यह एफडीआई से कैसे सम्बद्ध है?
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- प्रश्न- अभ्यंश से आप क्या समझते हैं? आयात अभ्यंश के विभिन्न प्रकारों को बताइये।
- प्रश्न- आयात अभ्यंशों के विभिन्न प्रकार बताइये।
- प्रश्न- आयात अभ्यंश के विभिन्न प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आयांत अभ्यंश के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- अभ्यंश प्रणाली के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- प्रभावी संरक्षण पर टिप्पणी।
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- प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- गैर-प्रशुल्क बाधाएँ (Non-tariff Barriers) किसे कहते हैं? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- प्रशुल्क युद्ध से क्या आशय है?
- प्रश्न- प्रशुल्क युद्ध को चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत सरकार की प्रशुल्क नीतियाँ।
- प्रश्न- "अनुकूलतम प्रशुल्क की धारणा यह बताती है कि प्रशुल्क कितनी मात्रा में लगाये जायें ताकि देश का अधिकतम कल्याण हो।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- विनिमय दर क्या है? विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन लाने वाले विभिन्न घटकों का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- मुद्रा की परिवर्तनीयता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्रय शक्ति समता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- विनिमय नियोजन क्या है? भारत में विनिमय नियन्त्रण के क्या उद्देश्य हैं? इस दिशा में भारत सरकार ने हाल के वर्षों में क्या किया है?
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- प्रश्न- विनिमय नियन्त्रण की अप्रत्यक्ष विधियों को समझाइये ।
- प्रश्न- वैश्विक वित्तीय संकट का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विनिमय नियंत्रण के उद्देश्यों को बताइये।
- प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दरों के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दर के विपक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अग्रिम विनिमय तथा तैयार सौदों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हेजिंग (Hedging) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- अन्तर्पणन क्रियाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- मुद्रा की परिवर्तनीयता से आप क्या समझते हैं?