बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले उन घटकों का वर्णन कीजिए जो विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन लाते हैं।
उत्तर -
(Factors Effect of Foreign Exchange)
विनिमय दर मुद्राओं की माँग एवं पूर्ति एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। यह दर घटती-बढ़ती रहती है अर्थात् इसमें परिवर्तन होते रहते हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक हस्तान्तरण के कारण होते हैं। ऐसे दर में अल्पकालीन उच्चावचनों को जन्म देते हैं।
विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले घटक विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन लाते हैं, जो इस प्रकार है
1. बैंकों की क्रियाएँ - विदेशी मुद्रा के लेन-देन में बैंकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है अतः इनकी क्रियाओं का विनिमय दर के निर्धारण में महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। बैंकों की क्रियायें विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति को प्रभावित करती हैं जिसका प्रभाव विनिमय दर पर पड़ता है। इन क्रियाओं में बैंक दर महत्वपूर्ण है। जब देश में बैंक दर, विदेशी बैंक दर की तुलना में ऊँची रहती है तो देश में विदेशी कोष आकर्षित होते हैं अर्थात् विदेशियों को उस देश में विनियोग करना लाभदायक होता है अतः देश में विदेशी पूँजी आने लगती है, स्वदेशी मुद्रा की माँग बढ़ने लगती है तथा विनिमय दर भी बढ़ने लगता है। जब देश में तुलनात्मक रूप से बैंक दर गिरती है तो ठीक उसके विपरीत प्रभाव होता है। बैंक दर के साथ-साथ साखपत्रों के क्रय-विक्रय का भी विनिमय दर पर प्रभाव होता है।
2. विदेशी विनियोग का प्रभाव - विनियोग का भी विनिमय दर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विश्व के अग्रणी स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा इस प्रकार के विनियोग की सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। यदि विदेशी विनियोगकर्ता यह अनुभव करते हैं कि किसी विशेष देश की आर्थिक एवं औद्योगिक स्थिति अनुकूल है तथा भविष्य में उस देश की मुद्रा को क्रय करने में प्रयोग करते हैं जिसे बाद में प्रतिभूतियों के खरीदने में प्रयुक्त किया जाता है। इसका प्रभाव ठीक विनियोग के समान होता है तथा देश की विनिमय दर अनुकूल हो जाती है। एक अन्य कारण से भी विनियोग विनिमय दर को प्रभावित करते हैं, जैसे- अमरीका और भारत के मध्य भारत के रुपये की विनिमय दर डालर की तुलना में गिरने की सम्भावना हो और ऐसे ही समय में अमरीका भारत को बड़ी मात्रा में डालर दे दे तो भारतीय रुपये की विनिमय दर गिरने से बच सकती है। यदि अमरीका, भारत में पूँजी का विनियोग करता है तो डालर की तुलना में रुपये की मांग बढ़ जायेगी और रुपये की विनिमय दर बढ़ जायेगी।
3 व्यापारिक प्रभाव - इसके अन्तर्गत आयात एवं निर्यात के प्रभाव का समावेश होता है। यदि किसी देश के आयात अथवा निर्यात की मात्रा में परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव उस देश की विनिमय दर पर पड़ता है, जैसे - यदि निर्यातों की तुलना में आयात बढ़ जाते हैं तो विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि होने लगती है तथा ऐसे देश की विनिमय दर उसके प्रतिकूल हो जाती है। इसके विपरीत यदि आयातों की तुलना में देश के निर्यातों में वृद्धि होती है तो देश की मुद्रा की माँग विदेशों में बढ़ती है और देश के लिए विनिमय दर अनुकूल हो जाती है।
4. मौसमी परिवर्तन - विनिमय दर को प्रभावित करने वाले मौसमी परिवर्तन का उल्लेख ईविट ने अपनी पुस्तक में इस प्रकार किया है कि एक मुद्रा के विनिमय मूल्य पर उसकी माँग और पूर्ति में होने वाले मौसमी परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है। जैसे आस्ट्रेलिया में अनाज और ऊन को दिसम्बर से फरवरी तक इकट्ठा किया जाता है और इन्हीं महीनों में इन वस्तुओं का विदेशी में विक्रय किया जाता है जिससे वहाँ अन्य देशों की मुद्रा की तुलना में आस्ट्रेलिया की मुद्रा की मांग बढ़ती है तथा उसकी विनिमय दर भी बढ़ती है।
5. पूँजी का प्रभाव - एक देश से पूँजी के आवागमन का प्रभाव भी उसकी विनिमय दर पर पड़ता है। एक देश से पूँजी का अल्पकालीन बहिर्गमन विदेशों में ऊँची ब्याज दर प्राप्त करने के लिए हो सकता है अथवा विदेशों में पूँजी का दीर्घ कालीन विंनियोग किया जा सकता है।
6. मध्यस्थों की क्रियायें अथवा मूल्यान्तर के सौदे - मध्यस्थों की क्रियायें भी विनिमय दर को प्रभावित करती हैं। इनं क्रियाओं को अन्तर्पणन भी कहते हैं। अन्तर्पणन की क्रिया, दो मुद्रा बाजारों में विनिमय दरों के अन्तर से लाभ उठाने के लिये की जाती है। जिस बाजार में मुद्रा सस्ती होती है वहाँ से खरीदकर उसे ऐसे बाजार में बेचा जाता है जहाँ वह मँहगी होती है। मुद्रा के क्रय-विक्रय का यह कार्य व्यापारिक बैंकों द्वारा अपने विदेशी प्रतिनिधियों के माध्यम से किया जाता है।
7. देश की राजनीतिक एवं आर्थिक दशाएँ - देश की राजनीतिक और आर्थिक दशाओं का भी विनिमय दर पर प्रभाव पड़ता है। यदि देश में सरकार स्थायी है, शान्ति और सुरक्षा है, सम्पत्ति के स्वामियों की एवं उनकी सम्पत्ति की रक्षा की जाती है तो भले ही देश में ब्याज की दर कम हो फिर भी या तो ब्याज कमाने की दृष्टि से अथवा विनियोग के लिये अथवा सुरक्षा की दृष्टि से विदेशी पूँजी देश में आती है जिससे विनिमय दर देश के पक्ष में हो जाती है। इसके विपरीत यदि देश में राजनीतिक संघर्ष की स्थिति है, सरकार को हटाने की योजना बन रही है तो देश से पूँजी का बहिर्गमन होने लगता है जिससे विदेशी मुद्रा की तुलना में देश की मुद्रा की विनिमय दर गिरती है।
इसी प्रकार देश की आन्तरिक औद्योगिक स्थिति का भी विनिमय दर पर प्रभाव पड़ता है। यदि देश में श्रमिकों एवं पूँजीपतियों के बीच अच्छे सम्बन्ध हैं, कीमतों और मजदूरी के स्तर में समन्वय है तथा औद्योगिक क्षेत्र में उद्यमी प्रतिभा एवं श्रमिकों में कुशलता है तो इन सबका देशे की मुद्रा पर दीर्घकालीन प्रभाव यह होता है कि देश की विनिमय दर अनुकूल होती है।
8. स्टॉक एक्सचेन्ज की क्रियायें - इन क्रियाओं में ऋण प्रदान करना, विदेशी ऋण पर ब्याज का भुगतान, विदेशी पूँजी की आमदनी एवं विदेशी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय आदि का समावेश होता है। इन क्रियाओं का विदेशी मुद्रा की मांग पर प्रभाव पड़ता है जिससे विनिमय दर भी प्रभावित होती है। जैसे जब तक एक देश द्वारा विदेश को ऋण दिया जाता है तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तथा देश के लिये विनिमय दर प्रतिकूल हो जाती है, किन्तु जब विदेशियों द्वारा ऋण एवं ब्याज का भुगतान किया जाता है तो देश की मुद्रा की माँग बढ़ जाती है जिससे विनिमय दर भी बढ़कर देश की मुद्रा के अनुकूल हो जाती है।
9. चलन एवं साख सम्बन्धी दशायें अथवा मौद्रिक नीति - ईविट ने चलन एवं साख सम्बन्धी दशाओं का विनिमय दर को प्रभावित करने वाला दीर्घकालीन कारण माना है। यदि देश में विस्तारवादी मौद्रिक नीति को अपनाया जाता है अर्थात् अति निर्गम से देश में चलन की मात्रा बढ़ायी जाती है तो देश में मूल्यों में वृद्धि होने लगती है, मुद्रा की आन्तरिक क्रय-शक्ति कम हो जाती है और उसकी मुद्रा की विदेशों में माँग कम हो जाती है तथा उस देश की विनिमय दर भी गिरने लगती है। दूसरी ओर देश में मुद्रा संकुचन की नीति से वस्तुओं की कीमतें गिरती हैं, निर्यात प्रोत्साहित होते हैं और विनिमय दर बढ़ने लगती है। इस प्रकार मौद्रिक नीति का देश की विनिमय दर पर प्रभाव पड़ता है।
10. सट्टा बाजार की क्रियाओं का प्रभाव - विनिमय दर में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों का पूर्व अनुमान कर विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय किया जाता है जिसका विनिमय दर पर प्रभाव पड़ता है। यदि किसी समय सट्टेबाज द्वारा विदेशी मुद्रा को अधिक मात्रा में खरीदा जाता है तो उस मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तथा उसकी विनिमय दर भी बढ़ने लगती है। यदि इसके विपरीत सट्टेबाज द्वारा विदेशी मुद्रा बेची जाती है तो उसकी विनिमय दर गिरने लगती है। विशेष रूप से जब देश में किसी कारण अनिश्चितता का वातावरण बनता है तो उक्त क्रियायें तेज हो जाती हैं और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव होने लगते हैं।
ईविट के अनुसार, यदि देश में श्रम संघर्ष एवं उत्पादन की ऊँची लागत की स्थिति विद्यमान है मुद्रा के विनिमय मूल्य पर उसका तात्कालिक प्रभाव पड़ता है और सट्टेबाज भविष्य में व्यापार की गिरती हुई स्थिति का अनुमान लगाकर विदेशी मुद्रा को बेचना शुरू कर देते हैं।
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- प्रश्न- विश्व बैंक के कार्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- एशियाई विकास बैंक की सदस्यता पूँजी व प्रबन्ध को बताइये।
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- प्रश्न- विश्व बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत तथा विश्व बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'तटकर एवं व्यापार समझौते' (गैट) पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- व्यापार एवं प्रशुल्क पर हुए सामान्य समझौते (GATT) के प्रमुख उद्देश्य कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- गैट के मौलिक सिद्धान्त क्या थे?
- प्रश्न- गैट के प्रमुख कार्य बताइये।
- प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन क्या है? इसके प्रमुख उद्देश्यों को बताइये।
- प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- भारत को विश्व व्यापार संगठन से होने वाले सम्भावित लाभों एवं हानियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारत को विश्व व्यापार संगठन से होने वाली सम्भावित हानियों को बताइए।
- प्रश्न- अन्य विकासशील देशों के संदर्भ में भारत की स्थिति बताइये।
- प्रश्न- विकासशील देशों के दृष्टिकोण से विश्व व्यापार संगठन समझौते की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत को अंकटाड से होने वाले लाभों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय अर्थव्यवस्था पर भूमण्डलीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को इंगित कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से आप क्या समझते हैं? प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सन्दर्भ में सरकार द्वारा बनाए गए नीतियों का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- गैट तथा अर्द्ध-विकसित राष्ट्रों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन के समझौते बताइये।
- प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन का संगठनात्मक ढाँचा प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- बौद्धिक सम्पदा अधिकार से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- "विश्व व्यापार संगठन गैट (GATT) की तुलना में कहीं अधिक विस्तृत एवं व्यापक वैधानिक अधिकार वाला संगठन है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित उपाय (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार से आप क्या समझते हैं? विश्व व्यापार संगठन ने इस सम्बन्ध में क्या भूमिका निभायी है?
- प्रश्न- 'बहुपक्षीय मुद्दे तथा विश्व व्यापार संगठन' को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अंकटाड के उद्देश्य एवं स्वीकृत सिद्धान्तों को बताइये।
- प्रश्न- अंकटाड के कार्य बताइये।
- प्रश्न- दसवें अंकटाड पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विदेशी व्यापार में विविधता लाने की दृष्टि से अंकटाड की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उत्तर-दक्षिण व्यापार संवाद क्या है?
- प्रश्न- दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Coorperation) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड से आप क्या समझते हैं? यह एफडीआई से कैसे सम्बद्ध है?
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- प्रश्न- आयात अभ्यंशों के विभिन्न प्रकार बताइये।
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- प्रश्न- आयांत अभ्यंश के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- अभ्यंश प्रणाली के पक्ष में तर्क दीजिए।
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- प्रश्न- आयात प्रतिस्थापन से लाभ बताइये।
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- प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- अनुकूलतम प्रशुल्क तथा कल्याण निहितार्थ पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- विनिमय दर को प्रकाशित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- विनिमय नियंत्रण के उद्देश्यों को बताइये।
- प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दरों के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दर के विपक्ष में तर्क दीजिए।
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