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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2762
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 वाणिज्य शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण, वैयक्तिक ट्यूटोरियल शिक्षण तथा पर्यवेक्षित ट्यूटोरियल शिक्षण पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-

ट्यूटोरियल शिक्षण
(Tutorial Teaching).

उपचारात्मक शिक्षण में यह अत्यन्त उपयोगी है। ट्यूटोरियल में छात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं एवं कठिनाइयों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं-

समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण
(Group Tutorial Teaching)

इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था में कक्षा के विद्यार्थियों को कुछ समूह विशेषों में विभक्त करने की चेष्टा की जाती है। इस विभाजन का आधार इस बात को लेकर होता है कि एक समूह में शामिल विद्यार्थियों की लगभग विषय विशेष सम्बन्धी एक जैसी अधिगम कठिनाइयाँ, कमजोरियाँ और समस्याएँ हों।अब प्रत्येक समूह को किसी एक शिक्षक या विभिन्न शिक्षकों द्वारा अलग-अलग रूप से, उनकी अपनी अधिगम कठिनाइयों या कमजोरियों के हिसाब से शिक्षण प्रदान किया जाता है। प्रत्येक ट्यूटोरियल ग्रुप का इंचार्ज एक ट्यूटर होता है। वह या तो विद्यार्थियों में से ही किसी होशियार विद्यार्थी को यह काम सौंप देता है अथवा विषय अध्यापक ही प्रत्येक समूह के लिए अलग-अलग रूप से अपने समय का विभाजन कर लेता है। इस तरह की व्यवस्था कैसे भी अपनाई जाए, मूल उद्देश्य यही रहता है कि ट्यूटोरियल समूह में शामिल सभी विद्यार्थियों की साझी अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों को सामूहिक रूप से हल किया जा सके। इसके लिए विषय विशेष के पाठ्यक्रम से सम्बन्धित जिन प्रकरणों, विषय-वस्तु या अधिगम अनुभवों को ग्रहण करने में विद्यार्थियों को कठिनाई आ रही है उनका पुनः शिक्षण किया जा सकता है। किसी विशेष प्रकार के ज्ञान और कौशल को जिस ढंग से बालक ग्रहण कर सके उस ढंग से प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है विभिन्न प्रकार की शिक्षण और अनुदेशनात्मक सामग्री का उस रूप में प्रयोग किया जा सकता है जिससे विद्यार्थियों को जो बात पहले समझ नहीं आ रही थी वह बात ठीक से समझ में आ सके।

समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण कक्षा शिक्षण की तुलना में कई बातों को लेकर उपयोगी सिद्ध होता है। इसमें विद्यार्थियों को समूहों में बाँटकर शिक्षण प्रदान किया जाता है और एक समूह में वे ही विद्यार्थी शामिल होते हैं जिनकी अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयाँ एक जैसी हों। पूरी कक्षा को एक साथ शिक्षण देने बहुधा बहुत से विद्यार्थी ऐसे रह जाते हैं जिनकी अधिगम कठिनाइयाँ और कमजोरियाँ एक-दूसरे से मेल नहीं खाती हैं। दूसरे विद्यार्थियों की खातिर उन्हें इस प्रकार के शिक्षण को बेकार ही झेलना पड़ता है और इससे उनकी शक्ति और समय का अनावश्यक रूप से अपव्यय होता रहता है।समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण व्यवस्था में इस प्रकार की कठिनाई कम होती है, क्योंकि विद्यार्थियों की संख्या सीमित रहती है और अध्यापक को भी सीमित बालकों के लिए उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करना होता है।

वैयक्तिक ट्यूटोरियल शिक्षण
(Individual Tutorial Teaching)

इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था में प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी अपनी अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों के हिसाब से वैयक्तक शिक्षण प्रदान किया जाता है। इस व्यवस्था में अध्यापक द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी को अलग-अलग रूप से वह सभी प्रकार की वांछित सहायता, मार्ग-दर्शन और कोचिंग प्रदान करने की व्यवस्था की जाती है जिससे उनकी अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों और कमजोरियों का अच्छी तरह निराकरण कर उनकी योग्यताओं और क्षमताओं का अधिक-से-अधिक विकास किया जा सके। कहने की आवश्यकता नहीं है इस प्रकार की उपचारात्मक शिक्षण व्यवस्था में विद्यार्थियों के अधिगम सम्बन्धी व्यक्तिगत उत्तरोंका अधिक-से-अधिक ध्यान रखकर उनकी अपनी विशेष अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों के हिसाब से अलग-अलग प्रकार के शिक्षण की व्यवस्था की जाती है। यहाँ सभी विद्यार्थी अपनी-अपनी अधिगम गति, योग्यता और क्षमताओं के हिसाब से जैसी वांछित सहायता, व्यक्तिगत ध्यान और पुनर्बलन की अपेक्षा करते हैं वह सभी उन्हें वैयक्तिक रूप से भली-भाँति प्रदान किया जाता है ताकि उनकी व्यक्तिगत कठिनाइयों का निवारण कर उन्हें अधिगम पथ पर भली-भाँति अग्रसर किया जा सके।

पर्यवेक्षित ट्यूटोरियल शिक्षण
(Auto-instructional Teaching)

इस प्रकार की उपचारात्मक शिक्षण व्यवस्था में विद्यार्थियों के ऊपर ही यह जिम्मेदारी डाल दी जाती है कि वे विषय विशेष में अनुभव की जाने वाली कठिनाइयों और कमजोरियों को अपने प्रयत्नों से ही दूर करने की कोशिश करें। इस दृष्टि से वे अब यहाँ जो बातें समझ में नही आई हों उन्हें अच्छी तरह पढ़कर, उन पर अच्छी तरह चिन्तन-मनन कर तथा विशेष रूप से ध्यान देकर समझने का प्रयत्न करते हैं। अभ्यास कार्य, पुनरावृत्ति, स्वाध्याय आदि की सहायता लेते हैं। कौशलों का अच्छी तरह उपयोग कर देखते हैं और इस तरह वे सभी ऐसे प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं जिनसे विषय सम्बन्धी, अधिगम कठिनाइयों, कमजोरियों तथा समस्याओं से उन्हें मुक्ति मिल सके। ऐसा करते समय उन्हें अपने अध्यापकों का पर्याप्त मार्ग-दर्शन तथा आवश्यकतानुसार वांछित सहायता भी प्राप्त होती रहती है। इस तरह इस प्रकार के उपचारात्मक शिक्षण में उपचार हेतु प्रयत्न तो विद्यार्थियों द्वारा स्वयं ही किए जाते हैं परन्तु इन प्रयत्नों को उचित रूप से अध्यापक का मार्ग-दर्शन और पर्यवेक्षण भी प्राप्त होता रहता है। अध्यापक द्वारा प्रदत्त इस प्रकार का पर्यवेक्षण सम्बन्धी कार्य समूहगत भी हो सकता है और वैयक्तिक भी। यानी वह विद्यार्थियों को उपयुक्त, मार्ग-दर्शन, जब वह अकेले अकेले काम कर रहे होते हैं, तब भी दे सकता है और जब समूह में कार्यरत हों, तब भी दे सकता है।

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