लोगों की राय

बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पर्यावरण शिक्षा से आप क्या समझते हैं? इसके क्षेत्र तथा महत्व का उल्लेख कीजिए।

अथवा.
पर्यावरण शिक्षा के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए इसके महत्व की विवेचना कीजिए।

उत्तर-

पर्यावरण शिक्षा का अर्थ

पर्यावरणीय शिक्षा वह शिक्षा है जो पर्यावरण के माध्यम से, पर्यावरण के विषय और पर्यावरण के लिए प्रदान की जाती है। यह शिक्षा व्यक्ति को पर्यावरण से अनुकूलन करना ही नहीं सिखाती बल्कि उसे पर्यावरण पर नियंत्रण रखने की क्षमता प्रदान करती है। पर्यावरण शिक्षा व्यक्ति को पर्यावरण समस्याओं से सम्बन्धित ज्ञान तथा मूल्यों के विकास द्वारा जीवन के लिये तैयार करती पर्यावरणीय शिक्षा एकीकृत, व्यावहारिक, लचीली, क्रिया आधारित, स्थान तथा आवश्यकतानुसार होनी चाहिये।

मानव का पर्यावरण प्राकृतिक तथा मानव निर्मित एवं सुन्दर तथा शिक्षाप्रद है। जब बालक पशु-पक्षियों को देखकर उनकी ओर आकृष्ट होता है, तब उनके सम्बन्ध में परिचित कराना वातावरण के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना है। यह शिक्षा कक्षा में दी गई शिक्षा से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसलिये पर्यावरण के माध्यम से व्यक्ति को शिक्षण अधिगम पर्याप्त मात्रा में प्रदान किया जाता है।

मानव अपने अस्तित्व और समवृद्धि के लिये प्रतिदिन पर्यावरण के सम्पर्क में कार्य करता है। वह किसी भी परिस्थिति में इससे बच नहीं सकता। वह परिवार में जन्म लेता है और उसी में उसका पालन-पोषण होता है। परिवार मनुष्य के लिये प्राथमिक समूह है। जब वह शैशवावस्था से बाल्यावस्था में आता है, तब वह पड़ोस, समुदाय आदि के सम्पर्क में आता है। वह इनके क्रिया- कलापों में भाग लेता है। इस प्रकार वातावरण के बारे में जनता है।

पर्यावरण शिक्षा की परिभाषाएँ

पर्यावरणीय शिक्षा की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

1. जॉन ड्यूबी के शब्दों में - “समस्त शिक्षा व्यक्ति के द्वारा प्रजाति की सामाजिक चेतना में भाग लेने से प्रारम्भ होती हैं।"

2. चेपमैन टेलर के शब्दों में - “पर्यावरणीय शिक्षा सन्नागरिकता का विकास करती है। इससे अध्येता में पर्यावरण के सम्बन्ध में जानकारी, प्रेरणा और उत्तरदायित्व के भाव आते हैं।"

3. श्री शुकदेव प्रसाद के शब्दों में - “पर्यावरण बड़ा व्यापक शब्द है। वस्तुतः इसका तात्पर्य उस समूची भौतिक एवं जैविक व्यवस्था से है, जिसमें जीवधारी रहते हैं, बढ़ते, पनपते हैं, और अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का विकास करते हैं।"

4. टास सन के शब्दों में - “पर्यावरण ही शिक्षक है और शिक्षा का काम छात्र को उसके अनुकूल बनाना है।” उपरोक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि “पर्यावरणीय शिक्षा पर्यावरण के बारे में जानकारी कर अपने कौशल से उसकी समस्याओं को समझने, हल निकालने तथा मिटाने या दूर करने की शिक्षा है एवं वह सभी कार्य निष्पादन इस तरह किया जाना है कि उसकी पुनरावृत्ति न हो।'

पर्यावरणीय शिक्षा का क्षेत्र

पर्यावरणीय अध्ययन के अन्तर्गत भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का वह ज्ञान छात्र को मानवीय संबंधों एवं मानव समाज के सदस्य के रूप में अपना स्थान निश्चित करने के लिये आवश्यक है। यह पर्यावरण बालक के आयु वर्ग और शिक्षा-स्तर के अनुरूप निरन्तर विकसित होता है तथा पर्यावरण को समझने हेतु सम्बद्ध विषयों की विषय-वस्तु का भी विस्तार होता जायेगा। इस प्रकार पर्यावरणीय शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण से संबंध इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, समाज-शास्त्र तथा अर्थशास्त्र की शिक्षा उपयोगी रहती है।

कार्य का क्षेत्र - पारिस्थितिक वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान प्राथमिक रूप से जीवों एवं उनके पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों (Inter-relationship) की ओर आकर्षित किया है। अतः पारिस्थितिकी का महत्व अधिक विस्तृत है, क्योंकि प्रकृति में पौधों एवं जन्तुओं की संख्या बहुत अधिक है। अतः पारिस्थितिकी का मुख्य कार्य ऐसे सामान्य सिद्धान्तों को प्रदर्शित करना है, जिस पर प्राकृतिक समुदाय एवं उसके संघटक अवयवों की क्रियाशीलता निर्भर होती है। इसके आधार पर विशिष्ट पौधों या जन्तुओं की क्रियाशीलता को व्यक्त करने के लिये उन्हीं परिस्थितियों में इन सामान्य नियमों का उपयोग किया जाता है।

इसकी सहायता से किसी क्षेत्र-विशेष में उपस्थित बायोटा अर्थात् पादपजात एवं जन्तुजात की पहचान एवं गिनती की जाती है। इस विज्ञान की सहायता से विशिष्ट वातावरण, जैसे—वन, मृदा, समुद्र एवं प्राकृतिक समुदायों के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन सम्भव होता है। कृषि, जीव, वैज्ञानिक सर्वे, कीट नियंत्रण, वानिकी एवं मत्स्य विज्ञान आदि क्षेत्रों में पारिस्थितिकी व्यावहारिक रूप से उपयोगी सिद्ध हुई है। मृदा संरक्षण, वन-संरक्षण, वन्य जीव संरक्षण आदि कार्यों में यह विज्ञान अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है। प्रदूषण के निराकरण एवं उससे बचाव के लिए भी हम पूर्ण रूप से पारिस्थितिकी के ज्ञान पर ही निर्भर हैं।

पर्यावरणीय शिक्षा का महत्व

जनसंख्या में हो रही तीव्र वृद्धि, तीव्रता के साथ हो रहा औद्योगिक विकास, वन कटाव, यातायात वाहनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि तथा जनसाधारण की अज्ञानता तथा अशिक्षा के कारण आज पर्यावरण शिक्षा का महत्व दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। पर्यावरणीय शिक्षा के बढ़ते हुए महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

1. जनसाधारण में बढ़ती हुई निरक्षरता और अज्ञानता के कारण पर्यावरण सुरक्षा तथा संरक्षण के उपायों का भरपूर प्रयोग नहीं हो पा रहा है। अज्ञान तथा अशिक्षा से ग्रसित मनुष्य पर्यावरण की सुरक्षा नहीं कर सकता।

2. पर्यावरण सुरक्षा के लिये पर्यावरण नियंत्रण भी आवश्यक है। जनसंख्या वृद्धि को कैसे रोका जाय वह पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में आता है।

3. वर्तमान में प्रत्येक देश में तीव्रगति से औद्योगीकरण हो रहा है। इससे पर्यावरण प्रदूषण की सम्भावनायें भी बढ़ती हैं। इनसे उत्पन्न प्रदूषण को रोकने व उसे नियन्त्रित करने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है

4. पर्यावरण शिक्षा हमारी संस्कृति की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अहिंसा, जीव दया, प्रकृति-पूजन आदि हमारी संस्कृति के मूलाधार हैं। पर्यावरण शिक्षा में इन तथ्यों की यथेष्ट मात्रा में शिक्षा दी जाती है।

5. बढ़ते शहरीकरण तथा नगरों के बढ़ते आकार ने व्यक्तियों को प्रकृति से दूर कर दिया है। प्रकृति के जैविक एवं अजैविक तत्वों को समान रूप से प्रकृति के निकट जाने के लिये पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है.

6. बढ़ते यातायात के साधनों से प्रदूषण का खतरा पर्याप्त मात्रा में बढ़ गया है। वाहन प्रदूषण को रोकने के लिए पर्यावरण शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है।

7. पर्यावरण शिक्षा हमें 'वसुधैव कुटुम्बकम्म' का पाठ पढ़ाती है

8. वनों का, वृक्षों का, पहाड़ों का, नदी-नालों आदि का हमारे जीवन में क्या महत्व है। यह जानने के लिये पर्यावरण शिक्षा अनिवार्य है।"

9. बढ़ते हुए प्रदूषण के प्रति जनसाधारण के क्या कर्त्तव्य व दायित्व हैं। इसका हमें पर्यावरण शिक्षा ही ज्ञान करा सकती है।

10. पर्यावरण प्रदूषण के बढ़ने से उत्पन्न खतरों तथा उनके बचने के उपायों की जानकारी हमें पर्यावरण शिक्षा ही दे सकती है।

11. पर्यावरण के प्रति चेतना जाग्रत करने, उसके प्रति सकारात्मक अभिवृत्तियों तथा भावनाओं का विकास करने में पर्यावरण शिक्षा की महान् भूमिका है।

12. पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं को जानने, उनका विश्लेषण करने तथा उनका समाधान खोजने में हमारी मदद करती है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पर्यावरण की शिक्षा आज की आवश्यकता है। हमें इसकी उपादेयता को स्वीकार करना चाहिए तथा इसके कार्यक्रमों की सफलता में अपना सक्रिय योगदान देना चाहिए। पर्यावरण शिक्षा अन्ततः हमें पर्यावरण की गुणवत्ता तथा जीवन की गुणवत्ता देने वाली है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book