लोगों की राय

बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य

बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2758
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीएड सेमेस्टर-2 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के तकनीकी परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर

 

 

 

अध्याय-2 शैक्षिक तकनीकी के प्रकार : सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, एवं प्रणाली उपागम

(Types of Educational Technology: Software, Hardware and System Approach)

प्रश्न- शैक्षिक तकनीकी में कठोर शिल्प उपागम और कोमल शिल्प उपागम का अर्थ स्पष्ट करते हुए दोनों में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए।

अथवा
हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर उपागम से आप क्या समझते हैं? इनका विस्तृत वर्णन कजिए।

उत्तर-

कठोर शिल्प उपागम का अर्थ

सर्वप्रथम 1964 ई. में ए. ए. लुम्सडैन ने कठोर शिल्प उपागम का वर्णन किया है। इनके अनुसार शैक्षिक तकनीकी का प्रादुर्भाव भौतिक विज्ञान के शिक्षा तथा शिक्षण में प्रयोग के द्वारा . हुआ। शैक्षिक तकनीकी के मूल में भौतिक विज्ञान तथा अभियंत्रण तकनीकी है। इसीलिए शिक्षण में अभियंत्रण की मशीनों के प्रयोग को शैक्षिक तकनीकी प्रथम या कठोर शिल्प उपागम के नाम से संशोधित करते हैं। इसे अभियंत्रण अथवा मशीन की प्रौद्योगिकी से भी संबोधित करते हैं, क्योंकि कठोर शिल्प उपागम में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के सिद्धान्तों का शिक्षण के क्षेत्र में उपयोग किया जाता है। अधिकांश लोगों को विश्वास है कि मशीन की तकनीकी में शैक्षिक तकनीकी से जुड़ी हुई है। जब तक शिक्षण के क्षेत्र में हार्डवेयर के साधनों, यथा - टेपरिकॉर्डर, टी. वी., ग्रामोफोन, प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर, रेडियो, चलचित्र, बंदपरिपथ टी.वी. तथा इलेक्ट्रॉनिक वीडियो टेप आदि जैसे उपकरण नहीं होंगे, तब तक शिक्षा अधूरी रहेगी। शिक्षण के उद्देश्यों को अधिकतम सीमा तक प्राप्त करने के लिए तथा शिक्षण को और प्रभावशाली बनाने के लिए इन यांत्रिक उपकरणों का प्रयोग ही कठोर शिल्प उपागम कहलाता है।

कठोर शिल्प उपागम का संबंध निर्देशन के ज्ञानात्मक पक्ष से है। इसमें मशीन यंत्रवत् है और अनुदेशन का कार्य करती है। यह एक प्रकार से निष्क्रिय यंत्र है और व्यवस्था की प्राचीन विचारधारा पर आधारित है। यह क्लिष्ट व्यवस्था और पूरी तरह कार्य- केंद्रित होती है। इसके अंतर्गत मशीन पर आधारित शिक्षण सामग्री आती है। इसमें दृश्य-श्रव्य सामग्री के रूप में रेडियो, टेपरिकॉर्डर, टीवी, प्रोजेक्टर, ग्रामोफोन, कम्प्यूटर, चलचित्र, बंद परिपथ टी.वी., रिकॉर्ड प्लेयर आदि का नाम उल्लेखनीय है। इन यंत्रों के कारण शिक्षण प्रक्रिया का यंत्रीकरण या मशीनीकरण करना संभव हो सका है।

डेविज के अनुसार - "शैक्षिक तकनीकी की प्रथम शिक्षा और शिक्षा प्रणाली में भौतिक विज्ञान का उपयोग है, जिसके द्वारा शिक्षण-प्रक्रिया का धीरे-धीरे यंत्रीकरण किया जा रहा है जिससे कम से कम समय में कम से कम धन खर्च करके अधिक से अधिक विद्यार्थियों को शिक्षित किया जा सके।"

यंत्रों अथवा श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का प्रयोग प्राचीन भारत एवं यूनान में भी शिक्षण एवं प्रशिक्षण के समय किया जाता था। कमेनियस ने शिक्षकों को पढ़ाते समय छात्रों की रुचि को बढ़ाने के लिए चित्रों एवं मॉडलों के उपयोग की सलाह दी थी। मैरिलम निकसन ने भी शैक्षिक तकनीकी को अनेक क्षेत्रों से संबंधित माना है और कहा है कि इसका कार्य व्यक्ति एवं समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं की संतुष्टि करना है। डेविड के अनुसार तकनीकी शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है।

कठोर शिल्प उपागम की सहायता से कम खर्च में छात्रों के बहुत बड़े समूह को ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। यद्यपि कि इसमें प्रारम्भ में अधिक व्यय करना होता है। किन्तु लम्बे समय के लिए यह बहुत कम खर्चीला तथा सस्ती विधि अधिक लिए यह बहुत कम खर्चीला तथा सस्ती विधि है। यह शिक्षा के प्रसारण, विस्तार, विभाजन तथा शैक्षिक सामग्री को संचित करने में सहायक है। शैक्षिक निर्देशन का कार्य इसकी सहायता से सुविधापूर्वक किया जा सकता है।

यह शिक्षक के कार्य में सहायक है तथा उसके कार्य का पूरक है। इसका शिक्षकों की उपलब्धता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता कठोर शिल्प उपागम का शिक्षण पर अपना प्रभाव होता है। ये शिक्षण कार्य को सरल, रुचिकर तथा स्पष्ट बनाने में सहायक हैं। इसके द्वारा अधिगम की क्रिया को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति में यह बहुत सहायक है।

कठोर शिल्प उपागम के कारण शिक्षा में पत्राचार, पाठ्यक्रम और खुला विश्वविद्यालय प्रणाली का आविर्भाव हुआ। शोध कार्यों में प्रपत्रों के संकलन, विश्लेषीकरण आदि के लिए कम्प्यूटर तथा मशीनों का उपयोग इसी उपागम को महत्व देता है। सिल्वरमैन ने कठोर शिल्प उपागम को एक नया नाम 'सापेक्षिक तकनीकी' दिया है।

कोमल शिल्प उपागम का अर्थ

कोमल शिल्प उपागम कठोर शिल्प उपागम की तरह ही शैक्षिक तकनीकी का एक महत्वपूर्ण उपागम है। इस उपागम को अनुदेशन तकनीकी, शिक्षण तकनीकी और व्यवहार तकनीकी की भी संज्ञा दी जाती है। इस उपागम में सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान और विशेषकर अधिगम के वैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है। इसमें अभियंत्रण की मशीनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसीलिए इसे कोमल शिल्प उपागम कहते हैं। कोमल शिल्प उपागम में अभियंत्रण की मशीनों के स्थान पर शिक्षण तथा सीखने के सिद्धान्तों का प्रयोग बालकों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने के लिए किया जाता है। मशीनों का प्रयोग कभी कभी पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतिकरण को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए ही किया जाता है। कोमल शिल्प उपागम का संबंध शिक्षण के सिद्धान्तों, उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने, शिक्षण-प्रविधियों, अनुदेशन प्रणाली के पुनर्बलन, प्रतिपुष्टि की उक्तियों तथा मूल्यांकन से होता है। इस उपागम में आदा, प्रदा तथा प्रक्रिया तीनों पक्षों के विकास पर बल दिया जाता है। सिल्वरमैन ने इस उपागम को 'रचनात्मक शैक्षिक तकनीकी' के रूप में नया नाम दिया है।

स्किनर आदि ने बस उपागम वाली तकनीकी को व्यावहारिक तकनीकी पर आधारित माना है।

आर्थर मेल्टन के अनुसार - "यह शैक्षिक तकनीकी सीखने के मनोविज्ञान पर आधारित है और यह अनुभव प्रदान करके वांछित व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया का शुभारम्भ करती है।"

डेविस के अनुसार - "शैक्षिक तकनीकी का यह दृष्टिकोण आधुनिक अभिक्रमित अधिगम के सिद्धान्तों से घनिष्ठ रूप से संबंधित है और अपने में कार्य-विश्लेषण, संक्षिप्त उद्देश्य, लेखन, उपयुक्त अनुक्रिया का चयन और सतत् मूल्यांकन की विशेषताओं को समाहित किये हुए हैं।"

उपर्युक्त दोनों उपागमों में साम्य स्थापित करने के लिए एक अन्य उपागम का योगदान महत्वपूर्ण है, जिसे 'प्रणाली उपागम' कहते हैं। यह कठोर शिल्प उपागम और कोमल शिल्प उपागम के बीच सेतु बनाने का कार्य करता है। इस उपागम ने प्रबन्ध, प्रशासन, व्यापार, उद्योग एवं सेना से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ एवं गणितीय आधार प्रदान किया है। यह उपागम समग्रता परस्पर संबंध, स्व-नियंत्रण एवं संचालन से संबंधित होने के कारण शैक्षिक तकनीकी का महत्वपूर्ण उपागम माना जाता है।

कठोर शिल्प और कोमल शिल्प उपागम में अन्तर - यद्यपि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर उपागमों का प्रयोग शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में किया जाता है और दोनों ही एक-दूसरे से संबंधित भी हैं परन्तु उनमें सिद्धान्त प्रकृति और माध्यम आदि के कारण अंतर भी है, जो निम्नलिखित हैं-

क्र.सं.हाडवेयर उपकरणसॉफ्टवेयर उपकरण
1. हाडवेयर उपकरण का आविर्भाव भौतिक विज्ञान तथा अभियन्त्रण तकनीकी के विकास के फलस्वरूप हुआ है। यह सॉफ्टवेयर उपकरण अधिगम के मनोविज्ञान पर आधारित है और सक्रिय अधिगम का परिणाम है।
2. इसे अभियन्त्रण अथवा मशीन की प्रौद्योगिकी भी कहा जाता है। इसका आधार मनोविज्ञान है। इसे अनुकरण प्रौद्योगिकी, शिक्षण प्रौद्योगिकी अथवा व्यवहार प्रौद्योगिकी भी कहते हैं।
3. इसके अंतर्गत मशीन आधारित शिक्षण-सामग्री आती है जैसे – रेडियो, प्रोजेक्टर, टीवी, कम्प्यूटर आदि। इसके अंतर्गत शिक्षण तथा सीखने के सिद्धान्तों से संबंधित विधियाँ जैसे – प्रभावशाली अनुदेशन, शिक्षण-शैलीयाँ, समूह-शिक्षण, अंतःक्रिया विश्लेषण आदि आती हैं।
4. इसमें मशीनों का प्रयोग विशेष रूप से पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतिकरण को प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है। इसका संबंध शिक्षण के सिद्धान्तों, उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप से लिखने, शिक्षण योजना, अनुदेशन प्रणाली के पुनर्बलन, पूरकण एवं मूल्यांकन से होता है।
5. हाडवेयर के साधनों द्वारा शिक्षण की प्रक्रिया को अधिक व्यवहारिक बनाया जाता है। सॉफ्टवेयर के साधनों द्वारा बच्चे के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है।
6. हाडवेयर सामग्री का उपयोग शिक्षण में किसी भी सीखने के सिद्धान्त पर आधारित नहीं होता है। सॉफ्टवेयर पूरी तरह सीखने के सिद्धान्तों पर आधारित है।
7. मशीनों के उपयोग से प्रसारण में सहायता मिलती है। शिक्षक-छात्र की दूरी कम होती है, दूरवर्ती शिक्षण किया जाता है। शिक्षा का वैकल्पिक रूप दूरवर्ती शिक्षा माध्यम के उपयोग को बढ़ा है, जिसके कारण 'मुक्त विश्वविद्यालयों' की स्थापना हुई है।
8. हाडवेयर उपकरण से संबंधित सामग्री काफी महंगी और खर्चीली होती है। सॉफ्टवेयर से संबंधित सामग्री सर्वसुलभ और पर्याप्त सस्ती होती है।
9. सहायक सामग्री तथा मशीनों के उपकरण से मूल अनुभव को प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। सहायक सामग्री तथा मशीनों के उपयोग से पर्याप्त अधिगम परिस्थितियाँ को उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं जिससे अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन किया जा सके।
10. सॉफ्टवेयर के बिना हाडवेयर अधूरा है। सॉफ्टवेयर के उपकरण से मशीन शिक्षण तथा अनुदेशन का कार्य करती है। हाडवेयर के बिना भी सॉफ्टवेयर काम करता है, जैसे शिक्षण अधिगम अनुदेशन, पाठ-योजना, शिक्षण सहायक सामग्री आदि के उपयोग में हाडवेयर का कोई उपयोग नहीं है।

 

 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book