लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र

बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2747
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

 

अध्याय - 1
विचलन : अवधारणा, अर्थ एवं परिभाषा
(Deviance : Concept, Meaning and Definition)

 

शाब्दिक दृष्टि से विचलन व्यक्ति का ऐसा व्यवहार है जिसमें व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों आदर्शों से हटकर चलता है अथवा उनकी उपेक्षा करता है। वास्तव में विचलन अवांछित व्यवहार का ही एक रूप है और कानून की नजर में विचलन ही अपराध होता है। विचलन किसी भी प्रकार की एक अवांछित घटना है अर्थात् जो नहीं होना चाहिए उस कार्य का करना ही विचलन कहलाता है। इस प्रकार की घटना जो स्वीकृत प्रक्रियाओं, प्रक्रियाओं निर्देशों, विनिर्देशों या स्थापित किये गये मानकों से भिन्न होती है। विचलन दुवा उत्पादों के निर्माण, पैकिंग तथा नमूनाकरण और परीक्षण के दौरान भी हो सकता है। विचलन तीन प्रकार के होते हैं-महत्वपूर्ण, प्रमुख तथा मामूली। सामान्य भाषा में पथभ्रष्ट होना अर्थात् मनुष्य का नैतिक विचलन है। जब कोई व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत नियमों, मूल्यों और उसकी मान्यताओं के विरुद्ध या विपरीत व्यवहार करता है, तो व्यक्ति के इस व्यवहार को सामाजिक विचलन के रूप में मान्यता दी जाती है। अर्थात् उसके ऐसे ही व्यवहार को सामाजिक विचलन कहा जाता है। सामाजिक विचलन एक ऐसी अवधारणा है जिसकी प्रकृति हर समाज में और हर बार ही अलग होती है। सामाजिक विचलन सामाजिक मान्यता के विपरीत आचरण है। विचलन की परिभाषा - वह बिन्दु जहाँ दो चीजें एक-दूसरे से अलग हो जाती हैं, विचलन कहलाती हैं।

 

समाज की रुग्ण अवस्था के लिए मार्क्स द्वारा अलगाव का सिद्धान्त, दुर्खीम द्वारा आदर्शविहीनता की अवधारणा जबकि मर्टन द्वारा विचलन की अवधारणा दी गई है। विचलन की बात सर्वप्रथम राबर्ट मर्टन द्वारा 1938 में अपनी पुस्तक सोशल स्ट्रक्चर में की गयी है। विचलन का तात्पर्य समाज के नियमों. व मानकों के अनुरूप आचरण न करना है।

 

राबर्ट मर्टन विचलन के लिए समाज व सामाजिक संरचना को ही उत्तरदायी मानते हैं और कहते हैं कि "समाज गैर-अनुचलन व आचरण के लिए उत्तरदायी है।" मर्टन सामाजिक संरचना की व्याख्या सांस्कृतिक लक्ष्य और संस्थागत साधन के रूप में करते हैं। किसी भी नियम और अपेक्षाओं के विपरीत, व्यवहार में विचलन होता है। व्यवहार जो समाज के स्वीकृत नियमों, विश्वासों और उनकी अपेक्षाओं के विरुद्ध जाता है, सामाजिक विचलन है। सामाजिक विचलन की अवधारणा समय सापेक्ष और समाज सापेक्षिक है। सामाजिक विचलन की प्रकृति, परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है।

 

इंकलिस के अनुसार - "सामाजिक विचलन तब पैदा होता है जब वह स्वीकृत आदर्शों से हटा हुआ हो और एक ऐसा कार्य हो जिसके बारे में समुदाय उग्र महसूस करता हो, इतना उग्र कि ऐसी प्रतिक्रियाएँ करता है कि उस विचलित व्यवहार को होने ही न दिया जाए।"

 

इस प्रकार इंकलिस के अनुसार - सामाजिक विचलन यही व्यवहार कहा जाएगा जो समाज की कड़ी प्रतिक्रिया का विषय बन जाए और समाज इसे रोकने या नियन्त्रित करने के लिए तत्पर हो उठे। दूसरे शब्दों में यह व्यवहार समाज के प्रमुख मूल्यों की दृष्टि से हटकर ही नहीं है वरन् अमकारी भी है।

 

समाज में ऐसे व्यक्ति और समूह विद्यमान होते हैं जो सामाजिक आदर्शों का अनुपालन ही नहीं करते हैं तथा जो सामाजिक मानदण्डों के खिलाफ कार्य करते हैं उन्हें ही सामाजिक विचलन की श्रेणी में रखा जाता है। फैशन या नई शैली के नाम पर अनेक ऐसे व्यवहार भी होते हैं, जो समाज के प्रचलित आदर्शों के अनुरूप नहीं होते हैं, लेकिन फिर भी समाज उन्हें अपराध की संज्ञा नहीं देता है बल्कि अपनी अप्रत्यक्ष सहमति से बने रहने देता है। इस प्रकार सामाजिक विचलन तब पैदा होता है जब वह स्वीकृत आदर्शों से हटा हुआ होता है और एक ऐसा कार्य हो जिसके बारे में समुदाय उसे दण्डित करता है। इतना उग्र होता है कि ऐसा प्रतीत हो कि उस प्रकार के विचलित व्यवहार को होने ही न दिया जाये या फिर उसे नियन्त्रित कर दिया जाये।

 

फैडरिको के अनुसार -"समाजशास्त्री इस शब्द का प्रयोग किसी भी उस व्यवहार के लिए करते हैं जोकि समाज की प्रत्याशाओं का उल्लंघन करता है।" इस परिभाषा में वे सभी व्यवहार सम्मिलित हैं जो समाज के अन्य सदस्यों द्वारा असाधारण, अप्राकृतिक, अप्रचलित व अनैतिक हैं या सीधे और साफ नहीं समझे जाते हैं।

 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book