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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- राष्ट्रकूट शासक ध्रुव 'धारावर्ष' कौन था? उसकी सामरिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. ध्रुव कौन था?
2. ध्रुव के विषय में आप क्या जानते हैं?
3. ध्रुव के इतिहास तथा उसकी उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
4. राष्ट्रकूट शासक ध्रुव की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
5. ध्रुव के उत्तरी अभियान को संक्षेप में बताइये।

उत्तर- 

राष्ट्रकूट शासक ध्रुव अथवा 'धारावर्ष' (780-739 ई.)

ध्रुव 779 ई. तक अपने भाई गोविन्द द्वितीय के अधीन राष्ट्रकूट शासक था जिसकी पुष्टि धुलिया ताम्रपत्र अभिलेख से होती है। परन्तु उसने अपने अग्रज गोविन्द द्वितीय से राष्ट्रकूट सत्ता छीनकर 780 ई. के लगभग अपना राज्याभिषेक कराया। इस प्रकर गोविन्द द्वितीय के पश्चात् उसका भाई ध्रुव राष्ट्रकूट साम्राज्य का शासक हुआ। उसकी गणना प्राचीन इतिहास के महानतम् शासकों में की जाती है। राजा होने पर ध्रुव ने निरूपम, कालिवल्लभ, श्रीवसल्लभ तथा धारावर्ष की उपाधियाँ धारण कीं। उसके समय में राष्ट्रकूटों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा का चारों ओर विस्तार हुआ।

राजनैतिक उपलब्धियाँ

ध्रुव की राजनैतिक उपलब्धियों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

विरोधी सामन्तों का दमन - ध्रुव के भाई गोविन्द द्वितीय के कुछ सामन्त ध्रुव के विद्रोही थे। उसने अपने विद्रोही सामन्तों का दमन कर उनके क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया।

गंगवाड़ी विजय - ध्रुव ने गंगवाड़ी के राजा शिवमार द्वितीय को परास्त कर उसके सम्पूर्ण राज्य को राष्ट्रकूट राज्य में मिला लिया तथा अपने पुत्र स्तम्भ को वहाँ का शासक नियुक्त कर दिया। इससे राष्ट्रकूट राज्य की दक्षिणी सीमा कावेरी तक जा पहुँची।

पल्लव विजय - ध्रुव के काञ्ची के पल्लव वंश के शासक दन्तिवर्मा को पराजित किया। राधनपुर लेख के अनुसार "एक ओर वास्तविक समुद्र तथा दूसरी ओर सेनाओं के समुद्र के बीच घिरकर पल्लव नरेश पराजित हो गया और उसने बहुत से हाथियों को राष्ट्रकूट सेना में समर्पित कर दिया।'

वेंगी विजय - ध्रुव का वेंगी के चालुक्य वंश के साथ भी संघर्ष हुआ। चालुक्य नरेश विष्णुवर्धन चतुर्थ ने ध्रुव के विरुद्ध भाई गोविन्द की सहायता की थी। इसलिए ध्रुव ने उसके राज्य पर भी आक्रमण कर उसे पराजित किया।-

इस युद्ध में वेमुलवाड के चालुक्य सामन्त अरिकेसरि प्रथम ने ध्रुव की सहायता की थी। ध्रुव ने त्रिकलिंग पर अधिकार कर लिया तथा चालुक्य राजा ने उसकी आधीनता में शासन करना स्वीकार कर लिया। इन विजयों के परिणामस्वरूप ध्रुव सम्पूर्ण दक्षिणापथ का एकछत्र शासक बन गया।

उत्तरी अभियान - दक्षिण भारत में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर लेने के बाद ध्रुव ने उत्तरी भारत की ओर ध्यान दिया। इस समय कन्नौज पर अधिकार करने के लिए प्रतिहार तथा पाल राजवंशों में संघर्ष चल रहा था। प्रतिहार शासक वत्सराज मालवा तथा राजपूताना पर शासन कर रहा था। उसने ध्रुव के विरुद्ध उसके भाई गोविन्द की सहायता की थी जिसके कारण ध्रुव उससे अत्यन्त रुष्ट था। बंगाल का पाल शासन इस समय धर्मपाल के अधीन था तथा कन्नौज में इन्द्रायुद्ध नामक एक अत्यन्त निर्बल राजा राज्य कर रहा था। वत्सराज तथा धर्मपाल दोनों ही कन्नौज पर अधिकार करना चाहते थे। वत्सराज ने कन्नौज पर आक्रमण कर वहाँ के राजा को पराजित किया तथा उसे अपनी अधीनता में रहने का अधिकार दे दिया। धर्मपाल इसे सहन न कर सका तथा उसने कन्नौज की गद्दी इन्द्रायुद्ध के भाई या सम्बन्धी चक्रायुद्ध को दिलाने के उद्देश्य से वत्सराज के विरुद्ध प्रस्थान किया। दोनों के बीच एक युद्ध हुआ, जिसमें धर्मपाल की पराजय हुई। धर्मपाल युद्ध-क्षेत्र में अपने दो श्वेत छत्रों को छोड़कर भाग गया तथा वत्सराज ने उन पर अपना अधिकार कर लिया। धर्मपाल ने पुनः शक्ति जुटाकर वत्सराज से युद्ध करने का निश्चय किया। इसी बीच 786 ई. में ध्रुव ने उत्तर भारत की राजनीति में हस्तक्षेप किया।

ध्रुव ने नर्मदा नदी के तट पर अपनी सैना को संगठित किया तथा उन्हें अपने पुत्रों गोविन्द तथा इन्द्र के नेतृत्व में कर दिया। इस समय वत्सराज़ अपनी सेना के साथ दोआब में था। विन्ध्य पर्वत पार कर ध्रुव ने मालवा के प्रतिहार नरेश वत्सराज को बुरी तरह पराजित किया और वह राजपूताना के रेगिस्तान ने की ओर भाग गया। राधनपुर लेख से इस विजय का पता चलता है। इस लेख के अनुसार, "ध्रुव वत्सराज के यश के साथ-साथ उन दोनों राजछत्रों को भी छीन लिया जिन्हें उसने गौड नरेश से ले लिया था।' इसके बाद ध्रुव ने गंगा-यमुना के दोआब में ही बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी हराया। इस विजय की पुष्टि संजन लेख से होती है जिसके अनुसार "ध्रुव ने गंगा-यमुना के बीच भागते हुए गौडराज की लक्ष्मी के लीलरविन्दों तथा श्वेत छत्रों को छीन लिया था।' ध्रुव का उद्देश्य कन्नौज पर अधिकार करना या उत्तर भारत में अपनी शक्ति का विस्तार करना नहीं था। इसलिए उत्तर के राजाओं को अपनी शक्ति का परिचय देकर तथा उत्तरी भारत के मैदानों में अपनी विजय पताका फहराकर ध्रुव अतुल सम्पत्ति के साथ अपनी राजधानी वापस लौट आया। अब वह सम्पूर्ण भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राट था।

इस प्रकार ध्रुव राष्ट्रकूट वंश के महानतम् राजाओं में से एक था। उसके पूर्वगामी शासकों के समय राष्ट्रकूट वंश की प्रतिष्ठा को जो आघात पहुँचा था उसे उसने न केवल पुनर्स्थापित किया, बल्कि उसमें वृद्धि भी की। उसने अपनी शक्ति का विस्तार सम्पूर्ण भारत में कर लिया।

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