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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2742
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 1
लॉर्ड लिटन
(Lord Lytton)

लॉर्ड लिटन का प्रशासन, आन्तरिक या प्रशासनिक कार्य.

लॉर्ड लिटन का प्रशासन; 1857 के पश्चात् ब्रिटिश सरकार पर्याप्त भयभीत थी परन्तु भारत जैसे विशाल आर्थिक क्षेत्र के साम्राज्य को छोड़ने की लिए भी तैयार नहीं थी। उसको भी यह समझ आ गया था कि ब्रिटिश शासन के अत्याचारी और प्रतिक्रियावादी शोषण के कारण भारतीयों में असन्तोष व्याप्त था। इसी कारण 1857 का संग्राम हुआ अतः उसने भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए केनिंग, एल्गिन, मेयो और नॉर्थब्रुक को भेजा गया। इन्होंने अनेक सुधार किये परन्तु यह भी प्रतिक्रियावादी थे। इनके बाद लिटन और फिर रिपन आये थे।

लॉर्ड लिटन के प्रशासनिक या आन्तरिक प्रशासन में सुधार कार्य

लॉर्ड लिटन के प्रशासनिक कार्य इस प्रकार हैं-

1. स्वतन्त्र व्यापार की नीति

लिटन स्वतन्त्र व्यापार की नीति का समर्थक था। औद्योगिक क्रान्ति के कारण ब्रिटेन इस समय उद्योग तथा व्यापार की दृष्टि से सम्पूर्ण संसार का नेतृत्व कर रहा था और स्वतन्त्र व्यापार की नीति उसके हित में थी। भारत से ब्रिटेन को कच्चे माल की आवश्यकता होती थी तथा उसके बने हुए माल को अच्छा बाजार प्राप्त होता था। इस कारण भारत में स्वतन्त्र व्यापार की नीति को अपनाना ब्रिटेन के उद्योगों और व्यापार के हित में था। ब्रिटेन के व्यापारी भारत सरकार द्वारा लगाये विभिन्न आयात निर्यात करों का विरोध कर रहे थे। अन्त में भारत सचिव के आदेश तथा अपनी सम्मति से लॉर्ड लिटन ने स्वतन्त्र व्यापार की नीति अपनायी तथा प्रायः उनतीस वस्तुओं से आयात-निर्यात कर खत्म कर दिया और इस तरह ब्रिटेन के हित के पूर्ति के लिए भारत के हित का बलिदान किया गया।

2. नमक कर लगाना

विभिन्न प्रान्तों के विभिन्न भागों में नमक कर की भिन्न-भिन्न दरें थी। लिटन ने इन्हें समान करके नमक चोरी को रोका। भारतीय रियासतों पर नमक बनाने के लिए प्रतिबन्ध लगाये गये, परन्तु इसलिये उन्हें क्षतिपूर्ति नहीं दी गई। इस प्रकार नमक चोरी को तो रोक लिया परन्तु भारतीयों को हानि पहुँचा कर कम्पनी की आय में वृद्धि की। अनेक स्थानों पर नमक पर नियन्त्रण के लिये अनेक चुंगी क्षेत्र बनाये गये जिससे वस्तुओं के दामों में और निर्धन जनता की कठिनाइयों में अपार वृद्धि हो गई।

3. प्रेस एक्ट

सन् 1876 में प्रेस एक्ट द्वारा भारतीय पत्रों की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगा दिया गया # जिसके अत्याचारी स्वरूप से चिढ़कर भारतीयों ने इसे हैंगिंग एक्ट या गलाघोंटू कानून की संज्ञा दी।

4. सन् 1876-78 अकाल और लॉर्ड लिटन की नीति

भारत में अकाल की स्थिति सन् 1873-79 से ही बनी हुई थी। सन् 1878 तक यह स्थिति भयावह हो चुकी थी। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र मद्रास, बम्बई, मैसूर, हैदराबाद और मध्यभारत के कुछ भाग तथा पंजाब थे। अकाल का प्रभाव लगभग 2,57,000 वर्ग मील और 5 करोड़ 80 लाख लोगों पर पड़ा। आर०सी०दत्ता का मानना है कि लगभग 50 लाख लोग . एक वर्ष में भूख से मर गये थे। सन् 1878 में रिचर्ड स्टैची की अध्यक्षता में एक अकाल कमिश्नर की स्थापना हुई जिसने पेट पालने के लिए काम, पर्याप्त मजदूरी तथा स्थायी प्रान्तीय अकाल कोष के निर्माण का सुझाव दिया। अकाल की रोकथाम के लिए सिंचाई योजनाएँ तथा रेलवे लाइनें बिछाने का कार्यक्रम बनाया गया। इस प्रकार सरकार की आगामी अकाल नीति का आधार निर्मित हुआ।

5. शिक्षा व्यवस्था

लॉर्ड लिटन ने शिक्षा के नाम पर हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट डालने के लिए अलीगढ़ कॉलेज स्थापित किया जिसका प्राचार्य बैक नामक अंग्रेज था जिससे सर सैय्यद अहमद खाँ जैसे व्यक्ति भी हिन्दू-मुस्लिम एकता का रास्ता छोड़कर भारत द्रोही साम्प्रदायिक रास्ते पर चल पड़े।

6. सम्राट पद कानून

1876 में सम्राट पद कानून के अन्तर्गत रानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी का पद प्रदान किया गया। इसकी घोषणा के लिए लिटन ने 1 जनवरी 1877 को दिल्ली में एक शानदार दरबार का आयोजन किया। दरबार की शानशौकत पर बेहद खर्च किया गया और वह भी उस समय जबकि भारत के अधिकांश भागों में घोर अकाल पड़ा हुआ था। इससे भारत में तीव्र असन्तोष हुआ तथा इसी समय में सुरेंद्रनाथ बनर्जी और लाला लाजपतराय ने अपना जन ॐ आन्दोलन शुरू किया गया।

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