बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 3 लेखांकन : अवधारणाएँ और परम्पराएँ
(Accounting : Concept and Conventions)
राबर्ट एन्थॉनी के अनुसार लेखांकन की प्रमुख अवधारणायें निम्नलिखित हैं-
(1 ) लागत अवधारणा - इस अवधारणा के अनुसार सम्पत्ति को लागत मूल्य पर दिखाया जाता है वर्तमान मूल्य पर नहीं। उनके मूल्यों में होने वाली कमी अथवा वृद्धि को लेखों में नहीं दर्शाया जाता है लेकिन सम्पत्तियों के मूल्य में से प्रतिवर्ष उनके ह्रास को घटाया जाता है।
(2) पूँजी अवधारणा - यह अवधारणा इस तथ्य पर आधारित है कि व्यवसाय की पूँजी क्योंकि अन्य पक्षकारों के लिये सुरक्षा का काम करती है अतः उसको बिना सम्बन्धित पक्ष को सूचना दिये हुए कम नहीं किया जा सकता।
(3) द्विपक्ष अवधारणा - इस अवधारणा के अनुसार प्रत्येक व्यवसायिक व्यवहार दो खातों को प्रभावित करता है। एक खाते में जितना नाम (Debit) लिखा जायेगा, दूसरे खाते में उतना ही जमा (Credit) किया जाएगा।
(4) एकरूपता की अवधारणा - इस अवधारणा से तात्पर्य यह है कि व्यवसाय की लेखाविधि के लिये किसी एक घटना के लिये जिस पद्धति का एक बार चयन कर लिया जाता है आने वाले समय में उसी प्रकार की घटना के लिये उसी पद्धति को निरन्तर अपनाया जायेगा अर्थात् उस पद्धति को बदलना नहीं चाहिये।
(5) वसूली की अवधारणा - इस अवधारणा के अनुसार कोई भी आय उस समय वसूल मान ली जाती है जबकि वह अर्जित हो जाये अथवा यथोचित रूप से निश्चित हो जाये।
(6) पूर्ण प्रकटीकरण की अवधारणा - इस अवधारणा से तात्पर्य यह है कि व्यवसाय के सभी लेखे ईमानदारी से तैयार किये जायें और सभी महत्वपूर्ण सूचनायें स्पष्ट रूप से दिखलाई जायें। पूर्ण प्रकटीकरण का मूल उद्देश्य व्यावसायिक संस्था के व्यापारिक रहस्यों को प्रकट करना नहीं होता, अपितु ऐसी सभी तथ्य प्रकट करना होता है जो व्यवसाय के स्वामियों को अपने व्यवसाय की सभी क्रियाओं पर स्वतन्त्र नियन्त्रण रखने के लिये आवश्यक हैं।
(7) मिलान की अवधारणा - इस अवधारणा से तात्पर्य यह है कि किसी व्यवसाय के आगम ( Revenues) जिस लेखांकन अवधि, उत्पादन इकाई या विभाग से सम्बन्धित हों, व्यय भी उसी लेखांकन अवधि, उत्पादन इकाई या विभाग से सम्बन्धित होने चाहियें जिससे कि सही लाभ या हानि ज्ञात की जा सके।
लेखांकन प्रथाएँ अथवा परिपाटी
प्रमुख लेखांकन प्रथाएँ अथवा परिपाटी निम्न प्रकार हैं-
(1) प्रगटीकरण प्रथा - प्रगटीकरण प्रथा से आशय है कि लेखा पुस्तकें व विवरण ईमानदारी से बनाये जाने चाहिये तथा सभी आवश्यक सूचनाओं को इन्हें अवश्य प्रगट करना चाहिये । प्रायः यह भी प्रथा रहती है कि संभाव्य दायित्वों (Contingent Liabilities) को भी - एक नोट के रूप में सूचित किया जाय तथा विनियोगों (Investents) के बाजार मूल्यों को भी एक नोट के रूप में बताया जाए।
(2) प्रमुखता की प्रथा - लेखांकन में सामान्यतः प्रमुख व महत्वपूर्ण विवरणों को ही विस्तार से लिखा जाता है, सूक्ष्म या महत्वीन बातों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। सामान्यतः ऐसे तथ्यों को प्रमुखता दी जानी चाहिए जो यदि प्रगट किए जायें तो भावी व वर्तमान विनियोजकों के निर्णय को प्रभावित कर सकते हों।
(3) एकरूपता की प्रथा - लेखांकन की पद्धति में वर्षानुवर्ष एकरूपता या संगतता होनी चाहिये । प्रबन्ध को अपने निर्णयों में कई वर्षों के निष्कर्षों को सामने रखना पड़ता है। इसके लिये यह आवश्यक होता है कि लेखांकन पद्धति में एकरूपता हो।
(4) रूढ़िवाद की प्रथा - पुरानी पद्धतियों, जिससे सुरक्षित ढंग से लाभ की गणना हो सके तथा सभी सम्भावित हानियों के लिये पहले से ही कुछ आयोजन कर लिया जाय, रूढ़िवाद की प्रथा के अन्तर्गत आते हैं।
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