|
बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
||||||
बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 13 किश्त भुगतान पद्धति
(Instalment Payment System)
किश्त भुगतान पद्धति बिक्री की एक ऐसी पद्धति है जिसके अन्तर्गत माल के क्रेता को माल का स्वामित्व बिक्री के समय ही हस्तान्तरित हो जाता है और विक्रय मूल्य का भुगतान सुनिश्चित किश्तों द्वारा किया जाता है । यदि क्रेता किसी कारण किसी किश्त का भुगतान करने में असमर्थ होता है, तो विक्रेता माल वापस लेने का अधिकारी नहीं होता है अपितु केवल अदत्त धनराशि के लिये क्रेता पर दावा कर सकता है।
विलियम पिकिल्स के अनुसार -“किराया क्रय पद्धति और किश्त भुगतान पद्धति यद्यपि एक ही जैसी प्रतीत होती हैं क्योंकि दोनों में ही भुगतान किस्तों में करना होता है परन्तु इन दोनों बहुत अधिक अन्तर है। प्रथम पद्धति तो केवल मात्र क्रय का प्रसंविदा है जिसमें अन्तिम किस्त का भुगतान होने पर ही यह प्रसंविदा बिक्री का रूप धारण करता है लेकिन किस्त भुगतान पद्धति आरम्भ से ही बिक्री प्रसंविदा है जिसमें इकट्ठा भुगतान करने के स्थान पर निर्धारित अवधि में धीरे-धीरे ब्याज सहित भुगतान किया जाता है ।"
किश्त भुगतान पद्धति की मूल विशेषताएँ
(1) उधार बिक्री होना - यह उधार बिक्री का अनुबन्ध होता है।
(2) भुगतान किस्तों में होना - मूल्य का भुगतान क्रेता तथा विक्रेता द्वारा आपसी समझौते द्वारा किस्तों में किया जाता है।
(3) माल की सुपुर्दगी - माल की सुपुर्दगी क्रेता को अनुबन्ध होते ही मिल जाती है।
(4) स्वामित्व का हस्तान्तरण - स्वामित्व का हस्तान्तरण अनुबन्ध होते ही हो जाता है।
(5) किस्त भुगतान में त्रुटि होने पर - विक्रेता माल को वापिस नहीं ले सकता। न ही वह चुकाई गई किस्तों को जब्त कर सकता है। वह तो केवल शेष रकम के लिए ही दावा कर सकता है।
(6) क्रेता द्वारा बिक्री करना या गिरवी रखना - क्रेता अनुबन्ध होते ही माल का स्वामी बन जाता है इसलिए वह किसी समय भी माल को बेच सकता है अथवा गिरवी रख सकता है।
|
|||||










