बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 5 अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप
(International Accounting Standards)
अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन सम्बन्धित राष्ट्रों द्वारा निर्णयों व निश्चयों से अवगत होने की दृष्टि से, राष्ट्रों के मध्य सम्पन्न होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहारों की पहचान करने, माप करने एवं संवहन करने की लेखांकन प्रणाली एवं कार्य-विधि निर्दिष्ट करता है । अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देनों का आय दो देशों के निवासियों के बीच होने वाले व्यावसायिक अन्तर-व्यवहार तथा अन्तर-सरकारी व्यवहारों से है। ये लेन-देन या तो 'वास्तविक' हो सकते हैं जिनमें वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार शामिल होते हैं, या ये 'वित्तीय' हो सकते हैं जिनमें क्रय-शक्ति के हस्तान्तरण शामिल होते हैं।
यातायात एवं संवाद - वहन के साधनों में विकास ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को तीव्र गति प्रदान करने में सहायता पहुँचायी है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय की अपेक्षाओं को पूरा करने की दृष्टि से लेखांकन का भी अन्तर्राष्ट्रीयकरण हुआ है। द्वितीय विश्व महायुद्ध के समय से अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में भी उल्लेखनीय विस्तार हुआ है जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रों की सीमा के बाहर लेखांकन सूचनाओं की अधिक व्यापक रूप से मात्रा सम्भव हो पायी है। विगत काल में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य प्रतिभूतियों में व्यापार को सुविधा प्रदान करने के लिए अनेक अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी बाजारों की स्थापना की गयी। आई० डी० ए० (IDA), आई० एफ० सी० (IFC), विश्व बैंक (World Bank) आदि अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों (agencies) ने ऐसी परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता देने की स्वीकृति प्रदान की जो जन सामान्य के उत्थान के लिए आवश्यक समझे गये थे। ऐसी स्थिति में, सार्थक वित्तीय विश्लेषण एवं तुलनीयता हेतु आवश्यक पूर्व-शर्त के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानकों की आवश्यकता का पहले की अपेक्षा अधिक अनुभव किया जाने लगा। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अमेरिका, कनाडा तथा यू० के० इन तीन राष्ट्रों द्वारा वर्ष 1967 में एक 'लेखापालकों की अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन समूह' (Accountants' International Study Group – AISG ) की स्थापना की गयी। इस 'ग्रुप' ने अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानकों (International Accounting Standards) के सादृश्य अनेक निबन्ध-पत्रों, का प्रकाशन किया। इस 'ग्रुप' की सिडनी ( Sydney) में 1972 में आयोजित बैठक में लेखांकन विषयों के बारे में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने के लिए अनुभव किया गया और एक अन्तर्राष्ट्रीय निकाय के स्थापना का प्रस्ताव किया गया जिसका कार्य अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानकों का निर्धारण करना होगा।
'अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक समिति' (International Accounting Standards Committee- IASC) नामक एक समिति 29 जून, 1973 को मुख्यालय लन्दन में गठित की गयी। एक सहमति के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, जापान, मेक्सिको एवं नीदरलैंड, इन नौ राष्ट्रों के 16 अग्रणी व्यावसायिक निकायों (professional bodies) ने इसकी स्थापना हेतु संविधान पर हस्ताक्षर किया। 10 अक्तूबर, 1977 को एक संशोधित समझौते एवं संविधान पर हस्ताक्षर किये गये जिसके अनुसार लेखांकन निकाय जो 'एसोसिएट सदस्य थे, आई० ए० एस० सी० (IASC) के पूर्ण सदस्य हो गये। यह भी व्यवस्था की गयी कि इच्छुक अन्य लेखांकन निकाय भी इसके सदस्य बन सकते हैं। इस समिति के कार्य एक बोर्ड द्वारा सम्पादित किये जाते हैं जिसमें संस्थापक सदस्य निकायों के प्रतिनिधि एवं अधिक से अधिक दो अन्य सदस्य निकाय होते हैं। इस समिति की सदस्यता में तेजी से वृद्धि हुई है जिसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि मार्च, 1985 के अन्त तक 70 राष्ट्रों के 90 लेखांकन संगठन जो 9,00,000 पेशेवर लेखापालकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, इस 'समिति' की सदस्यता स्वीकार कर चुके हैं।
आई० ए० एस० सी० (IASC) के उद्देश्य - "अंकेक्षित वित्तीय विवरणों के प्रस्तुतीकरण में अनुपालित किये जाने वाले मानकों को निरूपित करना एवं सार्वजनिक हित में उनका प्रकाशन करना तथा उनकी विश्व व्यापी स्वीकृति व अनुसरण हेतु उनका सम्वर्द्धन करना" है। समिति के सदस्य इन दायित्वों का वहन करने के लिए सहमत हुए-
(अ) समिति द्वारा घोषित मानकों का समर्थन करने में;
(ब) इन मानकों के अनुरूप वित्तीय विवरणों को प्रकाशित करना, तथा अंकेक्षकों को स्वयं संतुष्ट हो लेना कि इन मानकों का अनुसरण किया गया है;
(स) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इन मानकों की सामान्य स्वीकृति प्राप्त क़ाना तथा अनुपालन कराना।
|