बी ए - एम ए >> बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 8
जठरांत्र पथ से संबंधित प्राथमिक चिकित्सा
(First Aid Related with Gastrointestinal Tract)
मानव का जठरांत्र पथ (Tract) पाचन पथ भी कहलाता है। यह मनुष्य एवं अन्य जन्तुओं के अन्दर पाया जाने वाला वह तन्त्र है जो भोजन का ग्रहण करता है, उसका पाचन करता है और उसमें से ऊर्जा एवं अन्य पोषक तत्वों का अवशोषण करके अन्त में बचे हुए अपशिष्ट को त्याज्य पदार्थों के रूप में शरीर से बाहर निकाल देता है। वस्तुतः मानव के जठरान्त्र तंत्र में उसका सम्पूर्ण पाचन तंत्र आ जाता है। इस पाचन तंत्र में भोजन का पाचन विभिन्न प्रकार के पाचक एंजाइमों की सहायता से होता है। इन पाचक एंजाइमों का स्रावण इसी पाचन तंत्र में उपस्थित पाचक ग्रंथियाँ करती हैं। मानव जठरांत्र मार्ग में सम्पूर्ण अन्न प्रणाली तथा पेट एवं आँत शामिल हैं।
जठरांत्र पथ को ऊपरी और निचले जठरान्त्र संबंधी मार्ग में विभाजित किया गया है। यद्यपि सम्पूर्ण मानव पाचन तंत्र को पाचन में सहायक अंगों तथा जिह्वा, लार ग्रंथियों, अग्नाशय, यकृत और पित्ताशय के साथ-साथ अग्रगुट, मिडगुट तथा हिंजगुट में भी विभाजित किया जा सकता है जो सम्पूर्ण खण्ड के भ्रम संबंधी मूल को दर्शाता है।
ऊपरी जठरान्त्र संबंधी मार्ग में मुँह ग्रसनी, अन्न प्रणाली, पेट तथा ग्रसनी शामिल है, जबकि निचले जठरान्त्र से संबंधी मार्ग में छोटी आँत से लेकर सभी बड़ी आंतें शामिल हैं।
मनुष्य की आहारनाल लगभग 8-10 मी. लम्बी एक नली के समान संरचना होती है, द्वार से लेकर गुदा द्वार तक फैली रहती है।
मानव मुख एक अनुप्रस्थ काट के रूप में मानव शरीर के प्रतिपृष्ठ तल पर स्थित होता है जो दो मांसल तथा चल होठों से घिरा रहता है। मुख द्वार पीछे की ओर मुख गुहिका में खुलता है जिसकी निचली सतह पर एक जिह्वा होती है। इस मुख मुहिकी की छत को तालू कहा जाता है। यही तालू मुख गुहिका तथा श्वसन मार्ग को एक-दूसरे से अलग करती है।
मुख गुहिका में दाँत, जिह्वा तथा स्वाद एवं लार ग्रंथियाँ पायी जाती हैं।
मुख गुहिका का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है जो लगभग 12 से 14 सेमी. लम्बी एक 'कीपाकार नलिका होती है।
ग्रसनी के अन्दर एक बड़ा-सा छिद्र होता है जिसे निगल द्वारा कहा जाता है। इसके पास ही ग्रासनली का छिद्र होता है। जो घाटी द्वार (Glottis) होता है जो इपीगलाटिस से ढका रहता है। यह भोजन निगलते समय घाटी द्वार को ढक लेता है जिससे भोजन श्वासनली में नहीं जा पाता। ग्रसिका या ग्रासनली लगभग 23-27 सेमी. लम्बी नली होती है। इसकी दीवार में श्लेष्म ग्रंथियाँ उपस्थित रहती हैं जो इसे चिकना बनाये रखती हैं, जिसके कारण भोजन, क्रमाकुंचल द्वारा फिसलता हुआ अमाशय में पहुँच जाता है।
मानव का अमाशय लगभग 25 सेमी. लम्बा तथा आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग होता है। इसमें जठर, ग्रंथियाँ पायी जाती हैं जो भोजन के पाचन हेतु जठर रस का स्रावण करती हैं। जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, पेप्सिन, लाइपेज नामक पाचक एंजाइम उपस्थित होते हैं।
भोजन के पाचन तथा अवशोषण का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र छोटी आँत होती है। यहाँ भोजन का लगभग संपूर्ण पाचन तथा अवशोषण होता है जबकि बड़ी आँत में केवल पचे हुए भोजन के शेष तत्वों एवं जल का अवशोषण होता है। मलाशय आँत का अंतिम भाग होता है। यहाँ मल का संग्रहण होता है और उसमें उपस्थित शेष जल का अवशोषण हो जाने के बाद गुदा द्वार द्वारा मल को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है और पाचन क्रिया सम्पूर्ण होती है।
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