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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2730
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-2 प्राथमिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य - सरल प्रश्नोत्तर


महत्वपूर्ण तथ्य

भोजन के रूप में ग्रहण किये गये जटिल पदार्थों को शरीर द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले सरल रूप में अपघटित करने की क्रिया पाचन क्रिया कहलाती है।

पाचन क्रिया जिन अंगों की सहायता से सम्पादित होती है उन्हें सामूहिक रूप से पाचन तंत्र कहा जाता है।

पाचन तंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग आहारनाल होती है।

मानव की आहारनाल 8-10 मीटर लम्बी होती है जो मुख द्वार से लेकर गुदा द्वार तक फैली रहती है।

आहारनाल के विभिन्न भागों की मोटाई अलग-अलग होती है।

मुख गुहिका की छत तालू कहलाती है। यह तालू ही मुख गुहिका तथा आहारनाल को एक-दूसरे से पृथक करती है।

टॉसिल्स लसीका से बना होता है और ग्रसनी गुहिका के समीप स्थित होता है।

मुख गुहिका में दांत पाये जाते हैं जो भोजन को चबाने में सहायता प्रदान करते हैं।

मनुष्य के दांत गर्तदन्ती, विषारदन्ती तथा द्विबारदन्ती होते हैं।

मनुष्य में चार प्रकार के दांत पाये जाते हैं-
(a) कृन्तक  (b) रदनक  (c) अग्रचवर्णक  (d) चवर्णक

मानव जिह्वा मुख गुहिका में स्थित होती है और मनुष्य की इच्छानुसार कार्य करती है। जिह्वा के ऊपरी भाग पर चार प्रकार की स्वाद कलिकायें (Buds) पायी जाती हैं। जिह्वा का अग्र छोर मीठे स्वाद का जबकि पश्च भाग कड़वे स्वाद का अनुभव करता है। मुख गुहिका का पिछला भाग ग्रसनी (Pharynx) कहलाता है। यह कीपाकार संरचना 12 से 14 सेमी. लम्बी होती है बोलते समय ध्वनि की गूँज उत्पन्न करने में सहायक होती है।

ग्रसनी का बड़ा छिद्र निगल द्वार कहलाता है। इसी के पास श्वासनली का छिद्र होता है जो घाटी द्वार कहलाता है। इसलिए एक ढापन के कारण भोजन निगलते समय श्वासनली में नहीं जा पाता।

मानव ग्रसिका पतली, पेशीय और संकुचनशील पेशियों से बनी 23-27 सेमी लम्बी एक नली होती है। जिसकी दीवार पर श्लेष्म ग्रंथियाँ उपस्थित होती हैं। जिससे क्रमाकुंचन के कारण भोजन फिसलकर अमाशय में पहुँच जाता है।

मानव अमाशय लगभग 25 सेमी. लम्बा J के आकार का थैलेनुमा भाग होता है। जिसमें जगर ग्रंथियाँ पायी जाती हैं जो भोजन के पाचन हेतु जठर रस का स्रावण करती हैं।

अमाशय के चार भाग होते हैं- कार्डियक, फंडिक, पाइलोरिक तथा शेषाग्र भाग।

अमाशय में भोजन का केवल आंशिक पाचन होता है। यहाँ पर पेशीय क्रमानुकुंचन के कारण भोजन लुग्दी के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

भोजन पाचन तथा अवशोषण का मुख्य केन्द्र छोटी आँत होती है।

छोटी आँत 6-7 मी. लम्बी तथा 2.5 सेमी. चौड़ी एवं अत्यधिक कुण्डलित संरचना होती है।

छोटी आँत के अधिकांश भाग में रसांकुर या विलाई पाये जाते हैं जो भोजन के पाचन तथा अवशोषण में सहायक होते हैं।

बड़ी आँत आहारनाल का अंतिम भाग होती है। 1.5 मी. लम्बी तथा 4.7 सेमी चौड़ी नलिकाकार रचना होती है।

बड़ी आँत मुख्य पाचक अंग न हो करके केवल अपचे भोजन को पचाता है तथा उसमें से जल का अवशोषण करता है।

अपेनडिक्स या कृमि रूप परिशेषिका छोटी तथा बड़ी आँत का मिलन बिन्दु होता है। अब यह एक अवशेषी अंग है।

बड़ी आँत का अन्तिम भाग मलाशय कहलाता है। जिसका अंतिम भाग गुदानाल कहलाता है। मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पायी जाती हैं जो प्रतिदिन 1.5 ली. लार का स्रावण करती हैं। यकृत मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है जो लगभग 1500 ग्राम का होता है। जठरान्त्र शोध एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है जिसे जठरांत्र मार्ग के सूजन द्वारा पहचाना जाता है। जिसमें पेट तथा छोटी आँत दोनों शामिल हैं। इसके मुख्य लक्षणों में कुछ लोगों को उल्टी, दस्त, पेट में दर्द और ऐंठन की सामूहिक समस्या होती है।

इस रोग को आन्त्र शोथ, स्टमक बग तथा पेट के वायरस के रूप में भी जाना जाता है।

इसे पेट का फ्लू या गैस्टिक फ्लू भी कहा जाता है। इसका कारण रोटा वायरस नामक वायरस होता है।

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