बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 5
संगठन
(Organization)
प्रश्न- शारीरिक शिक्षा में संगठन से क्या तात्पर्य है? संगठन को परिभाषित करते हुए इसके महत्त्व एवं बुनियादी सिद्धांतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
शारीरिक शिक्षा में अनेक क्रियाओं को संचालित करने के लिए शारीरिक शिक्षक, छात्र और खिलाड़ी, पर्यवेक्षक एवं अन्य व्यक्तियों के एक साथ प्रयास करने की जरूरत होती है। इन सब को एक साथ कार्य करने के ढंग को संगठन कहा जाता है। शारीरिक शिक्षा में उपलब्ध साधनों, संबंधित अंगों, व्यक्तियों एवं क्रियाओं की मिश्रित एवं सामंजस्यपूर्ण इकाई को संगठन कहते हैं।
विद्यालय की सभी क्रियाओं को सफल बनाने के लिए अच्छा संगठन अति आवश्यक है। विद्यालय में विद्यार्थियों के विकास के लिए एवं शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं तथा खेलों के कौशलों के निष्पादन के लिए विद्यालय का अच्छा संगठन आवश्यक है।
संगठन की परिभाषाएँ - शारीरिक शिक्षा में संगठन की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
जे. पी. थामसके अनुसार - “संगठन कार्य की योजना है"
जे. बी. सीयर्स के अनुसार - "यह कार्य करने की एक मशीन है जिसका निर्माण व्यक्तियों, वस्तुओं, धारणाओं, प्रतीकों, स्वरूपों, नियमों एवं सिद्धांतों के द्वारा या आमतौर पर इन सबके संयोग से हो सकता है। "
एक विशेष उद्देश्य के लिए ढाँचा एवं संरचना संगठन है।
संगठन शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए व्यवस्था करता है।
संगठन एक ऐसा साधन है जिसमें किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए कुछ कार्यकर्त्ताओं की आवश्यकता होती है।
किसी भी कार्य के लिए जो योजना बनायी जाती है, उसे संगठन कहते हैं।
संगठन का महत्त्व - संगठन मानव समाज के लिए महत्त्वपूर्ण है। संगठन के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया जा सकता है-
(i)संगठन के माध्यम से विभिन्न व्यक्तियों द्वारा किसी एक ही निर्धारित कार्य को पूर्ण करने के लिए आपसी सहयोग प्रदान किया जाता है। किसी बड़े कार्य को सम्पन्न करने के लिए संगठन की आवश्यकता पड़ती है। जब कोई कार्य विभिन्न व्यक्तियों द्वारा संगठित होकर किया जाता है तो वह कार्य आसानी से हो जाता है। संगठन के आधार पर कार्य करने के वक्त, समय तथा व्यक्ति की बचत हो जाती है।
(ii)जब संगठन के आधार पर व्यक्तियों द्वारा कार्य किया जा रहा है तब उनमें व्याप्त होने वाली शंका कम हो जाती है।
(iii)संगठन में प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुरूप कार्य दिया जाता हैI
(iv) संगठन के माध्यम द्वारा व्यक्ति की सामाजिक भावना का विकास हो जाता है।
(v) संगठन के द्वारा विकासात्मक कार्यों के प्रति व्यक्ति में रुचि पैदा होती है।
शारीरिक शिक्षा के संगठन के बुनियादी सिद्धांत
आधुनिक युग में शिक्षण संस्थाओं में तथा अन्य क्षेत्रों में शारीरिक शिक्षा एवं क्रीड़ा का महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है। शारीरिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए तथा समयानुसार इसे विकसित करने के लिए इस संगठन की परमावश्यकता है। संगठन के द्वारा शारीरिक शिक्षा का विकास सुचारू रूप से किया जा सकता है। शारीरिक शिक्षा के संगठन के लिए बुनियादी सिद्धांतों का अनुसरण करना बहुत ही आवश्यक है। ये बुनियादी सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
(i) मानवीय तत्वों का गठन - विद्यालय में शारीरिक शिक्षा का पूरा कार्यभार तथा अन्य अनेक कार्य केवल शारीरिक शिक्षक पर ही धकेले जाते हैं परन्तु अकेला शारीरिक शिक्षक पूरे कार्यभार के बोझ को सम्भालने में असमर्थ होता है। इसलिए अन्य शिक्षकों को मिलाकर एक संगठन बनाना चाहिए तथा सभी को कार्य बाँट देना चाहिए।
(ii) मानवीय आधार - शारीरिक शिक्षा के विद्यार्थियों का सम्पर्क सीधा शारीरिक शिक्षक के साथ होता है। विद्यार्थियों एवं खिलाड़ियों के साथ शारीरिक शिक्षक को अच्छा व्यवहार करना चाहिए ताकि उनकी रुचि कार्यों में बनी रहे। इसके लिए शारीरिक शिक्षा का संगठन मानवीय आधार पर होना चाहिए।
(iii) विचार-विमर्श - शारीरिक शिक्षा में कार्यक्रमों को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए शारीरिक शिक्षक, अध्यापक वर्ग तथा प्रधानाचार्य को आपस में विचार-विमर्श कर लेना चाहिए। विचार-विमर्श के पश्चात् क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाया जा सकता है।
(iv) योजनाओं में लचीलापन - शारीरिक शिक्षा की योजनाओं को इस तरह से तैयार करना चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन किया जा सके। सुविधाओं, उपकरणों एवं मौसम के अनुसार क्रियाओं का आयोजन किया जाता है यदि योजनाएँ जटिल हों तो उनको बदलना आसान नहीं है।
(v) उपकरणों का उचित उपयोग - शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं को आयोजित करने के लिए विभिन्न उपकरणों का उचित उपयोग करें तथा विद्यार्थियों एवं खिलाड़ियों को उनका पूरा-पूरा लाभ उठाने दें।
(vi) स्वशासन - शारीरिक शिक्षा के संगठन में विद्यार्थियों एवं खिलाड़ियों को स्वशासन के पूरे-पूरे अवसर देने चाहिए। क्रियाओं को आयोजित करने के लिए विद्यार्थियों एवं खिलाड़ियो की नियुक्ति करनी चाहिए ताकि वे उनको भली-भांति आयोजित कर सकें।
(vii) अच्छा प्रशासन - विद्यालय का प्रशासन यदि अच्छा है तो शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों को संगठित एवं संचालन करने में कोई रुकावट नहीं आती है। अच्छे प्रशासन से अच्छा संगठन बन सकता है तथा अच्छे संगठन से शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों को अच्छे तरीकों से चलाया जा सकता है।
(viii) लचीला संगठन - शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों को सुचारू रूप से चलाने के लिए संगठन कठोर नहीं होना चाहिए। समयानुसार संगठन को फिर से आयोजित किया जाना चाहिए।
(ix) सहयोग - विद्यालय में शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं को सफल बनाने के लिए एक-दूसरे का सहयोग आवश्यक है। मुख्याध्यापक, शारीरिक शिक्षक, विद्यार्थियों एवं खिलाड़ियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है।
(x) ताल-मेल - :शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों को अनेक व्यक्तियों में विभक्त किया जाता है। सभी व्यक्तियों का आपसी ताल-मेल आवश्यक है ताकि शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम अस्त-व्यस्त न हो। शारीरिक शिक्षकों, अध्यापकों एवं अन्य कर्मचारियों के आपसी ताल-मेल से शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों को सही दिशा की ओर अग्रसर किया जा सकता
(xi) अभिभावकों का सहयोग - शारीरिक शिक्षा के विद्यार्थियों एवं खिलाड़ियों के अभिभावकों का सहयोग अनिवार्य है। इनके सहयोग से शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों को अच्छे तरीकों से सुनियोजित किया जा सकता है। अभिभावकों से विद्यार्थियों एवं खिलाड़ियों की योग्यता एवं क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
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