बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मूल्यांकन क्या है? शारीरिक शिक्षा में मूल्यांकन का महत्व स्पष्ट करते हुए मूल्यांकन सम्बन्धी अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर -
मूल्यांकन
किसी भी कार्यक्रम का तब तक श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त नहीं हो सकता जब तक उसके कार्यान्वयन का अच्छी तरह निरीक्षण न किया जाय और उससे प्राप्त परिणामों का मूल्यांकन करके उसके दोष को दूर न किया जाय। शिक्षा क्षेत्र में मूल्यांकन शैक्षणिक लक्ष्यों की प्रभावशीलता को जाँचने की प्रक्रिया का नाम है। शिक्षा क्षेत्र में मूल्यांकन विविध प्रकार का होता है। इस पर चर्चा करते हुए ट्रोयोर और पेस ने कहा है- "व्यक्तिगत कार्यक्रमों का मूल्यांकन होता है। इकहरे कोर्सों, समूचे कार्यक्रमों या उनके मुख्य भागों का मूल्यांकन होता है। नियमित या सामान्य स्थितियों तथा प्रयोगात्मक स्थिति में भी मूल्यांकन होता है। सतत् रूप में चलने वाली क्रिया के रूप में भी मूल्यांकन होता है और निर्धारित समयों के पश्चात् मूल्यांकन होता है। फिर अपने आपका मूल्यांकन भी होता है और दूसरों का मूल्यांकन भी होता है।" मूल्यांकन व्यक्तिपरक हो या वस्तुनिष्ठ, किन्तु इसकी उपयोगिता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यह एक प्रकार का साधन है, जिसके द्वारा किसी भी क्षेत्र की प्रगति को निश्चित बनाया जा सकता है। हम केवल अपनी उपलब्धियों या अपने काम का ही मूल्यांकन नहीं करते, बल्कि अपने आचरण और चरित्र का ही मूल्यांकन करते हैं, ताकि उन दोषों को दूर कर सकें जो हमारी उच्चतम उपलब्धियों में बाधक सिद्ध हो सकते हैं।
शारीरिक शिक्षा में मूल्यांकन का महत्त्व - कई लोग शारीरिक शिक्षा को शिक्षा का अभिन्न अंग नहीं समझते, इसलिए उनके लिए भी शारीरिक शिक्षा का शिक्षा के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, परन्तु यह धारणा भ्रममूलक है। वस्तुतः शारीरिक शिक्षा में भी मूल्यांकन के महत्त्व को पहचानते हुए कोई ऐसी विधि विकसित करनी चाहिए जिसके द्वारा शारीरिक शिक्षा की उपलब्धियों को जाँचा जा सके। मूल्यांकन से ही, शारीरिक शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों के शारीरिक एवं मानसिक विकास को सुनिश्चित बनाया जा सकता है। मूल्यांकन परीक्षण तथा जाँच के द्वारा होता है। निर्धारित मूल्य के आधार पर परीक्षण द्वारा विद्यार्थियों की अनुक्रिया का मूल्य निश्चित किया जा सकता है। शारीरिक शिक्षा में भी विद्यार्थियों की उपलब्धियों का परीक्षण तथा मापन द्वारा मूल्यांकन किया जाता है। शैक्षणिक क्षेत्र में तो मूल्यांकन प्रायः व्यक्तिपरक दोषों का शिकार हो जाता है, परन्तु शारीरिक शिक्षा में विभिन्न क्रियाओं की कुशलता का परीक्षण होता है। इसलिए इसे मूल्यांकन की अपेक्षाकृत अधिक वस्तुनिष्ठ बताया जा सकता है।
शारीरिक शिक्षा में मूल्यांकन और मापन का निम्नलिखित महत्त्व है-
(1) मूल्यांकन और मापन शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों को शारीरिक शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करते हैं।
(2) पिछली उपलब्धियों का मूल्यांकन किये बिना नयी उपलब्धियों को लक्ष्य नहीं बनाया जा सकता है। अतः अन्य क्षेत्र के समान शारीरिक शिक्षा में भी मूल्यांकन अत्यन्त आवश्यक है।
(3) शारीरिक शिक्षा में उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जो क्रिया अपनायी गयी है, वह कितनी प्रभावोत्पादक एवं लक्ष्य प्राप्ति में कितनी सहायक है इसका वस्तुनिष्ठ निष्पक्ष तथा न्याय संगत निर्णय मापन और मूल्यांकन से ही किया जा सकता है।
(4) मूल्यांकन एवं मापन की प्रक्रिया की सहायता के बिना शिक्षण में सुधार लाना भी असम्भव है।
(5) शारीरिक शिक्षा में विद्यार्थियों का वर्गीकरण अत्यन्त आवश्यक है, परन्तु मूल्यांकन तथा मापन के बिना विद्यार्थियों को उचित वर्गों में बांटना असम्भव है। विद्यार्थियों को ऊँचे ग्रेड में ले जाना है या उसी ग्रेड में रखना है या उसे निचले ग्रेड में वापस ले जाना है- इसका निर्णय मूल्यांकन द्वारा ही हो सकता है। विद्यार्थी की शारीरिक क्षमताओं और खेल - कुशलताओं के सही मूल्यांकन के बिना उसका सही स्तर नहीं बनाया जा सकता।
( 6 ) मूल्यांकन और मापन प्रेरणा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन है, जब विद्यार्थी मूल्यांकन द्वारा अपने स्तर का ज्ञान हो जाता है, तब उसे दूसरों से मुकाबला करने के लिए अपने स्तर को विकसित करने की प्रेरणा मिलती है। विद्यार्थी हमेशा अपनी उपलब्धियों के लिए उत्सुक रहते हैं। वे हमेशा अपनी प्रगति अपने सहपाठियों की प्रगति से करते हैं और हमेशा अपने स्तर को और अधिक विकसित करने में प्रयत्नशील रहते हैं, परन्तु यह सतत प्रयत्न तभी सम्भव हो सकता है, जब मूल्यांकन द्वारा इस बात का पता चलता है कि किसने कहाँ तक प्रगति की है।
(7) विद्यार्थियों की शक्तियों और कमजोरियों को तब तक स्पष्ट नहीं किया जा सकता, जब तक उचित तकनीक द्वारा उसका जीक मूल्यांकन न किया जाय। कमजोरी का एक बार पता लग जाने से उसका उपचार सम्भव हो सकता है, परन्तु यदि कमजोरी का पता नहीं चले, तो उसे दूर कैसे किया जायेगा। अतः मूल्यांकन आवश्यक है।
( 8 ) समय - समय पर नियमित रूप से किये गये मूल्यांकन से अध्यापक अपनी शिक्षण प्रक्रिया, शिक्षण विधि तथा सामग्री के गुण-दोषों से परिचित हो जाता है। मूल्यांकन के बिना अध्यापक के आलसी और निष्क्रिय बन जाने की बहुत सम्भावना रहती है।
(9) मूल्यांकन द्वारा मापन शारीरिक शिक्षा में अनुसंधान कार्य का भी बुनियादी साधन है। इससे अनुसंधानकर्ताओं को विद्यमान ज्ञान के लिए अनुसंधान करने की ओर प्रोत्साहित करते हैं।
(10) मूल्यांकन शारीरिक शिक्षा में रुचि उत्पन्न करने का भी सशक्त साधन है।
शारीरिक शिक्षा में मूल्यांकन सम्बन्धी सुझाव - शारीरिक शिक्षा में मूल्यांकन सम्बन्धी सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) जिन योग्यताओं का परीक्षण करना है उनका सावधानी से चुनाव करना चाहिए। उन योग्यताओं को चुनना व्यर्थ है, जिनका मापन हो ही नहीं सकता। परीक्षण का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए।
(2) अध्यापक को विद्यार्थियों की योग्यताओं का परीक्षण स्थानीय स्थितियों के अनुसार करना चाहिए।
(3) मूल्यांकन अत्यधिक औपचारिक नहीं होना चाहिए। विद्यार्थियों को आत्म-परीक्षण का अवसर देना चाहिए और इसके लिए उचित मार्गदर्शन करना चाहिए।
(4) मूल्यांकन एक सहयोगात्मक क्रिया है। अतः मूल्यांकन करते समय अध्यापक को : विद्यार्थियों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए। विद्यार्थी भी अध्यापक की सहायता के बिना अपना मूल्यांकन नहीं कर सकते।
(5) फिजिकल परफॉरमेन्स टेस्ट्स लेते समय निम्नलिखित सावधानियाँ अपनायी जा सकती हैं-
(i) पार्टनर विधि - इस विधि में समूचे ग्रुप को जोड़े में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक जोड़ों में दोनों व्यक्ति बारी-बारी एक-दूसरे की जाँच करते हैं। पुश-अपस्, सिट-अपस्, स्क्वैट-थ्रस्ट्स तथा स्पष्ट-टाइप क्रियाओं में यह विधि उपयोग होती है। निश्चित समय के पश्चात् पार्टनर्स को अपना-अपना स्थान बदल लेना चाहिए, परन्तु अध्यापक को इस समूची प्रक्रिया का निरीक्षण करते रहना चाहिए, ताकि बच्चे रिकॉर्डिंग करते समय कोई गलती न करें।
(ii) विद्यार्थी के नेतृत्व में ग्रुप गठन-विधि - इस विधि में विद्यार्थियों को ग्रुप में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक ग्रुप का नेता बना दिया जाता है। ये नेता अपने-अपने ग्रुप की परीक्षा लेते हैं। परन्तु इससे अच्छे परिणाम तभी प्राप्त किये जा सकते हैं जब विद्यार्थियों का अच्छा परीक्षण प्राप्त हो और अध्यापक समूची प्रक्रिया का निरीक्षण करता रहे।
(iii) अध्यापक द्वारा परीक्षा लेना - इसमें कोई संदेह नहीं कि अध्यापक द्वारा ली गयी परीक्षा अधिक विश्वसनीय और न्यायसंगत होती है, परन्तु इसमें समय बहुत लगता है, फिर भी अधिकांश रूप से अध्यापक को परीक्षा लेनी पड़ती है। इसमें परिणामों की शुद्धता और स्पष्टता ही भावी अनुसंधान की बुनियाद होती है।
( 6 ) परीक्षा का तब तक कोई लाभ नहीं होता, जब तक उसका उचित रिकार्ड न रखा जाय। भावी तुलना और उचित विश्लेषण के लिए उचित फार्मों, चेकलिस्टों आदि को सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
(7) प्रत्येक विद्यार्थी को इस बात की सूचना दी जानी चाहिए कि उसे किस ग्रेड या श्रेणी में रखा गया है और भावी विकास के लिए उसका मार्गदर्शन किया जाना चाहिए। यह काम यथाशीघ्र किया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थी की रुचि में शिथिलता न आ जाय।
(8) परीक्षण करने से यदि अध्यापक को विद्यार्थी में कुछ दोष दिखायी देता है और वह अनुभव करता है कि उन दोषों को दूर किया जाना चाहिए, तो उसे क्रिया द्वारा यह काम शीघ्र ही करना चाहिए।
|