बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 12
सन्तुलन
(Balance)
प्रश्न- सन्तुलन की परिभाषा दीजिए, दृष्टिगत भार को उदाहरण देकर समझाइये |
अथवा
कला में सन्तुलन से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझाइये |
अथवा
सन्तुलन की व्याख्या कीजिए। उदाहरण देकर अपने उत्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
(Balance)
सन्तुलन कला सृजन का वह सिद्धान्त है जिसके अनुसार चित्रण के सभी तत्व इस प्रकार व्यवस्थित हो कि उनका भार आकर्षण समस्त चित्रतल पर समुचित रूप से केन्द्रीयकृत होने तथा इस प्रकार चित्र को असन्तुलित होने से बचाना ही इसका ध्येय है।
To be pleasing the material within a picture meeds balance, or should seem to be pleasantly reposing with in the picture limits.
कलाकार रचना करते समय सभी सिद्धान्तों का प्रयोग करता है। प्रमाण, अनुपात, सन्तुलन, बल, लय आदि को वह विशेष महत्व देता है। सन्तुलन का सम्बन्ध स्थायित्व से है। सन्तुलन मानव जीवन का आधार है यह जीवन की गतिशीलता को भी आधार प्रदान करता है। इसके अभाव में हम स्थिर नहीं रह सकते है और असन्तुलन असुरक्षा की भावना को जन्म देती है। मानव शरीर के सभी अंग मिलकर ही सन्तुलन की स्थिति उत्पन्न करते हैं, एक के भी अभाव असन्तुलन पैदा हो जाता है। हमारे जीवन की ही भाँति दृश्य कलाओं व अन्य कला रूपों में भी " सन्तुलन" एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त माना जाता है। दृश्य कलाओं में सन्तुलन भौतिक तुला के रूप में न होकर चाक्षुष - सन्तुलन के रूप में देखा जाता है।
सन्तुलन वह नियम है जिसके आधार पर चित्रभूमि के समस्त विरोधी प्रभावों को व्यवस्थित किया जाता है। जब हम किसी चित्र पर दृष्टिपात करते हैं तो हमारी दृष्टि पहले मुख्य वस्तु अथवा आकर्षण के केन्द्र पर पहुँचती है। वहाँ से वह अन्य वस्तुओं पर होती हुयी सम्पूर्ण चित्रभूमि पर घूम जाती है। मुख्य आकृति के अतिरिक्त अन्य आकृतियाँ भी हमारे मन में या तो अनुकूल प्रभाव उत्पन्न करती हैं या विरोध के द्वारा मुख्य आकृति के प्रभाव को बढाती हैं। यदि चित्र के एक भाग में हम कुछ आकृतियाँ अंकित कर देते हैं और चित्र का शेष भाग रिक्त छोड़ देते हैं, तो हमें रिक्तता अखरने लगती है। हम चाहते हैं कि उस भाग में भी कुछ अंकित हो और हमारी दृष्टि वहाँ भी रुक-रुक कर आकृतियों का रसास्वादन करती चले। चित्र के जिस भाग में आकृतियाँ अंकित होगी वह भारी और जिस भाग में रिक्तता होगी वह हल्का होगा।
दृष्टिगतभार
जब सन्तुलन के विषय में बात करते है तो भार की चर्चा आवश्यक हो जाती है। क्योंकि भार को भार के साथ ही सन्तुलित किया जा सकता है। चित्र के मुख्य आकर्षण में दृष्टि को पकड़ने की एक शक्ति होती है। जिसे भार की संज्ञा दी जा सकती है। चित्र भूमि का केन्द्र भारहीनता अथवा शून्य की स्थिति में होता है। जब यह भार चित्र - भूमि के केन्द्र के निकट होता अथवा अन्य किसी भार से सन्तुलित होता है तो चित्र सन्तुलित प्रतीत होता है। सम्मित- विन्यास (Symmetrical arrangment) में सन्तुलन आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु चित्र में जब गतिमानता प्रतिष्ठित करनी हो तो सन्तुलन अनुसम्मित ( Asymmetrical) आकृतियों द्वारा प्राप्त करना चाहिए।
उदाहरणार्थ - चित्र में केवल एक आकृति चित्र फलक पर प्रकट होती है। क्योंकि यह आकृति फलक के ठीक बीच में स्थित है अतः केन्द्र में आकृति अंकित करना अच्छा नहीं समझा जाता है।

असक्त अन्तराल का दबाव आकृति पर एकदम बराबर होने से संयोजन गतिहीन एवं अनाकर्षण हो गया है। परन्तु यदि इस आकार के बायें अथवा दायें खिसकाकर समान आकार की आकृति से सन्तुलित किया जाये तो रिक्त स्थान का दबाव दायें से बायें कम होकर नीचे की ओर सन्तुलित हो जाता है। अतः यह भी अनाकर्षक संयोजन होगा।

क्योंकि सम्मिति से एकरसता उत्पन्न होती है। परन्तु यही आकृति यदि केन्द्र से थोड़ा ऊपर खिसका दी जाये तो नीचे का रिक्त स्थान इसे सन्तुलित करेगा।

दो प्रकार से असम्मित भार ( आकृति एवं रिक्त स्थान ) एक-दूसरे को सन्तुलन करने के कारण संयोजन में क्रियाशील विश्रान्ति उत्पन्न हो गयी है।
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