बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 6
पोत
(Texture)
प्रश्न- पोत किसे कहते हैं? पोत का वर्गीकरण कीजिये।
अथवा
पोत से आप क्या समझते हैं? पोत का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
पोत के विषय में लिखिए।
अथवा
पोत का वर्णन कीजिये।
अथवा
पोत का वर्गीकरण विस्तार से कीजिए तथा उसकी प्राप्ति के विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पोत से आप क्या समझते हैं? सृजित और प्राप्त पोत में क्या अन्तर है?
उत्तर -
पोत
(Texture)
हमारे चारो ओर वातावरण में अनेक वस्तुएँ विद्यमान है। जिनके वर्ण, रूप, स्पर्श भिन्न-भिन्न होते है। प्रत्येक वस्तु में बनावट होती है और यही बनावट उस वस्तु विशेष के गुण, प्रभाव आदि को व्यक्त करती है। बनावट का अनुभव देखने और स्पर्श करने से होता है। यह बनावट कठोर, कोमल, मोटी, खुरदरी, चिकनी, दानेदार, रवादार अथवा पथरीली विभिन्न प्रकार की हो सकती है।
पाल क्ली के अनुसार - हर पदार्थ के अपने गुण होते है जैसे पत्थर है - वह ठोस और कठोर होता है। इसलिए उसे नर्म मॉस जैसा नहीं दिखाया जाना चाहिए। हर विचार के लिए उसके अनुकूल एक पदार्थ जन्य आकार होता है। इन्हीं अनुभूति को उस सतह या धरातल का गुण ही पोत या Texture कहलाता है।
"Texture is the character of the surface".
धरातल अनेक प्रकार के हो सकते है। जैसे चिकने, खुरदरे, फिसलने वाले, रवेदार, मोटे पदार्थ या वस्तु की संरचना पर आधारित संवेद ही पोत या गणना अथवा बनावट है। इस प्रकार स्पर्श संवेदन के कारण ही हम विभिन्न धरातल में भिन्नता का अनुभव कर सकते है। जैसे - साटन व मखमल में, लिनेन और रेशम, खादी और सिटक में जो अन्तर है। प्रकाश एवं वर्ण के माध्यम से गणन का अनुमान लगाया जा सकता है। गीले अथवा चिकने धरातल को अधिक प्रकाश प्रतिबिम्बित करता है। धरातल की बनावट पर प्रकाश का प्रभाव पड़ने का एक रंग होने पर भी भिन्नता दिखायी पड़ती है।
पदार्थ का एक ही रंग होने पर भी भिन्नता दिखना, कला तत्वों में पोत या बनावट का विशेष महत्व है। अतः चित्रकार को इसके प्रयोग में विशेष कुशलता प्राप्त करना अनिवार्य है। पोत या गणन का प्रयोग कलाकार अत्यन्त प्राचीन काल से करता आ रहा है। उसने भित्ति, कागज, कपड़ा ताड़पत्र लकड़ी अनेक धरातल चित्रों के लिए प्रयोग किया है और वह सदैव प्राकृतिक यथार्थ से अनुप्राणित भी रहा है। उसने अपने चित्रण कार्य के लिए मानव एवं प्रकृति निर्मित धरातलों को चित्र भूमि पर उतारने का प्रयास किया है।
आधुनिक युग में काँच, प्लास्टिक, स्पन्ज, रबड़, सेलुलोज, मैटलिक, पेपर आदि पर कार्य हो रहा है। आज कलाकार अपने चित्र में एक हीर धरातल पर काँच का चिकनापन तथा वृक्ष के तने का खुरदरापन दिखाने का प्रयास करता है। कलाकार प्राप्त धरातलीय गुणों को अनुसरण करता है। वह सभी धरातलों की कल्पना करता है।
पोत
हमारे चारों ओर वातावरण में अनेक वस्तुएँ विद्यमान हैं जिनके वर्ण, रूप, स्पर्श अलग- अलग होते हैं। प्रत्येक वस्तु में बनावट होती है और यही बनावट उस वस्तु-विशेष के गुण, प्रभाव आदि को व्यक्त करती है। बनावट का अनुभव देखने और स्पर्श करने से होता है। यह बनावट कठोर, कोमल, मोटी, खुरदुरी चिकनी, दानेदार खादार अथवा पथरीली विभिन्न प्रकार की हो सकती है।
(Classification of Texture)
सृजन की दृष्टि से पोत को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है-
1. प्राप्त धरातल (Given, available, found) - प्राप्त धरातल वे होते हैं जो प्राकृतिक अथवा मानव द्वारा निर्मित होते है वह इस वर्ग में आते है। काष्ठ फलक पत्थर आदि के धरातलों की प्राकृतिक गठन होती है और विशेष रूप से समतल करके उसे चिकना भी बनाया जा सकता है।
चित्रकार को चित्रण के लिए जो धरातल प्राप्त किया जाता है। वह प्राकृतिक और मानव निर्मित इस धरातल की जो भी बनावट होती है, चिकनी अथवा खुरदुरी वह चित्र बन जाने पर भी दिखायी देती है। जैसे यदि किसी मोटे दानेदार कागज अथवा मोटी बुनावट के कैनवास पर चित्रांकन किया जाये तो रंग की परत के नीचे से धरातल की गठन अपना प्रभाव डालती रहेगी। चित्र तल का यह गठन चिकनी, खुरदरी, चटाईदार आदि जैसी होती है वैसी ही चित्र बन जाने पर दिखायी देती है।
2. कृत्रिम धरातल (Artifical) - जिस धरातल पर चित्रांकन करते हैं। उसके गठन को अन्य प्रकार की गठन की रचना द्वारा छिपा दिया जाये तो कृत्रिम गठन (Artifical Texture) कहलायेगी। यह दो प्रकार की हो सकती है-
(i) अनुकृत (Copied) - यदि किसी स्थिर जीवन समूह में एक स्टील का बर्तन, एक लोहे की बाल्टी और एक तौलिया रखी हो तो चित्रकार तीनों वस्तुओं की धरातलीय गठन की अनुकृति का प्रयत्न करेगा। इस प्रकार के चित्र में कागज अथवा कैनवास का अपना धरातलीय प्रभाव छिप जायेगा और इन वस्तुओं का चित्रित धरातलीय प्रभाव महत्वपूर्ण हो जायेगा। वस्तुओं की गठन का अध्ययन करने के हेतु स्थिर जीवन का चित्रण सबसे अधिक सहायक है।
(ii) कल्पित अथवा नवीन धरातल ( Imarginary, new ) - विभिन्न प्रकार की रचना सामग्री के प्रयोग से कलाकार अनेक नवीन धरातलीय प्रभावों की सृष्टि कर सकता है। पतले रंगों एवं गाढ़े रंगों के धरातलीय प्रभाव में भिन्नता होती है। इसी प्रकार तूलिका से जो प्रभाव उत्पन्न होते हैं उनसे भिन्न धरातलीय गठन के प्रभाव चाकू से रंग लगाने पर होते है। कड़े अथवा मुलायम बालों की तूलिका से चित्रण करने पर धरातलीय गठन में अन्तर आ जाता है। चित्र-तल पर पानी या तेल बहा देने से विशेष प्रभावों की सृष्टि होती है।
चित्र तल कृत्रिम गठन के प्रभावों का आरम्भ काष्ठ मुद्रण से हुआ है। यदि किसी लकड़ी के पटरे पर स्याही लगाकर कागज पर छापें तो कागज पर लकड़ी की नसों के चिन्ह भी मुद्रित हो जायेंगे। इसी तरह यदि किसी खुरदरे धरातल पर कागज रखकर पेन्सिल घिसें तो कागज पर खुरदरे चिन्ह बन जायेगें। निब, ब्रुश, रुई, टूथब्रश, धागे का गुच्छा अथवा पेन्सिल आदि से भी ये प्रभाव उत्पन्न किये जा सकते है। कोलाज एवं ग्राफिक कलाओं में इस प्रकार के प्रभावों की विविधता सबसे अधिक दिखायी देती है।
चित्र की ही भाँति धरातलीय गठन के विभिन्न प्रभाव मूर्ति एवं भवन कला में भी उत्पन्न किये जा सकते हैं। मिट्टी की मूर्ति से साँचा बनाकर यदि धातु की प्रतिमा ढाली जाये तो उसमें मिट्टी के समान धरातलीय रचना के प्रभाव आ जाते है। भवन की दीवारों पर चिकने अथवा खुरदरे प्रभाव अनेक प्रकार की विधियों से उत्पन्न किये जा सकते है।
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