बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- चित्र में तान के प्रयोग एवं महत्व को समझाइये।
अथवा
चित्रकला में छाया एवं प्रकाश का क्या महत्व है?
अथवा
चित्रकला में छाया और प्रकाश से आप क्या समझते हैं?
उत्तर -
(Tone, Its Importance and Application)
तान के उपयोग से द्विआयामी तल पर त्रिआयामी गुण उत्पन्न कर सकते है। इसके द्वारा वस्तु के वास्तविक आकार व आयतन का आभास हो जाता है। वस्तु पर तान के प्रभाव को अर्ध मूंदित नेत्रों (Half closed eyes) से देखा जा सकता है क्योंकि इस प्रकार से अनावश्यक विवरण छिप जाते है और तान का उचित अध्ययन हो पाता है।
तान के प्रयोग द्वारा दृष्टिभ्रम भी उत्पन्न हो जाता है। वातावरणीय परिप्रेक्ष्यको हल करने में तान सहायक होती है।
चित्र में तान के प्रयोग के द्वारा कलाकार चित्र में सन्तुलन स्थापित कर सकता है। चित्रकार को अपनी सूझ-बूझ से नये-नये प्रयोग करते रहना चाहिए। क्योंकि बिना तान के चित्र में एकरसता रहेगी एवं विभिन्न तानों के प्रयोग के द्वारा चित्र में आकर्षण आता है। एकरसता समाप्त हो जाती है। तान के प्रभाव से ही पोत का सृजन होता है।
तान का भावात्मक पक्ष - चित्र के संयोजन में कलाकार की अपनी भावनाओं का विशेष महत्व है और उन भावनाओं के प्रकाशन में कला के मूलाधार अप्रत्याशित सहायता प्रदान करते हैं। अतः तान का स्वाभाविक महत्व बढ़ जाता है। और उसकी उपस्थिति चित्र संयोजन में निम्न प्रकार से सहायक हैं
1. सहयोग (Unity) - तान का प्रभाव दो से अधिक मान के प्रयोग होने से बढ़ जाता है। अन्यथा दो मान के प्रयोग से चित्रभूमि दो भागों में विभक्त प्रतीत होती है। अतः मध्यम मान का सहयोग चित्र भूमि में स्थिरता तथा आनन्द को उत्पन्न करता है।
2. ओज ( Uitality ) - यदि चित्र में संघर्ष तथा उत्तेजना की भावना का प्रदर्शन करना हो तो दो विरोधाभास वाली तान का ही प्रयोग करना होगा। लेकिन इसके प्रयोग में बहुत सावधानी बरतनी होगी कि कहीं वह काले व सफेद के चिन्ह (spots) मात्र ही न रह जाये।
3. प्रवाह तथा सक्रियता (Movement and Action ) - यदि चित्र में तान के विरोधाभास का कर्णवत् नियोजन किया जायें तो प्रवाह तथा सक्रियता का भाव उसी प्रकार आ जाता है जिस प्रकार कर्णवत् रेखाओं के द्वारा उत्पन्न भाव।
4. रहस्य (Mystery) - चित्र में सफेद व अधिक भाव वाली रंगतों के साथ हल्की तथा धुंधली तान तथा परछाई में अस्पष्ट तान का प्रयोग करने पर रहस्य का वातावरण बन जाता है -
इस प्रकार तान का प्रयोग करके कलाकार चित्र में भावात्मक तथा कलात्मक पक्ष को एक दिशा प्रदान कर सकता है। तान के द्वारा ही चित्र में सावभौमिक अभिव्यक्ति और विषय के प्रति आत्मसमर्पण की भावना बलवती होती हैं। तान से सुन्दरता में वृद्धि होती है।
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