बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वर्ण किसे कहते हैं? चित्रण में इनके प्रभावों को लिखिए।.
अथवा
वर्ण किसे कहते हैं? वर्णों के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वर्ण का हमारी भावनाओं से क्या सम्बन्ध है?
अथवा
वर्ण क्या है? विभिन्न रंगों के मनोवैज्ञानिक प्रमाणों से अवगत कराइये।
अथवा
उष्ण व शीतल वर्ण उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर -
वर्ण (Colours)
रंग या वर्ण का मानव जीवन में बहुत महत्व है। कला के समस्त तत्वों में सबसे अधिक संवेगात्मक तत्व रंग है। यह वैज्ञानिक तो है ही साथ ही साथ इसमें अधिक संवेगात्मक तत्व रंग हैं। यह वैज्ञानिक तो है ही साथ ही साथ इसमें व्यवस्था के तत्व भी विद्यमान है। प्रत्येक वस्तु कोई न कोई रंग लिये हुए होती है। रंग का बोध मानव अनुभव का अध्ययन का पूर्ण पक्ष है। रंग के अनुभव का माध्यम प्रकाश है। प्रकाश किरणों के द्वारा ही हम किसी वस्तु में रंग को देखते है। जो प्रकाश किसी वस्तु पर पड़ता है उसमें से कुछ तो उसी में समा जाता है और कुछ परावर्तित होकर हमारे अक्षपटल पर वापस आता है जो प्रकाश वस्तु से वापस आता है उसी में उसका वर्ण तथा अन्य गुण होते है जो दर्शक के अक्ष-पटल पर पड़ते है और वस्तुएं रंगीन दिखायी पड़ती है। अक्ष-पटल के पास ही स्थित शलाकायें (Rods) व शंकु ( Cone) नाम की सूक्ष्म तन्तु ग्रन्थियाँ (Tissue) होती है, जिनके द्वारा हम वस्तु से परावर्तित प्रकाश तरंगों से वस्तु के वर्ण का अनुभव करते है।
(Effect of Colours )
रंगों का हमारी भावनाओं व मनःस्थितियों से सीधा सम्बन्ध होता है और रंग उनको उद्वेलित करने की शक्ति रखते है। इस प्रकार रंग में गुप्त ऊर्जा (Energy) होती है। वह उनके एक अनन्त गतिशीलता प्रदान कर सकती है। अतः किसी भी चित्र में रंग भरते समय रंग के इन प्रतीकात्मक मूल्यों को ध्यान में भी रखना चाहिये। रंगों में उष्णता और शीलता का भी विशेष गुण होता है। उष्ण रंग अर्थात लाल, पीला एवं नारंगी आदि। इनका सम्बन्ध सूर्य से होता है तथा इसमें तरंग गति अधिक होती है। ये रंग चटक होते है और मन को आकर्षित करते है। इसके विपरीत जिन वर्णों का सम्बन्ध प्रकृति, हरियाली, पर्वतों जल एवं आकाश से होता है जैसे नीला, हरा आसमानी आदि। इनकी तरंग गति कम होती है तथा यह शीतलता प्रदान करने वाले होते है।
काले व सफेद रंग का कोई प्रभाव नहीं होता है। इन्हें जिस श्रेणी में प्रयोग किया जाता है। उसी प्रभाव को प्रदर्शित करते है। उष्ण की श्रेणी में उष्ण तथा शीतला की श्रेणी में आने से शीतल हो जाते है। इनका अपना कोई प्रभाव नहीं होता है। इसलिए इन्हें Nutrual Colour कहा जाता है।
वर्णों से प्राप्त होने वाला यह प्रभाव पूर्णतः स्थिति सापेक्ष है। अर्थात् यदि व्यक्ति प्रसन्न है तो उसे श्रृंगारिक भाव लिये हुए लाल, गुलाबी रंग पसन्द आयेगा। यदि वह व्यक्ति दुखी या उदास है तो उसे उदासीन रंगत वाला रंग ही पसन्द आयेगा। कलाकार मनुष्य की इन्हीं मानसिकताओं को प्रदर्शन रंगों के सामंजस्य के माध्यम से करता हैं।
रंगों के प्रभावों की दृष्टि से मूल रंग प्रसन्नता, उत्तेजना चंचलता, क्रियाशीलता तथा मिश्रित रंग उदासीनता, निष्क्रियता, मुक्ति व शान्त प्रभावों के द्योतक है। इन प्रभावों का हम निम्न प्रकार से भली-भाँति समझ सकते है -
1. लाल रंग (Red Colours ) - यह सर्वाधिक सधन और आकर्षक रंगत है। ये रंग उत्तेजना (Excitement ), प्रसन्नता तथा उल्लास (Festivity), क्रोध (Anger), संघर्ष (Strugle), उष्णता ( Heat, fire), प्रेम (Love), आवेग (Passion), आदि भावों की द्योतक है। प्रभाव की दृष्टि से यह रंग उष्ण रंगों की श्रेणी की आता है। यह सबसे शीघ्र आकर्षित करता है। (Blood) रुधिर का रंग होने के कारण उत्तेजक व प्रवर्तक है। अग्नि और सूर्य की उष्णता में यही रंग व्याप्त है। चित्र में लाल रंग का प्रयोग चिकार को सावधानी पूर्वक करना चाहियें। हमारी प्राचीन शास्त्रीय लघु चित्रण कलाओं व जन-मानस की लोक-कलाओं में इस रंग का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया गया है। यह शृगांरिक रंग होता है, अतः स्त्रियों की विशेष प्रिय होता है। मेंहदी, सिंदूर, बिन्दी आलता व चुनरी आदि का रंग लाल होता है।
2. पीला (Yellow) - यह सर्वाधिकएव प्रकाशपूर्ण रंगत माना जाता है। यह सूर्य के प्रकाश का भी प्रतीक है, ये रंगते प्रफुल्लता (Gaity), प्रकाश (Light), बुद्धिमता (Wisdom), प्रसन्नता (Chearful), समीपता (Closedness) की द्योतक है। प्रभाव की दृष्टि से ये उष्ण प्रभाव वाली रंगत है। जबकि गहरी, तटस्थ एवं हरी- मिश्रित पीली रंगतें अरुचिकर रूगणता, कायरता ईष्या व कपट का संकेत देती है ये भी गर्म प्रभाव वाला रंग है।
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