बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 4
रंग
(Colour)
प्रश्न- रंगों की परिभाषा तथा गुण बताइये।
अथवा
रंग क्या है?
अथवा
रंगों की प्रकृति एवं कार्य समझाइये |
अथवा
रंग क्या है? विभिन्न रंगों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव से अवगत कराइए।
उत्तर -
रंग क्या है?
रंग या वर्ण का मानव जीवन में बहुत महत्व है। कला के समस्त तत्वों में सबसे अधिक संवेगात्मक तत्व रंग है। यह वैज्ञानिक तो है ही साथ ही साथ इसमें अधिक संवेगात्मक तत्व रंग हैं। यह वैज्ञानिक तो है ही साथ ही साथ इसमें व्यवस्था के तत्व भी विद्यमान है। प्रत्येक वस्तु कोई न कोई रंग लिये हुए होती है। रंग का बोध मानव अनुभव का अध्ययन का पूर्ण पक्ष है। रंग के अनुभव का माध्यम प्रकाश है। प्रकाश किरणों के द्वारा ही हम किसी वस्तु में रंग को देखते है। जो प्रकाश किसी वस्तु पर पड़ता है उसमें से कुछ तो उसी में समा जाता है और कुछ परावर्तित होकर हमारे अक्षपटल पर वापस आता है जो प्रकाश वस्तु से वापस आता है उसी में उसका वर्ण तथा अन्य गुण होते है जो दर्शक के अक्ष-पटल पर पड़ते है और वस्तुएं रंगीन दिखायी पड़ती है। अक्ष-पटल के पास ही स्थित शलाकायें (Rods) व शंकु ( Cone) नाम की सूक्ष्म तन्तु ग्रन्थियाँ (Tissue) होती है, जिनके द्वारा हम वस्तु से परावर्तित प्रकाश तरंगों से वस्तु के वर्ण का अनुभव करते है।
परिभाषा - इस प्रकार हम कह सकते है कि -
"वर्ण' प्रकाश का गुण है, कोई स्थूल वस्तु नहीं है। इसका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है बल्कि 'अक्षपटल' (Ratina) द्वारा मस्तिष्क पर पड़ने वाला एक प्रभाव है।"
"Colour is the property of light rather than of bodies. It is not an entity but a sensation conveyed to the mind through media of the eys." -F.A. Teylar
रंगों की अनुभूति अथवा मनोवैज्ञानिक प्रभाव - काले व सफेद की दृश्यानुभूति रोड्स के द्वारा तथा रंगतो पीत, लाल, नीला आदि की अनुभूति कोन्स के द्वारा मस्तिष्क को होती है। धरातल पर प्रकाश की मात्रा कम या ज्यादा होने से एक रंग की ही वस्तु अलग-अलग दिखने लगती है। एक ही वस्तु बन्द कमरे में, धूप में और विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न स्थानों पर प्रकाश की मात्रा तथा वातावरण के कारण रंग व्यवस्था तथा एक ही रंगत के होते हुए भी भिन्न दिखायी देती है।
वर्ण के गुण अथवा विशेषताएँ - वर्ण के स्वरूप निर्धारण के तीन मुख्य आधार हैं, जो वर्ण के गुण कहलाते है -
1. रंगत (Hue) - वर्ण का स्वभाव रंगत है। प्रत्येक वर्ण अपनी रंगत से ही पहचाना जाता है। या तो रंगतों के अनन्त नाम और भेद हैं पर मुख्य रंगतें तीन प्रकार की हैं- पीली, लाल, नीली रंगतें द्वारा ही भिन्न रंगों में भेद कर सकते है।
यह रंग का वह गुण माना जाता है जिसकी सहायता से नीले, पीले तथा लाल के मध्यान्तर को दर्शक जान पाता है। दो-दो मुख्य रंगतों के मिश्रण से तीन द्वितीय श्रेणी की रंगते निर्मित हो जाती है। जिसे नारंगी, बैगनी और हरा कहते है। निकटवर्ती, द्वितीय श्रेणी के मिश्रण से जो रंगतों तैयार होती है उन्हें तृतीय श्रेणी में रखा जाता है।

2. मान अथवा मूल्य अथवा बल (Value) - रंगों के हल्के अथवा गहरेपन को मान या बल कहते है। यह रंग के प्ररिवर्तन से पदर्शित होता है। जैसे गहरा लाल, हल्का गुलाबी। यदि किसी रंग में सफेद रंग मिला दिया जाये तो उस रंग का मान बढ़ जाता है और यदि काले रंग को मिश्रित किया जाता है तब उस रंग का मान कम हो जाता है। इस प्रकार सफेद व काले रंग की मात्रा किसी एक रंग में मिला कर एक ही रंगत के विभिन्न मान प्राप्त किये जा सकते है।
3. घनत्व अथवा सघनता (Tntensity) - यह रंग की चमक अथवा शुद्धता का परिचायक है। जो रंग जितना शुद्ध होगा, उतना ही उसमें घनत्व होगा। अधिक घनत्व के वर्णों में चमक आ जाती है। मिश्रित रंगों में घनत्व कम हो जाता है। जिससे वर्ण धूमिल अथवा फीके भी हो जाते है। धूमिल वर्णों में सबसे कम घनत्व होता है। किसी रंग में तटस्थ अथवा धूमिल रंग मिला देने से उसकी सघनता कम कर सकते है। इस प्रकार रंग में तीन प्रधान गुण होते है - तीव्र, हल्का, लाल। तीव्र उसकी सघनता, हल्का उसका मान, लाल उसकी रंगत या रंग का सूचक होता है।
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