बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 18
तैल, एक्रेलिक, भित्ति एवं फ्रेस्को
(Oil, Acrylic, Mural and Fresco)
प्रश्न- तैल चित्रण विधि पर विस्तार से लेख लिखिए।
अथवा
तैल चित्रण पर सक्षिप्त लेख लिखिए।
अथवा
तैल रंगों में किन तेलों का इस्तेमाल होता है? उनकी विशेषताए बताइये।
अथवा
तैल रंग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
(Oil Colour)
चित्रण के माध्यमों में सबसे अधिक प्रचलित माध्यम के रूप में विश्वभर में विख्यात है। यद्यपि इसका उपयोग प्राचीन काल से हो रहा हैं इस पद्धति का चित्रण स्थायी रहता है और इसमें चमक भी रहती है। सर्वप्रथम इसका प्रचलन यूरोप में हुआ था। आजकल यह विधि सर्वव्यापी है।
चित्रभूमि - तैल चित्रण का प्रयोग अनेक प्रकार की पृष्ठभूमियों पर किया जाता हैं। भित्ती इसका सबसे प्राचीन रूप है। काष्ठफलक, हार्डबोर्ड, गैसोपट्ट, कैनवास तथा ऑयल शीट आदि पर तैल माध्यम से चित्रकारी की जाती है। इसके लिये सर्वोत्तक चित्रभूमि कैनवास है।
भित्ति या दीवार - पत्थर, ईट अथवा अन्य किसी सामग्री से निर्मित भित्ति पर पहले चूने अथवा सीमेण्ट का पलस्तर कर लेते है इसके पश्चात इस पर अस्तर लगाया जाता है। अस्तर में तैलीय पदार्थ का मिश्रण होने से चित्र अच्छा बनता है। प्रायः सफेदा और वार्निश मिलाकर यह अस्तर बनाया जाता है।
काष्ठ-फलक - काष्ठ-फलक को रेगमाल से चिकना करके वार्निश ग्लू या सरेस आदि की एक तह लगा देते है इससे काष्ठ के छिद्र बन्द हो जाते है और चित्रभूमि शोषक भी नहीं रहती। इस पर सफेदे का अस्तर बिना लगाये भी चित्रांकन किया जा सकता है।
हार्ड - बोर्ड - बोर्ड दोनों तरफ चिकने अथवा एक ओर चिकना और एक ओर खुरदरे धरातलों वाले बोर्ड उपलब्ध होते है। धरातल की शोषकता समाप्त करने के लिये इस पर वार्निश या सरेस और सफेदा की एक तह लगा दी जाती है तह सूखने पर काष्ठ- फलक की ही भाँति बोर्ड पर चित्रांकन किया जा सकता है।
कैनवास - तैल चित्रण के लिए सर्वोत्तम भूमि कैनवास है। दीर्घकाल तक रखने वाले चित्रों के लिय कैनवास का प्रयोग किया जाता है। ये किसी भी अच्छी बुनाई वाले कपड़े पर प्रयोग किया जाता है। कैनवास के कपड़े को लकड़ी के फ्रेम पर रखकर खूब खींच कर इस प्रकार तान दिया जाता है कि उस पर सिकुड़न न रहे। छोटी-छोटी कीलों को लकड़ी के फ्रेम के चारों तरफ लगाने पर कपड़े को ठोक दिया जाता है।
कैनवास तैया करने की दो विधियाँ है-
साइजिंग (Sizing) - कपड़े पर सीधे तैल रंग का प्रयोग करने से कपड़ों के तन्तु खराब हो जाते है। इस लिए लकड़ी के फ्रेम पर हल्का सा कस कर एक पतली सतह पानी में घोले हुए सरेस (Glue) की लगा देते है। जिससे कपड़े के छिद्र बन्द हो जाते है और एक हल्की सी झिल्ली कपडे के ऊपर आने से वह तैल रंगों के सीधे सम्पर्क में भी नहीं आता।
प्राइमिंग (Priming) - साइजिंग करने के बाद जिंक ऑक्साइड या लेड ऑक्साइड या फिर खाड़िया पाउडर के महीन चूर्ण को तारपीन तथा अलसी के तेल का मिश्रण तैयार करके किसी चौड़े ब्रुश से लगाया जाता है। इस प्रक्रिया को प्राइमिंग कहते हैं। साधारणतया प्राइमिंग की दो सतह पहली सूख जाने के बाद दूसरी तह लगाई जाती है। आजकल प्राइमिंग के लिए सफेदा के स्थान पर सफेद कैसीन अथवा सफेद प्लास्टिक इमल्शन पेन्ट का प्रयोग किया जाता है।
इस प्रकार साइजिंग और प्राइमिंग करने बाद कैनवास चित्रण के लिए तैयार हो जाता है।
तुलिका (Brushes) - तैल चित्रण में सामग्री के अतिरिक्त तुलिका का भी बड़ा महत्व है लम्बे हैण्डिल तथा कड़े श्वेत बालों वाली चपटी तूलिकाओं से अच्छा कार्य होता है। दूसरे प्रकार की तूलिकाएँ जिनका प्रयोग तैल चित्रण के लिए होता है ये तूलिका गोल किनारे की होती है। वे फिलबर्ट कहलाती है। ये तूलिकायें कोमल रंग मिश्रण तथा रेखा प्रभाव के लिए श्रेष्ठ होती है। रेखांकन ताथा बारीक काम के लिये भी तूलिका का प्रयोग किया जाता है। इनमें काले अथवा भूरे सैबल नामक मृग के बालों वाली तूलिका श्रेष्ठ होती है।
माध्यम - तैल चित्रण के लिए माध्यम के रूप में साधारणतया तारपीन, अलसी का तेल तथा वारनिश का प्रयोग होता है।
तारपीन का तेल - रंग-रोगन की दुकानों पर मिलने वाला अशुद्ध तारपीन का तेल चित्रण के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिये | चित्रण के लिए Refined तारपीन का तेल प्रयोग. करना चाहिये। रंगों को पतला करने के हेतु प्रायः तारपीन का तेल (रिफाइन्ड टरपेन्टाइन) थिनर या पेट्रोल का प्रयोग किया जाता हैं ये सभी द्रव्य अलसी के तेल की अपेक्षा जल्दी सूखते है। अतः इन्हे बहुत अधिक मात्रा में नहीं लगाना चाहिये अन्यथा चित्र में दरारें पड़ जाती है या रंग चटक जाते है। कुछ दिनों रखकर गाढ़ें किये हुए तारपीन के तेल का प्रयोग उत्तम रहता है।
अलसी का तेल - तैल माध्यम में प्रायः अलसी का तेल प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। यह भी रंग रोगने वालों की दुकान पर कच्चा-पक्का तथा गाढ़ा (Raw, boiled and Double boiled) मिलता है। परन्तु फिल्टर किया हुआ पारदर्शी अच्छी कम्पनी का तेल प्रयोग में लाना चाहिये। रंगों की मूल चमक एवं रंगत को बनाये रखने में यह सहायक होता है। सूखने के पश्चात इसकी रंगत का सभी रंगों पर प्रभाव पड़ता है और धीरे-धीरे चित्र में पीलापन अथवा भूरापन आने लगता है।
वार्निश - बाजार में वार्निश के कई प्रकार मिलते है। यह कुछ लाल या पीले से रंग में होती है। और प्रायः चित्र पर चौबीस घण्टे में सूख जाती है। इसके चटकने की प्रवृत्ति होती है अतः यह श्रेष्ठ माध्यम नहीं है। रंगों में इसकी मात्रा बहुत कम मिलानी चाहिये। इससे चित्र पर बहुत चमक आ जाती है। अतः ग्लेजिंग में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
चित्रण विधि - तैलं चित्रण की परम्परागत विधि में तीन बार रंग की पर्त लगायी जाती है। प्रथम बार चित्र के सभी स्थानों छाया-प्रकाश के स्थूल विभाजन के आधार पर रंग लगा दिये जाते है। दूसरी बार मध्यम मान सहित सभी रंग पुनः लगाते है। तीसरी बार विशेष विवरणों का अंकन - करते है तथा बहुत गहरे अथवा अतिप्रकाश के बल लगाते हैं। प्रथम कोट (Coats) सूख जाने के बाद द्वितीय कोट लगाया जाना चाहिये तृतीय बार में वास्तविक रंग आने लगता है। इससे चित्र में विशेष चमक आ जाती है।
सामग्री तथा रख-रखाव - तैल चित्रण की सामग्री के रख-रखाव में कुछ सावधानियाँ रखनी होती है। तेल की शीशियों तथा डिब्बों में मुँह अच्छी तरह बन्द रखने चाहिये अन्यथा उनमें रखे तेल अथवा वार्निश आदि सूख जाते है। ट्यूब का समस्त रंग सूख जाता है। तैल चित्रण में काम आने वाली तूलिका को भी कार्य करने के तुरन्त बाद तारपीन के तेल से धोकर पोंछ लेनी चाहिये और फिर उसे गरम पानी तथा साबुन से अच्छी तरह से साफ कर लेनी चाहिये। ब्रश को कभी भी बालों के सहारे खड़े नहीं रखना चाहिये न ही आवश्यकता से अधिक देर तक तेल में नहीं पड़े रहने देना चाहिये। इससे ब्रश के बालों का आकार बदल जाता है। और अच्छा चित्रण नहीं हो पाता है। रंग मिलाने वाली पैलिट को भी कार्य करने के बाद तुरन्त पोंछ देना चाहिये। तूलिका के बालों को कीड़े नष्ट न करें इसके लिए तूलिका के डिब्बे में नेप्थनीन की गोलियाँ रखनी चाहिये।
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