बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास एवं चुनौतियाँ बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास एवं चुनौतियाँसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
अन्तर्विश्वविद्यालय परिषद तथा केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद ने भी तत्कालीन विश्वविद्यालय शिक्षा की स्थिति पर विचार किया।
1948 ई. में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया गया।
इस आयोग को राधाकृष्णन आयोग भी कहा जाता है। राधाकृष्णन् ने विश्वविद्यालय शिक्षा के सुधार हेतु सुझाव दिये।
विश्वविद्यालयों को ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना चाहिए शिक्षा द्वारा छात्रों में उन गुणों को उत्पन्न करना चाहिए।
विश्वविद्यालयों को छात्रों के आध्यात्मिक जीवन विकास पर भी ध्यान दें।
विश्वविद्यालयों को सानुबन्धित पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए। विश्वविद्यालयों की शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों में बन्धुत्व की भावना का विकास होना चाहिए।
शैक्षिणिक सुधार की सफलता अध्यापकों के चरित्र तथा योग्यता पर निर्भर है।
शिक्षकों को प्राविडेन्ट फण्ड की सुविधा दी जाए।
अध्यापकों को अध्ययन अवकाश की सुविधा दी जाए।
आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षक वर्ग को चार श्रेणियों में बाँटा।
18 वर्ष से कम उम्र के बालकों को विद्यालय में प्रवेश न दिया जाए।
आयोग ने सांयकालीन कक्षाओं की व्यवस्था की।
ट्यूटोरियल कक्षाओं की व्यवस्था की जाए।
छात्र अपनी रुचि के विषयों का चयन कर सके।
सामान्य तथा विशिष्ट शिक्षा में अर्न्तसम्बन्ध स्थापित किया जाए।
विश्वविद्यालयों का प्रमुख कार्य मौखिक शोध कार्य करना है।
अनुसंधान विश्वविद्यालय में शोधकर्त्ता को शोध छात्रवृत्ति उपलब्ध होनी चाहिए।
शोध कार्य का स्तर ऊँचा करने के लिए शोध छात्रों का अखिल भारतीय स्तर पर चुनाव हो।
विज्ञान विभागों को भी अनुदान मिलना चाहिए।
भाषाओं दर्शन इतिहास एवं ललित कलाओं के अनुसंधान करने के लिए देश में प्रचुर सामग्री विद्यमान है।
शिक्षा मन्त्रालय में एक बड़ी संख्या में विज्ञान के मेधावी छात्रों के लिए फीस माफी और छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।
कृषि शिक्षा ग्रामीण विधि द्वारा दी जाए।
स्नातक सहायकों का प्रशिक्षण कृषि महाविद्यालयों तथा ग्रामीण विश्वविद्यालयों में किया जाए।
प्रशिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम में सुधार करके व्यवहारिक शिक्षक को अधिक महत्व दिया जाए।
शिक्षा सिद्धान्त का पाठ्यक्रम लचीला एवं स्थानीय वातावरण के अनुकूल हो।,
विधि स्नातक का कोर्स तीन वर्ष का होना चाहिए। विधि की व्यावहारिक शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।
अनुसंधान कार्य का पुर्नसंगठन होना चाहिए।
चिकित्सा छात्रों को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जाए।
इन्जीनियरिंग कालेजों की संख्या बढ़ाई जाए, इनके पाठ्यक्रम विस्तृत हों।
उच्चतर माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय स्तर पर छात्रों को तीन भाषाओं का अध्ययन कराया जाए।
शिक्षा मन्त्रालय और विश्वविद्यालय में परीक्षा की तैयारी वैज्ञानिक पद्धतियों का विकास करे।
प्रत्येक विश्वविद्यालय में परीक्षा सुधार के लिए एक पूर्णकालिक परिषद की स्थापना की जाए।
निबन्धात्मक व वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं को साथ-साथ प्रचलित किया जाए।
त्रिवर्षीय डिग्री कोर्स की परीक्षा, तीन वर्ष बाद एक अन्तिम परीक्षा के रूप में ली जाए।
स्नातकोत्तर तथा व्यावसायिक कक्षाओं में मौखिक परीक्षा भी होनी चाहिए।
डिग्री कोर्स के प्रथम वर्ष में संसार की महान विभूतियों की आत्मकथाएँ तथा जीवन चरित्र पढ़ाया जाए।
द्वितीय वर्ष में विश्व के सुप्रसिद्ध धर्म ग्रन्थों के वे अंश पढ़ाये जाए जो सभी धर्मों में समान हो।
तृतीय वर्ष में धर्म दर्शन की प्रमुख समस्याओं से परिचित कराया जाए।
स्त्री शिक्षा का प्रसार करने के लिए सहशिक्षात्मक विद्यालय स्थापित हो।
गृह प्रबन्ध एवं ललित कलाओं को स्थान दिया जाए।
अनिवार्य शारीरिक शिक्षा, खेलकूद तथा एन.सी.सी. की व्यवस्था की जाए, जो छात्र एन.सी.सी. का सदस्य न हो, उनके लिए दो वर्ष की शारीरिक शिक्षा अनिवार्य हो।
विश्वविद्यालय में डायरेक्ट ऑफ फिजिकल एजूकेशन नियुक्त हो।
ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे आवासीय कॉलेज स्थापित किये जाए और उसके केन्द्र में एक विश्वविद्यालय हो।
कॉलेज में (ग्रामीण) छात्रों की संख्या 300 से अधिक न हो।
सभी कॉलेजों में अलग-अलग प्राध्यापक हो लेकिन पुस्तकालय एवं प्रयोगशाला केन्द्र में हो सकते है।
अखिल भारतीय स्तर पर एक ग्रामीण शिक्षा परिषद स्थापित की जानी चाहिए। आयोग ने भारतीय शिक्षा को राष्ट्रीय शिक्षा बनाने का प्रयत्न किया है।
शिक्षा राष्ट्र को स्वस्थ नेतृत्व प्रदान करे तथा राष्ट्रीय विकास में सहायक हो।
आयोग की रिपोर्ट में उच्च शिक्षा की समस्या पर विचार किया गया है।
विश्वविद्यालय राष्ट्र के लिए प्रत्येक क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान करने का प्रजनन क्षेत्र है।
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को अतिरिक्त अनुदान दिया जाए।
आगामी पाँच वर्ष की अवधि के अन्तर्गत विश्वविद्यालय शिक्षा के विकास के लिए लगभग 10 करोड़ की अतिरिक्त वार्षिक धनराशि सरकार को प्रदान करनी चाहिए।
अनुदान आवण्टन हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग गठित किया जाना चाहिए।
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