बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 7
भारत में जनजातीय समुदाय
(Tribal Communities in India)
जनजातीय - साधारणतया जनजातीय का तात्पर्य एक ऐसे मानव समूह से लिया जाता है जिसके रीति-रिवाज और रहन-सहन बहुत आदिम प्रकृति के हों। वास्तविकता यह है कि सुनी सुनायी बातों के आधार पर हम एक जनजातीय समुदाय को जितना आदिम और असभ्य समझ लेते हैं व्यवहारिक रूप से स्थिति इससे बहुत भिन्न है। जनजातियों को 'आदिवासी' तथा 'वन्य जाति' शब्द से भी सम्बोधित किया जाता है क्योंकि वे मानव के आदिकालीन संस्कृति की प्रतिनिधि हैं। डॉ. घुरिये ने जनजातीय को 'पिछड़े हिन्दू' नाम से सम्बोधित किया है। विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी कुछ प्रमुख परिभाषाओं की सहायता से जनजाति, आदिवासी अथवा अन्य वन्य जाति की प्रकृति को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।
डी. एन. मजूमदार ने - जनजाति को परिभाषित करते हुए लिखा है, "जनजाति परिवारों का एक ऐसा समूह है जिसका एक सामान्य नाम होता है। जिसके सदस्य एक निश्चित क्षेत्र में निवास करते हैं। एक सामान्य भाषा बोलते हैं तथा विवाह और व्यवसाय के विषय में व नियमों का पालन करते हैं।"
गिलिन और गिलिन के अनुसार - "जनजाति उन विभिन्न समूहों से बनने वाला एक बड़ा समुदाय है जो एक सामान्य क्षेत्र में निवास करता है। एक सामान्य भाषा का प्रयोग करता है तथा जिसकी एक सामान्य संस्कृति होती है।"
राल्फ प्रिडिंगटन के शब्दों में - "जनजाति को व्यक्तियों के एक ऐसे समुदाय के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है, जो एक समान भाषा बोलता हो, समान भू-भाग में निवास करता हो तथा जिसकी संस्कृति में समानता पायी जाती हैं।'
इन सभी परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि जनजाति एक अन्तर्विवाही और क्षेत्रीय समूह है जिसके सदस्य भू-भाग, भाषा संस्कृति, धार्मिक विश्वासों और व्यवसाय की समानता के कारण अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं।
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