बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 25
संघीय एवं एकात्मक प्रणाली
(Federal and Unitary System)
संविधान वेत्ताओं ने विश्व के संविधानों को मुख्यतया दो भागों में विभाजित किया है- परिसंघीय संविधान तथा एकात्मक संविधान। एकात्मक संविधान वह होता है जिसके अन्तर्गत राज्य की सम्पूर्ण शक्तियां एवं प्राधिकार एक ही सरकार में निहित होती है और जो मुख्यतः केन्द्रीय सरकार होती है। शासन की इस प्रणाली में प्रान्तों अथवा राज्य सरकारों को केन्द्र के अधीन रहना पड़ता है। एकात्मक संविधान के विपरीत परिसंघात्मक संविधान वह होता है जिसमें शक्तियों का केन्द्र तथा राज्यों के बीच स्पष्ट विभाजन होता है तथा दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्र होती है, किसी के अधीन नहीं। प्रो० ह्रीयर के अनुसार संघीय संविधान में संघ तथा राज्य इकाइयों के बीच शक्तियों का विभाजन रहता हैं और यह विभाजन ऐसी रीति से किया जाता हैं कि प्रत्येक अपने क्षेत्र में पूर्णतया स्वतन्त्र हो और एक दूसरे का सहयोगी भी हो न कि एक दूसरे के अधीन। संविधान विदों ने अमेरिकी संविधान को सर्वसम्मति से परिसंघात्मक संविधान माना है। परिसंघीय संविधान के पांच आवश्यक लक्षण होते हैं- शक्तियों का विभाजन, संविधान की सर्वोपरिता, लिखित संविधान, संविधान की अपरिवर्तनशीलता तथा न्याय पालिका का प्राधिकार। यद्यपि भारतीय संविधान में ये पांचों तत्व पाये जाते हैं फिर प्रो० ह्वीयर तथा जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को परिसंघीय संविधान नहीं माना है। राज्यपालों की केन्द्र द्वारा नियुक्ति, राज्यसूची के विषयों पर संसद की विधि बनाने की शक्ति, नये राज्यों के नामों तथा सीमाओं में परिवर्तन करने की केन्द्र की शक्ति तथा आपात उपबंधों जैसे भारतीय संविधान के प्रावधानों को उन्होंने संघीय लक्षणों के विपरीत माना है क्योंकि ये प्रावधान राज्यों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करके उसके प्राधिकार को कम कर देते है। यद्यपि प्रो० ह्वीयर ने यह स्वीकार किया है संविधान में संघीय सिद्धांतों के कुछ अपवाद हो सकते हैं परन्तु यदि संविधान में संघीय तत्वों की प्रधानता है तो वह संविधान संघीय ही माना जायेगा। भारतीय संविधान के उपरोक्त प्रावधान देश की विशेष परिस्थितियों तथा समस्याओं को देखते हुए बनाये गये हैं और उनका प्रभाव भी संविधान के ढांचे पर विशेष नहीं पड़ता फिर भी इन विद्वानों ने भारत के संविधान को संघीय नहीं माना है जबकि भारतीय संविधान निर्माताओं के अनुसार भारतीय संविधान उतना ही संघीय है जितना कि अमेरिकी संविधान। वस्तुतः यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि संघीय संविधान कोई एक सेट पैटर्न नहीं है। यह वास्तव में प्रत्येक देश की स्थिति पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार की संघीय पद्धति अपनाये। वस्तुतः एक देश का परिसंघवाद दूसरे देश के लिए भी उपयोगी हो यह आवश्यक नहीं है। भारतीय परिस्थितियों में भारत ने परिसंघवाद का एक नया रूप अपनाया जो देश की एकता तथा अखण्डता को सर्वोपरि महत्व देता है न कि सैद्धांतिक परिसंघवाद को। इस प्रकार भारत का संविधान न तो विशुद्ध परिसंघीय है और न ही विशुद्ध एकात्मक बल्कि यह दोनों ही अच्छाइयों का मिश्रण है जो राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता को सर्वोपरि महत्व देता. है।
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- उत्तरमाला
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- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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