बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
महत्त्वपूर्ण तथ्य
लास्की के अनुसार - “अधिकार सामाजिक जीवन की वे शर्तें हैं जिनके बिना कोई मनुष्य अपनी सर्वोत्तम अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकता।"
बार्कर - "अधिकार व्यक्ति की क्षमताओं के अधिकतम संभव विकास के लिए आवश्यक बाध्य दशायें हैं। "
बोसांके - “अधिकार वह मांग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है। " बाइल्ड - “अधिकार कुछ विशेष कार्यों को करने के लिए स्वतंत्रता की विवेकपूर्ण मांग है।" बार्कर "अधिकार न्याय की उस सामान्य व्यवस्था का परिणाम है जिस पर राज्य और उसके कानून निर्धारित है।"
आस्टिन - “एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों में कुछ विशेष प्रकार का कार्य कराने की क्षमता का नाम अधिकार है।"
मैकम - “अधिकार सामाजिक हित की कुछ आवश्यक परिस्थितियाँ हैं जो नागरिकों के सच्चे विकास के लिए आवश्यक है।"
प्राकृतिक अधिकार के समर्थकों में हाब्स, लाक, रूसो, मिल्टन, वाल्टेयर, ग्रोसियस, डूकर, टामसपेन, ब्लैकस्टोन आदि विचारकों के नाम उल्लेखनीय हैं।
हाब्स ने जीवन के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना जिसका हनन राज्य का पशुता सम्पन्न शासक भी नहीं कर सकता।
प्राकृतिक अधिकारों के सम्बंध में लाक का नाम विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। उसने जीवन, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति के अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार माना है।
हाब्स के अनुसार, "प्रत्येक वस्तु पर यहाँ तक की एक दूसरे के शरीर पर भी प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है।"
गिलक्राइस्ट के अनुसार अधिकार की उत्पत्ति इसी तथ्य से हुई की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
अधिकारों का कानूनी सिद्धान्त प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त के विपरीत है।
इस सिद्धान्त के अनुसार अधिकार राज्य की सृष्टि है तथा राज्य द्वारा संशोधित किये जा सकते हैं। अतः अधिकार कानून की उपज है अगर कानून नहीं तो अधिकार भी नहीं।
कानूनी अधिकार के समर्थक हैं— बेन्थम, आस्टिन, हालैण्ड, सालमण्ड और रिची।
कानूनी अधिकार के समर्थन में बेन्थम का कहना है कि अधिकार विधि और केवल विधि के फल हैं। बिना विधि कोई अधिकार नहीं, विधि के पूर्व कोई अधिकार नहीं।
अधिकारों का ऐतिहासिक सिद्धान्त प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया के रूप में उभरा।
ऐतिहासिक सिद्धान्त के अनुसार अधिकार इतिहास की देन है।
इतिहास से तात्पर्य रीति-रिवाज तथा प्रथाओं से है। रीतिरिवाज तथा प्रथायें स्थिर होने पर अधिकार का रूप ले लेती हैं।
एडमण्ड बर्क ऐतिहासिक सिद्धान्त के प्रबल समर्थक थे।
ऐतिहासिक सिद्धान्त के अन्य समर्थकों में मैकाइवर, सैग्विन, सरहेनरीमैन, वर्गेस, विगल और ब्रेडले के नाम उल्लेखनीय हैं।
मैकाइवर के शब्दों में अधिकारों की सृष्टि राज्य नहीं करता वरन वह तो समाज में प्रचलित मान्यताओं को कानूनी जामा पहनाकर अधिकार के रूप में घोषित कर देता है।
अधिकारों के समाज कल्याणकारी सिद्धान्त के प्रमुख समर्थकों में— बेन्थम, मिल, लास्की, रास्कोपाउन्ड के नाम उल्लेखनीय हैं।
इस सिद्धान्त के अनुसार अधिकार से अभिप्राय उन विधाओं से है जो समाज में रहते हुए अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख की प्राप्ति में सहायक हों।
लास्की के अनुसार, अधिकारों का औचित्य उसकी उपयोगिता के अनुसार आंका जाना चाहिए।
अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त अधिकारों को नैतिक रूप में देखता है।
ग्रीन के अनुसार - “अधिकार मनुष्य के आंतरिक विकास की वाह्य अवस्थाएं हैं। "
कांट के अनुसार - “अधिकार विवेकपूर्ण जीवन के विकास के लिए आवश्यक वाह्य परिस्थितियाँ हैं।”
ग्रीन - “यह अत्यंत आवश्यक है कि मनुष्य के कार्य नैतिक दृष्टि से पूर्ण हों। "
अधिकारों के मार्क्सवाद सिद्धान्त का मूल मंत्र वर्ग विभाजित समाज को बदलकर वर्गविहीन समाज की स्थापना करना था।
मार्क्स के अनुसार - "जब तक कि मानव की भौतिक अवस्था की पूर्ति नहीं हो जाती अधिकारों का जन्म नहीं हो सकता। "
अधिकार एवं कर्तव्य एक दूसरे के पहलू हैं, एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे का कर्त्तव्य है।
वाइल्ड के शब्दों में 'अधिकारों का महत्व केवल कर्तव्यों के संसार में है।'
बेनी प्रसाद वर्मा के अनुसार, अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
लास्की ने अधिकार और कर्तव्य में तीन प्रकार के संबंध बताये हैं।
हाब हाउस के शब्दों में, 'अधिकार तथा कर्त्तव्य सामाजिक कल्याण की दशाएं हैं।
महात्मा गांधी के शब्दों में, “कर्त्तव्य का पालन कीजिए, अधिकार स्वतः ही आप को मिल जायेंगे।
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