बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
महत्त्वपूर्ण तथ्य
प्लेटो ने न्याय का दार्शनिक और नैतिक अर्थ प्रदान किया है।
प्लेटो ने न्याय को सद्गुण माना है।
प्लेटो के अनुसार - न्याय का अर्थ है "प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्रात्य उपलब्ध हो।"
रेफेल के अनुसार - "न्याय का विचार समाज की सामान्य व्यवस्था से सम्बद्ध है।"
बार्कर का मत है कि "हम मानवीय सम्बंधों के साथ-साथ शब्दों के संश्लेषण तथा एक मूल्य को दूसरे मूल्य के साथ जोड़ने में न्याय का प्रयोग कर सकते हैं।
परंपरावादी सिद्धान्त के अनुसार, - “मित्र के प्रति श्रेष्ठ और शत्रु के प्रति घृणित व्यवहार करना भी न्याय हैं।
क्रांतिकारी सिद्धान्त के अनुसार, “न्याय शक्तिशाली का हित है।”
क्रान्तिकारी सिद्धान्त का प्रतिपादन थ्रेसीमेकस ने किया।
व्यवहारवादी सिद्धान्त का प्रतिपादन ग्लाइकन ने किया।
प्लेटो के अनुसार मानवीय आत्मा के तीन तत्व हैं— विवेक, साहस और तृष्णा।
प्लेटो ने अपनी पुस्तक 'रिपब्लिक' में न्याय की नैतिक संकल्पना प्रस्तुत की है।
प्लेटो के अनुसार न्याय का उद्देश्य सामाजिक सहयोग और सामंजस्य है। उसने न्याय की स्थापना के उद्देश्य से नागरिकों के कर्तव्यों पर बल दिया है।
अरस्तू ने न्याय के तीन स्वरूपों की चर्चा की है— वितरणात्मक न्याय, सुधारात्मक न्याय तथा विनिमयात्मक न्याय।
वितरणात्मक न्याय से तात्पर्य है जो प्रत्येक व्यक्ति को राजनीतिक समुदायों में उसका उचित स्थान दिलाता है। इस वितरण का सम्बन्ध नगर राज्य के नागरिकों में राजनीतिक और अन्य पदों के वितरण से है।
सुधारात्मक न्याय एक नागरिक के दूसरे नागरिक के साथ सम्बंध स्थापित करते हुए सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करना है।
विनिमयात्मक न्याय किसी वस्तु या सेवा के बदले में दी जाने वाली वस्तु या सेवा के अनुपात को निश्चित करती है।
तात्विक न्याय के प्रतिपादकों में अरस्तू का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है।
अरस्तु के अनुसार - न्याय का आधार साम्य की भावना है। न्याय समानता के नियमों के परिपालन में निहित है।
मध्य युग में न्याय को गुण और तत्व (Virtue and substance) के रूप में देखा गया।
मध्य युग में पादरियों ने न्याय को (अध्यात्मिक विषय) बनाकर चर्च के साथ जोड़ दिया और यह विचार व्यक्त किया कि चर्च से अलग होकर राज्य में न्याय संभव नहीं है।
हाब्स ने न्याय का आधार राजसत्ता की इच्छा को माना है।
लॉक तथा रूसो ने न्याय को स्वतंत्रता और समानता का मिश्रण माना है।
काण्ट ने न्याय कौ नैतिकता से अलग माना है। कांट के अनुसार न्याय का संबंध मनुष्य के वाह्य अवसर में है जबकि नैतिकता का संबंध मनुष्य के आंतरिक व्यवहार से है।.
आधुनिक युग में डेविड ह्यरुम ने यह मत व्यक्त किया है कि न्याय का अर्थ विषयों का पालन है।
राजनीतिक न्याय की धारणा का विकास मुख्य रूप से पश्चिमी उदारवादी लोकतांत्रिक परंपरा के कारण हुआ।
राजनीतिक न्याय का संबंध शासक और शासितों के आपसी सम्बंधों से है।
सार्वजनिक नीतियां निर्धारित करते समय प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेने का अवसर और अधिकार प्राप्त है।
सार्वजनिक शक्ति का प्रयोग सबके हित को ध्यान में रखकर किया जाय वही राजनीतिक न्याय होता है। मताधिकार राजनीतिक न्याय का आधार है।
राल्स ने निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में सभी की समान भागीदारी को अत्यधिक महत्व दिया है।
समाज के प्रत्येक सदस्य को किसी भेदभाव के बिना विकास का समान अवसर प्राप्त हो वही सामाजिक न्याय है।
सामाजिक न्याय शब्दावली से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तीनों तरह के न्याय का बोध होता है।
मैकाइवर ने धार्मिक और आंतरिक नैतिकता से सम्बंधित विषयों को राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त रखने की मांग की है।
सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य मानव द्वारा मानव के किये जाने वाले शोषण को समाप्त करना है।
सेन्ट साइमन ने “प्रत्येक से अपनी क्षमतानुसार और प्रत्येक को अपने कार्य के अनुसार तथा बेबफ और लुईल्ला ने 'प्रत्येक से अपनी क्षमतानुसार प्रत्येक को अपनी आवश्यकतानुसार का नारा दिया।
वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स ने सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था को ही अन्याय का परिणाम माना।
लास्की ने आर्थिक विषमता को दूर करने का समर्थन करने के साथ ही अनर्जित आय के उपयोग का भी विरोध किया है।
'समान कार्य के लिए समान वेतन' संसाधनों तथा शक्ति के केन्द्रीकरण के स्थान पर विकेन्द्रीकरण' राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ आर्थिक लोकतंत्र न्याय के महत्त्वपूर्ण अंग है।
वैधानिक सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक हाब्स, बेन्थम, आस्टिन एवं डायसी है।
मार्क्सवादियों ने न्याय की अवधारणा को वर्ग संघर्ष और प्रभुत्व से सम्बद्ध माना।
बुर्जुआ व्यवस्था में न्याय शोषकों की समाप्ति में सहायक है।
प्रक्रियात्मक न्याय का स्वरूप कानूनी औपचारिक न्याय के समरूप है तथा यह धारणा उदारवाद साथ निकट से जुड़ी हुई है।
प्रक्रियात्मक न्याय के प्रवर्तक में हर्बर्ट स्पेन्सर, एफ0ए0 हेयक, मिल्टन फीडमैन और राबर्ट नाजिक के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
नाजिक ने कल्याणकारी राज्य का तीव्र विरोध किया है।
नाजिक ने सम्पत्ति के अधिकार को सर्वप्रमुख मानव अधिकार मानते हुए, यह तर्क दिया कि राज्य का मुख्य कार्य सम्पत्ति की रक्षा करना है।
नाजिक ने पुलिस राज्य का समर्थन किया है। नाजिक के अनुसार, राज्य को अपने नागरिकों की सम्पत्ति के पुनर्वितरण की शक्ति प्राप्त नहीं है।
वितरण न्याय के समर्थकों का मानना है कि लाभ का वितरण न्यायपूर्ण होना चाहिए।
जान राल्स ने वितरणात्मक न्याय का समर्थन किया। राल्स ने प्रक्रियात्मक न्याय और सामाजिक न्याय को मिलाकर न्याय के व्यापक सिद्धान्त की स्थापना का प्रयत्न किया।
"A Theory of Justice" नामक कृति में राल्स ने यह मत प्रतिपादित किया कि न्याय की अवधारणा औचित्य पर आधारित है न कि उपयोगिता पर।
डी०डी० रफील के अनुसार “सामाजिक न्याय शब्द प्रायः सुधारकों के मुँह से सुनने को मिलता है। जो लोग व्यवस्था से संतुष्ट हैं, वे इस शब्द को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। "
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- अध्याय -1 राजनीति विज्ञान : परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 राजनीतिक विज्ञान की अध्ययन की विधियाँ
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन के उपागम
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 आधुनिक दृष्टिकोण : व्यवहारवाद एवं उत्तर-व्यवहारवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 आधुनिकतावाद एवं उत्तर-आधुनिकतावाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 राज्य : प्रकृति, तत्व एवं उत्पत्ति के सिद्धांत
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 राज्य के सिद्धान्त
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 सम्प्रभुता : अद्वैतवाद व बहुलवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 कानून : परिभाषा, स्रोत एवं वर्गीकरण
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 दण्ड
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 12 स्वतंत्रता
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 13 समानता
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 14 न्याय
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 15 शक्ति, प्रभाव, सत्ता तथा वैधता या औचित्यपूर्णता
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 16 अधिकार एवं कर्त्तव्य
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 17 राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक सहभागिता, राजनीतिक विकास एवं राजनीतिक आधुनिकीकरण
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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- अध्याय - 18 उपनिवेशवाद एवं नव-उपनिवेशवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
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- अध्याय - 19 राष्ट्रवाद व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
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- अध्याय - 20 वैश्वीकरण
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- अध्याय - 21 मानवाधिकार
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- अध्याय - 22 नारीवाद
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- अध्याय - 23 संसदीय प्रणाली
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- अध्याय - 24 राष्ट्रपति प्रणाली
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- अध्याय - 25 संघीय एवं एकात्मक प्रणाली
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- अध्याय - 26 राजनीतिक दल
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- अध्याय - 27 दबाव समूह
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- अध्याय - 28 सरकार के अंग : कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
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- अध्याय - 29 संविधान, संविधानवाद, लोकतन्त्र एवं अधिनायकवाद .
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- अध्याय - 30 लोकमत एवं सामाजिक न्याय
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- अध्याय - 31 धर्मनिरपेक्षता एवं विकेन्द्रीकरण
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- अध्याय - 32 प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त
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