बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
महत्त्वपूर्ण तथ्य
उदारवाद एक विचारधारा है, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करती है।
उदारवाद के अंग्रेजी पर्याय लिब्रलिज्म की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के 'लिबर' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ स्वतंत्रता है। अतः उदारवाद की संकल्पना स्वतंत्रता के विचार के साथ निकटता से जुड़ी है।
उदारवाद की विशेषता निम्न है-
यह मनुष्य की विवेकशीलता पर विश्वास करता है।
यह जीवन, स्वतंत्रता एवं सम्पत्ति के प्राकृतिक अधिकारों को मान्यता देता है।
यह सहमति पर आधारित राजनीतिक स्वतन्त्रता का समर्थक है।
यह राज्य के विरुद्ध प्रतिरोध का अधिकार देता है।
यह कानून के शासन में विश्वास करता है।
यह व्यक्ति को साध्य एवं राज्य को साधन मानता है।
राज्य को कृत्रिम मानता है।
यह मनुष्य पर राज्य के न्यूनतम प्रतिबन्ध का समर्थन करता है।
उदारवाद का घर इंग्लैण्ड रहा है।
उदारवाद का उदय अनुदारवाद का विरोध करने वाली एक प्रवृत्ति के रूप में हुआ।
उदारवाद का आरम्भ 16वीं - 17वीं शताब्दी में हो गया था।
उदारवाद की परम्परा में जॉन लाक को उदारवाद का जनक तथा 1688 की क्रांति के उदारवाद की विजय का प्रतीक माना जाता है।
नकारात्मक उदारवाद के समर्थक रहे हैं - हाब्स, लाक, बेन्थम, जे0एम0मिल, एडम स्मिथ, स्पेन्सर मुख्य है।
उदारवाद यूरोप की दो महान क्रांतियों-सांस्कृतिक पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलन की उपज है।
लास्की के शब्दों में उदारवाद एक बौद्धिक क्रांति थी जिसका मुख्य ध्येय सम्पत्ति के स्वामियों की रक्षा करना था।
जे0एस0 मिल ने सर्वप्रथम उदारवाद की सांगोपांग एवं व्यावहारिक विवेचना की।
"सिद्धान्त और व्यवहार में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, न्यायिक संरक्षण और संवैधानिक राज्य का मिश्रण ही उदारवाद है— सेबाइन।
“एक राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उदारवाद दो पृथक-पृथक तथ्यों का मिश्रण है इसमें से एक लोकतंत्र है दूसरा व्यक्तिगत — “ मैकगर्वन।
प्लेटो के अनुसार - "राज्य मानव आत्मा की वाह्य छाया की भांति है।" प्लेटो के अनुसार, व्यक्ति की स्वतंत्रता, उसका विकास, उसके अधिकार सभी कुछ राज्य पर निर्भर है।
प्लेटो कहता है कि “राज्य किसी पत्थर या लकड़ी से नहीं उत्पन्न हुआ है, अपितु वह मानवों के मस्तिष्क अथवा बुद्धि की उपज है। "
प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने मनुष्य को सामाजिक प्राणी माना है। अरस्तू भी प्लेटों की भांति राज्य को एक सावयविक इकाई मानते हैं।
अरस्तू के अनुसार, "राज्य आत्म पूरित जीवन है। केवल राज्य में ही व्यक्ति श्रेष्ठ जीवन व्यतीत कर सकता है तथा अपने जीवन के पूर्ण लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
आदर्शवादियों के अनुसार राज्य एक कृत्रिम संस्था नहीं है। वस्तुतः राज्य एक प्राकृतिक संवास है।
राज्य एक नैतिक संस्था है जो व्यक्ति की आत्मोन्नति के लिए आवश्यक है।
हीगल जैसे उग्र आदर्शवादियों ने राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना है, परन्तु ग्रीन जैसे आदर्शवादी राज्य को साध्य के रूप में नहीं देखते।
ग्रीन जैसे उदार आदर्शवादी मानते हैं कि राज्य बलपूर्वक अपनी आकांक्षा पालन नहीं करा सकता है क्योंकि ग्रीन कहता है कि- " राज्य का आधार शक्ति नहीं इच्छा है।"
हीगल जैसे उम्र आदर्शवादी "राज्य को पृथ्वी पर ईश्वर की यात्रा मानते हैं। उनके अनुसार नागरिकों को हमेशा राज्यांक्षा का पालन करना चाहिए। "
समाज एक स्वाभाविक संस्था है, परन्तु राज्य और उसमें जुड़ी हुई संस्थायें ऐसे कृत्रिम उपकरण हैं, जो मनुष्य का उत्पीड़न करते हुए यह मांग करते हैं कि यह सामाजिक परिवर्तन सहर्ष स्वाभाविक ढंग से, प्रत्यक्ष और जनसमूह से प्रेरित होना चाहिए।
शुद्ध अराजकतावादी यह मानते हैं कि राजनीतिक दल, मजदूर संघ और सादे संगठित आंदोलन किसी न किसी तरह सत्ता की अभिव्यक्ति हैं।
अराजकतावादी विचारधारा के आरंभिक संकेत तो प्राचीन रोम के स्टोइक दर्शन में ढूढ़े जा सकते हैं, परन्तु इस दिशा में व्यवस्थित चिंतन औद्योगिक क्रान्ति के बाद ही शुरू हुआ।
जेनो की विचारधारा में भी अराजकतावाद के तत्व पाये जाते हैं। अपनी विचारधारा में जेनो ने ऐसे समाज की कल्पना की है जिसमें राज्य का अस्तित्व न हो तथा स्वतंत्रता व समानता ही जिसमें व्यवस्था के मुख्य स्तम्भ हों।
इसके विकास में विलियम गाडविन, पी0जे0पूंदो कार्ल मार्क्स, मिखाइल बूकूनिन, पीटर क्रापाटकिन, जार्ज सोरेल, लिपो टालस्टाय महात्मा गांधी और राबर्ट नाजेक के विचारों का विशेष महत्व है।
आधुनिक काल में विलियम गाडविन प्रथम विचारक था जिसके विचारों को अराजकतावादी कहा जा सकता है। गाडविन ने अपनी पुस्तक 'एंकवायरी कंसर्निंग पोलिटिकल जस्टिस' (राजनीतिक- न्याय का अन्वेषण) में सरकार और समाज में अंतर किया है।
गाडविन तथा आधुनिक विचारकों के विचारों में अंतर है। गाडविन के अनुसार आर्थिक शोषण के अंत के पश्चात भी कुछ समय तक राज्य की आवश्यकता बनी रहती है जबकि आधुनिक अराजकतावादी राज्य को तुरंत समाप्त कर देने के पक्ष में हैं।
अराजकतावाद को सुव्यवस्थित विचारधारा के रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय (प्रोंधा ) को है। प्रोंधा के अनुसार, मनुष्य पर मनुष्य के द्वारा शासन प्रत्येक रूप में अत्याचार है। समाज का सबसे अधिक निर्दोष व उच्चतम रूप सुव्यवस्थित तथा अराजकता के समन्वय में ही हो सकता है। प्रोंधा व्यक्तिगत सम्पत्ति का जमकर विरोध करता है। प्रोंधा के अनुसार "पूंजीपतियों की सम्पत्ति चोरी का फल है। "
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- अध्याय -1 राजनीति विज्ञान : परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 राजनीतिक विज्ञान की अध्ययन की विधियाँ
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- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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- अध्याय - 3 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध
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- अध्याय - 4 राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन के उपागम
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- अध्याय - 5 आधुनिक दृष्टिकोण : व्यवहारवाद एवं उत्तर-व्यवहारवाद
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- अध्याय - 6 आधुनिकतावाद एवं उत्तर-आधुनिकतावाद
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- अध्याय - 7 राज्य : प्रकृति, तत्व एवं उत्पत्ति के सिद्धांत
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- अध्याय - 8 राज्य के सिद्धान्त
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- अध्याय - 9 सम्प्रभुता : अद्वैतवाद व बहुलवाद
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- अध्याय - 10 कानून : परिभाषा, स्रोत एवं वर्गीकरण
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- अध्याय - 11 दण्ड
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- अध्याय - 12 स्वतंत्रता
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- अध्याय - 13 समानता
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- अध्याय - 14 न्याय
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- अध्याय - 15 शक्ति, प्रभाव, सत्ता तथा वैधता या औचित्यपूर्णता
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- अध्याय - 16 अधिकार एवं कर्त्तव्य
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- अध्याय - 17 राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक सहभागिता, राजनीतिक विकास एवं राजनीतिक आधुनिकीकरण
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- अध्याय - 18 उपनिवेशवाद एवं नव-उपनिवेशवाद
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- अध्याय - 19 राष्ट्रवाद व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
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- अध्याय - 28 सरकार के अंग : कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका
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- अध्याय - 29 संविधान, संविधानवाद, लोकतन्त्र एवं अधिनायकवाद .
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- अध्याय - 30 लोकमत एवं सामाजिक न्याय
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- अध्याय - 31 धर्मनिरपेक्षता एवं विकेन्द्रीकरण
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- अध्याय - 32 प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त
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