बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मिनेण्डर कौन था? उसकी विजयों तथा उपलब्धियों पर चर्चा कीजिए।
अथवा
मिनेण्डर की विजयों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
मिनेण्डर हिन्द-यवन शासक
मिनेण्डर इण्डो-यूनानी शासक था। वह यूथीडेमस परिवार का डेमेट्रियस के बाद का प्रतापी शासक था। सम्भवतः वह डेमेट्रियस का छोटा भाई था और उसी के साथ उसने भारतीय युद्धों में भाग लिया था। पेरीप्लस ने सिकन्दर के बाद अपोलोडोटस और मिनाण्डर का अधिकार बताया है जिनका उल्लेख जस्टिन भी करता है।
विजयें - इण्डो-यूनानी शासकों में मिनेण्डर का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। अनेक क्लासिकल लेखकों, जैसे स्ट्रेबो, जस्टिन, प्लूटार्क आदि ने मिनेण्डर की गणना महान यवन विजेताओं में की है। मिनेण्डर का एक लेख शिवकोट (बजौर-घाटी) की धातुगर्भ मंजूषा के ऊपर उत्कीर्ण मिला है। इससे ज्ञात होता है कि बजौर क्षेत्र (पेशावर) उसके अधिकार में था। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित रेह (Reh) नामक स्थान से एक अन्य लेख मिला है, जिसे जी. आर. शर्मा ने मिनेण्डर का मानते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि उसने इस भाग पर भी विजय प्राप्त की थी। परन्तु कुछ विद्वानों ने इस विजय को संदिग्ध माना है। पेरीप्लस के अनुसार मिनेण्डर के सिक्के भड़ौंच में चलते थे। स्ट्रेबो लिखता है कि उसने सिकन्दर से भी अधिक प्रदेश जीते थे तथा हाइफेनिस (व्यास) नदी पारकर इसेमस ( कालिन्दी अथवा यमुना नदी जिसे प्राचीन साहित्य में इक्षुमती कहा गया है) तक पहुँच गया था। मथुरा से उसके तथा उसके पुत्र स्ट्रेटो प्रथम के सिक्के मिले हैं। इस प्रकार मिनेण्डर एक विस्तृत साम्राज्य का शासक बना जो झेलम से मथुरा तक विस्तृत था तथा शाकल (स्यालकोट) उसकी राजधानी थी।
विद्वानों का मत है कि मिनेण्डर ने यूक्रेटाइडीज के वंशजों से भी कुछ प्रदेशों को छीन लिया था। इस बात की जानकारी काबुल घाटी तथा सिंघ क्षेत्र से प्राप्त उसकी मुद्राओं से होती है। उसके सिक्कों का विस्तार गुजरात, काठियावाड़ तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था।
साम्राज्य विस्तार - मिनेण्डर एक विशाल साम्राज्य का स्वामी था जिसकी जानकारी उसके सिक्कों के व्यापक चलन के आधार पर होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर उसके अधिकार की पुष्टि उसके तथा उसके पुत्र स्ट्रेबो की मथुरा से मिली मुद्राओं से हो जाती है। यहाँ इसके अधिकार को टालमी भी स्वीकार करता है। पश्चिम की ओर स्वात तथा बजौर से मिनेण्डर के दो मृद्भाण्ड मिले हैं तथा सिनकोट से भी उसका एक पात्र - लेख मिला है जिससे उसकी इस राज्य पर भी अधिकार की पुष्टि होती है। आगे बढ़कर पेरोपेनिसेडाई से मिनेण्डर की ताम्र मुद्राओं की प्राप्ति से इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि जब यूक्रेटाइडीज पार्थियन शासक तथा शकों के आक्रमण से त्रस्त था, उसी समय मिनेण्डर ने पेरोपेनिसेडाई तथा गांधार प्रदेश उससे छीन लिया होगा। यदि कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह मान भी लिया जाये कि पेरोपेनिसेडाई में मिनेण्डर के सिक्के व्यापारियों द्वारा पहुँचाए गये होंगे तो भी गांधार पर उसका अधिकार सिद्ध होता है। उसकी कुछ मुद्राओं पर ऊँट का अंकन होने से लगता हैं कि राजपूताना उसके अधिकार में था। इसी प्रकार हरियाणा तथा बुन्देलखण्ड से भी मिनेण्डर के सिक्कों की प्राप्ति से वहाँ उसके अधिकार की पुष्टि होती है। सिनकोट स्टीएटाइट धातु पात्र पर मिनेण्डर का एक लेख खरोष्ठी में बजौर क्षेत्र से प्राप्त हुआ है। दियकमित्र और फिर उसके पुत्र विजयमित्र द्वारा धातु पात्र में रखे हुए बुद्ध के अवशेष प्राप्त हुए हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार वे मिनेण्डर के सामन्त थे। परन्तु हाल ही में विजयमित्र के पुत्र इन्द्रवर्मन के सिक्कों की प्राप्ति से यह शक शासक एजेज द्वितीय का सामन्त माना गया है। सिनकोट अभिलेख से पेशावर और ऊपरी काबुल घाटी पर भी उसके अधिकार का आभास होता है।
इस प्रकार मिनेण्डर का राज्य अफगानिस्तान का मध्य भाग, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, सिन्ध, राजपूताना, काठियावाड़ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला था। अतः उत्तर-पश्चिम में कपिशा से पश्चिम में सिन्धु नदी तक दक्षिण-पश्चिम में वेरीगाजा और दक्षिण में बुन्देलखण्ड तक तथा पूरब पश्चिम में मथुरा तक उसका राज्य था।
अन्य उपलब्धियाँ - मिनेण्डर के प्राप्त चाँदी के सिक्कों के मुख भाग पर मुकुट धारण किया हुआ उसका सिर तथा यूनानी विरुद के साथ उसका नाम तथा पृष्ठ भाग पर खरोष्ठी लिपि में 'महरजस पतरस मिलिद्रस' उत्कीर्ण मिलता है। उसके ताबें के सिक्कों पर यूनानी तथा प्राकृत भाषा में लेख, जैसे- महरजस ध्री मिकस मिनिद्रस, बेसिलियस सोटेरस मिनिन्द्राय बेसिलियम डिकेआय, मिनिन्द्राय, आदि लेख अंकित मिलते हैं। 'ध्रमिकस' उपाधि से सिद्ध होता है कि वह एक धर्मनिष्ठ बौद्ध था। बौद्ध जनश्रुति में मिनेण्डर को बौद्ध धर्म का संरक्षक बताया गया है। क्षेमेन्द्रकृत अवदानकल्पलता से पता चलता है कि मिनेण्डर ने अनेक स्तूपों का निर्माण करवाया था।
इस प्रकार मिनेण्डर एक शक्तिशाली एवं न्यायप्रिय शासक था। एक साधारण स्थिति से ऊपर उठकर अपनी योग्यता के बल पर वह एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन बैठा। मिलिन्दपण्हो के अनुसार उसे इतिहास, पुराण, ज्योतिष, न्याय-वैशेषिक दर्शन, तर्कशास्त्र, सांख्य, योग्य, संगीत, गणित, काव्य आदि विभिन्न विद्याओं का अच्छा ज्ञान था। वह एक विदेशी शासक अवश्य था परन्तु उसने भारतीय धर्म को अपनाया तथा उसमें अपने लिये अत्यन्त आदरणीय स्थान बना लिया। निःसन्देह भारत में मिनेण्डर का स्थान सिकन्दर की अपेक्षा कहीं अधिक ऊँचा है।
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