बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर-
अशोक का उत्तरदायित्व
मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए कुछ विद्वानों ने अशोक की नीतियों को ही मुख्य रूप से उत्तरदायी बताया है। ऐसे विद्वानों में सर्वप्रमुख हैं महामहोपाध्याय पं. हर प्रसाद शास्त्री। शास्त्री महोदय ने अशोक की अहिंसा की नीति को ब्राह्मण विरोधी बताया है जिसके फलस्वरूप अन्त में चलकर पुष्यमित्र के नेतृत्व में ब्राह्मणों का विद्रोह हुआ तथा मौर्य वंश की समाप्ति हुई।
इस सम्बन्ध में पं. हरि प्रसाद शास्त्री ने अपने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये हैं-
1. अशोक द्वारा पशुबलि पर रोक लगाना ब्राह्मणों पर खुला आक्रमण था। चूँकि वे ही यज्ञ करते थे और इस रूप में मनुष्यों तथा देवताओं के बीच मध्यस्थता करते थे। अतः अशोक के इस कार्य से उनकी शक्ति तथा सम्मान दोनों को भारी धक्का लगा।
2. अपने रूपनाथ के लघु शिलालेख में अशोक यह बताता है कि उसने 'भू-देवो' (ब्राह्मणों) को मिथ्या साबित कर दिया। यह कथन स्पष्टतः ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा के विनाश की सूचना देता है।
3. धम्म महामात्रों ने ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा को नष्ट कर दिया।
4. अपने पाँचवें स्तम्भ लेख में अशोक हमें बताता है कि उसने न्याय प्रशासन के क्षेत्र में 'दण्ड समता' एवं 'व्यवहार समता का सिद्धान्त लागू किया। इससे ब्राह्मणों को दण्ड से मुक्ति का जो विशेषाधिकार मिला था वह समाप्त हो गया।
रायचौधरी ने उपर्युक्त विचारों का इस प्रकार खण्डन किया है-
1. अशोक की अहिंसा की नीति ब्राह्मणों के विरुद्ध नहीं थी। ब्राह्मण ग्रन्थों में ही अहिंसा का विधान मिलता है। उपनिषद् पशुबलि तथा हिंसा का विरोध करते हैं और यज्ञों की निन्दा करते हैं। मुण्डकोपनिषद् में स्पष्टतः कहा गया है कि 'यज्ञ टूटी नौकाओं के सदृश तथा उनमें होने वाले 18 कर्म तुक्ष हैं। जो मूढ़ लोग इन्हें श्रेय मानकर इनकी प्रशंसा करते हैं वे बारम्बार जरामृत्यु को प्राप्त होते हैं।
2. रूपनाथ के लघु शिलालेख की पदावली का अर्थ शास्त्री जी ने गलत लगाया है। सिलवां लेवी ने इसका दूसरा अर्थ बताया है जो व्याकरण की दृष्टि से अधिक तर्कसंगत है। इनके अनुसार इस शिलालेख के पूरे वाक्य का अर्थ है "भारतवासी जो पहले देवताओं से अलग थे अब देवताओं से (अपने उन्नत नैतिक चरित्र के कारण) मिल गये। अतः इस वाक्य में कुछ भी ब्राह्मण विरोधी नहीं है।
3. अनेक धम्म महामात्र ब्राह्मणों के कल्याण के लिए भी नियुक्त किये गये थे। अशोक अपने अभिलेखों में बराम्बार यह बलपूर्वक कहता है कि ब्राह्मणों के साथ धम्म महामात्रों की नियुक्ति से ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची होगी।
परन्तु यदि उपर्युक्त मतों की आलोचनात्मक समीक्षा की जाये तो वे पूर्णतया निराधार प्रतीत होंगे। अशोक यदि इतना अहिंसावादी तथा शान्तिवादी होता जितना की रायचौधरी ने समझा है तो उसने अपने राज्य में मृत्युदण्ड बन्द करा दिया होता। हम यह भी जानते हैं कि उसने कलिंग को स्वतंत्र नहीं किया और न ही उसने इस युद्ध के ऊपर कलिंग राज्य में पश्चाताप किया। एक व्यावहारिक शासक की भाँति उसने इस विजय को स्वीकार किया और इस विषय पर किसी भी प्रकार की नैतिक आशंका नहीं हुई। उसके अभिलेख इस मत के साक्षी हैं कि उसकी सैनिक शक्ति सुदृढ़ थी। अपने तेरहवें शिलालेख में वह सीमान्त प्रदेशों के लोगों तथा जंगली जनजातियों को स्पष्ट चेतावनी देता है कि "जो गलती किये हैं, सम्राट उन्हें क्षमा करने का इच्छुक है, परन्तु जो केवल क्षम्य है वहीं क्षमा किया जा सकता है।' जंगली जनजाति के लोगों को अपनी सैनिक शक्ति की याद दिलाते हुए वह कहता है कि "यदि वे अपराध नहीं छोड़ेंगे तो उनकी हत्या करा दी जायेगी।' इन उल्लेखों से रायचौधरी के मंत का खण्डन हो जाता है। पुनः इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि अशोक ने सैनिकों की संख्या कम कर दी हो अथवा सेना को धर्म के प्रचार में लगा दिया हो। यदि वह अपने सैनिकों को धर्म प्रचार के काम में लगाता तो इसका उल्लेख गर्व के साथ वह अपने अभिलेखों में अवश्य करता। अतः ऐसा लगता है कि अशोक ने इसलिए शान्तिवादी नीति का अनुकरण किया कि उसके साम्राज्य की बाहरी सीमायें पूर्णतया सुरक्षित थीं और देश के भीतर भी शान्ति एवं व्यवस्था विद्यमान थी। केवल एक सबल प्रशासन के अधीन ही इतना विशाल साम्राज्य इतने अधिक दिनों तक व्यवस्थित ढंग से रखा जा सकता था। यदि अशोक सैनिक निरंकुशवाद की नीति अपनाता तो भी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ होता और उस समय उसके आलोचक सैनिकवाद की आलोचना कर उसे ही साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी बताते जैसाकि सिकन्दर, नेपोलियन, हिटलर, मुसोलिनी आदि सैनिकवाद के उच्च पुरोहितों के विरुद्ध आरोपित किया जाता है। अशोक के उत्तराधिकारी अयोग्य तथा निर्बल हुए तो इसमें अशोक का क्या दोष था?
इस विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि हम अशोक को किसी भी प्रकार से मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। मौर्य साम्राज्य का पतन स्वाभाविक कारणों का परिणाम था जिसका उत्तरदायित्व अशोक के मत्थे मढ़न उचित नहीं होगा। राधाकुमुद मुकर्जी का कथन वस्तुतः सत्य है कि "यदि अशोक अपने पिता और पितामह की रक्त तथा लौह की नीति का अनुसरण करता तो कभी न कभी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ होता। परन्तु सभ्य संसार के एक बड़े भाग पर भारतीय संस्कृति का जो नैतिक आधिपत्य कायम हुआ, उसके लिए अशोक ही मुख्य कारण था। शताब्दियों तक उसकी ख्याति का स्मारक बना रहा और लगभग दो हजार से भी अधिक वर्षों की समाप्ति के बाद भी यह पूर्णतया लुप्त नहीं हुआ।"
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