बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मौखरी कौन थे? मौखरी राजाओं के जीवन तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मौखरी वंश एक प्राचीन वंश प्रतीत होता है। प्रसिद्ध वैयाकरण कय्यट और वामन दोनों ने अपने लेखों में 'मौखर्या' शब्द का प्रयोग किया है। पतंजलि ने अपने भाष्य में 'मुखर' शब्द का प्रयोग किया है। अतः विद्वानों का निष्कर्ष है कि मौखरी जाति निश्चित रूप से पतंजलि के समय तक (ई. पू. द्वितीय शताब्दी) एक महत्वपूर्ण जाति समझी जाती थी। पतंजलि का महाभाष्य पाणिनि की अष्टाध्यायी टीका पर आधारित है। कन्नौज के मौखरी वंश के विषय में जानकारी असीरगढ़ (बरार) राजमुद्रा से मिलती है। यह सबसे प्रमुख वंश था। इसमें निम्नलिखित राजा हुए-
(1) महाराज हरिवर्मा
(2). महाराज आदित्यवर्मा
(3). महाराज ईश्वरवर्मा
(4) महाराजाधिराज ईशानवर्मा
(5) महाराजाधिराज सर्ववर्मा
(6). महाराजाधिराज अवन्तिवर्मा तथा
(7). महाराजाधिराज ग्रहवर्मा।
कान्यकुब्ज या कन्नौज के मौखरी वंश का प्रथम शासक हरिवर्मा था। असीरगढ़ राजमुद्रा में इसे- 'महाराज' कहा गया है। हरिवर्मा ही कन्नौज के मौखरी वंश का संस्थापक था। इनकी पत्नी भट्टारिका देवी जयस्वामिनी थी। हरहा अभिलेख में इसे 'ज्वालामुख' कहा गया है। हर्षचरित में अवन्तिवर्मा की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि "उसके काल में मौखरी वंश समस्त राजाओं का सिरमौर एवं भगवान शिव के चरण चिन्हों की भाँति समस्त संसार में पूजित था।' मुद्राराक्षस से पता चलता है कि उसने म्लेच्छों हूणों को जीता था। उसी के समय में थानेश्वर के पुष्यभूति वंश से मौखरी वंश का वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हुआ जो तत्कालीन इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। अवन्तिवर्मा के पुत्र ग्रहवर्मा के विषय में हर्षचरित में कहा गया है कि वह 'पृथ्वी पर सूर्य की भाँति' सुशोभित था। मगध के ऊपर उसका आधिपत्य समाप्त हो गया तथा वह केवल कन्नौज का शासक था। हर्षचरित से ज्ञात होता है कि उसका विवाह राज्यश्री के साथ हुआ था, जिससे वे दोनों राज्य परस्पर नजदीक आ गए। इसके विरुद्ध में मालवा के उत्तर- गुप्त वंशीय नरेश देवगुप्त तथा बंगाल के गौड़ वंशीय नरेश शशांक के बीच दूसरी सन्धि स्थापित की। हर्षचरित से पता चलता है कि जिस समय थानेश्वर में प्रभात वर्मन की मृत्यु हुई उसी समय देवगुप्त ने कन्नौज पर आक्रमण करके ग्रहवर्मा को मार डाला तथा राज्यश्री को कन्नौज के बन्दीगृह में डाल दिया। उसकी मुत्यु के साथ मौखरी साम्राज्य का अन्त हो गया तथा हर्ष ने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानान्तरित कर ली। मौखरी शिव के उपासक थे!
मौखरि राजाओं की उपलब्धियाँ - मौखरि के प्रथम तीन राजाओं हरिवर्मा, आदित्यवर्मा और ईश्वर वर्मा सामन्त शासक थे। इन्हें एकमात्र 'महाराज' कहा गया है। सम्भवतः ये गुप्त सम्राटों के अधीन थे, लेकिन धीरे-धीरे मौखरि वंश की शक्ति बढ़ती जा रही थी तथा गुप्तों की शक्ति का ह्रास हो रहा था। ईश्वर वर्मा तथा ईशानवर्मा के सफल युद्धों ने मौखरि वंश की शक्ति का विस्तार किया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। पहले तीसरे राजा ईश्वरवर्मा तथा अन्त में चौथे मौखरि नरेश ईशानवर्मा ने गुप्त साम्राज्य के विरुद्ध अपनी स्वतन्त्रता घोषित की। इसमें ईशानवर्मा को 'महाराजाधिराज' कहा गया है। इसने अपने नाम भी मुद्राएँ भी चलाई। इस प्रकार मौखरि राजाओं की उपलब्धियाँ बहुत है जिनमें इन्होंने अपने साम्राज्य की विस्तार बहुत दूर तक के प्रदेशों तक किया। वर्तमान उत्तर प्रदेश मौखरि साम्राज्य के अन्तर्गत था। इनके अभिलेख जौनपुर तथा हरहा ( बाराबंकी) में भी मिले हैं। इनकी मुद्राएँ मिटौरा, अयोध्या एवं अहिच्छत्र में मिली हैं किसी समय मगध भी मौखरि साम्राज्य का अंग रहा था। यहाँ से देववरनाक अभिलेख मिला है। अखमूथन महोदय पंजाब को भी मौखरि साम्राज्य का अंग मानते है। हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में प्राप्त निर्मन्द अभिलेख से इसका पता चलता है। मध्य प्रदेश के असीरगढ से भी मौखरि नरेश सर्ववर्मा भी राजमुद्रा मिली है। मौखरि साम्राज्य की पश्चिमी सीमा वर्धन वंश के थानेश्वर राज्य को छूती थी। मौखरि साम्राज्य की राजधानी कान्यकुब्ज थी। यही कारण है कि मालवराज ने ग्रहवर्मा को मारकर कुशस्थल (कान्यकुब्ज) कर अधिकार कर लिया था।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से प्राप्त निर्मन्द अभिलेख है। इसमें एक महाराज सर्ववर्मा का उल्लेख है। अखमूधन महोदय सर्ववर्मा को मौखरी नरेश सर्ववर्मा मानते है परन्तु यह समीकरण असंगत है क्योंकि निर्मन्द अभिलेख का सर्ववर्मा एक सामन्त शासक प्रतीत होता है, जबकि महाराजाधिराज सर्ववर्मा मौखरी एक प्रभुसत्ता धारी सम्राट था। पुनः हिमाचल प्रदेश और कान्यकुब्ज (कन्नौज) के मौखरी राज्य के बीच थानेश्वर का स्वतन्त्र राज्य था, अतः मौखरी हिमाचल प्रदेश तक अपना विस्तार कैसे कर सकते थे? मध्य प्रदेश के असीरगढ में मौखरी नरेश सर्ववर्मा की एक राजमुद्रा मिली है। इसी आधार पर अखमूधन ने मध्य प्रदेश को मौखरी साम्राज्य में माना है परन्तु एकमात्र राजमुद्रा के आधार पर इतना बड़ा निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। यह राजमुद्रा किसी यात्री अथवा व्यापारी के माध्यम से भी मध्यप्रदेश में पहुँच सकती थी।
बाण के हर्षचरित से स्पष्ट हो जाता है कि मौखरि साम्राज्य की राजधानी कान्यकुब्ज अथवा कन्नौज थी। इसे महोदय नगर भी कहा जाता है। यही कारण है कि मालवराज ने ग्रहवर्मा को मारकर कुशस्थल (कान्यकुब्ज) पर अधिकार कर लिया था और उसकी पत्नी राज्यश्री को कान्यकुब्ज के कारागार में बन्द कर दिया था। विन्ध्याचल में अपनी बहन को ढूंढ़कर उसके साथ हर्ष कान्यकुब्ज ही वापस आयां था। मौखरियों के अभिलेख हरहा ( बाराबंकी) और जौनपुर में तथा सिक्के अहिच्छय और भिटौरा में प्राप्त हुए है। ये सभी स्थान कान्यकुब्ज के समीप हैं। इन प्रमाणों से कान्यकुब्ज मौखरियाँ की राजधानी प्रतीत होता है। हरहा अभिलेख उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हरहा नामक ग्राम से प्राप्त हुआ है। इसे मौखरि नरेश ईशानवर्मा के पुत्र सूर्यवर्मा ने उत्कीर्ण कराया था। इसकी तिथि 611 विक्रम संवत् (554 ई.) है। जौनपुर अभिलेख में ईश्वर वर्मा की कृतियों का वर्णन है। असीरगढ़ की ताम्र- राजमुद्रा लेख मध्यप्रदेश में बुरहानपुर खण्डवा मार्ग पर असीरगढ़ के दुर्ग से प्राप्त हुई है। यह राजमुद्रा सर्वसेन ने निर्मित कराई थी। भिटौरा मुद्राभाण्ड उत्तर-प्रदेश के फैजाबाद जिले में भिटौरा नामक ग्राम में मौखरि मुद्राओं का एक भाण्ड मिला है। इस प्रकार उपर्युक्त समस्त वर्णित विषय मौखरि राजाओं की उपलब्धियाँ हैं।
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