बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 2
महाजनपद एवं गणतन्त्र का विकास : मगध साम्राज्य का उत्थान हर्यक राजवंश,
शिशुनाग राजवंश, नन्द राजवंश, इरानीयन एवं यूनानी आक्रमण का प्रभाव)
[Development of Mahajanapadas and Republic: Rise of Magadha Empire
(Haryak Denasty, Shishunaga Dynasty, Nanda Dynasty, Iranian and
Influence of Greek Invasion)]
प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
बिम्बिसार से चन्द्रगुप्त मौर्य तक एक साम्राज्य के रूप में मगध के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
अथवा
C 600 ई.पू. में मगध के उत्कर्ष का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
मगध साम्राज्य पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
अथवा
नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बिम्बिसार के हर्यक वंश के होने के पक्ष में तर्क दीजिए।
2. बिम्बिसार की प्रशासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिए।
3. अजातशत्रु कौन था? व्याख्या कीजिए।
अथवा
अजातशत्रु के विषय में आप क्या जानते हैं?
अथवा
अजातशत्रु कौन था?
4. अजातशत्रु पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
5. बिम्बिसार पर एक लेख लिखिए।
6. बिम्बिसार कौन था? वर्णन कीजिए।
7. महापद्मनन्द का वर्णन कीजिए।
8. नन्द वंश पर एक लेख लिखिये।
अथवा
नन्द के इतिहास की जानकारी दीजिये?
9. नन्द वंश के पतन के कारण लिखिए।
10. नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन का उल्लेख कीजिए।
11. महापद्मनन्द की उपलब्धियों का विवरण दीजिए।
12. शनैः-शनैः किस प्रकार मगध साम्राज्य का उत्कर्ष हुआ? स्पष्ट कीजिए।
13. मगध के क्रमशः उत्तरोत्तर विकास को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मगध का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। इसका महत्व महाभारत काल से रहा है। यह स्थान राजनीतिक एवं धार्मिक क्रान्तियों के प्रमुख केन्द्र के रूप में रहा हैं। यहाँ पर गुप्त और मौर्य जैसे शक्तिशाली वंशों का उद्भव और पराभव हुआ। मगध राज्य वर्तमान बिहार राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित पटना और गया जिलों में है। इसके उत्तर-पश्चिम मे गंगा और सोन नदियाँ हैं तथा दक्षिण में विन्ध्य और उत्तर में चम्पा नदी है। प्राचीनकाल में इसे कुशाग्रपुर राजगृह, मगधपुर आदि नाम से पुकारते थे।
ऋग्वेद और अथर्ववेद से भी मगध की प्राचीनता पर प्रकाश पड़ता है इसके साथ ही साथ यजुर्वेद . में मगध के भाटों का उल्लेख प्राप्त होता है।
डा. एच. सी. राय चौधरी के अनुसार - "मगध का प्राचीन राजवंशीय इतिहास अन्धकारपूर्ण है। कहीं-कहीं योद्धा और कहीं राजनीतिज्ञ दिखाई दे जाते हैं जिनमें से कुछ तो बिल्कुल काल्पनिक थे और कुछ वास्तविक नेता प्रतीत होते हैं। वास्तविक इतिहास हर्यक वंशी बिम्बिसार से आरम्भ होता है।"
(Founder Dynasty of Magadh Empire)
मगध साम्राज्य के संस्थापक बृहद्रथ वंश के विषय में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित साक्ष्य से होती है-
महाभारत एवं पुराण - इन दोनों ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि मगध साम्राज्य की स्थापना बृहद्रथ ने की थी जो जरासन्ध का पिता और वसु का पुत्र था। रामायण के अनुसार गिरिब्रज की स्थापना वसुमति ने स्वयं की थी। यद्यपि पुराणों में मगध वंश के राजाओं की जो सूची दी गई है वह कालक्रम तथा राज्यों के क्रम से ठीक नहीं है। परन्तु पुराणों से यह बात प्रमाणित हो जाती है कि पुणीक पुत्र प्रद्योत के अवन्ति के राजा बनने पर मगध से बृहद्रथ वंश समाप्त हो गया था। इसके समाप्त होने की अन्तिम तिथि छठी शताब्दी ईसा पूर्व है।
बिम्बिसार
(Bimbisar)
मगध सम्राट बिम्बिसार के वंश के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इसके विषय में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-
1. शिशुनाग वंश - पुराणों में शिशुनाग का उल्लेख प्राप्त होता है। इसी ने शिशुनाग वंश की स्थापना की और इसके उत्तराधिकारियों में काकवर्ण, नन्दीवर्धन, क्षामोजस, बिम्बिसार, अजातशत्रु, दर्शक नन्दीवर्धन तथा महानन्दन थे। मत्स्य पुराण के आधार पर इस वंश के राजाओं ने 360 वर्ष राज्य किया।
आलोचना - डा. वी. ए. स्मिथ के अनुसार - पुराणों में दिये गये शिशुनाग वंश के कालक्रम को स्वीकार करते हैं लेकिन पुराणों में दी गई राज्यकाल की अवधि को स्वीकार नहीं करते।"
अश्वघोष के अनुसार - "बिम्बिसार हर्यक वंश का था, शिशुनाग वंश का नहीं।"
2. हर्यक वंश - ईसा के पूर्व पंचवी और छठी शताब्दी में मगध का सिंहासन पुराण प्रसिद्ध शिशुनाग राजाओं के अधिकार में था। पुराणों की सूची के अनुसार वह पहला राजा था। बौद्ध लेखकों ने राजाओं की सूची में शिशुनाग का नाम बहुत पीछे रखा है और वे उस वंश को दो हिस्सों में बांटते हैं। प्रमाण के अनुसार केवल दूसरा हिस्सा जिसमें शिशुनाग और उसके पुत्र तथा पौत्र हैं वही शिशुनाग वंश है।
हर्यक वंश के विषय में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं-
1. महावंश के अनुसार शिशुनाग स्वयं एक वंश का संस्थापक था और वह बिम्बिसार के बाद पदारूढ़ हुआ।
2. पुराणों के अनुसार शिशुनाग प्रद्योतों की कीर्ति को समाप्त करेगा। प्रद्योत बिम्बिसार का समकालीन था। उक्त विचार यदि वायुपुराण का ठीक है तो शिशुनाग का काल चण्ड प्रद्योत के बाद होगा क्योंकि प्रद्योत और बिम्बिसार समकालीन थे।
3. बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने वैशाली की सर्वप्रथम विजय की थी। पाली के उद्धरणों के अनुसार शिशुनाग ने वैशाली को अपनी राजधानी बनाया था। अतः स्पष्ट है कि शिशुनाग के पूर्व अजातशत्रु हुआ। इस प्रकार बिम्बिसार के पहले शिशुनाग नहीं हो सकता।
4. शिशुनाग द्वारा राजगृह छोड़ देने पर उसकी अवनति प्रारम्भ हो गयी थी। यह उल्लेख पाली ग्रन्थ महालंकारवत्थु से प्राप्त होता है। जैसाकि विदित है कि बिम्बिसार और अजातशत्रु के समय में राजगृह अपनी उन्नति के शिखर पर थी। अतः शिशुनाग इन दोनों के पूर्व नहीं हो सकता।
5. शिशुनाग के पुत्र कालशोक ने पाटलिपुत्र की स्थापना की थी परन्तु यह राजा मगध सम्राट बिम्बिसार के पूर्व का था तो उस समय पाटलिपुत्र का कोई निशान नहीं था जबकि पाटलिपुत्र की स्थापना बिम्बिसार के वंशज दाथिन ने की थी।
अतः स्पष्ट है कि बिम्बिसार हर्यक वंश का था न कि शिशुनाग वंश का। डा. आर. के. मुकर्जी भी बिम्बिसार को हर्यक वंश का सिद्ध करते हैं।
डा. भण्डारकर के अनुसार - "बिम्बिसार प्रारम्भ में एक सेनापति था परन्तु उसने वज्जियों को परास्त करके अपना एक स्वतन्त्र राज्य तथा नवीन वंश की स्थापना की थी। परन्तु यह कथन समीचीन नहीं प्रतीत होता है क्योंकि महावंश के अनुसार बिम्बिसार के पिता ने 15 वर्ष की आयु में उसका राजतिलक किया था।
टर्नर तथा एन. एल. के अनुसार - बिम्बिसार के पिता का नाम पट्टीय था। तिब्बत वासी महापद्म और पुराण उसे क्षेनजित तथा साम्रोज कहते थे। परन्तु वास्तविक नाम के अतिरिक्त एक अन्य नाम श्रोणिक भी था।
वैवाहिक सम्बन्ध - बिम्बिसार एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसने वैवाहिक सन्धियों और विजय की अपनी नीति से मगध के मान और यश को बढाया। उसकी एक रानी कौशल के राजा प्रसेनजित की बहिन थी। दहेज के रूप में उसे काशी में एक गाँव मिला था। इस गाँव से एक लाख रुपये की आमदनी प्राप्त होती थी।
बिम्बिसार ने लिच्छवि राजा चेटक की पुत्री चेल्लना से विवाह किया था। उससे मित्रता करने के फलस्वरूप उसे नेपाल तक साम्राज्य विस्तार करने का अवसर प्राप्त हुआ।
मगध सम्राट बिम्बिसार द्वारा मद्रदेश के राजा की राजकुमारी खेमा से विवाह का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ महाबग्ध के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियां थीं।
बिम्बिसार ने इस कूटनीतिक विवाहों के द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया जिसके फलस्वरूप उसे अपना साम्राज्य स्थापित करने में अपार सहायता मिली।
बिम्बिसार के पुत्र - जैन लेखकों के अनुसार बिम्बिसार के पुत्र थे- अजातशत्रु हल्ल, वेहतल, क्षभय, नदीसेन और वेधकुमार। पहले तीन पुत्र चेटक की पुत्री चेल्लना के और चौथा लिच्छिवि आम्रपाली का पुत्र था। बौद्ध ग्रन्थों के लेखक बिम्बिसार के पुत्रों में अजातशत्रु, विमल कोण्डना, बेहल्ल और शीलवर्त को बतलाते हैं।
बिम्बिसार को अपने-अपने पुत्रों से पर्याप्त कष्ट प्राप्त होने का भी उल्लेख प्राप्त होता होता है।
साम्राज्य विस्तार - बिम्बिसार ने अपना साम्राज्य काफी दूर तक बढ़ाया था।
तक्षशिला - तत्कालीन स्थिति में तक्षशिला का राजा अपने शत्रुओं से घिरा हुआ था। उसने अपना दूत भेजकर बिम्बिसार से सहायता की प्रार्थना की। बिम्बिसार ने राजदूत का स्वागत तो किया पर किसी भी प्रकार की सहायता का वचन नहीं दिया। अतः इससे सिद्ध होता है कि बिम्बिसार तत्कालीन परिस्थितियों में पड़कर अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता था।
आवन्ति पर आक्रमण - बिम्बिसार ने अवन्ति राज्य पर आक्रमण कर उसके राजा खेमचन्द को पराजित किया। दीर्घ निकाय और महाबग्ग से अंग विजय की पुष्टि होती है। अंग विजय से बिम्बिसार की कीर्ति में चार चाँद लग गये।
काशी - वैवाहिक सम्बन्ध द्वारा काशी उसे प्राप्त हुआ था। वह भी प्रसिद्ध तथा सम्पत्तिशाली गाँव था जिससे उसे लाखों रुपये की आय होती थी। अतः काशी मिल जाने से उसका यश काफी बढ़ गया।
बिम्बिसार के राज्य का क्षेत्रफल - मगध साम्राज्य में 80,000 गाँव थे जिनका क्षेत्रफल 2700 वर्ग मील के लगभग था। बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार साम्राज्य विस्तार 300 योजन था।
राजधानी - बिम्बिसार ने मगध की राजधानी के रूप में गिरिब्रज को चुना था। इस पर प्रायः वज्जियों के आक्रमण हुआ करते थे। एक बार वजियों के राज्य में आग लगने के कारण कई ग्राम नष्ट हो गये थे। बिम्बिसार ने इस संकट की मुक्ति के लिए इसके उत्तर में राजगृह नामक नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया तथा बाद में वजिसंघ से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर शत्रुता का अन्त किया।
(System of Administration)
बिम्बिसार का प्रशासन बहुत ही उत्तम था। वह अपने कर्मचारियों पर कड़ी नजर रखता था। वह कार्यकुशल कर्मचारियों को पुरस्कार तथा अयोग्य कर्मचारियों को दण्ड देता था।
पदाधिकारियों की नियुक्ति - उसने अपने कार्य को सरल तथा प्रशासन को दृढ़ बनाने के लिए पदाधिकारियों की नियुक्ति की। उसके उच्चधिकारी 'राजभट' चार श्रेणियों में विभक्त थे जिन्हें सेनापति, सेनानायक, महामात्र तथा उपराजा आदि कहा जाता था।
ग्राम व्यवस्था - ग्रामों की व्यवस्था का भार ग्रामिणी पर होता था जो सारी ग्रामीण व्यवस्था की देखभाल करता था। बौद्ध ग्रन्थ महाबग्ग के अनुसार समस्त ग्रामों के ग्रामिक अथवा ग्रामिणी उसकी सभा कर में उपस्थित हुआ करते थे।
न्याय व्यवस्था - बिम्बिसार अपराधियों को तत्काल दण्ड देता था। उसके दण्ड विधान अत्यन्त कठोर थे। अपराधियों को कैद की व्यवस्था और अपराधियों को कोड़े मारना, छापा लगाना, फाँसी देना, पसलियाँ तोड़ना और जीभ काटना आदि दण्ड दिये जाते थे।
प्रान्तों की स्वायत्तता - बिम्बिसार के प्रान्तों को पर्याप्त मात्रा में स्वतन्त्रता प्रदान की। उसने युवराजों को प्रान्तों का अधिकारी बनाया गया, प्रशासनिक कार्यों में पुत्रों से सहयोग लिया। इसके अधीनस्थ मण्डलीय राजाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
प्रजाहितार्थ कार्य - बिम्बिसार ने अपने राज्य के 80 हजार ग्राम प्रमुखों की सभा बुलाकर ग्रामीण समस्याओं और उनके निराकरण पर विचार-विमर्श किया। फलस्वरूप यातायात के साधनों को सुधारा गया और कुशाग्रपुर के जल जाने के बाद नये राजप्रासाद का निर्माण कराया गया।
बिम्बिसार का धर्म - बिम्बिसार एक सहिष्णु सम्राट था। महात्मा बुद्ध उसके मित्र थे। स्वतः भगवान बुद्ध अपना धर्म प्रचार करते हुए मगध आये। बिम्बिसार ने वैणुवन भगवान बुद्ध (अर्थात् बौद्ध संघ) को दान कर दिया था। जैन ग्रन्थ उत्तर ध्यानसूत्र के अनुसार महावीर स्वामी से भण्डीकुक्षी चैत्य में अपनी रानियों, कर्मचारियों एवं सम्बन्धियों सहित भेंट करने गया और उनका अनुयायी बन गया। ब्राह्मणों के अनुसार बिम्बिसार वैदिक धर्म का अनुयायी था।
विद्या और कला - उसकी राजसभा में जीवन नामक वैद्य का उल्लेख प्राप्त होता है जिसने तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त की थी। वह आयुर्वेद की कौमार भृत्य शाखा का विशेषज्ञ था। इसके अतिरिक्त बिम्बिसार ने कला के क्षेत्र में राजगृह के कई भवनों को कलात्मक ढंग से निर्माण कराया था। तत्कालीन कला विशेषज्ञ जिसने राजगृह में राजप्रसाद को कलात्मक ढंग से निर्मित किया था उसका नाम महागोविन्द प्रसाद था।
शासनावधि - महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने 52 वर्ष राज्य किया था जिसे प्रमाणित माना गया है। डा. आर. के. मुकर्जी उसका राज्य काल 603 ई. पू. से 551 ई. पूर्व तक निश्चित करते हैं। डा. स्मिथ के अनुसार इसने 582 ई.पू. के 557 ई. पू. तक 28 वर्ष राज्य किया।
बिम्बिसार की मृत्यु - बिम्बिसार के दीर्घजीवी होने के कारण उसका शासन अत्यन्त लम्बा हो गया। फलस्वरूप उसका पुत्र अजातशत्रु जो महात्वाकांक्षी था अधिक दिन प्रतीक्षा नहीं कर सका। अतः उसने अपने चचेरे भाई देवदत्त के साथ षड्यन्त्र करके अपने पिता को बन्दी बना लिया। उसे अन्न और जल तक भी नहीं दिया। इस तर से बिम्बिसार की मृत्यु हो गयी। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार यह ज्ञात होता है कि उसे अपने इस कार्य पर पर्याप्त खेद हुआ और इससे आप त्राण के लिए भगवान बुद्ध की शरण में गया जहाँ उसे शांति प्राप्त हो सकी।
(Ajatshatru)
मगध सम्राट बिम्बिसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अजातशत्रु गद्दी पर बैठा जिसका दूसरा नाम कुणीक था। इसने 551 ई. पू. से लेकर 519 ई. पू. तक राज्य किया। इसी के राज्य काल में हर्यक वंश अपने गौरव के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा। अपनी विजयों से अजातशत्रु ने अपने वंश की शान और यश को बढ़ाया।
(Extension of Kingdom)
अजातशत्रु ने मगध सिंहासनारूढ़ होने के बाद अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्धों को प्रारम्भ किया जिसमें उसे अपार सफलता मिली तथा साम्राज्य भी विस्तृत हुआ।
कोशल राज्य से युद्ध - कोशल राज्य की पुत्री कोशल देवी ने अपने पति बिम्बिसार की मृत्यु से दुःखी होकर अपने प्राण त्याग दिये तत्कालीन कोशल का राजा प्रसेनजित था। कोशल देवी उसकी बहन थी। इसलिए उसने बिम्बिसार को दहेज में दिया हुआ काशी ग्राम वापस ले लिया। फलतः दोनों में संघर्ष प्रारम्भ हो गया। युद्ध में कई उतार-चढ़ाव आये। एक बार कोशल के राजा को परास्त होकर राजधानी की ओर भागना पड़ा और अजातशत्रु भी इसी युद्ध में बन्दी बनाया गया। परन्तु बाद में प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से करके मित्रता स्थापित की। इस प्रकार से मगध साम्राज्य में काशी को मिला लिया गया।
प्रमाणों के आधार पर यह भी ज्ञात होता है कि कोशलराज के सेनापति ने उसे गद्दी से हटाकर उसके उत्तराधिकारी विडुडाभ को राजा बनाया। कोशलराज अपने दामाद अजातशत्रु से सहायता लेने मगध गया, पर रास्ते में सर्दी लगने के कारण मगध के राजद्वार पर ही उसकी मृत्यु हो गयी।
वैशाली से युद्ध - वज्जि संघ का सबसे शक्तिशाली वैशाली राज्य था। इसमें आठ गण सम्मिलित थे। इनसे मगध साम्राज्य का भय बना रहता था। बिम्बिसार ने इनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया था।
जैन लेखकों के अनुसार - बिम्बिसर ने अपने पुत्र हल्ल और बेहल्ल को अपना हाथी शेषनाग तथा 13 लारियों वाला मोती का हार दे दिया था। ये दोनों राजकुमार वैशाली की राजकुमारी चेल्लना के पुत्र थे। अजातशत्रु जब गद्दी पर बैठा तब उसने हाथी हार तथा राजकुमारों को लौटाने के लिए कहा परन्तु वैशाली के राजा चेतन ने इन सबको वापस करने से इन्कार कर दिया। फलस्वरूप युद्ध प्रारम्भ हो गया।
बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार - मगध और वज्जि संघ के बीच गंगा नदी बहती थी। इस नदी के तट पर एक सोने की खान तथा उपयोगी बन्दरगाह था। इस पर दोनों का समान अधिकार था। परन्तु दो वर्षों तक वज्जि संघ इसका उपयोग कर रहा था। अतः अजातशत्रु ने अपने अधिकार की रक्षा के लिए वज्जि संघ पर आक्रमण कर दिया।
अजातशत्रु को लिच्छवियों की शक्ति का ज्ञान था। अतः उसने कूटनीति के द्वारा पराजित करने का निश्चय किया। उसने अपने ब्राह्मण मन्त्री से संघर्ष कर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। उसने जाकर वज्जि संघ में शरण ली और समय पाकर संघ में भेद पैदा कर दिया। फलतः हाथ आया देखकर अजातशत्रु ने लिच्छवियों पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अजातशत्रु को पद्मावती ने भाग लेने के लिए उकसाया। यह युद्ध 16 वर्षे तक चलता रहा।
भगवान बुद्ध ने लिच्छवियों के बारे में कहा था कि वे तब तक अजेय हैं जब तक वे सभी गणतन्त्र की सभी शर्तें पूरी करते हैं जैसे जल्दी-जल्दी करना परामर्श और नीति की एकता, अन्य परम्पराओं, संस्थाओं और पूजा आदि का पालन, वयोवृद्धों का मान, स्त्रियों और सन्यासियों का आदर परन्तु भाष्कर द्वारा फूट डालने के 3 वर्ष के बाद ही वैशाली को विजय कर लिया गया।
अजातशत्रु स्वयं लिच्छवियों के बारे में कहता है जोकि उसके कटु विचारों को चरितार्थ करते हैं- " मै इन वज्जियों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर दूंगा चाहे वे कितने भी सशक्त और बलवान हों, और उन्हें मिट्टी में मिला दूँगा।"
अवन्ति के साथ संघर्ष - मज्झिल निकाय से ज्ञात होता है कि अवन्ति के राजा चण्डप्रद्योत ने बिम्बिसार की मृत्यु का बदला लेने का निश्चय किया था और इस युद्ध में अजातशत्रु को अपनी राजधानी की रक्षा का प्रबन्ध करना पड़ा था। परन्तु इस युद्ध की तिथि का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।
अजातशत्रु के अस्त्र-शस्त्र - अजातशत्रु ने युद्धों में दो नये प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जो निम्नलिखित थे -
1, महाशिलाकण्टक यह एक प्रकार का अपक्षेपी था जिससे बड़े-बड़े पत्थर फेंके जाते थे।
2. रथमूसल यह एक प्रकार का स्वचलित यन्त्र था क्योंकि यह घोड़ों और चालक के बगैर ही चलता था। शायद मध्ययुग के यन्त्रों की भाँति एक व्यक्ति इसके अन्दर छिपा रहता था और पहिए घुमाता था। इसके बारे में बड़ा ही अच्छा वर्णन होर्नल महोदय ने किया।
अजातशत्रु का धर्म - प्रारम्भ में अजातशत्रु का झुकाव जैन धर्म की ओर था परन्तु कुछ समय बाद वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया, परन्तु इस सम्बन्ध में साक्ष्यों का अभाव है। अतः उचित यही प्रतीत होता है कि इसे दोनों धर्मों से श्रद्धा थी। जैन ग्रन्थों के अनुसार वह अपनी पत्नी सहित महावीर स्वामी के दर्शन के लिए वैशाली गया था। बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उसे अपने पिता की हत्या से काफी पश्चाताप हुआ था और उसने अपना अपराध महात्मा बुद्ध के सम्मुख जाकर स्वीकार किया था जिससे उसे सन्तोष प्राप्त हुआ। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् जो बुद्ध सभा राजगृह के निकट सप्तपण गुफा में हुई थी, उसका निर्माण अजातशत्रु ने ही कराया था। महापरिनिर्माण सूत्र से विदित होता है कि अजातशत्रु ने उनके कुछ अवशेषों के ऊपर राजगृह में एक स्तूप बनवाया था।
शासनावधि - बौद्ध साहित्य के अनुसार अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक राज्य किया और पुराणों के अनुसार 15 वर्ष राज्य किया।
(Heirs of Ajatshatru)
दर्शक - पुराणों के अनुसार अजातशत्रु का निकटतम उत्तराधिकारी दर्शक था। उसने 25 वर्षों तक राज्य किया। जीजर के अनुसार, "दर्शक को अजातशत्रु का उत्तराधिकारी समझना भूल है। पालि साहित्य के अनुसार उदाही भद्द अजातशत्रु का पुत्र था और उत्तराधिकारी भी था। दर्शक का नाम स्वप्नवासवदत्तम् नामक नाम में ही आता है। उसे कौशाम्बी के राजा उदयन का साला तथा समकालीन दिखलाया गया है। जैन लेखक और बौद्ध लेखक उसे नागदसक मानते हैं परन्तु पुराण दर्शक ही मानते हैं।
डा. डी. आप. भण्डारकर दर्शक का नागदर्शक समझते हैं जिसे लंका के इतिहास में बिम्बिसार के वंश का अंतिम शासक कहा गया है क्योंकि दिव्यावदान मे बिम्बिसार के वंश के राजाओं की सूची में दर्शक का नाम नहीं है।
उदयिन - पुराणों, बौद्ध-ग्रन्थों के अनुसार उदयिन अजातशत्रु का उत्तराधिकारी था। अधिकांश विद्वान इसी मत से सहमत हैं। महावंश से यह भी ज्ञात होता है कि अजातशत्रु की हत्या करके उद्रयिन ने सिंहासन प्राप्त किया था परन्तु जैन ग्रन्थ उसे पितृघाती नहीं मानते। डा. जायसवाल भी उसको पितृघाती नहीं मानते।
महावंश के अनुसार - उदयभद्र ने 16 वर्षों तक राज्य किया। पुराणों के अनुसार उदयिन के बाद नन्दिवर्धन और महानन्दनी राजा हुए। परिशिष्टपर्वेन में बताया गया है कि उदयिन का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। दीपवंश और महावंश में अनुरुद्ध गुण्ड और नांगदर्शक को उदयिन का स्थान दिया गया है। अंगुत्तर निकाय में यह भी कहा गया है कि मुण्ड पाटलिपुत्र का राजा था। दिव्यावदान मे भी मुण्ड का नाम दिया गया है।
(Shishunag Dynasty)
बौद्ध साहित्य के अनुसार मगध की जनता ने पितृघाती नागदासक को शासन से च्यूत कर उसके सुयोग्य मंत्री शिशुनाग को राजा बनाया।
बौद्ध और पौराणिक लेखों में सबसे मुख्य अन्तर शिशुनाग और काकवर्णिन् के राजवंशों की सूची में दिये हुए स्थान के सम्बन्ध में है। बौद्ध लेखक उन्हें बिम्बिसार, अजातशत्रु और उदयिन के भी पीछे रखते हैं और उन्हें एक अलग वंश का बताते हैं, किन्तु पुराण उन्हें अपनी सम्पूर्ण सूची के ऊपर रखते हैं और यथार्थ में उन्हें बिम्बिसार अजातशत्रु के पूर्वज बताते हैं। पौराणिक लेख के एक विवरण के अनुसार जो उसकी सच्चाई पर सन्देह उत्पन्न कर बौद्धों के प्रमाण को स्वीकार करने को प्रेरित करता है। अवन्ति का राजा प्रद्योत और बिम्बिसार समकालीन थे परन्तु पुराणों के अनुसार "शिशुनाग उनकी सब प्रतिष्ठा को मिटा देगा और राजा होगा।" यह स्पष्टोक्ति निस्संदेह इस विचार की पुष्टि करती है कि शिशुनाग बिम्बसार और अजातशत्रु के बहुत पीछे हुआ और अवन्ति के शक्तिशाली राजा को अस्तगत कर अपनी उग्र नीति को आगे बढ़ाया।
शिशुनाग के उत्तराधिकारी - शिशुनाग के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक अथवा काकवर्ण मगध का राजा हुआ। सम्भव है कि वह अपने पिता के समय काशी का शासक रह चुका था। बौद्ध द्वितीय संगति भी इसके काल में हुई थी। संगति का स्थान पाटलिपुत्र था। बौद्ध साहित्य दीपवंश और महावंश के अनुसार उसने 28 वर्ष तक राज्य किया था। 'हर्षचरित' के अनुसार काकवर्ण शिशुनाग की हत्या नगर के बाहर छुरा भोंक कर की गयी थी। बौद्ध साहित्य के अनुसार काकवर्ण के 10 पुत्र थे जिन्होंने क्रमशः 82 तर्ष तक राज्य किया। इनमें नन्दिवर्धन सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ जो एक शूद्रा का पुत्र था जिसने नन्द वंश की स्थापना की।
|
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की सुस्पष्ट जानकारी दीजिये।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- 'फाह्यान' पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
- प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - प्राचीन इतिहास अध्ययन के स्रोत
- उत्तरमाला
- प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नन्द कौन थे महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- छठी सदी ईसा पूर्व में गणराज्यों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- छठी शताब्दी ई. पू. में महाजनपदीय एवं गणराज्यों की शासन प्रणाली के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गणराज्य किसे कहते हैं?
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - महाजनपद एवं गणतन्त्र का विकास
- उत्तरमाला
- प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए|
- प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - मौर्य साम्राज्य
- उत्तरमाला
- प्रश्न- शुंग कौन थे? पुष्यमित्र का शासन प्रबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- कण्व या कण्वायन वंश को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पतंजलि कौन थे?
- प्रश्न- शुंग काल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - शुंग तथा कण्व वंश
- उत्तरमाला
- प्रश्न- सातवाहन युगीन दक्कन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आन्ध्र-सातवाहन कौन थे? गौतमी पुत्र शातकर्णी के राज्य की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शक सातवाहन संघर्ष के विषय में बताइए।
- प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख के माध्यम से रुद्रदामन के जीवन तथा व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- नहपान कौन था?
- प्रश्न- शक शासक रुद्रदामन के विषय में बताइए।
- प्रश्न- मिहिरभोज के विषय में बताइए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - सातवाहन वंश
- उत्तरमाला
- प्रश्न- कलिंग नरेश खारवेल के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कलिंगराज खारवेल की उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - कलिंग नरेश खारवेल
- उत्तरमाला
- प्रश्न- हिन्द-यवन शक्ति के उत्थान एवं पतन का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- मिनेण्डर कौन था? उसकी विजयों तथा उपलब्धियों पर चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- एक विजेता के रूप में डेमेट्रियस की प्रमुख उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हिन्द पहलवों के बारे में आप क्या जानते है? बताइए।
- प्रश्न- कुषाणों के भारत में शासन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- कनिष्क के उत्तराधिकारियों का परिचय देते हुए यह बताइए कि कुषाण वंश के पतन के क्या कारण थे?
- प्रश्न- हिन्द-यवन स्वर्ण सिक्के पर प्रकाश डालिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - भारत में विदेशी आक्रमण
- उत्तरमाला
- प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
- प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
- प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्कन्दगुप्त की उपलब्धियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
- प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है? उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - गुप्त वंश
- उत्तरमाला
- प्रश्न- दक्षिण के वाकाटकों के उत्कर्ष का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - वाकाटक वंश
- उत्तरमाला
- प्रश्न- हूण कौन थे? तोरमाण के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- हूण आक्रमण के भारत पर क्या प्रभाव पड़े? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गुप्त साम्राज्य पर हूणों के आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - हूण आक्रमण
- उत्तरमाला
- प्रश्न- हर्ष के समकालीन गौड़ नरेश शशांक के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हर्ष का समकालीन शासक शशांक के साथ क्या सम्बन्ध था? मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- हर्ष की सामरिक उपलब्धियों के परिप्रेक्ष्य में उसका मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सम्राट के रूप में हर्ष का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- हर्षवर्धन की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- हर्ष का मूल्यांकन पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- हर्ष का धर्म पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- पुलकेशिन द्वितीय पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- ह्वेनसांग कौन था?
- प्रश्न- प्रभाकर वर्धन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- गौड़ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - वर्धन वंश
- उत्तरमाला
- प्रश्न- मौखरी वंश की उत्पत्ति के विषय में बताते हुए इस वंश के प्रमुख शासकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मौखरी कौन थे? मौखरी राजाओं के जीवन तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मौखरी वंश का इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - मौखरी वंश
- उत्तरमाला
- प्रष्न- परवर्ती गुप्त शासकों का राजनैतिक इतिहास बताइये।
- प्रश्न- परवर्ती गुप्त शासकों के मौखरी शासकों से किस प्रकार के सम्बन्ध थे? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परवर्ती गुप्तों के इतिहास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- परवर्ती गुप्त शासक नरसिंहगुप्त 'बालादित्य' के विषय में बताइये।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - परवर्ती गुप्त शासक
- उत्तरमाला