बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटर बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटरसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटर
अध्याय - 1
कार्यालयी हिन्दी का स्वरूप, उद्देश्य एवं क्षेत्र
कार्यालयी हिन्दी से आशय - कार्यालयी हिन्दी से आशय कार्यालयों के कामकाज में प्रयोग होने वाली हिन्दी से है इसे सरकारी हिन्दी या प्रशासनिक हिन्दी भी कहा जाता है। यह हिन्दी स्वतन्त्रता - प्राप्ति के पश्चात् अस्तित्व में आई; क्योंकि इससे पूर्व अंग्रेजी और मुगलं- शासन में प्रशासनिक कामकाज की भाषा अंग्रेजी अथवा फारसी थी । स्वतन्त्रता - संग्राम के समय सारे देश को एकसूत्र में पिरोने के लिए हिन्दी ने सम्पर्क भाषा का कार्य किया। इससे उसका प्रचार-प्रसार हुआ और जनसामान्य में उसकी समझ विकसित हुई। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जब प्रशासनिक कामकाज के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता अनुभव हुई, जिसे देश के अधिकांश लोग बोलते और समझते हों, साथ ही जिसे विभिन्न भाषाभाषियों के मध्य सम्पर्क भाषा के रूप में भी स्थापित किया जा सके। इन सभी कसौटियों पर एकमात्र हिन्दी ही खरी उतरती थी। इसलिए राजभाषा के रूप में उसे संविधान में स्थान दिया गया। तत्कालीन कार्यालयों में हिन्दी कुछ इस रूप में प्रयुक्त होने लगी-
1. A revised draft memorandum is put up as desired by Registrar.
कुलसचिव महोदय की इच्छानुसार ज्ञापन का परिशोधित प्रारूप प्रस्तुत है।
2. A chronological summary of the case is placed below.
कार्यालयी हिन्दी के उद्देश्य
भारत की अधिकांश जनसंख्या हिन्दी भाषाभाषी है। इसी के साथ बहुत बड़ी जनसंख्या ऐसी भी है, जो बोल और समझ लेती है, किन्तु उसे पढ़ नहीं पाती । कुल मिलाकर देश की.. सम्पूर्ण आबादी का एक अत्यन्त छोटा-सा अंश ऐसा है, जो हिन्दी को न समझ पाता है और न लिख-पढ़ पाता है। इसलिए शासन और जनता के बीच सम्बन्ध स्थापित करने के लिए हिन्दी को सर्वाधिक उपयुक्त भाषा माना गया; अतः हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देकर उसे कार्यालयों के कामकाज के लिए अनिवार्य बना दिया गया है। कार्यालयों में प्रयुक्त इसी हिन्दी को कार्यालयी हिन्दी के रूप में जाना गया। कार्यालयों में हिन्दी को प्रचलित करने के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1. हिन्दी का विकास,
2. अधिकारों के प्रति सचेत करना,
3. अंग्रेजी का प्रभाव समाप्त करना,
4. शासन सम्बन्धी नीतियों को जनता तक पहुँचाना,
5. ग्रामीण बेरोजगारों की मदद करना,
6. भ्रष्टाचार की समाप्ति,
7. सुशासन सम्बन्धी कार्य को सरल व स्पष्ट बनाना,
8. कार्यालयी प्रक्रियाओं को आम आदमी तक पहुँचाना।
कार्यालयी हिन्दी के क्षेत्र
कार्यालयी हिन्दी के क्षेत्र से आशय यह है कि किन-किन कार्यालयों में कामकाज हिन्दी में किया जाता है। कार्यालयीय हिन्दी के क्षेत्र का वर्गीकरण हम भारत संघ की शासन व्यवस्था के आधार पर दो रूपों में कर सकते हैं-
1. केन्द्रीय सरकार के कार्यालय,
2. राज्य सरकारों तथा संघ राज्य क्षेत्र (केन्द्रशासित प्रदेश) के कार्यालय ।
इन क्षेत्रों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-
1. केन्द्रीय सरकार के कार्यालय
केन्द्रीय सरकार के अधीन कार्य करने वाले सभी कार्यालय इसके अन्तर्गत आते हैं। राजभाषा अधिनियम, 1976 के अन्तर्गत 'केन्द्रीय सरकार के कार्यालय' से आशय निम्नलिखित मन्त्रालयों, विभागों या कार्यालयों से है—
(i) केन्द्रीय सरकार का कोई मन्त्रालय, विभाग या कार्यालय;
(ii) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किसी आयोग, समिति या अधिकरण का कोई कार्यालय;
(iii) केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियन्त्रण के अधीन किसी निगम या कम्पनी का कोई कार्यालय;
(iv) अधिसूचित कार्यालय (जिन कार्यालयों के कर्मचारियों ने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है)।
2. राज्य सरकारों तथा संघ राज्य क्षेत्र के कार्यालय
राजभाषा अधिनियम, 1976 के अनुसार देश के राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों (केन्द्रशासित प्रदेशों) को तीन क्षेत्रों (क), (ख), (ग) में बाँटा गया है। इनका परिचय इस प्रकार है-
(i) क्षेत्र 'क' के बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड़, उत्तराखण्ड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत हैं।
(ii) क्षेत्र 'ख' से गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब राज्य तथा चण्डीगढ़, दमन और दीव तथा दादरा व नगर हवेली संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत हैं।
(iii) क्षेत्र 'ग' से उपर्युक्त निर्दिष्ट राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से भिन्न राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत हैं।
कार्यालयी हिन्दी के क्षेत्रान्तर्गत आने वाले कार्यालयों का विवरण
केन्द्र, राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों के उपर्युक्त कार्यालयों में कार्यालयी हिन्दी का प्रयोग कहाँ स्वतन्त्र रूप में होगा, कहाँ उसका प्रयोग अंग्रेजी अथवा अन्य राज्यभाषाओं के साथ किया जाएगा, इसका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-
राज्यों आदि और केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से भिन्न कार्यालयों के साथ पत्रादि
1. केंन्द्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'क' में किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को या ऐसे राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि, असाधारण दशाओं को छोड़कर हिन्दी में होंगे और यदि उनमें से किसी कोई पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा।
2. केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से-
(क) क्षेत्र 'ख' में किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को या ऐसे राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि सामान्यतः हिन्दी में भेजे जाएँगे और यदि पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा-
परन्तु यदि कोई ऐसा राज्य या संघ राज्य क्षेत्र यह चाहता है कि किसी विशिष्ट वर्ग या प्रवर्ग के पत्रादि या उसके किसी कार्यालय के लिए अशायित पत्रादि सम्बद्ध राज्य या संघ राज्य क्षेत्र, की सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि तक अंग्रेजी या हिन्दी में भेजे जाएँ और उसके साथ दूसरी भाषा में उसका अनुवाद भी भेजा जाए तो ऐसे पत्रादि उसी रीति से भेजे जाएँगे ।
(ख) क्षेत्र 'ख' के किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी में भेजे जा सकते हैं।
3. केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'ग' में किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति के पास पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाएँगे।
4. उपनियम (1) और (2) में किसी बात के होते हुए भी क्षेत्र 'ग' में केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'क' या 'ख' में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी में हो सकते हैं।
शासन में पद सोपान व्यवस्था
कार्यालय के प्रकार और पदनाम
कार्यालय की संकल्पना कार्य और कार्य स्थल पर अवलम्बित है अतः सभी क्षेत्रों के कार्यों का सभी प्रकार का सम्पादन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कार्यालयों पर ही निर्भर है। कार्यालय के क्षेत्रों की यदि बात करें तो ये क्षेत्र तीन प्रकार के होते हैं- सरकारी क्षेत्र, अर्द्ध सरकारी क्षेत्र और गैर-सरकारी (प्राइवेट) क्षेत्र । उपर्युक्त क्षेत्रों के आधार पर कार्यालय भी मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं-
1. सरकारी कार्यालय,
2. अर्द्ध सरकारी कार्यालय,
3. गैर सरकारी (प्राइवेट) कार्यालय ।
इनमें से सरकारी कार्यालयों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
सरकारी कार्यालय
सरकारों द्वारा संचालित सभी कार्यालयों को सरकारी कार्यालय कहते हैं। भारत में सरकारों के दो प्रकार हैं—- केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार। इस आधार पर सरकारी कार्यालय भी दो प्रकार के होते हैं-
1. केन्द्रीय कार्यालय,
2. राज्य कार्यालय ।
1. केन्द्रीय कार्यालय — केन्द्रीय सरकार द्वारा संचालित कार्यालयों को केन्द्रीय कार्यालय कहते हैं। केन्द्रीय कार्यालय भी मुख्य रूप से अनेक प्रकार के होते हैं। पहली प्रकार के कार्यालय मन्त्रालय स्तर पर संचालित होते हैं, जिनका मुखिया मन्त्रालय का मुख्य सचिव होता है। मुख्य संचिव के अधीनस्थ अन्य सचिव होते हैं, जो अनेक विभागों के मुखिया होते हैं। मुख्य सचिव के कार्यालय को सचिवालय कहते हैं। मुख्य सचिव पूरी केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार का एक-एक ही होता है। केन्द्र में मुख्य सचिव का सम्बन्ध प्रधानमन्त्री से होता है और राज्य में मुख्य सचिव का सम्बन्ध मुख्यमन्त्री से होता है।
2. राज्य कार्यालय—केन्द्र की तरह ही राज्य में भी एक मुख्य सचिव होता है, उसके कार्यालय को भी राज्य सचिवालय कहा जाता है। इसी के निर्देशन में विभिन्न मन्त्रालयों के कार्यालय होते हैं, जिनका मुखिया सचिव कहलाता है।
सचिवालय के मुख्य अधिकारियों के पदनाम
सचिवालयीय व्यवस्था में दो वर्ग होते हैं-अधिकारी वर्ग और अधीनस्थ वर्ग । अधिकारी वर्ग में सचिव, उपसचिव और अवरसचिव होते हैं। बड़े विभागों में इनके अलावा अतिरिक्त सचिव एवं संयुक्त सचिव के पद भी होते हैं। ये दोनों सचिव समान श्रेणी के होते हैं और सचिवालयीय व्यवस्था में इनका सम्बन्ध सीधा मन्त्री से होता है। सचिवालय के अधीनस्थ कर्मचारियों में अनुभाग अधिकारी, सहायक तथा अवर लिपिक सम्मिलित होते हैं। अवर लिपिक की सहायता के लिए आवश्यकतानुसार अनेक लिपिक, टंकक (टाइपिस्ट / स्टेनोग्राफर), सहायक लिपिक और सबसे नीचे चपरासी होते हैं। सचिवालय स्तर की पदोसोपानिक संरचना को इस आरेख से भली-भाँति समझ सकते हैं-
विभागों की पदसोपानिक संरचना
सचिवालय विभिन्न नीतियों के निर्माण में मन्त्रालयों के प्रमुख मन्त्रियों को परामर्श देते हैं। इन नीतियों के क्रियान्वयन का दायित्व जिन संगठनों पर होता है, उन्हें विभाग या मन्त्रालय का कार्यकारी संगठन कहा जाता है। विभाग का प्रमुख विभागाध्यक्ष कहलाता है। इसे अलग-अलग विभागों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है; जैसे-निर्देशक, महानिदेशक, आयुक्त, महानिरीक्षक आदि।
राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति
सामान्यतः राजकाज चलाने की भाषा को राजभाषा कहा जाता है। राज्य का शासन चलाने वाले चार मुख्य विभाग होते हैं— शासन, विधान, न्यायपालिका एवं कार्यपालिका । इन 'चारों विभागों का मुख्य कार्य जिस भाषा में होता है, वही राजभाषा होती है। इसी को अंग्रेजी में Official Language कहा जाता है। आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने राजभाषा क्षेत्रों को परिभाषित करते हुए लिखा है - " सरकार के शासन, विधान, कार्यपालिका और न्यायपालिका में जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे राजभाषा कहते हैं। "
हिन्दी के राजभाषा बनने का संक्षिप्त परिचय - हमारा देश 1947 ई० में स्वतन्त्र हुआ और 26 जनवरी, 1950 ई० को भारतीय संविधान को लागू करने की घोषणा की गई। इसके बाद संवैधानिक दृष्टि से राजभाषा पृथक रूप से परिभाषित की गई। संविधान के अनुच्छेद 343 में यह कहा गया है कि 'संघ की सरकारी भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। सरकारी कामकाज में नागरी अंकों के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग होगा।'
14 सितम्बर, 1949 ई० को जब संविधान सभा में 'राजभाषा' सम्बन्धी उपर्युक्त भाग स्वीकृत हुआ, तब संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ० राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था - "राजभाषा हिन्दी देश की एकता को कश्मीर से कन्याकुमारी तक अधिक सुदृढ़ बना सकेगी।"
स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
1. 14 सितम्बर, 1949 ई० को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने का निर्णय संविधान सभा द्वारा किया गया था; इसीलिए प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
2. केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से सम्बन्धित सभी मैनुअल, संहिताएँ, प्रक्रिया सम्बन्धी साहित्य, कार्यालयों में प्रयुक्त होने वाले रजिस्टरों के प्रारूप तथा शीर्षक, सभी नामपट्ट, सूचनापट्ट, पत्रशीर्ष एवं लिफाफों पर प्रकाशित लेख और लेखन - सामग्री हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित की जाती है।
3. कार्यालयी हिन्दी के व्यक्ति-निरपेक्ष होने से आशय यह है कि इसमें व्यक्ति को निर्देशित न करके पद को निर्देशित किया जाता है। इसकी भाषा भी आदेशात्मक न होकर विध्यर्थक होती है।
4. राजभाषा अधिनियम, 1976 की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हिन्दी में प्राप्त पत्रों के उत्तर अनिवार्य रूप से हिन्दी में ही देने होंगे, चाहे वह पत्र किसी भी राज्य सरकार या व्यक्ति विशेष से आया हो। इस नियम के अन्तर्गत किसी को भी किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी गई है।
5. कार्यालयी हिन्दी में शब्दों की मितव्ययिता से आशय यह है कि इसमें कार्य करते समय केवल उतने शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जितने शब्द आशय प्रकट करने के लिए आवश्यक होते हैं। इसमें प्राय: एक शब्द वाले वाक्यों का प्रयोग किया जाता है; जैसे- स्वीकृत, अस्वीकृत, अनुमोदित, निरस्त आदि ।
6. कार्यालयी हिन्दी में पारिभाषिक शब्दों के साथ सरलता, संक्षिप्तता और तथ्यात्मकता की प्रधानता होती है, जबकि साहित्यिक हिन्दी में केवल भावात्मकता की प्रधानता होती है।
7. राजभाषा के सन्दर्भ में क्षेत्र 'क' के अन्तर्गत आने वाले राज्य हैं - बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली संघ राज्य ।
8. कार्यालयी हिन्दी क्योंकि आमजन की भाषा होती है, जिसे वह भली-भाँति समझकर अपने अधिकारों से परिचित होता है और कार्य की सम्पूर्ण प्रक्रिया को भी जान जाता है। इससे उसे अपना कार्य दलालों से कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस तरह दलालों की समाप्ति से भ्रष्टाचार को रोकने में बड़ी सहायता मिलती है।
9. संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिन्दी को राजभाषा का स्थान दिया गया है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनगारी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।
10. राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 (3) के अन्तर्गत इन दस्तावेजों को अनिवार्यतः द्विभाषी रूप अथवा हिन्दी में जारी किया जाता है— सामान्य आदेश, संकल्प, परिपत्र, नियम, प्रशासनिक एवं अन्य प्रतिवेदन, प्रेस विज्ञप्तियाँ, संविदाएँ, करार, अनुज्ञप्तियाँ, निविदा प्रारूप, अनुज्ञा पत्र, निविदा सूचनाएँ, अधिसूचनाएँ, संसद के समक्ष रखे जाने वाले प्रतिवेदन तथा कागज पत्र ।
11. संस्थापन शाखा - इस शाखा का प्रमुख राजपत्रित अधिकारी होता है और उसे संस्थापन अधिकारी के नाम से जाना जाता है। उसके अधीन अनेक अराजपत्रित कर्मचारी नियुक्त होते हैं।
12. लेखा शाखा - लेखा कार्यालय के अन्तर्गत अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन, विभाग के बजट और उसके आय-व्यय और ऑडिट आदि के कार्य किए जाते हैं। लेखा कार्यालय के विभागाध्यक्ष अथवा मुखिया को प्रायः एकाउण्टेण्ट अथवा लेखाकार / लेखापाल कहा जाता है।
13. सांख्यिकी शाखा - इस विभाग के कार्यालय के अन्तर्गत सूचनाओं का संग्रह अथवा आयोजनाओं के विकास आदि से सम्बन्धित आँकड़ों का व्यवस्थापन किया जाता है। इस कार्यालय के मुखिया को सामान्यतः सांख्यिकीय अधिकारी या स्टेटिस्टिकल ऑफिसर कहा जाता है।
14. गोपनीय शाखा — गोपनीय कार्यालय में सम्बन्धित विभाग के सभी गोपनीय दस्तावेजों का रख-रखाव किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से कार्यों के मूल्यांकन के प्रतिवेदन सम्मिलित होते हैं। इस विभाग के मुखिया को कांफिडेशियल ऑफिसर अथवा गोपनीय अधिकारी कहा जाता है।
15. सामान्य शाखा - इस सामान्य कार्यालय में मुख्य रूप से विभागीय भवनों के किराये की स्वीकृतियाँ, नए टेलीफोन आदि से सम्बन्धित कार्य, सभा या ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या कटौती प्रस्ताव आदि का निस्तारण होता है। विभाग के मुखिया को जनरल ऑफिसर या सामान्य अधिकारी कहा जाता है।
16. भुगतान शाखा - भुगतान कार्यालय के अन्तर्गत विभागीय रूप से होने वाले लेन-देनों का निस्तारण किया जाता है। कार्यालय के मुखिया को कैशियर या खजांची / भुगतान अधिकारी कहा जाता है।
17. विधि शाखा – प्रत्येक सरकारी विभाग से सम्बन्धित अनेक वाद न्यायालयों में विचाराधीन होते हैं। इन वादों को देखना, उनके लिए प्रभारी अधिकारी (वाद) को नियुक्त करना, निर्णयों के विरूद्ध अपील दायर करना आदि कार्य इस विभाग के अन्तर्गत किए जाते हैं। विधिक कार्यालय के मुखिया को विधिक अधिकारी/ लिटिगेशन ऑफिसर कहा जाता है।
18. वादकरण शाखा— अभियोजन कार्यालय के अन्तर्गत विभिन्न न्यायालयों और श्रम न्यायालयों में राज्य सरकार के विरूद्ध लम्बित प्रकरणों की निगरानी करना, प्रभारी अधिकारियों की नियुक्ति करना आदि कार्य आते हैं। इस कार्यालय के मुखिया को सामान्यतः अभियोजन अधिकारी कहा जाता है।
19. डाक-प्राप्ति एवं प्रेषण शाखा- डाक-प्राप्ति एवं प्रेषण कार्यालय के अन्तर्गत विभाग में आने वाले पत्रों और अन्य विभागों अथवा व्यक्तियों को भेजने वाले पत्रों के विवरण रखने और उनको सँभालकर रखने के कार्य किए जाते हैं। इस विभाग के मुखिया को प्रायः डिस्पैच ऑफिसर या प्रेषण अधिकारी कहते हैं।
20. रिकॉर्ड शाखा - विभाग के पुराने रिकॉर्ड को सँभालकर रखना, उसका रख-रखाव, छँटनी आदि इस कार्यालय के कार्य होते हैं। इस अभिलेख विभाग के मुखिया को रिकॉर्ड ऑफिसर या अभिलेख अधिकारी कहते हैं।
21. स्टोर शाखा - भण्डार कार्यालय के अन्तर्गत अधीनस्थ कार्यालयों में प्रचलित समस्त प्रकार के आवेदन-पत्रों के प्रोफार्मा आदि का मुद्रण, उनका अधीनस्थ कार्यालयों में वितरण, सामान की प्राप्ति, निर्गम, भौतिक सत्यापन, अतिरिक्त सामान, अप्रचलित और अनुपयोगी सामान एवं उपकरणों का विवरण और रख-रखाव आदि के कार्य किए जाते हैं। इस विभाग के मुखिया को सामान्यतः स्टोर ऑफिसर या भण्डार अधिकारी कहते हैं।
22. सूचना का अधिकार शाखा - जनसूचना कार्यालय के अन्तर्गत माँगी गई सूचनाओं के आवश्यक डेटा को सँभालकर रखना, माँगे जाने पर सूचना आयोग या नोडल विभाग को भेजने का कार्य किया जाता है। इस विभाग के मुखिया को जनसूचना अधिकारी अथवा आर०टी०आई० ऑफिसर कहा जाता है।
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- अध्याय - 1 कार्यालयी हिन्दी का स्वरूप, उद्देश्य एवं क्षेत्र
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 कार्यालयी हिन्दी में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावली
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 संक्षेपण
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 पल्लवन
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 प्रारूपण
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 टिप्पण
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 कार्यालयी हिन्दी पत्राचार
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 हिन्दी भाषा और संगणक (कम्प्यूटर)
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 संगणक में हिन्दी का ई-लेखन
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 हिन्दी और सूचना प्रौद्योगिकी
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 भाषा प्रौद्योगिकी और हिन्दी
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला