बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 12
धर्म एवं भाषा
(Religion and Language)
धर्म - धर्म का अध्ययन तक उसके सैद्धान्तिक रूप में अधिक हुआ है क्योंकि धर्म का वैज्ञानिक एवं प्रयोगात्मक स्पष्टीकरण अभी भी शेष है, किन्तु फिर भी इसके अनेक प्रयास हुए हैं तथा मैलिनोवस्की, फ्रेवर, मैकीवर, मैक्समूलर तथा मिल्टन मिंगर आदि ने अपने अध्ययन प्रस्तुत किये हैं। मिल्टन मिंगर ने धर्म को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, “धर्म वह व्यवस्थित प्रयास है जिससे हम जीवन की अन्तिम आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। " अर्थात् मिंगर के अनुसार हमारी जो अन्तिम किन्तु वास्तविक आवश्यकताएँ हैं, धर्म उनकी पूर्ति करता है। जॉनसन ने धर्म का सम्बन्ध इहलोक से न मानकर परलोक से माना है। जॉनसन के अनुसार, “धर्म कम या अधिक मात्रा में अधि- प्राकृतिक तत्त्वों, शक्तियों तथा आत्मा से सम्बन्धित विश्वासों और आचरणों की एक संगठित व्यवस्था है।"
भाषा - अभौतिक संस्कृति के क्षेत्र में भाषा ही मानव की सबसे बड़ी शक्ति है। यदि मानव के पास वाणी अथवा भाषा की शक्ति न होती तो सम्भवतः उसके आविष्कारों का विस्तार एवं प्रसार अत्यन्त सीमित हो जाता है। मानव की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक या राजनीतिक उन्नति का प्रमुख कारण आविष्कार है जिसका कि काफी कुछ दायित्व भाषा पर भी है। वास्तव में भाषा के द्वारा ही नवीन आविष्कार होते हैं, पारस्परिक अन्तः क्रियाएँ और सामाजिक आदान-प्रदान सम्भव होता है। भाषा सामाजिक नियंत्रण का एक सशक्त साधन है।
महत्वपूर्ण तथ्य
दुर्खीम ने अपनी 'धार्मिक जीवन के प्राथमिक स्वरूप' The Elementary Forms of the Religious Life," में कहा है कि 'अब से पूर्व के समाजों में धर्म एक बन्धक का कार्य करता रहा है। इस आधार पर इन्होंने धर्म के निम्न प्रकार बताये हैं-
अनुशासनिक - जो अनुशासन करने को मजबूर करता है।
एकजुटता - समाज के लोगों को एकजुट करने के लिए एक बॉण्ड के रूप में कार्य करता है।
मजबूती - इसका उद्देश्य जीवन को जीवन्त करना तथा जीवित रहने की भावना का विकास करना होता है।
जश्न - इस प्रकार के धर्म से यह अर्थ है कि एक अच्छा अहसास हो, जिसे करने से खुशी व प्रसन्नता मिल रही हो।
इमाइल दुर्खीम ने धर्म को मानव समाज की संकटग्रस्त सामाजिक व्यवस्था के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया है।
'साधारण अर्थ में भाषा कुछ शब्दों का संग्रह मात्र है परन्तु विशिष्ट अर्थ में, भाषा को मुँह से उच्चारण किए जाने वाले शाब्दिक संकेतों की उस व्यवस्था के रूप में माना जा सकता है जिसके कि माध्यम से समाज या समूह के सदस्यों के लिये परस्पर अन्तः क्रियाएँ करना सम्भव होता है।
'सामाजिक नियंत्रण में भाषा की भूमिका-
(i) समाजीकरण,
(ii) संस्कृति का आधार,
(iii) नियंत्रण प्रणालियों का मुख्य साधन,
(iv) संचार का साधन
(v) सामाजिक एकता में सहायक,
(vi) आत्म नियंत्रण का साधन।
|
- अध्याय - 1 मानव भूगोल : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 पुराणों के विशेष सन्दर्भ में भौगोलिक समझ का विकास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 मानव वातावरण सम्बन्ध
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 जनसंख्या
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 मानव अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 ग्रामीण अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 नगरीय अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 गृहों के प्रकार
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 आदिम गतिविधियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 सांस्कृतिक प्रदेश एवं प्रसार
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 प्रजाति
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 12 धर्म एवं भाषा
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 13 विश्व की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला