बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 10
सांस्कृतिक प्रदेश एवं प्रसार
(Cultural Regions and Diffusion)
सांस्कृतिक प्रदेश ( Culture Regions) - मानव प्रकृति की अनुपम कृति है। मानव ने जैसे ही जन्म लिया, अपने आस-पास अपने पारिवारिक लोगों तथा सम्बन्धियों को देखा। यद्यपि वह इनसे अनभिज्ञ था। धीरे-धीरे उसका विकास हुआ। उसने अपनी आवश्यकता एवं इच्छानुसार अपना स्वतन्त्र परिवेश बनाया। इस परिवेश में उसके सहयोगी एवं सहधर्मी लोग निवास करने लगे। इस तरह एक अलग स्वतन्त्र भू-भाग विकसित हुआ जो किन्हीं अर्थों में अन्य क्षेत्रों से भिन्न हुआ। यहीं से सांस्कृतिक भूदृश्य, (Cultural Landscape) का अभ्युय हुआ। जब किसी क्षेत्र में समान सांस्कृतिक लक्षणों का प्रादुर्भाव हो, तो वह सांस्कृतिक प्रदेश कहलाता है। सांस्कृतिक प्रदेश को परिभाषित करते हुए स्पेन्सर ने लिखा है, "किसी लघु क्षेत्र में रहने वाले जन्मसमूह एवं उनकी संस्कृति का प्रभाव क्षेत्र जिनसे सांस्कृतिक पक्षों की समांगता होती है, सांस्कृतिक प्रदेश कहलाते हैं। "
वास्तविक मनुष्य का प्राचीनतम् रूप जावा मानव था जो लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। इसके बाद पेंकिंग मानव के जीवाष्म की खोज हुई जो ईसा से लगभग 7.5 लाख वर्ष पूर्व की मानी जाती है। तीसरा जीवाष्म हाइडेल वर्ग मानव की थी जिसका काल कंण्ड ईसा से लगभग 5 लाख वर्ष पूर्व की मानी जाती है। इस क्रम में चौथा जीवाष्म पिल्ट डाउन मानव की खोपड़ी का था जो ईसा से लगभग 3 लाख पूर्व की थी। ये सभी मानव के अल्प या अर्द्ध विकसित रूप थे। अतः इन्हें प्रारम्भिक मानव की श्रेणी में ही रखा जाना चाहिए। इन चारों जीवाष्मों के पश्चात् नियण्डर थल मानव की खोपड़ी का जीवाष्म मिला जो लगभग विकसित मानव के समान था। अतः इसे वास्तविक मानव कहा जा सकता है। वास्तविक मानव का आविर्भावकाल ईसा से 50 हजार वर्ष पूर्व माना जाता है। यह मानव होमोसेपियन्स था। जावा मानव की जो खोपड़ी सोलो नदी के किनारे मिली थी, वह मानव की सबसे पुरानी हड्डियाँ मानी जाती है। ये जावा में पाये गये खड़े होने वाले मानवीय कार्य पिथैकेन्थ्रोपस इरेक्टस मानव से काफी प्राचीन है इससे भी पुरानी खोपड़ी दक्षिण अफ्रीका में पायी गयी है। यह खोपड़ी पैरेन्थ्रोपस मानव की थी। इसी प्रकार की हड्डियां ट्रांसवाल में भी पायी गयी हैं जो प्लैसिएन्द्रोयस की थी। यह वह मानव था जो दोनों टांगों पर चल-फिर सकता था। आस्ट्रेलोपिथेकस को मानव का अग्रज माना जाता है। इसका अवशेष 70 लाख वर्ष पुराने समय का है और आधुनिकतम अवशेष है। इस मानव की कपालीय क्षमता वर्तमान कार्य से अधिक थी। इसका ललाट भी गोलाकार था जो मस्तिष्क के अधिक विकसित होने का सूचक था। इसकी भौहें थी उभरी हुई थी यद्यपि ये चिम्पेंजी से कम थी। इसका दंत निवास मानवीय था और निचला जबड़ा भी मनुष्य की भांति था। जहाँ एक ओर इसकी तालू मनुष्य की तालू से बड़ी थी वही इसका पेलविश (Pelvis) मनुष्य की भांति चौड़ी एवं चपटी थी। ये पूर्णतः शाकाहारी और छोटे थे तथा इसकी हड्डियाँ भी हल्की थी। इसमें से दूसरा मुख्य रूप से मांसाहारी थी और इसे ही आधुनिक मानव का पूर्वज माना जाता है। ये आवश्यकतानुसार प्रारम्भिक प्रकार के
हथियारों का भी प्रयोग करते थे। इसके विलुप्त हो जाने के पश्चात् होमो हैवीलस का उद्भव हुआ वर्तमान में अत्यंत नूतन युगीन मानव होमो जाति के मानें जाते हैं। इसके दो प्रकार थे— होमो इरेक्ट्स तथा होमोसेपियन्स। होमोसेपियन्स का आविर्भाव दो लाख वर्ष पूर्व माना जाता है। यह विशाल मस्तिष्क वाली जाति है। अब विद्वान यह मानने लगे हैं कि मानव की एक ही जाति है और समय व्यतीत होने के साथ यह जाति धीरे-धीरे शरीर एवं मस्तिष्क के आकार तथा संस्कृति के रूप में विकसित हुई। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में समुद्र के कारण इसे एक प्रमुख भौगोलिक इकाई माना जाता है। भारतीय संस्कृति धर्म प्रधान है। बौद्ध धर्म के प्रसार के माध्यम से भारतीय संस्कृति के विशेषताओं तथा गुणों का मध्य एशिया तिब्बत, चीन, कोरिया, जापान, थाईलैण्ड तथा इण्डोनेशिया तक प्रसरण हुआ। आज भी इन देशों में भारतीय संस्कृति परम्परायें, लक्षण तथा धार्मिक विश्वास पाये जाते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य
सांस्कृतिक प्रदेशों का सीमांकन क्षेत्रीय सांस्कृतिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है।
सांस्कृतिक प्रदेशों को सांस्कृतिक परिमण्डल भी कहा जाता है।
विभिन्न भिन्नताओं एवं विशेषताओं के आधार पर विश्व को विभिन्न सांस्कृतिक प्रदेशों में विभाजित किया जाता रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से विश्व को दो वर्गों में रखा गया है।
(1) प्राचीनकाल के सांस्कृतिक प्रदेश।
(2) वर्तमान काल के सांस्कृतिक प्रदेश।
स्पेन्सर एवं थॉमस ने विश्व के सांस्कृतिक प्रदेशों का वर्गीकरण करते समय, उन्हें सांस्कृतिक प्रदेश परिमण्डल, वृहद् सांस्कृतिक प्रदेश तथा सांस्कृतिक उपप्रदेशों में विभाजित किया है। इन्होंने विश्व को 11 सांस्कृतिक परिमण्डलों, 50 वृहद् सांस्कृतिक प्रदेशों एवं 37 सांस्कृतिक उपप्रदेशों में विभाजित किया है।
सांस्कृतिक दृष्टि से यह काल बहुत कठिन माना जाता है। विश्व के अनेक देश और क्षेत्र या तो इसके प्रभाव में आ चुके हैं या क्रमशः आ रहे हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए निम्न सांस्कृतिक परिमण्डलों में विभाजित किया जा सकता है।
1. दक्षिण एशियाई परिमण्डल,
2. दक्षिणी पूर्वी एशियाई परिमण्डल,
3. अरब परिमण्डल,
4. पूर्वी एशियाई परिमण्डल,
5. अफ्रीकी परिमण्डल,
6. पश्चिमी यूरोपीय परिमण्डल,
7. आस्ट्रेलियाई परिमण्डल,
8. प्रशान्त सागरीय परिमण्डल,
9 लैटिन अमेरिका परिमण्डल,
10. पूर्वी यूरोपीय परिमण्डल।
वास्तविक मनुष्य का प्राचीनतम रूप जावा मानव था।
जावा मानव को अर्द्ध विकसित मानव माना जाता है।
जावा मनुष्य का अस्तित्व 10 लाख वर्ष पूर्व था।
जावा मानव के बाद पेकिंग मानव की खोपड़ी के जीवाष्म प्रप्त हुए जो ईसा से 705 लाख वर्ष पुराने हैं।
इस क्रम में तीसरी खोपड़ी हाइडेवर्ग मानव की मिली जो ईसा से 5 लाख वर्ष पूर्व की है।
चौथी खोपड़ी पिल्टू डाउन मानव की थी जो ईसा से लगभग 3 लाख वर्ष पुरानी है।
इस क्रम में पाँचवीं खोपड़ी निएण्डर थल मानव की मिली है जो वास्तविक मनुष्य के समान थी।
वास्तविक मनुष्य का आविर्भाव ईसा से 50 हजार वर्ष पूर्व माना जाता है जिसे होमोसेपियन्स. कहा जाता है।
जावा मानव की जो खोपड़ी शौलो नदी के किनारे मिली थी वही सबसे पुराने मनुष्य की हड्डियाँ कही जाती है।
जावा मानव की उक्त खोपड़ी खड़े होने वाले मानवीय कार्य पिथैकैन्थ्रोपस इरैक्ट्स मानव से काफी प्राचीन है।
इससे भी अधिक प्राचीन खोपड़ी दक्षिणी अफ्रीका में मिली है जिसे पैरेन्थ्रोपस नाम दिया गया है।
पैरेन्थ्रोपस की खोपड़ी के साथ-साथ उसके बाजू की हड्डी, बाँह की ऊपरी हड्डी और पैर की उंगलियों की भी हड्डियाँ मिली है।
अफ्रीका के ट्रांसवालसेप्लैसिएब्रोयस के भी जीवाष्म मिले हैं।
प्लैसिएनवर्रोथिस ऐसा मानवीय कार्य था जो टांगों पर चल फिर सकता था। आस्ट्रेलोपिथेकस को मानव का अग्रज माना जाता है।
इसका अवशेष सात लाख वर्ष का आधुनिकतम अवशेष है।
आस्ट्रेलिया पिथेकस की कपालीय वर्तमान कार्य से अधिक थी।
इसका ललाट गोलाकार था जो मस्तिष्क के अधिक विकसित होने का सूचक था।
इसकी भौंहे यद्यपि उभरी थी किन्तु चिम्पैजी से कम उभरी थी।
आस्ट्रेलोपिथेक एक ऐसा मानव कार्य था जिसकी नासिका दबी हुई थी।
आस्ट्रेलोपिथेकस के दन्त विन्यास मानव के समान थे।
इसका निचला जबड़ा मनुष्य की भाँति था। परन्तु कार्पियो से उल्टा था। आस्ट्रेलोपिथेकस की वस्ति (Pelivis) चौड़ी एवं चपटी थी।
इसकी तालू मनुष्य की तालू से बड़ी थी।
अस्ट्रेलोपिथेकस का दूसका वंशज अफ्रीकन्स था।
आस्ट्रेलोपिथेकस के ये दोनों वंशज शाकाहारी तथा आकार में छोटे थे और हल्की हड्डियों वाले थे।
आस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रीकन्स प्रारम्भिक प्रकार के हथियारों का प्रयोग आवश्यकतानुसार करते थे।
आस्ट्रेलोपिथेकस के विलुप्त हो जाने के बाद होमोहैविलस का उद्भव हुआ।
वर्तमान मेमो जाति को नूतन युगीन मानवीय प्रजाति माना जाता है।
होमो जाति के दो प्रकार होते हैं— होमोइरेक्टस तथा होमोसेपियन्स।
प्रो0 डुव्रोय ने जावा मानव को पिथैकेन्थ्रोपस इरेक्टस नाम दिया।
इसे खड़ा हो सकने वाला कार्य मानव कहा जा सकता है।
जावा कार्य मानव, पेकिंग मानव तथा पिल्ट डाउन मानव के जीवाष्म आपस में मिलते-जुलते थे।
इनके जीवाष्मों में समानता की वजह से इन्हें एक जाति के अन्तर्गत अलग-अलग प्रजातियां
माना जाता है परन्तु आधुनिक मानव से भिन्न होने के कारण इन्हें होमोइरेक्ट्स के रूप में एक अलग जाति माना जाता है
होमो इरेक्ट्स का शारीरिक कंकाल आधुनिक मानव जैसा था परन्तु आधुनिक मानव से भिन्न होने के कारण इन्हें एक अलग जाति माना जाता है।
होमो इरेक्ट्स की खोपड़ी विशाल थी, दांत बड़े एवं मस्तिष्क छोटा था।
होमो इरेक्ट्स की कपालीय क्षमता आधुनिक मानव से कम थी परन्तु आस्ट्रेलोपिथेकस मानव में दुगुनी थी।
होमो इरेक्ट्स के दांत विशाल, थोड़ा निकले हुए तथा आपस में सटे हुये थे।
होमो इरेक्ट्स प्रारम्भिक भाषा का प्रयोग करते थे।
इनके पास प्रस्तर के हथियार थे जिससे स्पष्ट होता है कि शिकार भी करते थे।
होमो सेपियन्स में अनेक मानवीय लक्ष्य तथा विशेषतायें थीं।
होमोसेपियन्स का आविर्भाव होमोइरेक्ट्स से दो लाख वर्ष बाद हुआ।
यह विशाल कपालीय क्षमता वाली जाति है। जिसकी कपालीय दीवाल पतली, ललाट ऊंचा चेहरा लम्बा तथा भृकुटि कटक कम उभरे थे।
होमो सेपियन्स की एक प्रजाति होनिएण्डर थेलिन्सिस थी जिसकी कपालीय क्षमता अधिक चेहरा लम्बा तथा जबड़े निकले हुए थे।
इसी को वास्तविक मानव माना जाता है जो हथियारों का प्रयोग जानता था।
इसके पूर्वज नियण्डरथल मानव थे।
मानव विकास के चार मुख्यकाल हैं--
(1) होमोहैवीलिस काल
(2) होमाइरेक्ट्स काल
(3) होमोसैपियन्स काल तथा
(4) आधुनिक होमो सौपियन्स काल।
मानव ने अपने विकास की कई सीढ़ियाँ टर्शरी युग से आज तक प्राप्त की है।
मानव विकास की पौषिदक विचार धारा के अनुसार मानव का जन्म एवं विकास एक ही स्थान पर हुआ।
बहुमूलक विचारधारा के अनुसार मानव का विकास पृथ्वी के अनेक स्थानों पर एक साथ हुआ।
मानव का उद्गम क्षेत्र मध्य एशिया को माना जाता
प्रो० ग्रिफिथ टेलर तथा आरुवोर्न ने मानव का आदि क्षेत्र तिब्बत तथा मंगोलिया को बताया है।
डार्ट कीथ तथा लीके ने आदि मानव का विकास स्थान अफ्रीका महाद्वीप को माना है। गैब्रो ने मानव का उद्भव स्थल केवल तिब्बत को माना है।
नवीन खोजों के आधार पर मानव की उत्पत्ति की एक धारणा यह बनी है कि मानव का उद्गम स्थल शिवालिक का दक्षिणी प्रदेश था।
मानवशास्त्र में प्रयुक्त 'प्रसार' शब्द शायद विज्ञान की गैसो के प्रसरण या विसरण के अर्थ में लिया गया है।
सामाजिक-सांस्कृतिक मानव शास्त्र में 'प्रसरण' शब्द का प्रयोग संस्कृति के क्षेत्र में किया जाता है।
पर्यावरणीय परिवर्तन के दबाव में या अन्य प्रकार की आपदाओं से कालान्तर में लोगों का अपनी संस्कृति से किसी दूसरी संस्कृति में प्रवासी बनकर रहना भी उसके माध्यम से दूसरी संस्कृति में नवीन सांस्कृतिक तत्वों के प्रवेश की स्थिति में ले आता है।
भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में समुद्र के कारण यह एक प्रमुख भौगोलिक इकाई माना जाता 1
बौद्ध धर्म के प्रसाद के माध्यम से भारतीय संस्कृति की विशेषतायें तथा गुण मध्य एशिया, तिब्बत चीन को दिया, जापान, थाईलैण्ड तथा इंडोनेशिया तक पहुँची।
आज भी इन देशों में भारतीय संस्कृति की परम्परायें, लक्षण तथा धार्मिक विश्वास पाये जाते हैं।
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- अध्याय - 1 मानव भूगोल : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 पुराणों के विशेष सन्दर्भ में भौगोलिक समझ का विकास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 मानव वातावरण सम्बन्ध
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 जनसंख्या
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 मानव अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 ग्रामीण अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 नगरीय अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 गृहों के प्रकार
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 आदिम गतिविधियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 सांस्कृतिक प्रदेश एवं प्रसार
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 प्रजाति
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 12 धर्म एवं भाषा
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 13 विश्व की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला