बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 4
जनसंख्या
(Population)
पृथ्वी पर मानव का विकास आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व पुरापाषाण काल में हो चुका था। उस समय विश्व में मनुष्यों की संख्या संभवतः एक हजार से भी कम रही होगी। ईसा के प्रारम्भिक काल तक इसके लगभग 13 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया है। सन् 1650 तक जनसंख्या बढ़कर लगभग 55 करोड़ हो गयी। सन 1950 में विश्व की कुल जनसंख्या 251 करोड़ थी। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रागैतिहासिक काल में जनसंख्या वृद्धि दर अत्यन्त मन्द थी जो विभिन्न युगों में घटते-बढ़ते लगभग स्थिर बनी रही। जितनी जनसंख्या पिछले दस लाख वर्षों में हो पायी थी, उसके चार गुना से अधिक जनसंख्या ईसा के पश्चात 1650 वर्षों में हो गयी। अगले मात्र तीन सौ वर्षों में (1650 से 1950 तक) विश्व की जनसंख्या लगभग पाँच गुनी हो गयी। पिछले पचास वर्षों में (1950-2000 तक) यह पुनः ढाई गुनी हो गयी। इससे यह स्पष्ट है कि जनसंख्या की उल्लेखनीय वृद्धि आज से लगभग 400 वर्ष पहले आरम्भ हुई तथा इसकी वृद्धि दर में निरन्तर वृद्धि होती गयी। जनसंख्या की सर्वाधिक वृद्धि बीसवीं शताब्दी में हुई है। अनेक देशों में यह वृद्धि इतनी तीव्र रही है कि वे जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में आ गये। विभिन्न ऐतिहासिक कालों में जनसंख्या वृद्धि की प्रकृति देश-काल के अनुसार भिन्न-भिन्न रही है।
20वीं शताब्दी के आरम्भ में विश्व की कुल जनसंख्या लगभग 166 करोड़ हो चुकी थी। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही कृषि के विकास, औद्योगीकरण, नगरीकरण, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाओं आदि में वृद्धि के परिणामस्वरूप मृत्युदर में उल्लेखनीय कमी आयी तथा जनसंख्या वृद्धि तीव्र होने लगी। सन् 1900 की 166 करोड़ जनसंख्या 50 वर्ष बाद सन् 1950 में 251 करोड़ हो चुकी थी तथा सन् 1960 तक विश्व की जनसंख्या 300 करोड़ तक पहुँच गयी। विभिन्न महाद्वीपों में जनसंख्या वृद्धि की दरें भिन्न-भिन्न रही हैं जिसके लिए अनेक जनांकिकीय, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक कारक उत्तरदायी हैं। एशिया तथा यूरोप प्राचीन काल से ही अधिक जनसंख्या वाले महाद्वीप रहे हैं। पुरानी दुनिया के दो अन्य महाद्वीप अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया में पहले से ही अल्प मानव बसा था।
भूतल पर जनसंख्या के वितरण में आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक परिवर्तन होता रहा है।
पृथ्वी के विभिन्न भागों में जनसंख्या का वितरण अत्यधिक विषम है।
एक अनुमान के अनुसार विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 90 प्रतिशत इसके मात्र दस प्रतिशत स्थलीय भाग पर संकेन्द्रित है।
विश्व की लगभग आधी जनसंख्या सम्पूर्ण स्थलीय क्षेत्र के मात्र 5 प्रतिशत भाग पर ही रहती है।
ब्लाश के अनुसार विश्व की दो तिहाई जनसंख्या उसके 1/7 क्षेत्र पर केन्द्रित है।
महाद्वीपीय वितरण के अनुसार एशिया में संसार की लगभग दो तिहाई जनसंख्या का निवास है।
धरातल पर जनसंख्या के असमान वितरण के लिए अनेक प्राकृतिक तथा मानवीय कारक उत्तरदायी है।
फिंच एवं ट्रिवार्थी के अनुसार जनसंख्या ही वह सन्दर्भ बिन्दु है जिसके कारण भूगोलवेत्ता अन्य पर्यावरणीय तंत्रों का अध्ययन करता है।
जनसंख्या घनत्व द्वारा यह प्रकट होता है कि भूतल के किस भाग में जनसंख्या का जमाव अधिक है तथा कहाँ कम है।
जो भौगोलिक कारक जनसंख्या वितरण के लिए उत्तरदायी होते हैं, वही कारक जनसंख्या घनत्व के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।
नियतिवादी विचारकों के अनुसार भूतल पर जनसंख्या के वितरण को प्राकृतिक कारक ही निर्धारित करते हैं।
जनसंख्या के वितरण पर कोई एक कारक अधिक प्रभावशाली हो सकता है किन्तु उस पर अन्य कारकों का भी उल्लेखनीय प्रभाव पाया जाता है।
जनसंख्या विवरण को प्रभावित करने वाले कारकों पर जनसंख्या पारिस्थितिकी के रूप में विचार करना ही उचित है।
जनसंख्या तथा उसके घनत्व के वितरण को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख भौगोलिक कारक है प्राकृतिक कारक एवं मानवीय कारक।
जनसंख्या वितरण तथा घनत्व को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारकों में जलवायु, भू- विन्यास, मिट्टी एवं खनिज, प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तु प्रमुख है।
मनुष्य के स्वास्थ्य, निवास तथा क्रियाओं को प्रभावित करने वाले कारकों में जलवायु का महत्व सर्वोपरि है।
तापमान, आर्द्रता एवं वर्षा, प्रचलित पवनें तथा परिवर्तित जलवायु के मानवीय क्रियाशीलता को नियंत्रित करते हैं।
स्वास्थ्य वर्द्धक, जलवायु मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
हंटिंगटन में मानसिक कार्य के लिए 30-5° सेल्सियस तथा शारीरिक श्रम के लिए 150-180 सेल्यिसस तापमान को सर्वोत्तम बताया है।
शीतोष्ण जलवायु मानव स्वास्थ्य तथा आर्थिक विकास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। तापमान एवं आर्द्रता के सम्मिलित प्रभाव से ही किसी प्रदेश की वनस्पति एवं जीवमंडल का निर्धारण होता है।
वर्षा के वितरण तथा जनसंख्या के घनत्व में सीधा सम्बन्ध पाया जाता है।
जनसंख्या का घनत्व अधिक वर्षा वाले क्षेत्र से कम वर्षा वाले क्षेत्र की ओर सामान्यतः घटता जाता है।
किसी भूक्षेत्र में जनसंख्या के वितरण एवं घनव पर वहाँ की स्थलाकृति का अधिक प्रभाव देखने को मिलता है।
सबसे अधिक जनसंख्या मैदानी भागों में निवास करती है।
विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश चीन की अधिकांश जनसंख्या इसके पूर्वी भाग में ही संकेन्द्रित है।
औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् खनिज संसाधनों की उपलब्धि ने जनसंख्या वितरण को काफी प्रभावित किया है।
उत्तरी पश्चिमी यूरोपीय देशों में जनसंख्या अधिक सघन है।
भूगोल / 31 ें भी जहाँ महत्वपूर्ण खनिज प्राप्त होते हैं, जनसंख्या का उल्लेखनीय बसाव मिलता है।
• पूर्वी यूरोप के जिन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण खनिजों के भण्डार है वहाँ भी जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
जल मनुष्य की एक जैविक आवश्यकता है जिसके अभाव में मानव जीवन सम्भव नहीं है। जलापूर्ति की सुविधाओं वाले क्षेत्रों में जनसंख्या की सघनता पायी जाती है।
आधुनिक काल में विश्व व्यापार के दृष्टिकोण से समुद्री मार्गों का महत्व सर्वाधिक है। किसी प्रदेश में जनसंख्या वितरण तथा घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक कारक प्रमुख है।
किसी भी क्षेत्र में मानव विकास के लिए वहाँ जीविका के किसी न किसी साधन का पाया जाना अनिवार्य होता है।
प्रौद्योगिकी विकास जनसंख्या घनत्व को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है।
जनसंख्या वितरण के प्रतिरूप पर सामाजिक संगठन, परम्पराओं, धार्मिक विश्वास तथा जीवन मूल्यों के प्रभाव को लघु स्तर पर देखा जा सकता है।
विभिन्न मुस्लिम देशों तथा विकासशील देशों में सामाजिक प्रावरोधों की जटिलता के कारण जनसंख्या की सघनता में चिंताजनक वृद्धि हो रही है।
भौतिकवादी पाश्चात्य संस्कृति आर्थिक सम्पन्नता के लिए जनसंख्या के प्रवास को प्रोत्साहित करती है।
सरकारी नीतियां जनसंख्या के वितरण तथा घनत्व को विभिन्न रूपों में नियंत्रित करती है। 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक जनसंख्या प्रवास पर राष्ट्रीय नियंत्रण कम होता था जिससे बड़े पैमानों पर जनसंख्या का स्थानान्तरण संभव था।
आस्ट्रेलिया की श्वेत नीति के परिणामस्वरूप वहाँ गोरी जातियों के अतिरिक्त अन्य लोगों को नागरिकता नहीं प्राप्त हो सकती है।
इसी प्रकार देश विभाजन, युद्ध आदि के परिणामस्वरूप भी जनसंख्या का स्थानान्तरण होने से जनसंख्या वितरण का प्रतिरूप प्रभावित होता है।
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि, प्रवास तथा नगरीकरण जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख जनांकिकीय तत्व हैं।
लगभग पिछले पचास वर्षों से प्रायः सभी देशों में जनसंख्या के अन्तर्राष्ट्रीय आवास- प्रवास पर प्रतिबन्ध है।
अधिकांश विकसित देशों, यू०एस०ए०, कनाडा, जापान तथा आस्ट्रेलिया में जन्मदर एवं मृत्युदर दोनों ही नियन्त्रित है।
इसी प्रकार नगरीकरण के विकास का भी जनसंख्या वितरण पर प्रभाव पाया जाता है।
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- अध्याय - 1 मानव भूगोल : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र
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- उत्तरमाला
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- अध्याय - 4 जनसंख्या
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- अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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