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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2714
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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र

अध्याय - 16
मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त
(Concept and Theory of Inflation)

कीमत में निरंतर वृद्धि को मुद्रा-स्फीति कहते हैं। मुद्रास्फीति अथवा मुद्राप्रसार से आशय मूल्य में वृद्धि से है लेकिन वाणिज्यिक शब्दों में मुद्रास्फीति उस स्थिति को कहते हैं जिसमें चलन में मुद्रा की पूर्ति उसकी माँग से अधिक होती है। जब सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक आवश्यकता से अधिक मुद्रा का निर्गमन कर देते है, तो इसे मुद्रा स्फीति अथवा मुद्राप्रसार कहते हैं।

मुद्रा संकुचन का अर्थ मुद्राप्रसार के विपरीत होता है। इसमें मूल्यों का ह्रास होता है तथा मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है। जब देश में किसी समय मुद्रा की पूर्ति उसकी माँग से कम होती है तब उसे मुद्रा संकुचन कहते हैं।

मुद्रास्फीति प्रायः दो तरह की होती है - माँग-प्रेरित स्फीति व लागत प्रेरित स्फीति।

माँग-प्रेरित स्फीति में उत्पादों की माँग बढ़ने से कीमतों में वृद्धि होती है। उत्पादों की माँग बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि, बढ़ती मौद्रिक आय बढ़ता काला धन, मुद्रा पूर्ति में वृद्धि, घाटे की वित्त व्यवस्था आदि।

लागत प्रेरित स्फीति में उत्पादन लागत के बढ़ने से कीमतों में वृद्धि होती है। उत्पादन लागत के बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे आगतों की लागत में वृद्धि, अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि, तेल की कीमतों में वृद्धि, पुरानी तकनीकी का प्रयोग आदि।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • खुली मुद्रास्फीति वह स्थिति है जिसमें कीमतों में होने वाली वृद्धि को नियन्त्रित करने के लिए कोई उपाय नहीं अपनाए जाते। कीमतों को बिना सरकारी नियंत्रणों के बढ़ने दिया जाता है। जब बढ़ती हुई कीमतों को प्रशासनिक उपायों जैसे राशनिंग, कीमत नियंत्रण इत्यादि द्वारा सरकार दबा देती है अर्थात् कीमतों को नहीं बढ़ने देती तो इसे दबी मुद्रास्फीति कहते हैं।
  • प्रथम योजना की अवधि ( 1951 से 1956 में कीमतों में लगभग 3.6 प्रतिशत प्रतिवर्ष की कमी हुई।
  • बारहवीं योजना के पहले 2012-13 में कीमत में 7.34 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई।
  • भारत में थोक कीमत सूचकांक व उपभोक्ता कीमत सूचकांक की सहायता से मुद्रा स्फीति दर को मापा जाता है।
  • जब केन्द्रीय सरकार आवश्यकता से अधिक मुद्रा निर्गमन कर देती है तो उसे भी मुद्राप्रसार कहते हैं।
  • "मुद्रा स्फीति वह स्थिति है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता रहता है तथा वस्तुओं के मूल्य बढते रहते हैं।' - जी. क्राउथर
  • मुद्रा-अपस्फीति सदैव बिगड़ी हुई स्थिति में सुधार के लिए की जाती है।
  • मूल्यों को सामान्य स्तर पर लाने के लिए मुद्रा की मात्रा में क्रमशः कमी की जाती है। इस प्रक्रिया को मुद्रा-अपस्फीति कहते हैं।
  • जुलाई, 1991 में भारत सरकार ने रुपये का तीन बार अवमूल्यन किया जिससे रुपये की कीमत 20% कम हो गयी है।
  • जब बैंक की ब्याज की दर में वृद्धि हो जाती है तो देश में साख की मात्रा में कमी हो जाती है और मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। केन्द्रीय बैंक अन्य साधनों द्वारा प्रायः जैसे- बैंकों के रक्षित कोष की मात्रा में वृद्धि कराकर, ऋण-पत्रों को बेचकर अथवा प्रत्यक्ष नियन्त्रण करके देश में साख की मात्रा में कमी कर देता है, तो देश में मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • मुद्राप्रसार के अन्तर्गत कीमतों को सामान्य स्तर तक घटाया जाता है जबकि मुद्रा संकुचन के अन्तर्गत कीमतें सामान्य स्तर से नीचे भी गिर जाती है।
  • मुद्राप्रसार आशाजनक वातावरण प्रस्तुत करता है जबकि मुद्रा संकुचन में चारों ओर निराशा का वातावरण पाया जाता है।
  • मुद्रा-स्फीति में बढ़ते हुए उद्योग-धन्धों में श्रम की माँग बढ़ती है जिससे रोजगार का सृजन होता हैं, रोजगार बढ़ने से लोगों की आय में वृद्धि होती है, आय में वृद्धि से उपभोग में वृद्धि होती है जिससे वस्तुओं की माँग बढ़ती है तथा माँग के बढ़ने से उत्पादन में वृद्धि होती है।
  • मुद्रा के अवमूल्यन् से आशय मुद्रा के बाह्य मूल्य को कम करना है। जब देशी मुद्रा की निश्चित दर विदेशी मुद्रा के अनुपात में अपेक्षाकृत कम कर दी जाती है तो इसे मुद्रा का अवमूल्यन कहा जाता है।


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    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macro Economics)
  2. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार (National Income and Related Aggregates)
  5. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय लेखांकन एवं कुछ आधारभूत अवधारणाएँ (National Income Accounting and Some Basic Concepts)
  8. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ (Methods of National Income Measurement)
  11. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income)
  14. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 हरित लेखांकन (Green Accounting)
  17. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (The Classical Theory of Employment)
  20. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
  23. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 उपभोग फलन (Consumption Function)
  26. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 विनियोग गुणक (Investment Multiplier)
  29. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 निवेश एवं निवेश फलन(Investment and Investment Function)
  32. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  33. उत्तरमाला
  34. अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
  35. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  36. उत्तरमाला
  37. अध्याय - 13 त्वरक सिद्धान्त (Principle of Accelerator)
  38. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  39. उत्तरमाला
  40. अध्याय - 14 ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त (Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)
  41. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  42. उत्तरमाला
  43. अध्याय - 15 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त (IS-LM व्याख्या) Modern Theory of Interest (IS-LM Analysis )
  44. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  45. उत्तरमाला
  46. अध्याय - 16 मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त (Concept and Theory of Inflation)
  47. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  48. उत्तरमाला
  49. अध्याय - 17 फिलिप वक्र (Philips Curve)
  50. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  51. उत्तरमाला

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