बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय - 11
निवेश एवं निवेश फलन
(Investment and Investment Function)
कीन्स के अनुसार विनियोग से हमारा आशय एक अवधि के अन्दर होने वाली उत्पादक क्रियाओं के परिणामस्वरूप पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में होने वाली चालू वृद्धि से होना चाहिए। कीन्स ने वित्तीय विनियोग को विनियोग नहीं माना क्योंकि वित्तीय विनियोग से कुल व्यय प्रभावित नहीं होता है। उनके अनुसार विनियोग का आशय वास्तविक विनियोग से है। वास्तविक विनियोग में मशीनें उपकरण स्कन्ध तथा शुद्ध विदेशी विनियोग शामिल होता है।
विनियोग को दो भागों में बाँटा जा सकता है - (1) स्वेच्छापूर्ण, या स्वायत्त या सार्वजनिक विनियोग तथा (2) प्रेरित विनियोग।
सार्वजनिक विनियोग उपभोग स्तर पर बिना लाभ-हानि का ध्यान रखे किया जाता है। यह प्रायः लोककल्याणकारी कार्यों के लिए सरकार द्वारा किया जाता है। यह आय तथा उत्पादन के स्तरों को प्रभावित नहीं करता है और लोच रहित होता है। यह प्रायः कम्पनी या कारखानों की स्थापना में प्रयुक्त किया जाता है। वस्तुतः दीर्घकाल में सभी प्रकार के विनियोग स्वायत्त विनियोग हो जाते हैं। स्वायत्त विनियोग के विपरीत प्रेरित विनियोग का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है। आय बढ़ने पर इसमें वृद्धि होती है और यह आय के परिवर्तनों से निर्धारित होता है। इसकी मात्रा आय बढ़ने या घटने पर घटती-बढ़ती रहती है। अल्पकाल में पूँजी उत्पादन अनुपात के स्थिर होने के कारण आय तथा प्रेरित विनियोग के बीच सीधा तथा अनुपाती सम्बन्ध होता है। इसका प्रयोग मशीन आदि पूँजीगत सामानों में उत्पादन को बढ़ाने हेतु किया जाता है।
प्रेरित विनियोग मुख्यतः दो प्रकार का होता है - ( 1 ) औसत विनियोग प्रवृत्ति तथा (2) सीमान्त विनियोग प्रवृत्ति।
विनियोग से आय का अनुपात औसत विनियोग प्रवृत्ति होता है जबकि विनियोग तथा आय में परिवर्तन का अनुपात सीमान्त विनियोग प्रवृत्ति होता है। इसके अतिरिक्त विनियोग के कई अन्य प्रकार भी होते हैं। किसी राष्ट्र में होने वाला सम्पूर्ण विनियोग सकल विनियोग होता है तथा सार्वजनिक क्षेत्र में किया जाने वाला विनियोग सार्वजनिक विनियोग कहलाता है। निजी विनियोग ब्याज की मात्रा तथा पूँजी के सीमान्त दक्षता पर आधारित होता है। यह लाभ से प्रभावित प्रेरित विनियोग होता है। सस्ती मुद्रा नीति तथा राजकोषीय नीति अपनाकर, एकाधिकार की प्रवृत्ति को रोककर, निगम करों में कमी करके तथा नव प्रवर्तन तथा शोध को प्रेरित करके विनियोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है। पूँजी की सीमान्त क्षमता कटौती की उस दर के बराबर होती है जो पूँजी परिसम्पत्तियों के जीवन काल में प्राप्त होने वाले कुल वार्षिक प्रतिफलों की मात्रा के वर्तमान मूल्य को उसके पूर्ति मूल्य के बराबर कर दे। भावी आय तथा पूर्ति कीमत पूँजी की सीमान्त क्षमता को निर्धारित करते हैं। भावी आय का तात्पर्य उस आय से होता है जो पूँजी परिसम्पत्तियों से प्राप्त होता है जबकि विनियोग के लिए पूर्ति कीमत का उतना ही महत्व होता है जितना कि भावी आय का, क्योंकि पूर्ति कीमत कारखाने या उपक्रम की वह कीमत होती है जो भावी आय को प्राप्त करने से पूर्व विनियोग की जाती है। पूँजी की सीमान्त क्षमता उपभोग की प्रवृत्ति, अनुमानित माँग, सरकार की करारोपण की नीति, आय में परिवर्तन तथा अनुमानित आय से प्रभावित होती है। अतः इन पर विवेकपूर्ण विचार किया जाना आवश्यक होता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- निवेश को विनियोग भी कहा जाता है।
- विनियोग का आशय वास्तविक विनियोग से है।
- प्रो. कीन्स ने वित्तीय विनियोग को विनियोग नहीं माना है क्योंकि वित्तीय विनियोग से कुल प्रभावित नहीं होता है।
- नये पूँजीगत पदार्थों का उत्पादन करना तथा उनको क्रय करने हेतु व्यय करना ही वास्तविक विनियोग है।
- कीन्स के अनुसार — "विनियोग से हमारा आशय एक अवधि के अन्दर होने वाली उत्पादक क्रियाओं के फलस्वरूप पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में होने वाली चालू वृद्धि से है।
- विनियोग दो प्रकार का होता है- (1) स्वायत्त विनियोग, (2) प्रेरित विनियोग।
- रोजगार का स्तर उपभोग तथा विनियोग पर निर्भर होता है।
- रोजगार बढ़ाने हेतु विनियोग पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
- सस्ती मुद्रा नीति तथा राजकोषीय नीति को अपनाकर विनियोग को बढ़ाया जा सकता है। विनियोग को बढ़ाने के लिए बड़े औद्योगिक फर्मों के एकाधिकारी प्रवृत्ति को रोकना चाहिए ताकि छोटी फर्मो द्वारा किये जाने वाले विनियोग पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
- निगम करों पर विनियोजन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- निगम करों में कमी करके विनियोग को बढ़ाया जा सकता है।
- विनियोग बढ़ाने के लिए सरकार को चाहिए कि नवीकरण तथा शोध कार्यों से प्रेरित करे ताकि समुचित विकास हो सके।
- पूँजी की सीमान्त क्षमता का तात्पर्य किसी नई पूँजी पर सम्पत्ति से सम्भावित लाभ दर से लगाया जाता है।
- प्रो. कुरिहारा के अनुसार "पूँजी की सीमान्त क्षमता किसी पूँजी परिसम्पत्ति की भविष्य में पूर्ति और कीमत के अनुपात से है।”
- प्रो. कीन्स के अनुसार पूँजी कीं सीमान्त क्षमता कटौती की उस दर के बराबर होती है जो पूँजी परिसम्पत्तियों के जीवन काल में प्राप्त होने वाले कुल वार्षिक प्रतिफलों की मात्रा के वर्तमान मूल्य को उसके पूर्ति मूल्य के बराबर कर दे।
- भावी आय से तात्पर्य उस आय से है जो पूँजी परिसम्पत्तियों से प्राप्त होती है।
- विनियोग के लिए पूर्ति कीमत का उतना ही महत्व है जितना की भावी आय का।
- यदि भविष्य में वस्तुओं की माँग बढ़ने की संभावना हो तो पूँजी की सीमान्त क्षमता बढ़ेगी।
- पूँजी की सीमान्त क्षमता की अवधारणा का सर्वप्रथम उपयोग सन् 1930 में इरविंग फिशर द्वारा दिया गया।
- फिशर ने पूँजी की सीमान्त क्षमता को लागत पर प्राप्त प्रतिफल की दर का नाम दिया।
- पूँजी की सीमान्त क्षमता का तात्पर्य है "विनियोग से प्राप्त होने वाले लाभ की अनुमानित दर। पूँजी की सीमान्त दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक हैं अनुमानित माँग एवं उपभोग प्रवृत्ति आय है।
- स्वायत्त निवेश आय से स्वतन्त्र है।
- गरीबी निवारण हेतु स्वयं सहायता की बात सी चक्रवर्ती ने किया।
- विषमता गणितीय औसत माप नहीं है।
- तरलता जाल की स्थिति में बाण्ड की कीमत कम होती है।
- कीन्स के अनुसार MEC निर्भर करती है, भावी प्रतिफल की दर पर।
- अनुकूलतम् प्रत्याशा उपागम - राबर्ट बैरो।
- उपभोग फलन हिग्स व्यापा चक्र का अवयव है।
- सरकारी व्यय में वृद्धि के कारण निजी व्यय में कमी हो जाना क्राउंडिंग आउट कहलाता है।
- उपयोग निवेश को शून्य होने से रोकता है।
- दवा बनाने वाली कम्पनी द्वारा दवा के शोध एवं विकास पर किया गया कम स्थिर लागत होगी।
- जब अर्थव्यवस्था उत्कर्ष की ओर बढ़ रही होती है तो कीमतें बढ़ती हैं।
- माल्थस माँग के सन्दर्भ में भिन्न सोचता है।
- काल्डोर मुद्रा माँग से सम्बन्धित नहीं है।
- रोकिन्स का मत है कि 'अर्थशास्त्र न केवल फलदायक है व प्रकाशदायक हैं।
- वस्तु की माँग वक्र को कीत उपभोग वक्र (PCC) से ज्ञात किया जा सकता है। सामान्य लाभ AFC का अंग है।
- प्रतिस्थापन प्रभाव का सम्बन्ध हिक्स से है।
- निजी निवेश प्रेरित निवेश होता है कथन सत्य है।
- स्वायत्त निवेश ब्याज की दर MEC एवं दोनों पर निर्भर करता है।
- निवेश प्रेरित, स्वायत्त, निजी भी हो सकता है।
- सार्वजनिक निवेश सरकार के विभिन्न स्तरों पर किये गये निवेश को कहा जाता है।
- सार्वजनिक निवेश द्वारा किया जाता है।
- पूँजीपति निजी निवेश करता है।
- उपभोग की प्रवृत्ति में वृद्धि होने पर वस्तुओं की माँगे बढ़ने के कारण पूँजी की सीमान्त क्षमता तथा विनियोग बढ़ता है। इसके विपरीत दशा में पूँजी की सीमान्त क्षमता तथा विनियोग घटता है। आय के घटने से विनियोग तथा पूँजी की सीमान्त क्षमता घटती है तथा आय बढ़ने से विनियोग एवं पूँजी की सीमान्त क्षमता बढ़ती है।
- कर की दर उच्च होने से विनियोग कम होता है तथा पूँजी की सीमान्त क्षमता में कमी होती है। इसके विपरीत कर की नीची दर से विनियोग को प्रोत्साहन मिलता है तथा सीमान्त क्षमता बढ़ती है।
- अनुमानित लागत दर होने पर विनियोग तथा पूँजी की सीमान्त क्षमता में वृद्धि होती है तथा अनुमानित लागत बढ़ने पर विनियोग एवं पूँजी की सीमान्त क्षमता घटती है।
- किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक होने पर अधिक उत्पादन होता है न विनियोग आवश्यक होने के कारण पूँजी की सीमान्त क्षमता बढ़ती है।
- तकनीकी प्रगति से उत्पादन में कुशलता बढ़ती है, उत्पादन घटता है तथा पूँजी की सीमान्त क्षमता बढ़ती है।
- प्रो. हैजलिट का विचार है कि प्रो. कीन्स ने पूँजी की सीमान्त क्षमता का प्रयोग कई अलग-अलग अर्थों में किया है जिससे इसके यथोचित आशय को समझना कठिन है।
- प्रो. कीन्स ने पूँजी की सीमान्त क्षमता का विश्लेषण पूर्ण प्रतियोगिता की अवास्तविक धारणा पर आधारित किया है।
- प्रो. कीन्स ने पूँजी की सीमान्त उपयोगिता को सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बद्ध किया है परन्तु अर्थव्यवस्था के विभिन्न वर्गों हेतु पूँजी की सीमान्त क्षमता पर अलग-अलग विचार किया जाता है।
- व्यक्तिनिष्ठ तत्वों को मनोवैज्ञानिक तत्व भी कहा जाता है।
- वास्तविक तत्व ऐसे बाह्य तत्व हैं जिसमें प्रायः तेजी से परिवर्तन होते हैं तथा उनका प्रभाव उपभोग प्रवृत्ति पर पड़ता है।
- जिस देशों में आय के वितरण में काफी अधिक असमानतायें रहती है वहां विनियोग फलन काफी नीचे रहता है। इन असमान लाभों में कमी के प्रभाव से विनियोग फलन पहले की अपेक्षा अधिक हो जाता है।
- व्यापारिक नियमों का लाभांश वितरण तथा पुनर्विनियोग आदि से संबंधित नीतियों का भी विनियोग फलन पर प्रभाव पड़ता है।
- किसी व्यक्ति की वस्तुएँ क्रय करने की इच्छा अन्य व्यक्तियों की खरीदों से निश्चित रूप से प्रभावित होती है।
- पूँजी निर्माण से आशय वास्तविक बचतों का निर्माण करने, इनको एकत्र करने और फिर इन्हें उत्पादक में बदलने से है।
- वाघ के शब्दों में "यदि कोई समाज अपनी पूँजी की मात्रा को बढ़ाना चाहता है तो उपभोग की तुलना में उत्पादन अधिक होना चाहिए। यहीं नहीं चूँकि पूँजी घिसती है इसलिए पूँजी की वर्तमान पूर्ति की रक्षा हेतु भी उपभोग पर उत्पत्ति का अधिकार होना अनिवार्य है।"
- प्रो. कीन्स के अनुसार "पूँजी निर्माण, "बचत की प्रवृत्ति पर निर्भर करना है।"
- किसी विशेष पूँजी सम्पत्ति में विनियोग करने का निर्णय उनकी पूँजी की सीमान्त क्षमता पर निर्भर करता है।
- विनियोग तथा सकल घरेलू उत्पाद हमेशा एक दूसरे के करीब ही रहते हैं क्योंकि विनियोग, विनियोग करने की प्रेरणा अथवा विनियोग माँग को बताता है।
- प्रो. कीन्स के अनुसार "विनियोग से हमारा आशय पूँजीगत पदार्थों में होने वाली वृद्धि से है।" प्रेरित विनियोग आय पर निर्भर करता है।
- प्रेरित विनियोग को आय फलन भी कहा जाता है।
- I=F(y) का तात्पर्य है कि आय में वृद्धि होने पर प्रेरित विनियोग में भी वृद्धि होती है तथा इसके विपरीत आय कम होने से प्रेरित विनियोग भी घटता है।
- जो उपभोग वस्तुओं की मांग में वृद्धि होने के कारण मशीन आदि पूँजीगत सामान का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है, वह प्रेरित विनियोग कहलाता है।
- सामान्यतः पूँजी की सीमान्त क्षमता का तात्पर्य विनियोग से प्राप्त होने वाले लाभ भी अनुमानित दर से लिया जाता है।
- डूसनबरी ने अपनी पुस्तक 'Business Cycless and Economic Growth' में निवेश के वित्तीय सिद्धान्त का एक अन्य विवरण प्रस्तुत किया है जिसे विनियोग का संबंध सिद्धांत कहा जाता है। इसनबरी ने अपने विवरण में विनियोग के नकद सिद्धांत को त्वरण सिद्धांत से जोड़ा है। पूँजी का संबंध वास्तविक परिसम्पत्तियों, निर्मित तथा अर्द्धनिर्मित वस्तुओं की माल सूची से है। सामान्यतया निवेश का तात्पर्य उन अंशों, ऋणपत्रों एवं प्रतिभूतियों को खरीदने से है जो पहले से ही बाजार में विद्यमान हों।
- अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन साम्य के जन्मदाता मार्शल थे।
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- अध्याय - 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macro Economics)
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- अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार (National Income and Related Aggregates)
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- अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय लेखांकन एवं कुछ आधारभूत अवधारणाएँ (National Income Accounting and Some Basic Concepts)
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- अध्याय - 4 राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ (Methods of National Income Measurement)
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- अध्याय - 5 आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income)
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- अध्याय - 6 हरित लेखांकन (Green Accounting)
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- अध्याय - 7 रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (The Classical Theory of Employment)
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- अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
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- अध्याय - 9 उपभोग फलन (Consumption Function)
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- अध्याय - 10 विनियोग गुणक (Investment Multiplier)
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- अध्याय - 11 निवेश एवं निवेश फलन(Investment and Investment Function)
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- अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
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- अध्याय - 13 त्वरक सिद्धान्त (Principle of Accelerator)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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- अध्याय - 14 ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त (Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)
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- अध्याय - 15 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त (IS-LM व्याख्या) Modern Theory of Interest (IS-LM Analysis )
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 16 मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त (Concept and Theory of Inflation)
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- अध्याय - 17 फिलिप वक्र (Philips Curve)
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