बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय - 5
आय का चक्रीय प्रवाह
(Circular Flow of Income)
राष्ट्रीय उत्पाद की अवधारणा के अध्ययन में हमने देखा कि अर्थव्यवस्था में होने वाला व्यय और आय बराबर आते हैं अर्थात् अर्थव्यवस्था में उपभोग और उत्पादक इकाइयों का आपस में सम्बन्ध है। यदि किसी अर्थव्यवस्था में व्यापारिक क्षेत्र ही उत्पादक हो और घरेलू और सरकारी क्षेत्र व्यय करने वाली इकाइयाँ हों तो हम अर्थव्यवस्था में देखते हैं कि घरेलू और सरकारी क्षेत्र अपनी उपभोग आवश्यकता व्यापारिक क्षेत्र से पूरी करते हैं तथा व्यापारिक क्षेत्र अपनी साधन सम्बन्धी आवश्यकता घरेलू और सरकारी क्षेत्र से करते हैं। इस प्रकार एक चक्रीय प्रवाह तैयार होता है जो आय का चक्रीय प्रवाह कहलाता है।
वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रयोग नहीं होता, इस कारण ऐसी अर्थव्यवस्था में वास्तविक प्रवाह होता है अर्थात् आर्थिक साधन तथा वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह होगा। प्रत्येक अर्थव्यवस्था में एक तरफ परिवार होता है जो अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए वस्तु और सेवा का उपभोग करता है दूसरी तरफ उत्पादक वर्ग होता है जो वस्तु और सेवा का उत्पादन करता है। इन उत्पादकों को उत्पादन के लिए उत्पादन के साधन की आवश्यकता होती है जो परिवार क्षेत्र द्वारा अपने उपभोग के कीमत के रूप में उत्पादक वर्ग को उपलब्ध कराया जाता है। इस तरह से हम वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था में देखते हैं कि आर्थिक साधनों का परिवार क्षेत्र से उत्पादक क्षेत्र की तरफ प्रवाह होता है जिसके फलस्वरूप उत्पादक क्षेत्र से परिवार क्षेत्र को वस्तु और सेवा का प्रवाह होता है।
इसी प्रकार जब वर्तमान अर्थव्यवस्थाओं को देखते हैं जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है तो परिवार क्षेत्र उपभोग के लिए उत्पादक वर्ग को मूल्य का भुगतान करता है और उत्पादक वर्ग यह प्राप्त मूल्य परिवार क्षेत्र से प्राप्त साधनों को मजदूरी, ब्याज, लाभ, लगान इत्यादि के रूप में उन्हें वापस कर देता है। यदि सरकार भी इसमें सम्मिलित हो तो वह उपभोग, हस्तान्तरण, भुगतान और अनुदान के लिए व्यय करेगी जो उत्पादक वर्ग और परिवार क्षेत्र को प्राप्त होगी लेकिन पुनः सरकार को प्रत्यक्ष और परोक्ष कर के रूप में वापस सरकार प्रवाहित हो जाएगी। इस प्रकार किसी अर्थव्यवस्था में आय का यह प्रवाह चलता रहता है जो अर्थव्यवस्था में आय का चक्रीय प्रवाह कहलाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- सर्वप्रथम आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह का प्रतिपादन प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों ने किया। प्रकृतिवादी अर्थशास्त्री प्रो. केने ने प्रवाह को एक आर्थिक सारणी में बताया तत्पश्चात राष्ट्रीय आय विश्लेषण में आय व उत्पादन के चक्रीय प्रवाह का महत्व समझकर इसे आर्थिक अध्ययन का विशेष अंग बताया गया है।
- आय का चक्रीय प्रवाह व उत्पादन का चक्रीय प्रवाह एक ऐसी अवधारणा है जिसमें किसी अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय चक्रीय रूप में अनवरत प्रवाहित होती है। अतः आय का चक्रीय प्रवाह परिवार क्षेत्र व उत्पादन क्षेत्र के मध्य अनवरत रूप से चलता है।
- प्रो. लिप्से के अनुसार, "राष्ट्रीय आय का चक्रीय प्रवाह घरेलू फर्मों (उत्पादन क्षेत्र) व घरेलू परिवारों (परिवार क्षेत्र) के मध्य भुगतान एवं प्राप्ति का प्रवाह है।"
- निजी अर्थव्यवस्था में परिवार एवं फर्म नामक दो इकाइयाँ हैं। इसमें यह मान लिया गया है कि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था इन्हीं दो क्षेत्रों में ही विभाजित है। यही कारण है कि इसे द्वि-क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था एवं व्यय का चक्रीय प्रवाह कहा जाता है।
- देश की सभी स्तर की सरकारी (केन्द्रीय, राष्ट्रीय एवं स्थानीय) का संयोग ही सरकारी क्षेत्र है। सरकार वस्तु बाजार से किए जाने वाले क्रम को वस्तुओं व सेवाओं पर व्यय करती है। इस क्रम के वित्त पोषण के लिए सरकार जनता पर करारोपण करती है और राजस्व का प्रमुख स्रोत करती है। इस प्रकार जब तक कर राजस्व एवं सरकारी व्यय बराबर रहेंगे तब तक चक्रीय प्रवाह अनवरत रूप में चलता रहेगा।
- विदेशी क्षेत्र को खुली अर्थव्यवस्था में शामिल किया जाता है न कि बन्द अर्थव्यवस्था में। जबकि अभी तक केवल बन्द अर्थव्यवस्था की ही विवेचना की गई है।
- निर्यात - चक्रीय प्रवाह के लिए इन्जेक्शन का कार्य करता है अर्थात् इससे चक्रीय प्रवाह के परिणाम में वृद्धि होती है।
- प्रो. मोरिस कोपलैंड ने राष्ट्रीय आय लेखांकन की इस त्रुटि को दूर करने के लिए 1952 में निधियों के प्रवाह-लेखे विकसित किये।
- निधियों के प्रवाह - लेखे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वित्तीय लेन-देन और बचत तथा निवेश समूहों में सम्बन्ध के साथ-साथ उनके क्षेत्रों द्वारा उधार लेन-देन को प्रदर्शित करते हैं। सुविधा के लिए, निधियों के प्रवाह लेखों का आधारक अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों, घरेलू, अवित्तीय निगमों, वित्तीय संस्थाओं और सरकारी संस्थाओं में विभाजित किया गया है। राष्ट्रीय आय लेखों के अन्तर्गत केवल गैर-वित्तीय लेन-देन ही आते हैं। वे कुल बचत और कुल निवेश का अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों द्वारा लेने और देने से सम्बन्ध नहीं रखते हैं। निधियों के प्रवाह लेखों में राष्ट्रीय आय लेखों की अपेक्षा कम मूल्य निहित होते हैं। उदाहरण स्वरूप निधियों के प्रवाह लेखों में कर नकद आधार पर जारी रखे जाते हैं, जबकि राष्ट्रीय आय लेखों में कुल क्षेत्र अर्जित आधार पर प्रदर्शित किये जाते हैं।
- निधियों के प्रवाह लेखों में क्षेत्रों की संख्या राष्ट्रीय आय लेखों की तुलना में अधिक विस्तार से होती है। ये निधियों के प्रवाह लेखों में संस्थागत रूप से परिभाषित की जाती है, जबकि राष्ट्रीय आय लेखों में इनकी व्याख्या कार्यात्मक रूप से होती है।
- निधियों के प्रवाह लेखे अर्थव्यवस्था पर मौद्रिक नीतियों के प्रवाह का विश्लेषण करने में सहायता प्रदान करते हैं। ये उन वित्तीय प्रवाहों की खोज करते हैं जो वास्तविक बचत निवेश की प्रक्रिया से जुड़े होते हैं और उस प्रक्रिया को प्रभावित भी करते हैं।
- निधियों के प्रवाह लेखों में परिसम्पत्तियों के मूल्यांकन की समस्या होती है। कई परिसम्पत्तियों, दावों एवं उत्तरदायित्वों का कोई स्थिर मूल्य नहीं होता है। इसी वजह से उनका उचित मूल्यांकन करना कठिन होता है।
- अर्थव्यवस्था में रिसाव की प्रकृति का विवेचन सम्भव हो जाने के कारण आय के चक्रीय प्रवाह का विशेष महत्व होता है। जैसे जब उन वस्तुओं का क्रय किया जाता है, जो विदेशों से क्रय की गयी हैं तो आय का रिसाव होता है।
- बन्द अर्थव्यवस्था में कर निर्धारण एवं सार्वजनिक व्ययों की सीमा, ऋणों की प्राप्ति, बचत एवं विनियोग के विभिन्न तत्वों का ज्ञान चक्रीय प्रवाह का एक महत्वपूर्ण अंग है।
- आय के चक्राकार प्रवाह का आशय एक ऐसी प्रक्रिया से लगाया जाता है, जिसके अनुसार एक अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय निश्चित समय के अन्तराल में निरन्तर रूप से एक चक्राकार रूप में प्रवाहित होती है।
- "आय का चक्राकार प्रवाह घरेलू फर्मों एवं घरेलू परिवारों के बीच भुगतान एवं प्राप्ति का प्रवाह है।" - प्रो. लिप्से
- बचत एक रिसाव है। घरेलू और व्यवसाय क्षेत्र अपनी सम्पूर्ण आय खर्च न करके उसका कुछ भाग विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बचाते हैं।
- उपभोक्ताओं एवं फर्मों की बचतों को जमा नहीं किया जाता है, बल्कि पूँजी बाजार में बॉण्डों, अंशों एवं ऋणपत्रों आदि में निवेश कर दिया जाता है। ये पूँजी बाजार में प्रवाहित होती हैं। सरकार जो खरीद करती है, वह वस्तुओं और सेवाओं पर सरकारी खर्च है।
- घरेलू अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित वे वस्तुएँ या सेवाएँ जिन्हें अन्य देश खरीदते हैं, उनको निर्यात कहा जाता है।
- आय के चक्राकार प्रवाह में मुख्य रूप से घरेलू क्षेत्र, उत्पादक क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र तथा शेष विश्व क्षेत्र की आय तथा व्यय शामिल होते हैं। इन सभी क्षेत्रों का रिसाव और अन्तःक्षेपण आय प्रवाह के सन्तुलन को प्रवाहित करता है।
- अर्थव्यवस्था में तटस्थता के लिए आवश्यक है कि -
- बचत (S) + कर (T) + आयात (M) = विनियोग (I) + सरकारी व्यय (G) + निर्यात (X)
- कम्पनियाँ तथा औद्योगिक इकाइयाँ जहाँ दीर्घकालीन वित्तीय व्यवस्था ( पूँजी या दीर्घकालीन ऋण) करती हैं उसे स्टाक बाजार कहा जाता है।
- प्रवाह विभिन्न क्षेत्रों में वित्तीय लेन-देन और बचत तथा निवेश समूहों में सम्बन्धों को स्थापित करने में योग देता है। प्रवाह के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों की तरलता का आभास होता है। अंकेक्षण की क्रिया - विधि के माध्यम से देश के सूचकांक का आभास होता है। यदि स्टाक व्यवस्थित है तो प्रवाह क्षेत्र व्यवस्थित हो सकता है।
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