बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
अध्याय 4 - समावेशी अभ्यास
(Inclusive Practices)
प्रश्न- समावेशी शिक्षा के लाभ या विवाद का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
समावेशी शिक्षा में उन सभी पथकों को सम्मिलित किया जाता है, जो विशेष बालकों पर लागू होते हैं अर्थात समावेशी शिक्षा शारीरिक, मानसिक या प्रतिभाशाली तथा विशेष गुणों से युक्त विभिन्न बालकों पर अपनायी जाती है। लेकिन यह शिक्षा सामान्य बालकों की शिक्षा नहीं देती। विशेष शिक्षा का इतिहास अत्यंत विशाल है। प्राचीन काल में ब्राह्मण तथा क्षत्रिय शिक्षा के क्षेत्र में निपुण होते थे तथा वैश्यों व शूद्रों को भी शिक्षा उनके अनुसूचित अलग-अलग प्रदान की जाती थी। उस समय कार्यों का वर्गीकरण विभिन्न प्रतिभाओं के अनुरूप किया जाता था अर्थात विभिन्न प्रतिभाओं से सम्पन्न छात्रों को अलग श्रेणियों में रखकर शिक्षण प्रदान किया जाता था।
प्रतिभाशाली छात्रों के माता-पिता एवं शिक्षकों को उनकी प्रतिभाओं का पहचान थी और उनकी प्रतिभाओं के अनुसार प्रोत्साहित किया करते थे। विशेष बालकों की शिक्षा के क्षेत्र में आज आधुनिक शिक्षा शास्त्र मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग बालकों पर विशेष ध्यान दिया जाता है तथा विशेष बालकों की आवश्यकताओं पर कम ध्यान दे पाते हैं। समावेशी शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न विवादस्पद पूर्ण हैं। ये विशेष बालकों की शिक्षा को मुख्य धारा से नहीं जोड़ते हैं। जिसका कारण विशेष बालकों को विशेष अवसर प्रदान करने के पक्ष में है।
समावेशी बालकों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने तथा सामान्य एवं समावेशी शिक्षा कार्यक्रमों से लाभान्वित होने के लिए विशेष सहायक साधनों एवं अधिगम सामग्रियों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त उपकरणों की भी आवश्यकता होती है। श्रवण बाधित बालकों के लिए श्रवण यंत्र, वाणी प्रशिक्षक तथा दृष्टि बाधित बालकों के लिए रेखांकित उपकरण जैसे लेंस, स्पर्शनीय सहायता एवं छोटे शब्दों का देखना हो सकता है। इसी प्रकार मंदबुद्धि बालकों को खिलौने या अन्य शिक्षण सामग्रियों की आवश्यकता होती है। प्रतिभाशाली बालकों के अधिगम सामग्री, अभ्यास पुस्तिका आदि की आवश्यकता होती है।
अधिकांश विद्यालयों में प्रतिभाशाली या समावेशी बालकों के शिक्षण हेतु पढ़ने एवं सहायक सामग्रियां तथा शिक्षण उपलब्ध नहीं होते हैं। इससे बालकों की वास्तविक क्षमता तथा प्रदर्शन में अंतर देखा जाता है।
सामान्य बालकों को प्रेरणा तथा आर्थिक सहायता, वाहन भत्ता, अधिगम सामग्री, यूनिफॉर्म आदि खरीदने एवं वाणी सहायता की आवश्यकता है। राज्य सरकार शारीरिक व मानसिक रूप से बाधित बालकों को इस प्रकार से अनुदान देने में सक्षम नहीं है।
समावेशी शिक्षा के आदर्श एवं उद्देश्य दोनों ही सामान्य शिक्षा के आदर्श एवं उद्देश्य के समान ही हैं। बस दोनों में मात्र अंतर प्रक्रियाओं एवं विधियों में है। समावेशी शिक्षा सामान्य बालकों को विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप होती है। समावेशी बालकों की शिक्षा में शिक्षण, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन एवं विशेष विधियों एवं तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
किसी बालक को शिक्षा प्रदान करने से पहले उसके व्यक्तित्व को समझना अत्यंत आवश्यक है। यह समावेशी बालकों के लिए तो अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि विशेष बालक की विशेषताएं सामान्य बालकों से भिन्न व अधिक तीव्र व विविध हैं। इन बालकों के माता-पिता व शिक्षकों को चाहिए कि वे बालक को समस्याओं से न भी घिरे ऐसे व्यक्ति के रूप में समान आदर, विशेष स्नेह और सुरक्षा चाहिए। समावेशी बालकों के व्यक्तित्व के विषय में पूर्ण जानकारी एवं समस्त शिक्षकों के लिए समावेशी बालकों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण की प्रक्रिया को सरल, प्रगतिशील एवं रोचक बनाएगी।
समावेशी बालकों को भी सामान्य बालकों के समान औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है, किंतु उनकी शिक्षा में परिवर्तन करना चाहिए ताकि उन्हें कम-से-कम पढ़ने लिखने और संख्यात्मक ज्ञान से जोड़ें। आधुनिक शैक्षिक तकनीकें व ऐसी विधियां, तकनीकों एवं उपकरणों का समावेश किया जाए, जिनकी सहायता से समावेशी बालकों की औपचारिक शिक्षा सरल हो सके। इनका शिक्षण एवं प्रशिक्षण उनकी शिक्षा के स्तर को शारीरिक एवं मानसिक स्तर के अनुकूल होना चाहिए। औपचारिक शिक्षा हेतु स्कूल में अति समावेशी वातावरण की नहीं, बल्कि समावेशी प्रशिक्षित शिक्षकों की नितांत आवश्यकता है।
समावेशी बालकों के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण भी आवश्यक है, किंतु यह समावेशी शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य नहीं होना चाहिए। विकलांग बालकों को रोजगारपरक काम-काज में प्रशिक्षण व व्यवसायिक शिक्षा मिलनी चाहिए। जैसे सिलाई, कढ़ाई, टाइप-राइटिंग, बढ़ईगिरी, सिलाई-कढ़ाई, धुनाई, पान-बिंदी, आदि कार्यों में प्रशिक्षण करना चाहिए।
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