बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- सृजनात्मकता की परिभाषा दीजिए तथा सृजनात्मक छात्रों का पता लगाने की विधि स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
सृजनात्मकता की परिभाषाएँ
1. स्टेन - "जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो, जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी मान्य हो, वह कार्य सृजनात्मकता कहलाता है।"
2. जेम्स ड्रेवर - "अनिवार्य रूप से किसी नई वस्तु का सृजन करना है, रचना (विस्तृत अर्थ में), जहाँ पर नये विचारों का संग्रह हो वहाँ पर प्रतिभा का सृजन (विशेषतः वह अनुकृत न होकर स्वयं प्रेरित हो), जहाँ पर मानसिक सर्जन का आह्वान हो।"
3. सी. वी. गुड - "सर्जनात्मकता एक विचार है जो किसी समूह में विस्तृत सातत्य का निर्माण करता है। सर्जनात्मकता के कारक हैं-साहचर्य, आदर्शात्मक मौलिकता, अनुकूलता, सांतत्य, लोच तथा तार्किक विकास की योग्यता।"
4. क्रो एवं क्रो - "सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।"
5. जेम्स ड्रेवर - "सृजनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में होती है।"
6. कोल एवं ब्रूस -"सृजनात्मकता एक मौलिक उत्पादन के रूप में मानव मन की ग्रहण करके अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता एवं क्रिया है।"
सृजनात्मकता की पहचान यहाँ हम उन युक्तियों को वर्णित कर रहे हैं जिनके द्वारा हम छात्रों में सृजनात्मकता की पहचान कर सकते हैं। समस्या समाधान के प्रति छात्रों का दृष्टिकोण तथा विद्यालय में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में उनके द्वारा प्रदर्शित अभिव्यक्ति के आधार पर हम उनमें सृजनात्मकता की पहचान कर सकते हैं। बालकों में सृजनात्मकता की पहचान उनकी अभिव्यक्ति के आधार पर की जा सकती हैं। यह अभिव्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट होती है।
1. रचनात्मक खेल - छोटे बालक खेलों के प्रति आकर्षित रहते हैं। खेलों में उनकी रुचि की अभिव्यक्ति होती है। विद्यालय में छोटी कक्षाओं के बच्चों को मिट्टी की विभिन्न वस्तुएँ बनाने को दी जाती हैं। वास्तव में उनकी सृजनात्मकता का पता लगाने की यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। जो छात्र सफलतापूर्वक मिट्टी के फल, पशु-पक्षी आदि बना लेते हैं-वह अपनी भावी सृजनात्मकता का परिचय देते हैं। कुछ छात्र बनी हुई वस्तुओं को तोड़ते रहते हैं। यह उनकी ध्वंसात्मक प्रकृति का संकेत है। छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुयें, उन्हें सृजन के लिए प्रोत्साहित करती हैं। किशोरावस्था में बालकों द्वारा चित्र निर्मित करके तथा अन्य प्रकार की संरचना के आधार पर उनमें सृजनात्मकता की पहचान की जा सकती है।
2. खेल - 5 अथवा 6 वर्ष के बच्चे काल्पनिक खेलों के माध्यम से अपनी भावी सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति करते हैं, जैसे-छोटी कन्याओं द्वारा गुड़ियों को जख्मी समझकर उनकी मरहम पट्टी करना, छोटे बालकों द्वारा अध्यापक की भूमिका करना, वाहन चलाना, टाँगों के बीच लकड़ी लगाकर दौड़ना आदि। इस प्रकार के खेलों के द्वारा बालक के सृजनात्मक गुण की पहचान की जा सकती है। किशोरावस्था में खेलों द्वारा उसके साहस, सहनशीलता, बुद्धि, कौशल तथा नवीन युक्तियों के प्रयोग, नेतृत्व, सहयोग, समूह में व्यवहार आदि को परखकर उसमें सृजनात्मकता के गुणों की पहचान सम्भव है।
3. सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन - विद्यालय में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा उनमें छात्रों की भागीदारी उनके सृजनात्मक गुणों की पहचान कराने में सहायक है। वाद- विवाद प्रतियोगिताएँ, अभिनय, कलाकृति, साहित्यिक लेख आदि बालक की सृजनात्मकता का परिचय प्रदान करते हैं।
छोटे बच्चे अपनी हास्य क्रियाओं द्वारा सृजनात्मकता की पहचान कसते हैं। बहुधा छोटे बच्चे दाढ़ी मूँछ चेहरे पर लगाकर अथवा अन्य किसी प्रकार से प्रौढ़ों को हँसाते हैं। कभी-कभी बूढ़े दादा अथवा दादी की नकल करना, ऐसी क्रियाएँ हैं जो सृजनात्मकता का संकेत देती हैं। बालक में कल्पनाशीलता प्रखर होती है। वह अपनी कल्पनाओं में सृजन करता है तथा अनेक प्रकार की क्रियाओं में इस कल्पना शक्ति का परिचय देकर अपनी सृजनात्मक क्षमता का आभास कराता है।
इसके अतिरिक्त अधोलिखित विशेषताओं को परखकर हम बालक की सृजनात्मकता का पता लगता सकते हैं-
1. बालक का मौलिक चिन्तन उसकी सृजनात्मकता की पहचान है। उसकी इस मौलिकता की पहचान वाद-विवाद, निबन्ध लेखन, कविता सृजन, कलाकृति के आधार पर की जा सकती है।
2. सृजनात्मक बालकों का दृष्टिकोण साधारण छात्रों की तुलना में भिन्न होता है तथा ऐसे छात्र- छात्राओं में स्वतंत्र चिन्तन की प्रवृत्ति पाई जाती है।
3. शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता तथा समस्या समाधान की दिशा में स्वतंत्र रूप से क्रियारत होना, बालक में सृजनशीलता की पहचान कराते हैं।
4. नवीन वस्तुओं के प्रति जिज्ञासा तथा उत्सुकता बालक में सृजनशीलता का प्रतीक है। 5. सृजनशील बालक आशावादी, हँसमुख तथा प्रत्येक स्थिति में स्थिर रहते हैं।
6. सृजनशील बालक संवेदनशील होते हैं उनमें दूसरों के प्रति सहयोग, दुखियों के प्रति सहानुभूति तथा दयाभाव होता है।
7. ऐसे बालक जिनमें सृजनशीलता होती है, नवीन अनुभव करने के लिये सदैव तत्पर रहते हैं।
8. ऐसे बालक कल्पनाशील होते हैं। उनमें तर्कशक्ति की क्षमता अधिक होती है। सन्तुष्ट होने के बाद ही वह किसीतथ्य की वास्तविकता स्वीकारते हैं।
उपरोक्त आधार पर विद्यालय में सृजनात्मक छात्रों की पहचान की जा सकती है। इसके साथ-साथ बौद्धिक परीक्षण, व्यक्तित्व मापन, रुचि एवं अभिवृत्ति परीक्षणों द्वारा भी बालक की सृजनशीलता की पहचान की जा सकती है।
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- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ बताइये एवं इसकी प्रकृति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मनोविज्ञान और शिक्षा के सम्बन्ध का विवेचन कीजिये और बताइये कि मनोविज्ञान ने शिक्षा सिद्धान्त और व्यवहार में किस प्रकार की क्रान्ति की है?
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की भूमिका या महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। शिक्षक प्रशिक्षण में इसकी सम्बद्धता क्या है?
- प्रश्न- वृद्धि और विकास से आपका क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि और विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि और विकास को परिभाषित करें तथा वृद्धि एवं विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- विकास से आपका क्या अभिप्राय है? बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन- कौन-सी हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन के महत्त्व को समझाइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- मनोविज्ञान एवं अधिगमकर्त्ता के सम्बन्ध की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- शैक्षिक सिद्धान्त व शैक्षिक प्रक्रिया के लिये शैक्षिक मनोविज्ञान का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के कार्यों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मनोविज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अभिवृद्धि तथा विकास से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विकास का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बालक के सम्बन्ध में विकास की अवधारणा क्या है? समझाइये |
- प्रश्न- विकास के सामान्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अभिवृद्धि एवं विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास में वंशानुक्रम का क्या योगदान है?
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है? इसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये। इस अवस्था में शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिये।
- प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिये?
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है? बाल्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाल्यावस्था में शिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'बाल्यावस्था के विकासात्मक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त की. विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था में शिक्षा के स्वरूप की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
- प्रश्न- जीन पियाजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत को समझाइये |
- प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक मनोविज्ञान एवं मानव विकास)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानव वृद्धि एवं विकास )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तिगत भिन्नता )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैशवावस्था, बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था )
- प्रश्न- सीखने की संकल्पना को समझाइए। 'सूझ' सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
- प्रश्न- अधिगम की प्रकृति को समझाइए।
- प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सूझ सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
- प्रश्न- 'प्रयत्न एवं त्रुटि' तथा 'सूझ' द्वारा सीखने में भेद कीजिए।
- प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
- प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के प्रयोग का उल्लेख कीजिए और बताइये कि इस प्रयोग द्वारा निकाले गये निष्कर्ष, शिक्षण कार्य को कहाँ तक सहायता पहुँचाते हैं?
- प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त का शिक्षा में उपयोग बताइये।
- प्रश्न- शिक्षण में प्रयत्न तथा भूल द्वारा सीखने के सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- 'अनुबन्धन' से क्या अभिप्राय है? पावलॉव के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
- प्रश्न- अनुकूलित अनुक्रिया से आप क्या समझते हैं? इस सिद्धान्त का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
- प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- स्किनर का सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त क्या है? उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- पुनर्बलन का क्या अर्थ है? इसके प्रकार बताइये।
- प्रश्न- पुनर्बलन की सारणियाँ वर्गीकृत कीजिए।
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- प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्दृष्टि तथा सूझ के सिद्धान्त से सीखने की क्या विशेषताएँ हैं।
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- प्रश्न- अन्तर्दृष्टि को प्रभावित करने वाले कारक एवं शिक्षा में प्रयोग बताइये।'
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- प्रश्न- गेग्ने के योगदान को संक्षेप में बताइये।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम का स्थानान्तरण )
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