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बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2699
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।

अथवा

बुद्धि के कारक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

बुद्धि के सिद्धान्त

बुद्धि का स्वरूप क्या है? बुद्धि कैसे कार्य करती है? बुद्धि किन तत्त्वों से निर्मित है? मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों एवं शोध के आधार पर इन प्रश्नों से सम्बन्धित अनेक निष्कर्ष निकाले हैं। इन निष्कर्षों को ही बुद्धि के सिद्धान्त की संज्ञा प्रदान की जाती है। ये सिद्धान्त बुद्धि के स्वरूप, प्रकृति एवं संरचना को समझने में सहायक होते हैं। सिद्धान्तों से बुद्धि की प्रकृति एवं संरचना के क्रमबद्ध स्पष्टीकरण का प्रयास किया जाता है। बुद्धि की प्रकृति एवं संरचना की स्पष्ट समझ के उद्देश्य से किये गये विश्लेषणात्मक अध्ययनों से बुद्धि के घटकों या तत्त्वों की खोज की जाती है। ये तत्त्व या घटक बुद्धि की जटिल प्रक्रिया को अधिक अच्छे ढंग से समझने में सहायक सिद्ध हुए हैं। बुद्धि के सिद्धान्तों को मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित कारकों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं-

(i) एक कारक सिद्धान्त अथवा एक सत्तात्मक सिद्धान्त
(ii) द्वि-कारक सिद्धान्त
(iii) त्रिकारक सिद्धान्त
(iv) बहुकारक अथवा असत्तात्मक सिद्धान्त
(v) समूह कारक सिद्धान्त
(vi) पदानुक्रमित सिद्धान्त
(vii) त्रिआयाम सिद्धान्त अथवा बुद्धि संरचना
(viii) बुद्धि 'अ' तथा बुद्धि 'ब' का सिद्धान्त
(ix) फ्लूड तथा क्रिस्टेलाइज्ड सिद्धान्त।

1. एक कारक सिद्धान्त - बुद्धि का एक कारक सिद्धान्त सर्वाधिक प्राचीन है। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि एक अविभाज्य इकाई है, जिसके द्वारा समस्त मानसिक क्रियाएँ नियंत्रित होती हैं। बिने, टरमन तथा स्टर्न जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया था, परन्तु वर्तमान समय के मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त को अस्वीकार कर दिया।

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2. द्वि-कारक सिद्धान्त - अंग्रेज मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन महोदय ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सन् 1904 में किया था। इन सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि दो कारकों से मिलकर बनी है। इन दो कारकों में एक सामान्य योग्यता कारक है तथा दूसरा विशिष्ट योग्यता कारक है। स्पीयरमैन ने सामान्य योग्यता कारकों को 'जी' कारक का नाम दिया तथा कहा कि यह जन्मजात योग्यता है। इसे सामान्य योग्यता इसलिए कहा गया, क्योंकि सभी मानसिक क्रियाओं में इसकी आवश्यकता होती है। विभिन्न व्यक्तियों में जी. कारक भिन्न- भिन्न मात्रा में पाया जाता है। दैनिक जीवन के कार्यों में जी. कारक का उपयोग अधिक होता है।

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चित्र स्पीयर का द्वि-कारक सिद्धान्त

विशिष्ट योग्यता कारकों को स्पीयरमैन ने एस. कारक का नाम दिया। जी-कारक के विपरीत एस-कारक विशिष्ट योग्यताओं का समूह होता है। एस-कारक एक अर्जित योग्यता होती है। विभिन्नमानसिक कार्यों में अलग-अलग विशिष्ट योग्यताओं की आवश्यकता होती है किसी भी व्यक्ति में विशिष्ट योग्यताएँ अलग-अलग मात्रा में होती हैं। उदाहरणार्थ- आंकिक गणना तथा शब्द प्रवाह दोनों प्रकार की क्रियाओं में जी. - कारक की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन इसके साथ-साथ आंकिक गणना के लिए आंकिक योग्यता तथा शब्द प्रवाह के लिए शाब्दिक योग्यता का होना भी आवश्यक है। जी. - कारक तथा एस. कारक दोनों मिलकर ही किसी मानसिक कार्य को सम्पन्न करने की क्षमता प्रदान करते हैं। स्पीयरमैन ने जी. - कारक को वास्तविक मानसिक शक्ति कहा है, क्योंकि यह सभी मानसिक क्रियाओं के लिए आवश्यक है।

3. त्रिकारक सिद्धान्त - द्वि-कारक सिद्धान्त की कमी को स्वयं स्पीयरमैन ने समझ लिया था और त्रिकारक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। उन्होंने बुद्धि के G और S कारकों के साथ एक तीसरा कारक समूह कारक और जोड़ दिया। समूह कारक से तात्पर्य उस कारक से था, जो G और S कारकों में समान रूप से विद्यमान रहता है

4. बहुकारक सिद्धान्त - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन थार्नडाइक महोदय ने किया था। बहु-कारक सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि अनेक स्वतंत्र कारकों से मिलकर बनी है। इन स्वतंत्र कारकों में से प्रत्येक कारक किसी विशिष्ट मानसिक योग्यता का आंशिक प्रतिनिधित्व करता है। किसी भी मानसिक कार्य को करने में ऐसे अनेक छोटे-छोटे कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं।

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चित्र- थार्नडाइक का बहुकारक सिद्धान्त

 

विभिन्न मानसिक कार्यों में इन छोटे-छोटे कारको के भिन्न-भिन्न समूहों की आवश्यकता होती है। यदि कोई दो मानसिक कार्य एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, तो बहुकारकं सिद्धान्त के अनुसार इसका कारण दोनों मानसिक कार्यों को करने में कुछ कारकों का उभयनिष्ठ होना है। यह सिद्धान्त सामान्य बुद्धि जैसे किसी कारक के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। थार्नडाइक ने यह स्वीकार किया कि कुछ मानसिक क्रियाओं में काफी तत्त्व उभयनिष्ठ रहते हैं। जिसके कारण इस प्रकार की मानसिक क्रियाओं को किसी एक वर्ग में रखकर विशिष्ट नाम देना व्यावहारिक दृष्टि से लाभप्रद हो सकता है। शब्दार्थ, शब्द प्रवाह, गणना, स्मृति आदि मानसिक क्रियाओं के कुछ वर्ग हो सकते हैं।

5. समूह कारक सिद्धान्त - स्पीयरमैन का द्विकारक सिद्धान्त तथा थार्नडाइक का बहु-कारक सिद्धान्त बुद्धि के सम्बन्ध में परस्पर विरोधी विचार प्रस्तुत करते हैं। इन दोनों के बीच का सिद्धान्त समूह कारक सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन थर्स्टन महोदय ने किया था। समूह कारक सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि न तो मुख्य रूप से सामान्य कारक से निर्धारित होती है और न ही असंख्य सूक्ष्म व विशिष्ट तत्त्वों से मिलकर बनी है। बुद्धि कुछ प्राथमिक कारकों से मिलकर बनी होती है।

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चित्र- थार्स्टन का समूह कारक सिद्धान्त

 

थर्स्टन के अनुसार एक जैसी मानसिक क्रियाओं में कोई एक प्राथमिक कारक उभयनिष्ठ होता है, जो उन सभी क्रियाओं को मनोवैज्ञानिक व कार्रवाई की दृष्टि से समाकलित करता है तथा यही प्राथमिक कारक उन क्रियाओं का अन्य मानसिक क्रियाओं में विभेद स्पष्ट करता है। इस प्रकार की कुछ मानसिक क्रियाएँ एक समूह का निर्माण करती हैं, जिनमें कोई एक प्राथमिक कारक या समूह कारक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मानसिक क्रियाओं के किसी दूसरे समूह में कोई दूसरा प्राथमिक कारक होता है तथा किसी तीसरे समूह में कोई तीसरा कारक होता है। इस प्रकार मानसिक क्रियाओं के अनेक समूह होते हैं तथा प्रत्येक समूह का एक अलग प्राथमिक कारक होता है, जो उच्च समूह की क्रियाओं को समन्वय व समष्टिता प्रदान करके उन्हें कार्यवाहक इकाई बनाता है। ये प्राथमिक कारक एक-दूसरे से पृथक् व स्वतंत्र होते हैं। थर्स्टन तथा उनके समर्थकों ने तत्त्व विश्लेषण नामक सांख्यिकी प्रविधि का प्रयोग करके छः प्राथमिक कारकों का पता लगाया, जिन्हें उन्होंने प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के नाम से 'पुकारा।  ये हैं - आंकिक कारक, शाब्दिक कारक, स्थानिक कारक तथा स्मृति कारक।

थर्स्टन ने इन्हें प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ कहा है, क्योंकि प्रत्येक जटिल मानसिक कार्य में इन छः कारकों की कुछ-न-कुछ आवश्यकता पड़ती है। किसी मानसिक कार्य में इनमें से कुछ कारकों का अधिक उपयोग होता है, जबकि किसी अन्य कार्य में दूसरे कारकों का अधिक उपयोग हो सकता है।

6. पदानुक्रमित सिद्धान्त - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन फिलिप वर्नन ने सन् 1960 में किया था। इस सिद्धान्त में वर्नन महोदय ने मानवीय योग्यताओं की संरचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि मानवीय योग्यताएँ एक क्रमिक रूप में व्यवस्थित होती हैं। इस क्रमबद्ध व्यवस्था में क्रमशः सामान्य कारक, मुख्य समूह कारक, लघु समूह कारक तथा विशिष्ट कारक होते हैं। सामान्य कारक (G) सर्वाधिक व्यापक कारक है तथा सभी मानसिक कार्यों में सहायक होता है। सामान्य कारक (G) को मुख्य समूह कारकों शाब्दिक व शैक्षिक योग्यताएँ (VEd.) तथा प्रयोगात्मक व निष्पादक योग्यताएँ (KM) में विभक्त किया गया है। इन दोनों मुख्य समूह कारकों को पुनः शाब्दिक, आंकिक, स्थानिक जैसे लघु समूह कारकों में बाँटा जा सकता है। लघु समूह कारकों को विशिष्ट मानसिक कार्यों से सम्बन्धित विशिष्ट कारकों के रूप में विभाजित किया जाता है।

 

7. बुद्धि संरचना - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जे. पी. गिलफोर्ड तथा उनके सहयोगियों ने किया था। इनके द्वारा बुद्धि का त्रिविमीय प्रारूप प्रस्तुत किया गया। गिलफोर्ड के अनुसार बुद्धि को तीन विमाओं के रूप में देखा जा सकता है। प्रथम विमा को उसने मानसिक कार्य करते समय निहित विषय- वस्तु या सामग्री के रूप में परिभाषित किया तथा कहा कि विभिन्न मानसिक कार्यों में चार प्रकार की विषय-वस्तु निहित हो सकती है। विषय-वस्तु के ये चार प्रकार हैं-

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चित्र - गिलफोर्ड का बौद्धिक संरचना मॉडल

 

आकृतिक, सांकेतिक, शाब्दिक तथा व्यावहारिक। आकृतिक विषय-वस्तु का सम्बन्ध आकृतियों या चित्रों से होता है। सांकेतिक विषय-वस्तु संकेतों, प्रतीकों, चिन्हों, अंकों, अक्षरों आदि से सम्बन्धित होती है। शाब्दिक विषय-वस्तु के अन्तर्गत भाषा के द्वारा प्रस्तुत विचार होते हैं, जबकि व्यावहारिक विषय-वस्तु व्यक्तियों के बाह्य या आन्तरिक व्यवहार से सम्बन्धित होती है। गिलफोर्ड के अनुसार बुद्धि की दूसरी विमा मानसिक कार्यों को करने में निहित सक्रिया है। सक्रियाओं को पाँच प्रकारों में बाँटा जा सकता है - संज्ञान, स्मरण, परम्परागत चिन्तन, अपरम्परागत चिन्तन तथा मूल्यांकन संज्ञान सीखने का प्रथम चरण है, जबकि स्मरण सीखे गये ज्ञान को धारण करता है। परम्परागत चिन्तन परम्परागत ढंग से विचार करना है, जबकि गैर-पराम्परागत चिन्तन नवीन ढंग से सोचने का ढंग है, जो सृजनशीलता को भी इंगित करता है। मूल्यांकन उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर निर्णय लेने न निष्कर्ष पर पहुँचने की क्रिया है।

गिलफोर्ड मॉडल की तीसरी विमा परिमाण या उत्पादन है, जो भिन्न-भिन्न प्रकार की विषय- वस्तुओं के साथ विभिन्न मानसिक संक्रियाओं को करने के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं। परिणामों को गिलफोर्ड ने छः प्रकारों में बाँटा है। ये छः प्रकार हैं-सूचनाओं की इकाइयाँ, इकाइयों के वर्ग, इकाइयों में सम्बन्ध, सूचना प्रणाली, प्रत्यावर्तन प्रणाली तथा निहितार्थ प्रणाली।

मानसिक कार्यों में निहित उपर्युक्त वर्णित चार प्रकार की विषय-वस्तु, पाँच प्रकार की संक्रियाएँ तथा छः प्रकार के परिणामों के आधार पर गिलफोर्ड ने कहा कि कुल 120 (4x5x6 = 120) विभिन्न प्रकार की मानसिक योग्यताएँ हो सकती हैं, जो 120 भिन्न-भिन्न कार्यों में संलग्न होती हैं।

8. बुद्धि 'अ' तथा बुद्धि 'ब' का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक हेब ने किया है। उन्होंने बुद्धि को दो भागों में विभाजित किया है-बुद्धि A तथा बुद्धि B |

(i) बुद्धि A - हेब के अनुसार यह वह बुद्धि है, जिसका निर्धारण वंशानुक्रम से होता है अर्थात् जन्म देने वाले व्यक्तियों के जीन्स से होता है। यह बुद्धि जन्मजात होती है। यह बुद्धि वह क्षमता होती है, जो किसी व्यक्ति को किसी कार्य की रूपरेखा तैयार करने तथा उसे क्रियान्वित करने में सहायता करती है।

(ii) बुद्धि B - हेब के अनुसार यह वह बुद्धि है, जिसका निर्माण वातावरण में होता है तथा शैशव एवं बाल्यकाल में पूरा होता है। हेब के इस सिद्धान्त के विषय में भी वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक बुद्धि को जन्मजात शक्ति के रूप में लेते हैं और यह मानते हैं कि वातावरण (शिक्षा) की सहायता से इसमें बहुत कम विकास किया जा सकता है। इसके विपरीत कुछ मनोवैज्ञानिक बुद्धि को वंशानुक्रम एवं वातावरण दोनों की उपज मानते हैं। यह बात दूसरी है कि अधिकतर विद्वान् इसके विकास में वंशानुक्रम का अधिक योग मानते हैं, पर बुद्धि को जन्मजात (बुद्धि A) और वातावरण की देने (बुद्धि B) दो रूपों में अलग-अलग मानना युक्ति-संगत नहीं है।

9. फ्लूड तथा क्रिस्टेलाइज्ड सिद्धान्त - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक कैटल ने किया। कैटल ने मानवीय बुद्धि को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया-

(i) तरल बुद्धि - तरल बुद्धि से कैटल का तात्पर्य प्रत्यक्षीकरण की योग्यता से है। उनके अनुसार यह बुद्धि प्रत्ययों का निर्माण करने और उन्हें पुनर्गठित करने में सहायता करती हैं। यह उन अभाषिक कार्यों को करने में अधिक सहायक होती है, जिनको करने में पूर्व अनुभव और सामाजिक एवं शैक्षिक पृष्ठभूमि का सम्बन्ध नहीं होता। इस बुद्धि के निर्धारण में वंशानुक्रम का अधिक महत्त्व होता है और यह बुद्धि बचपन में सर्वाधिक होती है तथा 20 वर्ष की आयु के बाद घटना शुरू हो जाती है।

(ii) क्रिस्टेलाइज्ड बुद्धि - कैटल के अनुसार यह वह बुद्धि है, जो व्यक्ति के सांस्कृतिक ज्ञान, शिक्षा तथा अन्य अनुभवों पर निर्भर करती है। इस बुद्धि में निरन्तर विकास होता है और उसका यह विकास पर्यावरण पर अधिक निर्भर करता है। परन्तु अधिकतर मनोवैज्ञानिक बुद्धि को इस प्रकार के दो भागों में विभाजित करने के पक्ष में नहीं हैं। इनका तर्क है कि बुद्धि अपने में एक पूर्ण इकाई है और उसका विकास वंशानुक्रम एवं वातावरण दोनों पर निर्भर करता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ बताइये एवं इसकी प्रकृति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान और शिक्षा के सम्बन्ध का विवेचन कीजिये और बताइये कि मनोविज्ञान ने शिक्षा सिद्धान्त और व्यवहार में किस प्रकार की क्रान्ति की है?
  3. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की भूमिका या महत्त्व बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। शिक्षक प्रशिक्षण में इसकी सम्बद्धता क्या है?
  5. प्रश्न- वृद्धि और विकास से आपका क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- वृद्धि और विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- वृद्धि और विकास को परिभाषित करें तथा वृद्धि एवं विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- बाल विकास के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- विकास से आपका क्या अभिप्राय है? बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन- कौन-सी हैं? विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन के महत्त्व को समझाइये।
  11. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान एवं अधिगमकर्त्ता के सम्बन्ध की विवेचना कीजिये।
  13. प्रश्न- शैक्षिक सिद्धान्त व शैक्षिक प्रक्रिया के लिये शैक्षिक मनोविज्ञान का क्या महत्त्व है?
  14. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र स्पष्ट कीजिये।
  15. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के कार्यों को स्पष्ट कीजिये।
  16. प्रश्न- मनोविज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट कीजिये।
  17. प्रश्न- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
  18. प्रश्न- अभिवृद्धि तथा विकास से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- विकास का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
  21. प्रश्न- बालक के सम्बन्ध में विकास की अवधारणा क्या है? समझाइये |
  22. प्रश्न- विकास के सामान्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- अभिवृद्धि एवं विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  24. प्रश्न- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? उल्लेख कीजिए।
  25. प्रश्न- बाल विकास में वंशानुक्रम का क्या योगदान है?
  26. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है? इसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये। इस अवस्था में शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिये।
  27. प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  28. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिये?
  29. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है? बाल्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- बाल्यावस्था में शिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
  31. प्रश्न- 'बाल्यावस्था के विकासात्मक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- किशोरावस्था से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त की. विवेचना कीजिए।
  33. प्रश्न- किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  34. प्रश्न- किशोरावस्था में शिक्षा के स्वरूप की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
  37. प्रश्न- जीन पियाजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत को समझाइये |
  38. प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक मनोविज्ञान एवं मानव विकास)
  40. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानव वृद्धि एवं विकास )
  41. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तिगत भिन्नता )
  42. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैशवावस्था, बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था )
  43. प्रश्न- सीखने की संकल्पना को समझाइए। 'सूझ' सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
  44. प्रश्न- अधिगम की प्रकृति को समझाइए।
  45. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
  46. प्रश्न- सूझ सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
  47. प्रश्न- 'प्रयत्न एवं त्रुटि' तथा 'सूझ' द्वारा सीखने में भेद कीजिए।
  48. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
  50. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के प्रयोग का उल्लेख कीजिए और बताइये कि इस प्रयोग द्वारा निकाले गये निष्कर्ष, शिक्षण कार्य को कहाँ तक सहायता पहुँचाते हैं?
  51. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त का शिक्षा में उपयोग बताइये।
  53. प्रश्न- शिक्षण में प्रयत्न तथा भूल द्वारा सीखने के सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिये।
  54. प्रश्न- 'अनुबन्धन' से क्या अभिप्राय है? पावलॉव के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  56. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
  57. प्रश्न- अनुकूलित अनुक्रिया से आप क्या समझते हैं? इस सिद्धान्त का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
  58. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  59. प्रश्न- स्किनर का सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त क्या है? उल्लेख कीजिए।
  60. प्रश्न- स्किनर के सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- पुनर्बलन का क्या अर्थ है? इसके प्रकार बताइये।
  62. प्रश्न- पुनर्बलन की सारणियाँ वर्गीकृत कीजिए।
  63. प्रश्न- सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया. सिद्धान्त अथवा पुर्नबलन का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
  64. प्रश्न- अधिगम के गेस्टाल्ट सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और इस सिद्धान्त के सबल तथा दुर्बल पक्ष की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- समग्राकृति पूर्णकारवाद की विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
  67. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि तथा सूझ के सिद्धान्त से सीखने की क्या विशेषताएँ हैं।
  68. प्रश्न- पूर्णकारवाद के नियम को स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि को प्रभावित करने वाले कारक एवं शिक्षा में प्रयोग बताइये।'
  70. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- रॉबर्ट मिल्स गेग्ने का जीवन-परिचय दीजिए तथा इनके द्वारा बताये गये सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- गेग्ने के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- गेग्ने के योगदान को संक्षेप में बताइये।
  74. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर अभिप्रेरणा का अर्थ स्पष्ट करते हुए अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।।
  75. प्रश्न- अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं? उल्लेख कीजिये।
  77. प्रश्न- अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है? अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  78. प्रश्न- अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- अभिप्रेरणा का उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त को समझाइये |
  82. प्रश्न- शैक्षिक दृष्टि से अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है?
  83. प्रश्न- आवश्यकता चालन एवं उद्दीपन के सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- कक्षा शिक्षण में पुरस्कार या प्रोत्साहन की क्या आवश्यकता है?
  85. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण क्या है? अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइये।
  86. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइए।
  87. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण से क्या तात्पर्य है? अधिगम स्थानान्तरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण की दशाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  89. प्रश्न- अधिगमान्तरण के विभिन्न सिद्धान्तों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम )
  91. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अभिप्रेरणा )
  92. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम का स्थानान्तरण )
  93. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर बुद्धि का अर्थ स्पष्ट करते हुये बुद्धि की प्रकृति या स्वरूप तथा उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
  94. प्रश्न- बुद्धि की प्रकृति एवं स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- बुद्धि की विशेषताओं को समझाइये।
  96. प्रश्न- बुद्धि परीक्षा के विभिन्न प्रकार कौन-से हैं? वैयक्तिक व सामूहिक बुद्धि परीक्षा की तुलना कीजिये।
  97. प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं?
  98. प्रश्न- शाब्दिक व अशाब्दिक तथा उपलब्धि परीक्षण को स्पष्ट कीजिये।
  99. प्रश्न- वाचिक अथवा अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण से क्या अभिप्राय है? उल्लेख कीजिये।
  100. प्रश्न- स्टैनफोर्ड बिने क्या है?
  101. प्रश्न- बर्ट द्वारा संशोधित बुद्धि परीक्षण को बताइये।
  102. प्रश्न- अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण के प्रकार बताइये।
  103. प्रश्न- वाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षण कौन-से हैं?
  104. प्रश्न- अवाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षणों का वर्णन कीजिये।
  105. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  106. प्रश्न- सृजनात्मकता से क्या तात्पर्य है? इसके स्वरूप तथा प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- सृजनात्मक की परिभाषाएँ बताइए।
  108. प्रश्न- सृजनात्मकता के स्वरूप बताइए।
  109. प्रश्न- सृजनात्मकता से आप क्या समझते हैं? अपने शिक्षण को अधिक सृजनशील बनाने हेतु आप क्या करेंगे? विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- सृजनात्मकता की परिभाषा दीजिए तथा सृजनात्मक छात्रों का पता लगाने की विधि स्पष्ट कीजिए।
  111. प्रश्न- सृजनात्मकता एवं समस्या समाधान पर टिप्पणी लिखिए।
  112. प्रश्न- कक्षा वातावरण किस प्रकार विद्यार्थियों की सृजनात्मकता के विकास को प्रभावित करता है? सृजनात्मकता को विकसित करने हेतु आप ब्रेनस्टार्मिंग का प्रयोग कैसे करेंगे?
  113. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  114. प्रश्न- समूह कारक या संघसत्तात्मक सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  115. प्रश्न- बुद्धि के बहु-प्रकारीय सिद्धान्त की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (बुद्धि एवं सृजनात्मकता )
  117. प्रश्न- व्यक्तित्व क्या है? उनका निर्धारण कैसे होता है? व्यक्तित्व की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- व्यक्तित्व के लक्षणों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन हैं?
  120. प्रश्न- व्यक्तित्व के जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  122. प्रश्न- समूह चर्चा से आपका क्या अभिप्राय है? समूह चर्चा के उद्देश्य एवं मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
  123. प्रश्न- व्यक्तित्व मूल्यांकन की प्रश्नावली विधि को समझाइए।
  124. प्रश्न- व्यक्तित्वं मूल्यांकन की अवलोकन विधि से आप क्या समझते हैं?
  125. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ बताइए तथा छात्रों की मानसिक अस्वस्थता के क्या कारण हैं? शिक्षक उन्हें दूर करने में उनकी सहायता कैसे कर सकता है?
  126. प्रश्न- बालकों के मानसिक अस्वस्थता के क्या कारण हैं?
  127. प्रश्न- बालकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति के उपाय बताइये।
  128. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के विचार को स्पष्ट कीजिए। विद्यालय की परिस्थितियाँ शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  129. प्रश्न- विद्यालय की परिस्थितियाँ शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  130. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में कौन-सी विशेषता होती है?
  131. प्रश्न- मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में कौन-कौन-सी विशेषताएँ होती हैं?
  132. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के उपायों पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- कौन-कौन से कारक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने के उपाय बताइए।
  134. प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के उपाय बताइये।
  135. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के प्रमुख तत्व बताइये।
  136. प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?
  137. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का महत्व बताइये।
  138. प्रश्न- बालक के मानसिक स्वास्थ्य के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका होती है?
  139. प्रश्न- बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उसके कुटम्ब का क्या योगदान है?-
  140. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के नियमों की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- मानसिक स्वच्छता क्या है?
  142. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तित्व )
  143. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानसिक स्वास्थ्य)

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