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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2698
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |

उत्तर -

स्वतन्त्रता के उपरान्त भारत में प्रजातन्त्रात्मक समाजवाद की स्थापना के लिए प्रजातन्त्रात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया। प्रजातन्त्र के सिद्धान्त स्वतन्त्रता, समानता न्याय तथा भ्रातृत्व की भावना पर आधारित है। प्रत्येक समाज की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं किन्तु लोकतान्त्रिक समाज में देश की सारी जनता शासन प्रणाली में हिस्सा लेती है। अर्थात् लोकतन्त्र केवल सरकार की ही शासन प्रणाली नहीं होती अपितु यह सामाजिक प्रणाली भी होती है। लोकतान्त्रिक समाज में नागरिकों का शिक्षित होना, अपने कर्त्तव्यों एवं अधिकारों के प्रति जागरूक एवं सजग होना आवश्यक होता है। क्योंकि शिक्षित एवं जागरूक जनता ही अपने जनतन्त्रीय अधिकारों का सही तरीके से उपयोग कर पाते हैं। लोकतन्त्रीय शासन को चाहिए कि वह ऐसी शिक्षा एवं संचार की व्यवस्था करे जिससे समस्त नागरिक लोकतन्त्रीय आदर्शों एवं मान्यताओं से भली-भाँति परिचित हो जाए। लोकतन्त्र की सफलता शिक्षित समाज पर निर्भर करती है। यदि देश के नागरिक समुचित रूप से शिक्षित नहीं हैं तो लोकतन्त्र तथा सामाजिक प्रणाली की सफलता संकट में पड़ सकती है।

लोकतन्त्र एक आदर्श शासन प्रणाली के साथ-साथ एक आदर्श सामाजिक प्रणाली है। इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

(1) व्यक्ति स्वतन्त्रता का सिद्धान्त - व्यक्ति स्वतन्त्रता के सिद्धान्त का तात्पर्य है कि व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत निर्णय की स्वतन्त्रता होती है और वह अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी है। जनतन्त्र में बहुमत का राज्य होता है, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता होती है कि वह अपना मत व्यक्त कर सके और दूसरों को अपने दृष्टिकोण की ओर आकर्षित कर सके। परन्तु व्यक्ति की इस स्वतन्त्रता से तात्पर्य यह नहीं है कि वह पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है, उस पर कोई बन्धन नहीं है और वह मनमानी कर सकता है। यदि ऐसा होगा और व्यक्ति अपनी मनमानी करेगा तो किसी भी व्यक्ति को वास्तविक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं हो सकेगी। इस कारण जनतन्त्र के लिए दूसरा सिद्धान्त भी महत्त्वपूर्ण है।

(2) समानता का सिद्धान्त - समाज में प्रत्येक व्यक्ति को बराबर अधिकार है। यदि प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त होंगे तो प्रत्येक व्यक्ति वही करने का अधिकारी होगा जिससे दूसरे व्यक्ति की स्वतन्त्रता में बाधा न पड़े। इस सिद्धान्त से तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को विकास तथा उन्नति करने का अधिकार है और उसे ऐसे अवसर प्राप्त होने चाहिए जिनसे वह अपने जीवन को अपनी योग्यतानुसार सबसे उत्तम बना सके।

(3) अधिकारों में कर्त्तव्य निहित है - यह सिद्धान्त दूसरे सिद्धान्त की ही एक शाखा है। जब मैं कहता हूँ कि मेरा अधिकार यह है तो इसमें दूसरों के कर्त्तव्य निहित रहते हैं। मुझे अधिकार उसी समय प्राप्त हो सकते हैं, जब दूसरे अपने कर्त्तव्यों को निभाने के लिए तत्पर हों। जैसे- यदि मुझे शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने का अधिकार है तो दूसरों का कर्त्तव्य यह है कि वे मुझे व्यर्थ न सतायें।

(4) लोक कल्याण के लिए पारस्परिक सहयोग प्राप्त करना - जनतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति की भलाई पर बल दिया जाता है। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह सामान्यतः सम्पूर्ण समाज की भलाई के लिए प्रयत्नशील रहे। यदि ऐसा नहीं होगा तो प्रत्येक अपने ही लाभ की बात सोचेगा, हर व्यक्ति अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद अलग बनायेगा और इस प्रकार जनहित और लोक कल्याण का कोई महत्त्व नहीं रहेगा। ऐसी दशा में जनतन्त्र की जड़े हिल उठेंगी।

(5) बौद्धिक स्वातन्त्रय में विश्वास, बल प्रयोग और हिंसा में नहीं वरन वाद विवाद द्वारा बुझाने और शान्तिमय एवं वैधानिक तरीकों में विश्वास - बुद्धि का उपयोग मानव सदैव करता आया है। परन्तु यहाँ जिस रूप में बुद्धि का उपयोग आवश्यक समझा गया है, वह है- वैधानिक विधि जनतन्त्र की सफलता वहाँ के नागरिकों द्वारा वैधानिक विधि का प्रयोग अपने निर्णय इत्यादि में करने पर निर्भर है। बुद्धि का उपयोग स्वतन्त्रतापूर्वक होना चाहिए। जॉन मिल्टन स्वतन्त्रतापूर्वक से तात्पर्य समझते हैं-" जानने की, बात करने की तथा वाद विवाद करने की चेतना के अनुसार स्वतन्त्रता।" उन्होंने इसे सब स्वतन्त्रताओं से उच्च माना है।

जनतन्त्र में इस प्रकार के अधिकार व्यक्ति तथा जनता, दोनों को प्राप्त होने चाहिए ताकि व्यक्ति स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचार व्यक्त कर सकें और वह यह भी सुन सके कि दूसरों के विचार क्या हैं। जनतन्त्र की सफलता के लिए इस प्रकार की स्वतन्त्रता अत्यन्त आवश्यक है। निरंकुश शासन में अथवा अधिनायक तंत्र में मानव अपने विचार स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त नहीं कर सकता। उस पर हर प्रकार के नियन्त्रण लगाये जाते हैं और उसके लिये निर्णय सरकार द्वारा दिए जाते हैं। उसके विचारों को ऐसा मोड़ दिया जाता है कि वह हर प्रश्न पर एक ही पहलू से विचार करे। वह पहलू राज्य सरकार द्वारा ही निर्धारित होता है। वर्तमान काल में झूठे प्रचार इत्यादि भी विचारों की स्वतन्त्रता को नष्ट कर देते हैं। कुछ देशों के व्यक्तियों को राज्य सरकार के विरुद्ध या राज्य सरकार की किसी भी नीति की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। यदि इन देशों का कोई भी नागरिक आलोचना का साहस करता है तो उसे क्रूरतापूर्वक दबा दिया जाता है। सजा के भय से उसका मुँह बन्द कर दिया जाता है। कहीं-कहीं तो ऐसे स्वतन्त्र आलोचकों को गोली से उड़ा दिया जाता है।

जनतन्त्र एक ऐसी भावना पर आधारित है जो मानवों के साथ उपर्युक्त व्यवहार को घृणा की दृष्टि से देखती है। जनतन्त्र में बिना किसी भय के नागरिकों को अपना मत प्रदान करने की स्वतन्त्रता होती है। उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे विचार-विमर्श द्वारा आपस में विचारों के आदान-प्रदान से ऐसे निर्णय पर आये जो जनहित के लिए उपयोगी हों।

(6) विचार-विमर्श की स्वतन्त्रता का सिद्धान्त – यह सिद्धान्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जनतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को यह स्वतन्त्रता होती है कि वह स्वयं अपने लिए चिन्तन करे और अपने विचारों तथा विश्वासों को दूसरों के समक्ष रखे। उसे स्वतन्त्रता होती है कि वह अपने विचारों को उस समय भी व्यक्त कर सके जब वे दूसरे व्यक्तियों के विचारों से मेल न खाते हों।

इसके साथ-साथ वह अपने विचारों को दूसरों के अनुकूल भी बना सकता है और दूसरों को अपने विचारों के अनुकूल।

जनतन्त्र में प्रत्येक समस्या पर सार्वजनिक रूप से विचार-विमर्श होता है। जनतन्त्र की सफलता का धोतक होता है। यहाँ कोई व्यक्ति अपना मत दूसरों पर शक्ति या डण्डे के जोर से नहीं थोप सकता, वरन उसे अपने मत को इस प्रकार दूसरों के समक्ष रखना होगा कि वे उससे सहमत हो जायें। वह अपने मत की विशेषताएँ और जनहित के लिए उसका महत्त्व व्यक्तियों को बता सकता है और यदि वे सन्तुष्ट हो जाते हैं तो उसका मत सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
  3. प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
  4. प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये |
  5. प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  8. प्रश्न- वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए पाठ्यक्रम में किस प्रकार के बदलाव किये जाने चाहिये?
  9. प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति ने शिक्षा में कौन-सी नयी विचारधाराओं को उत्पन्न किया?
  10. प्रश्न- शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना करने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- शान्तिपूर्ण एवं सामूहिक रहने के लिये विभिन्नता में एकता स्थापित करने में शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारतीय सन्दर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधानों को भी स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करने वाले कारक कौन-से हैं? धर्मनिरपेक्षता के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
  15. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन हुए?
  16. प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताओं एवं इसके विकास में विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  17. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका है?
  18. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रक्रिया, रूप एवं प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
  20. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रूप बताइये।
  21. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
  22. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  23. प्रश्न- आर्थिक विकास का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास के साधन के रूप में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  24. प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
  26. प्रश्न- "शिक्षा एक सामाजिक एवं गत्यात्मक प्रक्रिया है। " इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा का समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  31. प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  34. प्रश्न- वर्तमान समाज में परिवार का स्वरूप बदल गया है। स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- भारतीय सामाजिक व्यवस्था में असमानताओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
  36. प्रश्न- सामाजीकरण में परिवार का क्या महत्त्व है?
  37. प्रश्न- सामाजिक व्यवस्था की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  38. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
  39. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  40. प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  42. प्रश्न- सांस्कृतिक विकास की कुछ समस्याएँ बताइये।
  43. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना से आप क्या समझते हैं?
  44. प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक का उल्लेख कीजिए।
  46. प्रश्न- शिक्षा सांस्कृतिक परिवर्तन कैसे लाती है?
  47. प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार से क्या तात्पर्य है?
  48. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (समाजशास्त्र और शिक्षा का सम्बन्ध)
  49. प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिये। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
  50. प्रश्न- भारतीय संविधान की अवधारणा बताइए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
  51. प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  52. प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारतीय संविधान के अन्तर्गत वर्णित शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न धाराओं का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- भारतीय संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान क्या-क्या हैं?
  55. प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में लिखित नीति-निदेशक तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
  56. प्रश्न- समानता, बन्धुता, न्याय व स्वतंत्रता की संवैधानिक वादे के संदर्भ में शिक्षा के लक्ष्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थीं?
  58. प्रश्न- प्रस्तावना से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना तथा इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  63. प्रश्न- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 45 का वर्णन कीजिए।
  64. प्रश्न- प्रजातन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रजातन्त्र के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए।
  65. प्रश्न- प्रजातन्त्र के प्रमुख गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- लोकतंत्र का क्या अर्थ है? भारतीय लोकतंत्र के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतीय लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- "आधुनिक शिक्षा में लोकतांत्रिक प्रवृष्टि दृष्टिगोचर होती है।' स्पष्ट कीजिए तथा लोकतांत्रिक समाज में विद्यालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |
  71. प्रश्न- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
  72. प्रश्न- शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिये।
  73. प्रश्न- जनतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। जनतंत्र पर शिक्षा के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- शिक्षा में जनतन्त्र से आप क्या समझते हैं? सोदाहरण पूर्णतः स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- विद्यालय में प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? विद्यालय में प्रजातान्त्रिक वातावरण बनाए रखने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
  76. प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- लोकतंत्र और अनुशासन में सम्बन्ध बताइए।
  78. प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षक एवं शिक्षार्थी में सम्बन्ध बताइए।
  79. प्रश्न- लोकतंत्र में विद्यालयों की क्या भूमिका होती है?
  80. प्रश्न- लोकतंत्र में शिक्षा का अन्य पहलू क्या है?
  81. प्रश्न- लोकतंत्र के लिए शिक्षा की क्या आवश्यकता है?
  82. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारत का संविधान )
  83. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा एवं प्रजातंत्र )
  84. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? समानता के क्षेत्र एवं भारत में यह कहाँ तक उपलब्ध है?
  85. प्रश्न- अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं को बताइये तथा इनके समाधान के उपायों का उल्लेख कीजिए।
  86. प्रश्न- अनुसूचित जाति की समस्याओं के समाधान के उपाय बताइये।
  87. प्रश्न- अल्पसंख्यक की अवधारणा बताइये। अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिये किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- ईसाई धर्म ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया है? उचित उदाहरणों की सहायता से वर्णन कीजिए।
  89. प्रश्न- शिक्षा में सार्वभौमीकरण से क्या तात्पर्य है? शिक्षा में सार्वभौमीकरण की कितनी अवस्थायें एवं वर्तमान में इनकी आवश्यकता एवं महत्व के कारण बताइये।
  90. प्रश्न- शिक्षा की सार्वभौमीकरण की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- सार्वभौम एवं समावेशी शिक्षा में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
  93. प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
  94. प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
  95. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना कीजिए?
  96. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है समझाइये |
  97. प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
  99. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
  100. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  101. प्रश्न- यूनेस्को के उद्देश्य व कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण के गुण एवं दोष बताइये।
  103. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय समझ की बाधाओं का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के प्रमुख कारण स्क्रेच स्रोत क्या हैं? इन्हें दूर करने हेतु व्यावसायिक सुझाव दीजिए।
  105. प्रश्न- शारीरिक चुनौतीपूर्ण बच्चों को विद्यालय पर समान शैक्षिक अवसर कैसे उपलब्ध कराए जा सकते हैं?
  106. प्रश्न- कोठारी आयोग के द्वारा प्रवेश शिक्षा के अवसर व समानता व इससे सम्बन्धित सुझाव बताइए।
  107. प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
  108. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं?
  109. प्रश्न- राष्ट्रीय आयोग के शैक्षिक अवसरों की समानता सम्बन्धी सुझावों को बताइए।
  110. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  111. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  112. प्रश्न- संविधान में अल्पसंख्यकों की सुविधाओं के लिये क्या प्रावधान किये गये हैं?
  113. प्रश्न- शिक्षा आयोग (1964-66) द्वारा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिये दिये गये सुझाव क्या हैं?
  114. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता में शिक्षक की क्या भूमिका है?
  115. प्रश्न- शिक्षा के सार्वभौमीकरण में बाधक 'शैक्षिक असमानता' को दूर करने के उपाय बताइये।
  116. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
  117. प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास कर सकती है?
  118. प्रश्न- विद्यालय को समाज से जोड़ने में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  119. प्रश्न- लोकतान्त्रिक अन्तःक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?
  120. प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
  121. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक अवसरों की समानता )
  122. प्रश्न- सर्व शिक्षा के बारे में बताइये एवं इसके लक्ष्यों, क्रियान्वयन का वर्णन कीजिए।
  123. प्रश्न- राष्ट्रीय साक्षरता मिशन क्या है? विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का वर्णन कीजिए।
  125. प्रश्न- स्त्री साक्षरता कार्यक्रम पर टिप्पणी लिखिए।
  126. प्रश्न- मध्याह्न भोजन योजना का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना का वर्णन कीजिए।
  128. प्रश्न- कॉमन स्कूल पद्धति का वर्णन कीजिये।
  129. प्रश्न- सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य बताइये।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
  131. प्रश्न- समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
  132. प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय के बारे में बताइये।
  133. प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- मिड डे मील स्कीम के गुण एवं दोष की गणना कीजिए।
  135. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक कार्यक्रम )

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